Saturday, August 14, 2010

संघर्ष

इसलिए राह संघर्ष की हम चुने ,
ज़िन्दगी आंसुओ से नहाई न हो !
शाम सहमी न हो रात हो न डरी,
भोर की आँख फिर डबडबायी न हो !!
...
कोई अपनी ख़ुशी के लिए ,
गैर की रोटियां छीन ले हम नही चाहते !
छींट कर थोडा चारा कोई उम्र की ,
हर ख़ुशी बीन ले हम नही चाहते !
हो किसी के लिए मखमली बिस्तरा ,
और किसी के लिए एक चटाई न हो...

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Aug 14, 2010

पंद्रह हजार विधवा जलाएंगी 'पीपली लाइव' का पोस्टर

विदर्भ की पंद्रह हजार महिलाएं 15 अगस्त को नागपुर से 150 किलोमीटर दूर यवतमाल जिले में पीपली लाइव के पोस्टर जलाकर अपना विरोध प्रदर्शन करेंगी।



किसानों की आत्महत्या के लिए चर्चित  महाराष्ट्र के विदर्भ  क्षेत्र में  आमिर खान की पीपली लाइव के रिलीज होने के साथ ही पुरे  महाराष्ट्र में प्रतिबंध लगाने की मांग होने लगी है.विदर्भ जनांदोलन समिति ने  इस संबंध में महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और आमिर खान को भी एक पत्र लिखा है। समिति का कहना है कि फिल्म में आत्महत्या का कारण   मुआवजे के लालच को बताया गया है,जबकि यह गलत है।

इस फिल्म के कारण क्षेत्र के अस्सी लाख किसान इससे काफी दुखी हैं। कोई भी किसान पैसों को लिए मौत का रास्ता नहीं चुनता है। किसाना सरकार की गलत नीतियों के कारण आत्महत्या कर रहा है लेकिन इस पूरी फिल्म में किसानों का मजाक बना दिया है। समिति ने कहा है कि सरकार अगर इस फिल्म पर प्रतिबंध नहीं लगाती है तो  किसानों का संगठन फिल्म के खिलाफ सेंसर बोर्ड और हाईकोर्ट जायेगा.

विदर्भ जनांदोलन समिति के अध्यक्ष किशोर तिवारी ने बातचीत में कहा कि इस फिल्म की वजह से आंदोलन देश-विदेश में बदनाम हो रहा है। महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र में पिछले एक दशक में दो लाख किसानों ने आत्महत्या की है। लेकिन 1.60लाख विधवाओं को आज तक अपने पति के मौत का मुआवजा नहीं मिला है। 

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Friday, August 13, 2010

Right to Food with family...Hunger !

Thursday, August 12, 2010

Ken - Betava rever link for Bundelkhand region...stop this deal !

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Monday, August 09, 2010

खुदकुशी

अपने अहसासों को इतना मजहबी मत कीजिये ,
घर जलाकर बस्तियों में रोशनी मत कीजिये
जिसमे दिल ढहने लगे बूढी इमारत कि तरह ,
है यही बेहतर कि ऐसी बंदगी मत कीजिये
जब तलक है सास जीने का सलीका ढूढ़ लो ,
मरने के डर से कभी खुदकुशी मत कीजिये
दूर तक रस्ते और रिश्ते निभाने की यही एक शर्त है ,
जिसमे हो शर्मिंदगी ऐसा कभी मत कीजिये
दोस्ती कितने उसूलो से बंधी है जानिए ,
दुश्मनी करनी अगर हो दोस्ती मत कीजिये
दिल लगाने के लिए मिल जायेगे मुद्दे कई ,
आंसुओ के साथ कोई दिल्लगी मत कीजिये
बह रहा है रास्तो पार खून पानी की तरह ,
ऐसे आलम में सागर ये शायरी तो मत कीजिये

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Sunday, August 08, 2010

मां जब अछूत होती है

 
कालकोठरी के पांच दिन और जहाँ मां बनना पाप है के बाद झारखण्ड से युवा पत्रकार मोनिका के आये लेख को देख लगता है कि स्त्रियों की नैसर्गिक जरूरतों के खिलाफ जो अपराध हो रहा है,उसको लेकर  सभी धर्मों,पंथों और विचारों की सामूहिक चुप्पी है, एक मान्यता प्राप्त एकता है.  


 मोनिका

स्त्री के शरीर में हो रहे प्राकृतिक बदलावों को अपशकुन और प्रदूषणकारी भी माना जाता है,यह सुनकर आश्चर्य होता है और दुख भी। ईश्वर की सबसे सुंदर रचना और जननी के रूप में स्थापित स्त्री तभी पूजी जाती है जब वह देवी होती है। अन्यथा उसका शरीर ही उसके लिए अभिशाप होता है।

यह जानकर दुख होता है कि मासिक चक्र और प्रसव के दौरान स्त्रियों को तरह-तरह की परंपराओं के नाम पर कई अमानवीय व्यवहार का सामना करना पड़ता है। इस संबंध में जब मैंने महीने भर पहले मां बनी एक आदिवासी युवती से बात की, तो उसकी बातें चौंकाने वाली थी। पढ़ी लिखी शहरों में रहने वाली महिलाएं फिर भी इन परंपराओं का शिकार कम ही बनती हो, लेकिन उनका क्या जो घर से एक कदम निकालने से पहले भी घरवालों की मर्जी पर निर्भर करती हो।


झारखण्ड के एक गाँव में लड़कियां: जागरूकता ही जोर पकड़ेगी
बसंती नाम की इस युवती को एक बेटी हुई है। घर-घर झाड़ू पोंछा करने वाली बसंती कहती है कि अब मेरी बेटी को भी वहीं सब झेलना पड़ेगा, जो मैंने झेला है। हमारे यहां जब किसी लड़की को मासिक चक्र शुरू होता है, तो उसे घर के किसी ऐसे कमरे में रखा जाता है, जहां लोगों का कम आना जाना होता है। घर और खेतों में श्रम संबंधी सभी काम महिलाएं कर सकती है। लेकिन रसोई में खाना नहीं बना सकती और ना ही पूजा सामग्री ही छू सकती है। और अगर महिला शादी-शुदा है तो उसे अपने पति के पास भी सोने की मनाही है। अतिरिक्त कमरा ना होने की स्थिति में तो पति के कमरे में ही नीचे एक चटाई और चादर दिया जाता है।

गर्म चाय, अचार, अंडे आदि खाने की मनाही होती है। अगर कोई महिला गर्भवती है तो आदिवासी समाज में खेती के काम काज करने की मनाही नहीं होती,लेकिन पूजा में शामिल होने नहीं दिया जाता। जब बच्चे का जन्म होता है तो अस्पताल की बजाय दाई के द्वारा ही प्रसव कराया जाता है। फिर चाहे स्थिति कितनी भी खराब क्यों ना हो। अधिकतर महिलाएं पांच छह दिन के अंदर ही काम करने लगती है, लेकिन 21 दिन तक उसे रसोई में जाने की इजाजत नहीं होती। तीन दिन बाद सिंदवार के पत्तों को पानी में डालकर नहलाया जाता है और घर के एक कमरे में 21दिन तक बाकी सभी सदस्यों से दूर रखा जाता है।


सम्पन्नता की चमक: अपराध बराबर का
आंध्र प्रदेश के कुछ क्षेत्रों में तो मासिक धर्म की शुरुआत में लड़की को कमरे में कैद रखा  जाता है। ऐसा करने के पीछे मान्यता  है कि अगर रजस्वला  लड़की या महिला की परछाई किसी पर पड़ जाये,तो उसे चेचक हो जाता है या  फिर वह शारीरिक विकलांगता का शिकार हो सकती  है। वहीँ  मारवाड़ी समाज में महिलाओं को इस दौरान रसोई में प्रवेश करने नहीं दिया जाता, जमीन पर सोने की व्यवस्था होती है और  पानी, अचार और पूजा सामग्री को छूने नहीं दिया जाता है।

आंध्र प्रदेश समेत कई इलाकों में प्रसव के दौरान महिला को आरामदायक बिस्तर की जगह ईटों से बनी संरचना पर बिठाया जाता है। पानी और शराब मिलाकर मंत्रोच्चार किया जाता है और प्रसव का काम दाई के द्वारा ही होता है। इसके लिए किसी अंधेरे कमरे को चुना जाता है। बच्चे के जन्म के बाद प्रसव के दौरान गर्भाशय के बाहर आने पर दाई द्वारा पैर से उसे अंदर की ओर धकेला जाता है, जिससे सबसे ज्यादा महिलाएं संक्रमण की शिकार होती है। स्त्री का खाना पीना भी मिट्टी के बर्तन में ही होता है और वह 41 दिन तक अछूत मानी जाती है।

इन्हें नहीं पता कि स्त्री होना सजा है


किसी धार्मिक या सामाजिक कार्यक्रम में उसका भाग लेना भी अपशकुन माना जाता है। यह सब केवल गांवों या अनपढ़ वातावरण वाले घर में ही नहीं होता,बल्कि शहरों में भी अधिकांश घरों में ऐसी परंपराएं अब भी देखने सुनने को मिलती है। जो कहीं ना कहीं इस बात का प्रमाण है कि हमारा समाज आज भी स्त्रियों को दोयम दर्जे का नागरीक समझता है. वह भी उसके जीवन को ताक पर रखकर।

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आदमी

मानवता को कर दिया दफ़न आदमी ने ,
उसूलो का बनाया कफ़न आदमी ने ,
सहयोग ,स्नेह और सोहार्द अब स्वार्थ के पर्याय है ,
खुद ही लूटा घरो का चमन आदमी ने ,
भ्रस्टाचार इस मुल्क में कोई मुद्दा नहीं रह गया ,
किया इस कदर गबन आदमी ने ,
फिक्र किसे सागर अपने अगले जन्म कि ,
हवस में डुबोया है तन - मन आदमी ने ,
जाने क्या देगा विरासत आदमी ,
जब बेआबरू कर दिया अमन आदमी ने !

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धुंध धुएं ने कर दिया

धुंध धुएं ने कर दिया हरयाली का रेत ,
चिडया फिरती न्याय को लीये वीडियो टेप ,
पत्थर के जंगल उगे ,मिटे बाग और खेत ,
अब क्या रंग दिखायेगा नई सदी का प्रेत !
आरी ने घायल किये हरयाली के पाव ,
कंक्रीट में दब गया वह होरी का गाव ,
दूर शहर कि चिमनिया ,देती ये आभास
जैसे बीडी पी रहे बूढ़े कई उदास ,
हुए आधुनिक इस तरह बड़ा दोस्त अनुराग ,
बरगद काट उगा लिए नागफनी के बाग !
वन्य जीव मिटते रहे ,कटे पेड़ दिन रात
तो एक दिन मिट जाएगी खुद आदम कि जात ,
धुंध धुएं ने घात दी रोगी हुए हकीम ,
असमय बूढ़ा हो गया आगन वाला नीम ,
आरी मत पैनी करो जंगल करे गुहार ,
जीवन भर दुगा तुम्हे मै अनंत उपहार
हिंसा ,नफरत त्याग के निर्मल - निर्जर ,
बाटो धरा में प्यार !

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