Saturday, June 12, 2010

Drought in Bundelkhand/ Ajay Prakash

बुंदेलखंड में सूखा, किसान परेशान

Water crisis forces migration in Bundelkhand

Wednesday, June 09, 2010

(अपना घर )

Apna Ghar for Helping life in Bundelkhand
(अपना घर)

बांदा/बुन्देलखण्ड: आज शहर मुख्यालय जनपद बांदा में स्थानीय सिविल लाइन्स वन विभाग कार्यालय में प्रवास सोसाइटी की प्रबन्ध कार्यकारिणी बैठक आयोजित की गयी। बैठक का मूल उद्देश्य यह रहा कि बुन्देलखण्ड में दिन प्रतिदिन बढ़ रही भिक्षावृत्ति और खास तरह से असहाय बुजुर्ग जो कि गांव से परिवार छोड़कर शहरों की तरफ पलायन कर रहे हैं एवं जिन्हे परिवार के सदस्यों द्वारा त्याग दिया गया है ऐसे ही निरीह लाचार लोगों के भोजन के अधिकार की सुरक्षा हेतु अपना घर नाम से दीर्घकालिक कार्यक्रम का संकल्प लिया गया है। शुरूआती दौर में अपना घर में 15 ऐसे बेबस बुजुर्ग महिला पुरूष व वो बच्चियां जिन्हे परिवार से त्यागा जा चुका है और वो जनपद में भीख मांगकर अपना जीवन बसर करती हैं को सदस्य रूप में अंगीकार किया जायेगा। इनका पंजीयन अपना घर की पंजीयन पुस्तिका में होगा।
साथ ही इस सम्पूर्ण कार्य दिवस में यदि उक्त सदस्यों की मृत्यु हो जाती है तो उनका दाह संस्कार भी अपना घर ही करेगा। बैठक में सहमति व्यक्त करते हुए मानवोदय सेवा संस्थान के विमलेश त्रिपाठी ने सुझाव दिया कि यदि अपना घर में भोजन ग्रहण करने वाले सदस्य कभी भी भीख मांगते या धन एकत्र  करने की लालसा में शहर की गलियों में घूमते पाये जाते हैं तो उनकी सदस्यता अपना घर से समाप्त कर दी जायेगी। क्योंकि इस पवित्र उद्देश्य का यथार्थ यह है कि बुन्देलखण्ड में टूटती हुयी जीवन प्रत्याषा को हमेशा के लिये रोका जाये। इसके साथ ही संध्या निषाद ने यह विचार रखा कि एक अक्षय पात्र भी अपना घर में बनाया जायेगा। जिसमें जन सहयोग से व स्वयं के प्रयास से जो अन्न दान एकत्र होगा उसे इन निरीह व्यक्तियों के हितार्थ उपयोग किया जायेगा।
इस कार्य हेतु यदि प्रशासन की तरफ से अथवा आम जनता की तरफ से कोई अपना भवन स्वेक्षा से अथवा किराये पर देना चाहता है, तो उसका स्वागत है। आम जनमानस अपने सुझाव इस पुनीत कार्य हेतु हेल्पलाइन नम्बर   9621287464   एवं ई-मेल-  apnagharbnd@gmail.com   में भेज सकता है। साथ ही प्रवास के खाता संख्या 24002, शाखा इलाहाबाद बैक सिविल लाइन्स, डिग्री कालेज जनपद बांदा में अपनी सहयोग राशि प्रेषित कर सकते हैं। इस कार्यक्रम को व्यापक स्तर पर आनलाइन भी प्रमोट किया जायेगा। सर्वप्रथम शहर के वरिष्ठ नागरिक पदम् नारायण ने अपना घर को पांच हजार रूपये नगद किराये भवन की तलाश हेतु एवं प्रतिमाह एक बोरा गेंहू स्वेक्षा से दान करने का संकल्प लिया है। ताकि जनपद बांदा मेंकुसुमकली और शिवदेवी जैसे लोग पुनः भीख मांगते न पाये जायें। उक्त बैठक में मन्दाकिनी बचाव आन्दोलन की संयोजक अर्चना मिश्रा, निर्मला देवी, सरोज शुक्ला, अखिलेश कुमार, आदित्य, रचना एवं प्रवास के आशीष सागर ने इस संकल्प को फलीभूत करने का आत्मिक रूप में संकल्प लिया है।
उक्त कार्यक्रम अपना घर की शुरूआत यथाषीघ्र भवन मिलते ही प्रारम्भ कर दी जायेगी। इसके लिये आम जन से सहयोग करने की अपील की गयी।

भवदीय
आशीष सागर, प्रवास बुन्देलखण्ड

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केन बेतवा नदी गठजोड़ परियोजना नहीं.. बुन्देलखण्ड की खामोश मौत

केन बेतवा नदी गठजोड़ परियोजना नहीं.. बुन्देलखण्ड की खामोश मौत !

  • जल, जमीन, जंगल एवं जैव विविधता पर खतरा
  • पारम्परिक कृषि दुष्प्रभाव
  • बांधों व नहर निर्माण के कारण सैकड़ों गांवो का विस्थापन
  • मछुवारों व तालाबों पर विपरीत प्रभाव
  • अन्तर्राज्जीय विवाद (यू0पी0-म0प्र0 सीमांकन)
  • हजारों वर्ग किलोमीटर की उपजाऊ भूमि, वन्य जीव जन्तु एवं पन्ना नेशनल टाईगर पार्क भूमि अधिग्रहण के दायरे में।
आज सारा विश्व एक कुनबे के रूप में आम जन मंच पर खड़े होकर अपने अपने देश, प्रदेश की वसुन्धरा को बचाने की गुहार करने की मुहिम में बढ़ चढ़कर हिस्सा ले रहा है वहीं वीभत्स अकाल यात्रा के कारण पिछले छः वर्षों से अकाल की मांद में पिसता चला आ रहा बुन्देलखण्ड अपनी उसी पुरानी टीस के साथ आज विष्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर केन बेतवा नदी गठजोड़ परियोजना के विरोध में सामूहिक रूप से सड़कों पर अपनी ही अस्मिता की जन सुनवाई लेकर केन्द्र और राज्य सरकारों के सामने विरोध में आ खड़ा हुआ है।
चित्रकूट धाम मण्डल जनपद बांदा में आज प्रातः जब सारा विश्व, विश्व पर्यावरण दिवस पर अपनी-अपनी औपचारिकताऎं महज निभाकर जलवायु परिवर्तन से टूट चुकी धरती के प्रति संवेदना व्यक्त करने का प्रयत्न कर रहा था उसी समय बदहाली से दशकों पीछे पहुंच चुका बुन्देलखण्ड जल संकट को आम जन मुद्दा बनाते हुए केन बेतवा नदी गठजोड़ के खिलाफ एक सामूहिक हस्ताक्षर अभियान एवं हजारों जन संदेश लिखित पोस्टकार्डों जो कि मा0 प्रधानमंत्री डां0 मनमोहन सिंह को संबोधित हैं में अपनी क्षेत्र की परिस्थितियों एवं व्यवहारिक परिणीतियों को व्यक्त कर प्रेषित करने की जुगत में 52 डिग्री दहकते तापमान के बीच भूख और प्यास को झेलते हुए बूढ़े, बच्चे, महिलायें और खासकर गरीब किसान के साथ सैकड़ो अधिवक्ता कचेहरी कैम्पस, महेश्वरी देवी चैराहा, न्यू मार्केट, रोडवेज बस स्टैण्ड में पर्यावरण के प्रति लोगों को जागरूक करते हुए इस सामूहिक जन आन्दोलन में अपनी उपस्थिति के साथ दर्ज होने की अपील कर रहा था।
इस आन्दोलन में प्रवास सोसाइटी के नेतृत्व में अन्य समाज सेवी संगठन जिनमें प्रमुख रूप से बुन्देलखण्ड भविष्य परिषद, मानवोदय सेवा संस्थान, बामसेफ कार्यकर्ता रामफल चैधरी, डा0 शैलेष कुमार रंजन, मन्दाकिनी बचाव की संयोजक अर्चना मिश्रा, जनषक्ति महिला संगठन एवं आषीष सागर ने उन तमाम खामियों की मुखालफत करते हुए इस प्रस्तावित परियोजना में खर्च होने वाली 7615 करोड़ की भारी भरकम राशि एवं योजना की नीति की पुर्नसमीक्षा करते हुए इसे बुन्देलखण्ड में गहराते हुए जलसंकट, जल, जमीन जंगल तीनों ही दृष्टि में इसको प्रतिकूल बताते हुए प्रधानमंत्री महोदय से केन बेतवा नदी गठजोड़ को मृत किये जाने की मांग करते हुए "प्लीज काल मी" कार्यक्रम के तहत सैकड़ों फोन काल्स एवं फैक्स व ज्ञापन केन्द्र सरकार को भेजे हैं और सामूहिक रूप से यह निर्णय लिया कि इस परियोजना के निर्णायक परिणाम तक प्रत्येक माह की 5 तारीख को यह आन्दोलन बुन्देलखण्ड के प्रति जनपद वार तहसीलों और गांवों में चलाया जायेगा।

‘‘नदियों को कल-कल बहने दो। लोगों को जिन्दा रहने दो।।’’

आषीष सागर, प्रवास, बुन्देलखण्ड

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घटते हुए जंगलों व वन्य जीवों की कम होती संख्या से जैव विविधता को खतरा

बुन्देलखण्ड: घटते हुए जंगलों व वन्य जीवों की कम होती संख्या से जैव विविधता को खतरा

आंकड़ों के खेल में सरकारे बनी तमाशबीन
वैश्विक भूमण्डलीकरण व जलवायु परिवर्तन से मचा हुआ चैतरफा हल्ला कोपेनहैगन से लेकर बुन्देलखण्ड की सरजमीन तक आ पहुंचा लेकिन हाल फिलहाल दूर दूर तक इससे उबरने के आसार दिखाई नहीं पड़ते हैं। वो भी ऐसे हालात में जबकि बेतरतीब पहाड़ों का खनन व उनमें प्रवास करने वाले वन्य जीव जन्तुओं का विस्थापन और घटते हुए वन क्षेत्र से भूगर्भ जलस्तर एवं पर्यावरण अपनी यथा स्थिति से तबाही की एक नई इबारत की तरफ लगातार बढ़ता चला जा रहा है। जन सूचना अधिकार 2005 से प्राप्त आंकड़ों पर गौर करें तो हालात बड़े नाजुक व संवेदनषील हैं मगर क्या करें जब प्रषासन में बैठे बिचैलिये और सरकारें संवेदनाहीन हो चुकी हैं ऐसे में नक्कारखाने में ढोल पीटना खुद के सर फोड़ने जैसा है। गौरतलब है कि बुन्देलखण्ड के छः जनपदों में क्रमषः प्रभागीय वनाधिकारियों से जो तथ्य हासिल हुये हैं वे पर्यावरण और ग्लोबल वार्मिंग के लिये किस हद तक जिम्मेवार हैं यह बानगी है इन आंकड़ों की पेशगी।

जनपद बांदा में ही कुल वन क्षेत्र 1.21 प्रतिशत शेष है जबकि राष्ट्रीय वन नीति के अनुसार किसी भी भू-भाग में 33 प्रतिशत वन क्षेत्र अनिवार्य रखा गया है। वहीं यहां 1995 से लेकर 2009 तक कुल 17 व्यक्तियों को वन्य जीव हिंसा अधिनियम के तहत जीवों पर हत्या के लिये दण्डित किया गया है। इनमें से 6 अपराधियों पर औपचारिक अर्थदण्ड की कार्यवाही करते हुए 10 व्यक्तियों का मामला अभी भी मान्नीय न्यायालय में विचाराधीन है और 1 व्यक्ति बतौर मुल्जिम 2009 से फरार है। यहां विलुप्त होने वाले जीवांे में चील, गिद्द, गौरेया व तेंदुआ है इसके साथ-साथ दुर्लभ प्रजाति के काले हिरन जो कि बुन्देलखण्ड के सातों जनपद में सिर्फ बांदा, हमीरपुर व चित्रकूट में ही पाये जाते हैं की संख्या जनपद बांदा मंे 59 है। जनपद चित्रकूट मंे 21.8 प्रतिशत वन क्षेत्र है। यहां पायी जाने वाली अति महत्वपूर्ण वन औषधियां गुलमार, मरोड़फली, कोरैया, मुसली, वन प्याज, सालम पंजा, अर्जुन, हर्रा, बहेड़ा, आंवला और निर्गुड़ी हैं। वर्ष 2009 की गणना के मुताबिक यहां काले व अन्य हिरनों की कुल संख्या 1409 है। यहां का रानीपुर वन्य जीवन विहार 263.2283 वर्ग किमी0 के बीहड़ व जंगली परिक्षेत्र में फैला है जिसे कैमूर वन्य जीव प्रभाग मिर्जापुर की देखरेख में रखा गया है।

जनपद महोबा में 5.45 प्रतिषत वन क्षेत्र है और यहां तेंदुआ, भेड़िया, बाज विलुप्त होने की कगार पर हैं। जनसूचना के अनुसार जनपद महोबा में काला हिरन नहीं पाया जाता है तथा महत्वपूर्ण वन्य औषधियां सफेद मूसली, सतावर, ब्राम्ही, गुड़मार, हरसिंगार, पिपली यहां की मुख्य वन्य औषधि हैं जो कि अब विलुप्त होने की स्थिति में हंै। महोबा सहित पूरे बुन्देलखण्ड में वर्ष 2008-09 में विशेष वृक्षारोपण अभियान कार्यक्रम मनरेगा के तहत 10 करोड़ पौधे लगाये गये थे। इस जनपद के विभिन्न विभागों द्वारा 70.7 लाख पौध रोपण कार्य किया गया है। जिसमें कि 59.56 लाख पौध जीवित है। इस वृक्षारोपण में शीशम, कंजी, सिरस, चिलबिल, बांस, सागौन आदि के वृक्ष रोपित किये गये हैं। इसके साथ ही जनपद झांसी में 70.50 लाख का लक्ष्य रखा गया था। जिसके सापेक्ष 71.61 लाख वृक्षारोपण किया गया और वर्तमान में 65.744 लाख पौध जीवित है जो कि कुल पौधरोपण का 91.81 प्रतिषत है। ऐसा प्रभागीय वनाधिकारी डाॅ0 आर0के0 सिंह का कहना है कि महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि बुन्देलखण्ड के अधिकतर जनपदों ने इस तथ्य को छुपाया है कि उनके यहां कितने प्रतिषत पौधरोपण हुआ और कितना जीवित है। यह पूर्णतः सच है कि 10 करोड़ पौधे भी आकाल और पानी की लड़ाई लड़ने वाले बुन्देलखण्ड में जंगलो को आबाद नहीं कर सकी हैं।

जनपद हमीरपुर में कुल 3.6 प्रतिषत ही वन क्षेत्र शेष हैं यहां भालू, चिंकारा, चीतल, तेंदुआ, बाज, भेड़िया, गिद्ध जैसे वन्य जीव आज षिकारियों के कारण विलुप्त होने की कगार पर हैं। दुर्लभ प्रजाति का काला हिरन यहां के मौदहा कस्बे के कुनेहटा के जंगलों में ही पाया जाता है जिनकी संख्या सिर्फ 56 रह गयी है। जनपद जालौन में 5.6 प्रतिषत वन क्षेत्र है और यहां पर काले हिरन नहीं पाये जाते हैं। इस वन प्रभाग नें 1990 से लेकर 2010 तक वन्य जीव हिंसा मंे दण्डित किये गये सभी आरोपियों की अनुसूचि को जनसूचना में शायद इसलिये उजागर नहीं किया ताकि विलुप्त होते जंगल और जीवों की फेहरिस्त मंे अपराधियों का नाम दर्ज न हो।

जनपद झांसी से मिली जानकारी के अनुसार कुल क्षेत्रफल 5024 वर्ग किमी0 है। अर्थात 502400 हेक्टेयर जिसका 33 प्रतिषत (165792) क्षेत्रफल 33420.385 हेक्टयेर अर्थात यहां पर कुल 6.66 प्रतिशत वन क्षेत्र शेष है इस प्रकार 26.34 प्रतिषत हेेक्टेयर वन क्षेत्र शेष होना बाकी है। आंकड़ों की दौड़ कुछ भी बयान करती हो लेकिन यह एक जमीनी हकीकत है कि जनपद बांदा व महोबा के प्रभागीय वनाधिकारियों ने यह तो मान ही लिया है कि गिरते हुए जलस्तर, बढ़ते हुए तापमान, घटते हुए वन के साथ दुर्लभ प्रजाति के वन जीवों का विलुप्त होना और पहाड़ों के खनन से उनका विस्थापन पर्यावरण के लियेे आसन्न भयावह स्थिति के सूचक हैं। हमारे वातावरण में विभिन्न औद्योगिक निर्माण इकाईयों, प्रदूशित जीवन शैली से बढ़ रहे उपकरण व वस्तुओं के प्रयोग से उत्पन्न होने वाला अपषिष्ट अवयवों के निरन्तर घुलने से पारिस्थिकीय तंत्र बुरी तरह से प्रभावित हुआ है। ग्रीन हाउस गैसे का निरन्तर उत्सर्जन व तापमान में वृद्धि भविष्य मंे मानव रहित वन्य जीवन के अस्तित्व की कठिन समस्या के रूप में प्रकट होकर जलवायु परिवर्तन का एक मात्र कारण बनेगा प्रभागीय वन अधिकारी बंादा नुरूल हुदा का मानना है कि प्राकृतिक छेड़छाड़ से बायोडायवरसिटी, (जैविक विविधता) असन्तुलित होकर मानव अस्मिता पर प्रष्नवाचक चिन्ह खड़ा कर देगी। इसका ताजा तरीन उद्धरण है कि इस वर्ष बुन्देलखण्ड के समस्त सातों जनपद में पिछली अधिक वर्षा के बाद भी खेतों में उपज के फलस्वरूप पैदा हुआ अनाज बीज की लागत के अनुरूप न होकर बहुत ही पतला और स्वादहीन है। एक दो नहीं ऐसे सैकड़ों किसान इस बात की गवाही देते नजर आते हैं कि कहीं न कहीं प्रकृति की बनावट से खिलवाड़ और वातावरण में मनुष्य का अधिक हस्ताक्षेप आज उसकी ही असमाधानहीन समस्या का विकराल रूप ले चुका है। जिसके स्थायी समाधान ढूढ पाना सम्भवतः आने वाली पीढ़ी के लिये अतिश्योक्ति पूर्ण कार्य होगा।
‘‘जंगल को जिन्दा रहने दो, नदियों को कल कल बहने दो’’
आशीष सागर, प्रवास बुन्देलखण्ड

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Monday, June 07, 2010

Thias social movement's for Environmental day 5.6.2010 Banda

विश्व पर्यावरण दिवस जन आन्दोलन अभियान
रोको - टोको केन बेतवा नदी गठजोड़ परियोजना
बुंदेलखंड ! ये अनवरत जारी है जब तक की एक निर्णायक परिणाम नहीं निकलता क्योकि मरना तो वैसे ही है छे बिन पानी के और छे पनकी की जंग के साथ....

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Allha Udal Part2 7special IBN7

Sunday, June 06, 2010

केन - बेतवा नदी गठजोड़ परियोजना जन आन्दोलन

केन - बेतवा नदी गठजोड़ परियोजना के खिलाफ विश्व पर्यावरण
दिवस में सुरु हुए आन्दोलन की एक झलक - बुंदेलखंड,जनपद बांदा,ये जन आन्दोलन हर माह की 5 तारीख को चलाया जायेगा उस दाम तक की जब तक ये डील और लिंक रुक नहीं जाता
आखिर बुंदेलखंड हमारी जन आत्मा है....
" नदियों को कल - कल बहने दो ,
लोगो को जिंदा रहने दो !

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