Wednesday, March 31, 2010

बिन पानी सब सून रे भइया


बुंदेलो की सुनो कहानी बुंदेलो की वाणी में ,पानी दार यहाँ का पानी आग है इसके पानी में,
बिना पानी आदमी की ज़िन्दगी या तो खमोश तबाही है या फिर ज़िन्दगी को धोने का एक अदद तरीका है आज बुदेलखंड भी
उसी रस्ते पर चला जा रहा है ये बांदा जनपद का गोबरी गाव है यहाँ की पूरी ४०० परिवारों की आबादी दलित आदवासी है जो की मवेशी ,और गोंड कहलाते है ,जहा केद्र व राज्य सरकारों के माध्यम से मनरेगा और कई ग्राम विकास योजनाये बदहाली में जीवन गुजर बसर कर रहे परिवारों के लीये चलाई जा रही है वही ये एक और सही व जमीनी हकीकत है की इन पूरी बस्तियों में पिछले ६२ सालो की आजादी के बाद भी आज तक एक भी योजना इनके घरो का दुःख दूर नहीं कर सकी है ,पूरी बस्तियों में एक मात्र सरकारी नल है वो भी माह जनवरी तक ही पानी देता है उसके बाद तो इन लोगो को एक खोफनक बीहड़ की पहाड़ी को पार करके पीने के पानी की जुगाड़ करनी पड़ती है ये लोग आज भी जीवन की मूल भुत लाभकारी योजनाओ से पूरी तरह वचित है ,किसी भी दलित के पास न तो रसन कार्ड है जो उनको माह की तंगी से छुटकारा दिलवादे ,न ही बुंदेलखंड में ३ बड़े मंत्रियो को इन लाचर और भुखमरी से मरते परिवारों की परवाह है क्योकि उनके पास विकास का सरकारी डाटा जो उपलभ्द है अकिर ये आजद भरत है,ऐतिहासिक भारत है या फिर आदम जात भारत है !

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