Friday, August 06, 2010

मंजर

कैसी बरसात हुई उसकी कहानी लिखना, खून बरसा कि तेरे शहर में पानी लिखना ,
हर तरफ आग ,धुँआ ,क़त्ल और तबाही का मंजर ,
इसमे संभव ही नहीं बात सुहानी लिखना
कोन थे वे जो यहाँ खून कि होली खेले
लुट गयी कैसे उन जवानो कि कहानी लिखना
चुन दिया वक्त ने जिस आदमी को दीवारों में ,
उसकी कोई बाकी हो अगर निशानी लिखना
मैंने हकीकत के बाज़ार में उसूलो का व्यापार नहीं किया
मेरी फितरत में नहीं खून को पानी लिखना

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