Saturday, June 19, 2010

वास्तिविकता बुंदेलखंड - 19.6.2010



बुंदेलखंड के ताजा हालातो को पेश करती ये न्यूज़ हर हाल में आम आदमी को बुंदेलखंड में आने वाले जल संकट और घटते हुए वन , नदियों की बदहाली को ही इंगित करती है अतः हम सबको एक सुलझी हुई पहल के साथ बुंदेलखंड को उन सभी विनाश करी योजनाओ और सरकारों की जन शाज़िसो की जन पैरवी करनी होगी ताकि हमारा भविष्य एक खुशहाल बुंदेलखंड में मानवीय मूल्यों के साथ जिंदगी को जी सके .
जनपद बांदा में ही १.७१ % वन शेष बचा है वो भी तब जबकि वन विभाग ने २००८ में ही १० करोड़ पेड़ो पार लाखो का सरकारी बज़ट खर्च किया है आखिर ये आकड़ो का खेल क्या बुंदेलखंड को वास्तिविकता में हरा - भरा बना पायेगा ?

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Friday, June 18, 2010

भोपाल गैस त्रासदी 2-3 दिसंबर 1984

भोपाल गैस त्रासदी 2-3 दिसंबर 1984
यह दुनिया की ही नहीं बल्कि मानवता की भी सबसे भयानक ओद्योगिक त्रासदियो में से एक पहली और जुदा घटना क्रम होग, Uniyan karbaid karporesan ( U,C.C.) की सहायक कम्पनी Uniyan India limited ( U.C.I.L.) के स्वामित वाले कीटनासक संयंत्र में संगृहीत लगभग 40 टन मिथाइल आइसोसयानेट ( M.I.C.) गैस का रिसाव हुआ था .जिसमे 15 हजार मोते और पाच लाख लोग हताहत हुए थे, इन की कीमत तत्कालीन सरकार ने मुआवजे के रूप में महज 713 करोड़ रूपये ही आकी थी ,वो भी उन परिवारों की जिनका अपना सब कुछ इस मानवीय त्रासदी में लुट चुका था , इसके आलावा इस कांड के तीन दिन बाद ही 7 दिसंबर 1984 को Uniyan karbaid के तत्कालीन प्रमुख वारेन एंडरसन ने भारत से भागने के सकेत मिलते ही जो बयान दिए थे की " नज़रबंदी या कोई क़ानूनी गिरफ़्तारी नहीं अथवा जमानत भी नहीं, मै घर जाने के लीये बिलकुल भी आजाद हू, यह अमेरिका का कानून है, शुक्रिया भारत " वो ये तो साबित ही करता है की किस तरह से तत्कालीन मध्य प्रदेश के मुख्य मंत्री अर्जुन सिंह और केंद्र की सरकारों ने कोर्ट व न्यायालय को पंगु बना दिया था अब जबकि 25 सालो बाद उन लाखो लोगो को खैरात के रूप में ही फैसला मिला तो सिर्फ अपराधियों को 2 साल की सजा ! क्या यह सारी दुनिया को काल मार्क्स के उस कथन की हकीकत नहीं बतलाता " राज्य शोसड का पिता है " 
 हम एक आम आदमी की तल्खियत को महसूस करते हुए उन जन शहीदों को नमन करते है .

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Thursday, June 17, 2010

Water Mangament Workshop by Rajendran Singh

Monday, June 14, 2010

भोपाल गैस कांड मानवता पर एक काली त्रासदी

गैस कांड पर जिम्‍मेदारी से भागती कांग्रेस

>> शुक्रवार, ११ जून २०१०


गैस कांड पर कांग्रेस को तोडना होगा मौन!

अब बढेगी अर्जुन सिंह की पूछ परख

उपेक्षा से आहत अर्जुन उठा सकते हैं गांडीव

उघडती जा रही हैं षणयंत्रों की परतें

बात निकली है तो दूर तलक जाएगी

(लिमटी खरे)

छब्बीस साल पहले जब देश के हृदय प्रदेश में दुनिया की सबसे बडी औद्योगिक त्रासदी हुई थी, उस वक्त कांग्रेस के बीसवीं सदी के उत्तरार्ध के चाणक्य कुंवर अर्जुन सिंह इस सूबे के निजाम हुआ करते थे। यूनियन कार्बाईड के तत्कालीन प्रमुख वारेन एंडरसन को रातों रात भोपाल से भगा देने के षणयंत्र पर से धीरे धीरे पर्दा उठता जा रहा है। उस दौरान का प्रशासनिक अमला अब अपनी बंद जुबान खोल रहा है। तथ्यों के सामने आने से सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस का रक्तचाप एकाएक बढ गया है। कांग्रेस की धुरी पिछले कुछ सालों से नेहरू गांधी परिवार की इतालवी बहू सोनिया गांधी के इर्दगिर्द घूम रही है। सोनिया के राजनैतिक प्रबंधक और सलाहकारों ने कुंवर अर्जुन सिंह का पत्ता कांग्रेस के सत्ता और शक्ति के केंद्र 10, जनपथ से कटवा दिया है। कुंवर अर्जुन सिंह भले ही अपनी पीडा को उजागर न करें पर उनकी खामोशी बताती है कि वे अपने आप को किस कदर उपेक्षित महसूस कर रहे हैं।

कांग्रेस के प्रबंधकों को सपने में भी भान न होगा कि भोपाल गैस कांड के फैसले के बाद उठे बवंडर में कांग्रेस का आशियाना बुरी तरह हिल जाएगा। चाणक्य की चालें चलने में माहिर कुंवर अर्जुन सिंह उस वक्त मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री थे, जब यह कांड हुआ। किसके कहने पर वारेन एंडरसन को गिरफ्तार कर, यूनियन कार्बाईड के गेस्ट हाउस में रखा गया था, जिसमें फोन की सुविधा उपलब्ध थी, और किसके कहने पर एंडरसन को सरकारी विमान मुहैया करवाकर देश से भाग जाने का मौका दिया गया। एक निजी समाचार चेनल को दिए गए साक्षात्कार में भोपाल के तत्कालीन जिला दण्डाधिकारी मोती सिंह कहते हैं कि तत्कालीन मुख्य सचिव के आदेश की तामीली में उन्होंने यूनियन कार्बाईड के एक कर्मचारी को इसके लिए तैयार किया कि वह एंडरसन की जमानत ले लें। यह है आजादी के बाद 37 साल बाद की भारत गणराज्य की तस्वीर। अगर आम आदमी को पुलिस गिरफ्तार करे तो उसके जमानतदार की चप्पलें घिस जाती हैं जमानत लेने में। यहां तो जिले का मालिक कहा जाने वाला जिला कलेक्टर खुद ही जमानत के लिए उपजाउ माहौल मुहैया करवा रहा है।

आजादी के उपरांत 1977 का कुछ समय, चंद्रशेखर, देवगोडा, अटल बिहारी बाजपेयी आदि की सरकारों का कार्यकाल अगर छोड दिया जाए तो आधी सदी से ज्यादा समय तक देश पर सवा सौ साल पुरानी कांग्रेस ने ही हुकूमत की है। अब आम जनता अंदाजा लगा सकती है कि सुशासन देने का वादा करने वाली, कांग्रेस का हाथ गरीबों के साथ का दावा करने वाली कांग्रेस का दामन खुद कितना दागदार है। माना जाता है कि अस्सी के दशक तक राजनीति में नैतिकता का स्थान था, किन्तु यह मिथक एक झटके में तब टूट गया जब पंद्रह हजार से अधिक लोगों को लीलने वाली कंपनी के प्रमुख को सरकारी सुरक्षा में देश से भागने के मार्ग प्रशस्त किए गए। इन सबके बाद भी कांग्रेस की चुप्पी निस्संदेह राष्ट्रीय शर्म की बात है। विदेशों में पली बढीं सोनिया एन्टोनिया माईनो (सोनिया गांधी का असली नाम) भारत की संस्कृति से आज भी पूरी तरह वाकिफ नहीं हो सकीं हैं।

इतनी बडी त्रासदी के बाद अब अगर भारतीय प्रशासिनक सेवा का कोई अधिकारी जो उस वक्त जिला दण्डाधिकारी जैसे जिम्मेदार पद पर रहा हो, आज कोई बात कह रहा है तो कम से कम सोनिया को चाहिए था कि वे इस मामले में दो शब्द तो बोलतीं। एक और जहां ग्लोबल मीडिया में भोपाल गैस कांड का फैसला और भारत की सरकार को लताड दी जा रही हो वहां भारत की सबसे ताकतवर महिला मानी जाने वाली श्रीमति सोनिया गांधी मंुह सिले बैठीं हो तो क्या कहा जाएगा। सोनिया महिला हैं, मां हैं, वे उन माताओं के दर्द को समझ सकतीं हैं, जिन्होंने इस कांड में अपने गुदडी के लाल खोए होंगे। वैसे भोपाल गैस कांड के पूरे प्रकरण और फैसले ने देश की जांच एजेंसी सीबीआई की भूमिका पर एसा सवालिया निशान लगा दिया है, जो शायद ही कभी मिट सके।

इतना ही नहीं सीबीआई के एक पूर्व अधिकारी ने तो साफ तोर पर कह दिया है कि विदेश मंत्रालय के साफ निर्देशों के चलते उन्होंने इस मामले के मुख्य अभियुक्त एंडरसन के प्रत्यार्पण के मामले को आगे नहीं बढाया था। भारत के नीति निर्धारकों की कूटनीतिक चालें समझ से परे हैं। केंद्र सरकार राग अलाप रही है कि यह मामला अभी समाप्त नहीं हुआ है, वहीं दुनिया के चौधरी अमेरिका के सहायक विदेश मंत्री राबर्ट ब्लेक ने साफ शब्दों में कह दिया है कि अमेरिका के लिए ''दिस चेप्टर इस ओवर।'' अब यूनियन कार्बाईड या फिर भोपाल गैस कांड के बारे में अमेरिका कुछ भी सुनने को तैयार नहीं है।

पता नहीं क्यों भारत सरकार यह समझने को तैयार क्यों नहीं है कि यही सही वक्त है, जब अमेरिका पर खासा दबाव बनाया जा सकता है। राबर्ट ब्लेक का प्रलाप व्यर्थ नहीं है। अमेरिका चाहता है कि परमाणु उर्जा से संबंधित 'न्यूक्लियर लाईबिलिटी बिल' भारत की संसद में पास हो जाए। अगर भोपाल गैस त्रासदी को हवा दी गई तो निश्चित तौर पर यह मामला लटक जाएगा, तब अमेरिका के भारत की सरजमीं पर न्यूक्लियर उर्जा से संबंधित मशीने, उपकरण और माल भेजना आसान नहीं होगा। भारत को यह समझना होगा कि अमेरिका की सरकार यह मानती है कि इंसान वही है जिसकी रगों में अमेरिकी रक्त का संचार हो रहा है, इसी तर्ज पर भारत को दुनिया विशेषकर अमेरिका को यह जतलाना होगा कि भारत गणराज्य की सरकार की नजर में भारतीय पहले हैं, बाकी दुनिया के लोग बाद में। इतनी बडी त्रासदी जिसमें पंद्रह हजार से ज्यादा जाने गईं हों और लाखों प्रभावित हुए हों, इस तरह की आपराधिक भूल को अक्षम्य ही माना जाएगा। छब्बीस बरसों मेें अर्जुन सिंह के बाद भाजपा के सुंदर लाल पटवा सहित कांग्रेस के अनेक मुख्यमंत्री काबिज रहे हैं मध्य प्रदेश में, किन्तु सभी हाथ पर हाथ रखे बैठे रहे। मतलब साफ है कि यूनियन कार्बाईड द्वारा इन जनसेवकों के निहित स्वार्थों को पूरा किया गया होगा, वरना क्या वजह थी कि ये चुपचाप बैठे रहे।

भोपाल गैस कांड का फैसला आने के बाद समूचे देश में इसकी तल्ख प्रतिक्रिया हुई है। लोगों ने अब तक की सरकारों और विशेषकर कांग्रेस को दिल से कोसा है। हडबडी में सरकार जागी है। भारत गणराज्य की सरकार ने मंत्रियों के समूह का गठन कर डाला है। वहीं दूसरी ओर प्रदेश की सरकार अब उंची अदालत में जाने की बात कह रही है। बहुत पुरानी कहावत है, ''अब पछताए का होत है, जब चिडिया चुग गई खेत।'' कम ही लोग शायद ही इस बात को जानते हों कि संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के पहले कार्यकाल में भोपाल गैस कांड से जुडे मसलों के लिए मंत्री समूह का गठन किया गया था, जिसके अध्यक्ष तत्कालीन मानव संसाधन और विकास मंत्री अर्जुन सिंह ही थे। अर्जुन सिंह चतुर सुजान हैं, सो वे जानबूझकर इस मामले को उपेक्षित करते रहे ताकि वक्त आने पर इसे भुनाया जा सके।

तत्कालीन डीएम मोती सिंह, सीबीआई के पूर्व निदेशक जोगिंदर सिंह आदि के खुलासे से साफ हो गया है कि देश की जांच एजेंसी और सरकारें राजनेताओं के हाथों की लौंडी बनकर नाच रही हैं। विपक्ष भी इस मामले में तल्ख तेवर नहीं अपना रहा है, जो आश्चर्यजनकी ही माना जाएगा। बहरहाल अब गेंद एक बार फिल मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के पाले में आ गई है। आने वाले दिनों में कंुवर अर्जुन सिंह की पूछ परख बढ जाए तो किसी को आश्चर्य नहीं होना चाहिए। कुंवर अर्जुन सिंह मंण्े हुए राजनेता हैं, उनके हाथ में अनायास ही एक एसा तीर लग गया है जिससे अनेक निशाने साधे जा सकते हैं, राज्य सभा का कार्यकाल भी उनका काफी कम बचा है। चूंकि हादसे के वक्त केंद्र और मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार थी, अतः कांग्रेस इस मामले में अपनी जवाबदारी से नहीं बच सकती है। अर्जुन सिंह अगर मौन रहते हैं तो कांग्रेस इस जिल्लत से खुद को निकाल लेगी,। विपक्ष की बोथली धार से कुछ होता नहीं दिखता, किन्तु अगर कुंवर साहेब ने मुंह खोला तो कांग्रेस के लिए देश को जवाब देना मुश्किल हो जाएगा।

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plz visit : -
स्रोत - 
http://limtykhare.blogspot.com
http://dainikroznamcha.blogspot.com
आशीष सागर की एक हार्दिक स्राधन्जली है इन त्रासदी से पीड़ित लोको को ,
वास इनके हको को मरने नहीं देगा...

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Sunday, June 13, 2010

Water crisis forces migration in Bundelkhand

Hi our people' please save water and nature
for our climate & humanity !
बुंदेलखंड में आज जिस तरह से पानी को लेकर लाठिया, मुकदमो के
कारण आपसी संबंधो में दरारे आ रही है उसको तो देखकर यही कहा
जा सकता है की आने वाले कल में लोगो को एक - एक बूंद पानी को
लेकर जन आन्दोलन करने पड़ेगे क्योकि जीवन का आधार जल ही है
" नदियों को कल - कल बहने दो , लोगो को जिंदा रहने दो "
ये कहना बिलकुल भी बेबुनियादी नहीं होगा.
बिन पानी सब सून रे भइया , गुजरे मई और जून रे भइया ,
बुंदेलखंड में जल  3 मीटर नीचे जा चुका है इस लीये हमें पानी की एक  एक बूंद को अपने लीये और भावी पीढियों के लीये भी बचाना
होगा

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