Saturday, September 25, 2010

देश महान

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Friday, September 24, 2010

My Call's....stop this political drama !

एक मुस्लिम = 4 शादी,18 बच्चे ,30 रोज़े ,57 देश ,2 लाख मदरसे ,
60 लाख मुस्लिम आतंकवादी 150 करोड़ जनसँख्या ,मिशन सिर्फ एक
हिंदुस्तान पर कब्ज़ा और पश्चमी देशो में अपनी हुकूमत ,
और हमारी हालत है की भारत के 6 हिस्से ,7 राज्यों में हम अल्पसंख्यक ,
गोधरा की ट्रेन , बम्बई का ब्लास्ट ,अमरनाथ की जमीन गई ,तब भी लाखो मुजाहदीन
जिन्दा , हिन्दू संगठनों पे प्रतिबन्ध की मागे , वोटो की राजनीति ,तब भी मै , मेरा परिवार वो भी कितना ?
हम दो हमारे दो अब तो एक में भी मुस्किल है ,सोचो - बताओ आने वाले बच्चो को क्या दोगे इस्लामी जेहादो की
फसल या फिर उनकी गुलामी ?
जागो हिन्दू जागो......मित्रो ये हो सकता है की एक सिस्टम के प्रति एक हिन्दू की भडास हो जो उसके विचारो से उपजी है मगर जबकि कल
एक बहुत ही सम्वेदन्सील और दो धर्मो का फैसला आने वाला है तो हमें ये नहीं भूलना होगा की हम एक ही मालिक की बनाई
संताने है और जब से ये दुनिया बनी है तब से आज तक हमारी रगों में एक ही इंसानी जोड़े का नर और मादा का ही खून है तो फिर हम कही न कही एक ही परिवार के है और परिवारों में बटवारा तो हो सकता है मगर दिल का बट  जाना ठीक नहीं है हमारे मत भेद भले हो लेकिन मन भेद न होने पाए क्योकि तमाम मुल्को की निगाहे हम पे आ टिकी है और ऐसे समय में जबकि कामनवेल्थ खेलो से हमारी फजीयत हो ही रही है तो हम एक और बचकानी हरकतों से मजाक के हवाले न हो ऐसी हमारी आपसे पुकार और गुजारिस है आपको सलाम और राम - राम ........जय हिंद " हमने अमन की दुआए मागी है आज ,
अराजकता पे हो इंसानियत का राज , बजता रहे अमन का साज , सलामत रहे देश का ताज !.

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Thursday, September 23, 2010

बुंदेलखण्ड में भुखमरी : महिला ने दो बेटियां अनाथालय को सौंपीं

सरकार चाहे जितने दावे करें, मगर बुंदेलखण्ड में भुखमरी का वीभत्स रूप अब भी कायम है। इसका उदाहरण है बेवा रचना कुशवाहा, जिसे भुखमरी के चलते अपनी दो बेटियों को अनाथालय के सुपुर्द करना पड़ा है। रचना अगर ऐसा नहीं करती तो उसकी दोनों बेटियां भूख से मर जातीं।
मध्य प्रदेश के छतरपुर जिला मुख्यालय से महज आठ किलोमीटर दूर स्थित खौंप निवारी, जहां की रचना रैकवार को पति ने पिछले साल ही साथ छोड़ दिया था। पति का साथ छूटने से दो बेटियां मोहिनी (आठ) और अंजलि (छह) उसके लिए भार बन गईं थीं। किसी तरह उसने मजदूरी कर दोनों को पाला, मगर अब ऐसा करना भी उसके लिए मुश्किल हो चला था।
परेशान रचना ने तय किया कि अगर वह बेटियों को दो वक्त की रोटी नहीं दिला पाती है तो बेटियों के साथ वह भी जहर खा लेगी। रचना जब इस द्वंद्व से गुजर ही रही थी, तभी उसके दिमाग में दोनों बेटियों को अनाथालय को सौंपने का विचार आया। उसने सोचा कि बेटियों का वहां लालन-पालन हो जाएगा और खाना भी उन्हें मिल जाएगा। ऐसा होने से वह अपनी बेटियों को भूख की तड़प से बचाने में कामयाब होगी।
रचना ने छतरपुर स्थित संवेदना अनाथालय से संपर्क किया और दोनों बेटियों को सौंपने की इच्छा जताई। अनाथालय के संचालक प्रतीक खरे ने रचना की तंगहाली के मद्देनजर दोनों बेटियों को अनाथालय में रख लिया है।
खरे बताते हैं कि रचना कह रही थी कि वह दोनों बेटियों के साथ जहर खा लेगी, क्योंकि उसके पास बेटियों को खिलाने के लिए कुछ भी नहीं है। लिहाजा, उन्होंने दोनों बेटियों को अनाथालय में रख लिया है।
प्रभारी कलक्टर भावना बालंदे का कहना है कि वे इस मामले की पूरी जांच कराएंगी और यह भी पता लगाया जाएगा कि पीड़ित महिला को विधवा पेंशन मिल रही थी या नहीं।(आईएएनएस)
  Resource - http://www.janatantra.com/news/2010/06/13/starvation-strikes-in-bundelkhand

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Wednesday, September 22, 2010

COTTON ECO SYSTEM ANALYSIS !

Sunday, September 19, 2010

ईमानदारी का रियलिटी शो.. बुन्देलखण्ड

                                                                              आमुख
उरई के प्रबुद्ध लोगों ने एक अच्छी मुहिम की शुरूआत की है। ये लोग अपने शहर मंे ईमानदारी लोगों की खोज करेंगे। ईमानदारी के इस रियलिटी शो में प्रारम्भिक पड़ताल के दौरान वे समाज सेेवा, जन परमार्थ, सरकारी-गैरसरकारी विभागों मंे कार्यरत लोगों के बीच जाकर उनके चारित्रिक अतीत को खंगाल कर ईमानदारी के सोपानों ने चिन्हित कर पुरस्कृत करने का बीड़ा उठायेंगे।
जब शहर में कुछ संगठनों ने मिलकर ईमानदार लोगों की खोज की शुरूआत की तो उन्हे ईमानदारी बर्तन मांजते, रिक्षा खींचते, चैकीदारी करते और सरकारी दफ्तरों में लम्बी कतारों के बीच फाइलांे मंे दौड़ती नजर आई। शायद इन्होने बाजार का रूख नहीं किया होगा नहीं तो सरकारी दफ्तरों की रंगी हुई पीकदानों की दीवारों की तरह इन बाजारों में ईमानदारी भी रिष्वत और मिलावट की कब्र में दफन नजर आती है। हाल ही में एक अन्तर्राष्ट्रीय सर्वेक्षण में भ्रष्टाचार पर नजर रखने वाली विष्व स्तर की संस्था ट्रांसपरेन्सी इन्टरनेषनल ने भारत को भ्रष्ट देषों की सूची में 84वें स्थान पर रखा है। संस्था ने इसे महज दस में 3.4 अंक दिये हैं। इस सूची में न्यूजीलैण्ड 9.4 अंकांे के साथ पहले और सोमालिया 1.1 अंक के साथ सबसे आखरी पायदान पर है। संस्था के मुताबिक भारत में हर साल लाखांे गरीब लोग अपनी जीवन की मूल भूत आवष्यकताओं, सहूलियत को हासिल करने के लिए सरकारी अधिकारियों-कर्मचारियों को रिष्वत देते हैं। ‘‘निवर्तमान केन्द्रीय सतर्कता आयुक्त प्रत्युष सिन्हा ने एक बयान में कहा है कि भारतीय प्रषासनिक सेवा में कार्य करना वो भी ईमानदारी से एक आई0ए0एस0 के लिए धीमी मौत है। उनके शब्दों में आधुनिक भारत में जिस व्यक्ति के पास जितना अधिक पैसा है, वह उतना ही सम्मानित व्यक्ति है। यह बात मायने नहीं रखती कि यह धन उसने किस मारफत कमाया है।’’
देष के तीस फीसदी लोग आज भ्रष्टाचार में आकंठ तक डूबे हैं, बाकी डूबने की कगार पर हैं। शेष बीस प्रतिषत जो बचे हैं ये कुनबा है जिसको बुन्देलखण्ड के उरई में खोज के दौरान कार्य करते पाया गया। अच्छे लोगों की जमात में शामिल वृहद परिवार, बुन्देलखण्ड आपदा निवारक मंच, परमार्थ समाज सेवी संस्थान ने संकल्प लिया है कि वे साहित्यिक संस्था पहचान के साथ समाज के उन लोगों की पहचान कर पुरस्कृत करेंगे, जो कि समाज सेवा और ईमानदारी के जमीनी स्तर पर उदाहरण हैं। इस प्रतियोगिता के टैलेन्ट हन्ट में सही रूप से उन लोगों को चिन्हित कर पाना एक जोखिम भरा कदम हो सकता है। सवाल यह उठता है कि कभी विष्व गुरू के षिखर पर बैठे भारत जिसको एक बार फिर विष्व शक्ति बनाने का सपना महामहिम पूर्व राष्ट्रपति एवं सच्चे समाज सेवी डाॅ0 ए0पी0जे0अब्दुल कलाम ने विजन 20-20 के साथ देखा है क्या उस भारत की बुनियाद अब इतनी पतली हो चुकी है कि हमारे बीच खड़े प्रबुद्ध वर्गों को ईमानदारी की खोज के लिए प्रतियोगितायें आयोजित करनी पड़ें? इतिहास के पन्नों को अगर एक बार पलट ही दिया जाये तो खुद बखुद हजारांे नजीरंे मिलेंगी की सैकड़ांे कुंए, बावड़ी, धर्मषालाऐं और अतिथि देवो भवः के नाम पर खोले गये प्याऊ घर, चिकित्सा-षिक्षा केन्द्र के साथ साथ अमेेरिका जैसे राष्ट्र को समाज सेवा का दर्षन सिखाने वाले भारत में ही कभी इस्लाम धर्म ने जकात के नाम से अपनी आय का चैथा हिस्सा प्रत्येक मुसलमान को गरीबों में दान करने, ब्याज लेने को गुनाह कहा है। संस्कारों की 13 श्रंखलाओं का साथ निष्चय ही भारत में अब टूट चुका है। जिसकी वजह है कि हमें दीन दुखियांे एवं समाज के पिछड़े वर्गांे की मदद के लिए स्वैच्छिक संगठनों का निर्माण करना पड़ता है।
भारत एक वृहद अध्याय है जिसे समझने और मनन करने के लिए यद्यपि हम बुन्देलखण्ड के 13 जिले ही उठा लें तो चित्रकूट जनपद की विन्ध्याचल तलहटी मंे बसे कोलभील के बीच स्वयं भगवान श्रीराम ने समाज सेवा का शंखनाद किया था और महोबा, छतरपुर, बांदा, टीकमगढ़, जालौन के भौगोलिक परिक्षेत्र में चन्देल शासकों द्वारा बनाये गये हजारों तालाब इस बात का प्रमाण है कि उन्होने हमेषा से यह सोंचा कि बुन्देलखण्ड के लोग कभी भूखे-प्यास न रहें। आज बुन्देलखण्ड से लेकर पूरे यूपी मंे ही स्वैच्छिक संगठनों की संख्या लगभग 6,50,000 है। वहीं अकेले दिल्ली में 1,50,000 और इसके मुकाबले यूपी में 72 जनपद हैं तथा देष में कुल 5,58,137 गांवों में उ0प्र0 में 1,12,804 आबाद गांव हैं। पिछले 63 वर्षों में लगातार प्रतिदिन देष प्रदेष की सोसाइटीज, फर्म एवं चिट्स विभागों में औसतन पचास संस्थायंे प्रतिदिन पंजीकृत होती हैं, उनमें ब्लैक लिस्टेड-विवादित अलग हैं। समाज सेवा के लिए विष्व बैंक से लेकर केन्द्र सरकार, राज्य सरकारों का करोड़ों रूपया विकास के लिए इन संगठनों को दिया जाता है। लेकिन क्या आज पूरे भारत वर्ष में एक भी ऐसा गांव या राज्य का एक जनपद पूरी तरह जीवन प्रत्याषा के संसाधन आम आदमी तक पहुंचाने में सक्षम है। और अगर नहीं तो फिर हम जैसे सामाजिक संगठनांे की क्या भूमिका है ? समाज सेवा के इस व्यापार का भुक्तभोगी स्वयं लेखक भी है जिन्होने 9 सितम्बर, 2009 को एक सामाजिक संगठन को सिर्फ पंजीकृत कराने में 9000 रूपये की रिष्वत दी। जब एक समाज सेवी को समाज सेवा के क्षेत्र में उतरने के समय ही भ्रष्टाचार का सामना करना पड़ता है तो भला वह संगठन या व्यक्ति ईमानदारी के साथ कैसे समाज के लिए काम कर सकता है। ऐसे तमाम लोग हैं जो साधनों की विपन्नता के कारण अपने जुनून को हकीकत का जामा नहीं पहना पाते। किसी अन्धे व्यक्ति को सड़क पार करा देना समाज सेवा नहीं है बल्कि एक ऐसा माहौल उस व्यक्ति के चारांे तरफ तैयार करना है ताकि समाज के लोग अन्धे व्यक्ति को आता देखकर खुद बखुद रास्ता छोड़ दे।
आज देष मंे ही पूरे विष्व की 88 करोड़ जनसंख्या का 32 करोड़वां हिस्सा भारत में निवास करता है जो बी0पी0एल0 लाइन में खड़ा होकर 14 रूपये रोज पर गुजारा करता है। वहीं दूसरी तरफ देष मंे भीख मांगने का व्यवसाय ही इतना प्रबल है कि औसतन एक भिखारी प्रतिदिन 10 किलो गेहूं का आटा परचून की दुकान पर बेंचता है जिसकी कीमत 14 से 16 रूपये है। केन्द्री सरकार को भी कामनवेल्थ खेलों के चलते दिल्ली मंे भिखारियों की बढ़ी हुयी संख्या पर गहरी चिन्ता है कि आने वाले विदेषियों का षिकार कौन करेगा ? बुन्देलखण्ड मंे यह पहल सराहनीय है कि समाज से उन वर्गों को निकाला जाय जो पहचान न होते हुए भी ग्राम स्तर, शहर और कस्बों के बीच अपने बल पर क्षेत्र के साथ देष के विकास में किसी न किसी रूप मंे सहायक हैं। क्योंकि आज पुरस्कार का सिंघावलोकन तो व्यक्ति की ऊंचाई देखकर तय किया जाता है। एक छोटा सा प्रयास ही कभी कभी भागीरथ जैसांे को जन्म देकर पतिथ हो चुकी गंगा को पुनः निर्मल करने का साहस प्रदान करता है।
‘‘हमाम मंे सभी नंगे नजर आये हमको, ईमान जिन्दा है क्या ? कोई बताये हमको’’
आषीष सागर
प्रवास, बुन्देलखण्ड
 

हर तीसरा भारतीय पूरी तरह से भ्रष्ट

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