Friday, August 27, 2010

बेटी...

∆ इस लेख को पॄने के बाद मुझे यकीन है कि कोई भी महिला कभी भूण हत्या नही करेगी।
∆ भ्रूण हत्या पर कटाक्ष करते हुए अजन्मी बेटी का मां के नाम पत्र

मैं खुश हँूं और भगवान से प्रार्थना करती हूँ कि आप भी सुखी रहें। यह पत्र मैं इसलिये लिख रही हँू क्योंकि मैने एक सनसनीखेज खबर सुनी है जिसे सुनकर सिर से पाँव तक काँप उठी। 
स्नेहदात्री माँ! आपको मेरे कन्या होने का पता चल गया है और आप मुझ मासूम को जन्म लेने से से रोकने जा रही हैं। यह सुनकर मुझे तो यकी नही नहीं हुआ। भला मेरी प्यारीप्यारी कोमल ह्रदया मां ऐसा कैसे कर सकती है? कोख में पल रही अपनी लाडली के सुकुमार शरीर नश्तरों की चुभन एक मां कैेसे सह सकती है? 
पुण्यशीला माँ! बस, आप एक बार कह दीजिये के यह जो कुछ मैने सुना है वह सब झूठ है। दरअसल यह सब सुनकर मै दहल सी गई हँूं। मेरे तो हाथ भी इतने कोमल है कि इनसे डाक्टर की क्लीनिक की तरफ जाते वक्त आपकी चुन्नी ज़ोर से नहीं खींच सकती ताकि आपको रोक लूँ। मेरी बांह भी इतनीपतली और कमजोर है कि इन्हें आपके गले में डालकर लिपट भी नहीं सकती। 
मधुमय माँ! मुझे मारने के लिये आप जो दवा लेना चाहती हैं वह मेरे नन्हें से शरीर को बहुत कष्ट देंगी। स्नेहमयी माँ! उससे मुझे दर्द होगा। आप तो देख भी नहीं पायेंगी कि वह दवाई आपके पेट के अन्दर मुझे कितनी बेरहमी से मार डालेगी। डाक्टर की हथौड़ी कितनी क्रूरता से मेरी कोमल खोपड़ी के टुकड़ेटुकड़े कर डालेगी। उसकी कैंची मेरे नाज़ुकनाज़ुक हाथ पैरों को काट डालेगी। अगर आप यह दृश्य देखती तो ऐसा करने को कभी सोचती भी नहीं। 
सुखमयी माँ! मुझे बचाओ....... कृपा करो, दयामयी माँ! मुझे बचाओ ...वह दवा मुझे आपके शरीर से इस तरह फिसला देगी जैसे गीले हाथों से साबुक की टिकिया फिसलती है। भगवान के लिये माँ। ऐसा मत करना। मैं यह पत्र इसालिये लिख रही हँूं क्योंकि अभी तो मेरी आवाज़ भी नहीं निकलती। कहँू भी तो किससे और कैसे? मुझे जन्म लेने की बड़ी ललक है माँ! अभी तो आपके आंगन में मुझे नन्हेंनन्हें पैंरों से छमछम नाचना है, आपकी ममता भरी गोद में खेलना है। 
...चिंता नहीं करों माँ! मैं आपका खख्र नहीं ब़ाऊँगी। मत लेकर देना मुझे पायल...! मैं दीदी की छोटी पड़ गई पायल पहन लूँगीं। भैया के छोटे पड़ गये कपड़ों से तन ़ाक लूँगी, माँ! बस एक बार..एक बार मुझे इस कोख से निकालकर चाँदतारों से भरे आपके आसमान तले जीने का मौका तो दीजिये। मुझे भगवान की मंगलमय सृष्टि का विलास तो देखने दीजिये। 
मैं आपकी बेटी हॅूं, आपकी लाडली शहज़ादी। मुझे अपने घर में आने दो माँ! बेटा होता तो आप पाल लेती फिर मुझमें क्या बुराई है? क्या आप दहेज के डर से मुझे नहीं चाहती? ना..ना.. आप दहेज से मत डरना यह सब कुछ भुलावा है। कुछ कोशिश आप करना, कुछ मैं करुँगी। बड़ी होकर मैं अपने पैरों में खड़ी हो जाऊँगी, फिर दहेज क्या चीज़ है? इसका भय तो फुर्र हो जायेगा। देखना...! मेरे हाथों पर भी मेंहदी रचेगी, शगुनकारी डोली निकलेगी और आपके आँगन से चिड़िया बनकर मैं उड़ जाऊँगी। आज अभी से मुझे मत उड़ाइये। मैं आपका प्यार चाहती हँू। 
एक बेटे के लिये कई मासूम बेटियों की बलि देना कहाँ तक उचित है? आखिर यह महापाप भी तो आप और आपके चहेते बेटे के सिर पर ही च़ेगा। ना..ना.. ऐसा कभी मत होने देना, माँ.......मेरी प्यारी माँ। अब कृपा करके मुझे जन्म दे दीजिये। मुझे मत मारिये, अपनी बगल की डाल पर फूल बनकर खिल जाने दीजिये।

                                                                            

Labels:

0 Comments:

Post a Comment

Subscribe to Post Comments [Atom]

<< Home