Thursday, November 11, 2010

RTI Report on Indian Parliament Members and Public Equality

राष्ट्रीय समाचार

  • 33 करोड़ गरीब लोगों की चपाती बनाम 542 सांसदों की तन्दूरी रोटी
  • 10 करोड़ बेकार युवाओं का नेतृत्व करते हैं देष के 21 सांसद
  • राहुल गांधी नहीं रहे युवा नेता, फिरोज वरूण गांधी ने पछाड़ा
  • आम भारतीय की चपाती 4 से 5 रूपये प्रति वहीं राजनेताओं की तन्दूरी रोटी महज 1 रू0, साउथ थाली 12.50 पैसा मात्र, दाल फ्राई 2.50 पैसा प्लेट
देश दुनिया के 88 करोड़ बदहाल गरीब लोगों में से विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत में 33 करोड़ लोग आज भी दोनों वक्त का भोजन पाने से महरूम रह जाते हैं यह न तो विश्व खाद्य संकट की खबर है और न ही किसी होटल या ढाबे की रेट सूची का जिक्र है बल्कि जनसूचना अधिकार से हुए खुलासे की एक बानगी के रूप में लोकसभा सचिवालय के अवर सचिव एवं डिप्टी सेक्रेटरी हरीशचन्द्र ने आर0टी0आई0 कार्यकर्ता आशीष सागर को जो सूचनायें उपलब्ध करायी हैं वह न सिर्फ चैंकाने वाली वरन् 1.5 अरब भारत की जनसंख्या को यह बताने के लिये काफी है कि जहां आज भी 11 करोड़ लोग 14 रूपये मात्र में अपने दिन का गुजारा करते हैं वहीं हमारे संसद प्रतिनिधि के कैसे निराले ठाठ बाट हैं।
बताते चलें कि सूचना अधिकार के तहत जब आषीष ने लोकसभा सचिवालय से जानना चाहा कि देष में निर्वाचित सभी सांसदों में 35 वर्ष से कम आयु के कुल कितने सांसद 10 करोड़ बेरोजगार युवाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं तो महज 21 सांसद की जो सूची प्राप्त हुयी है उसमें केन्द्र सरकार के युवा सम्राट श्री राहुल गांधी बाहर रखे गये हैं वहीं उनमें भाजपा के फिरोज वरूण गांधी, जयन्त चैधरी, मिलिन्द मुरली देवड़ा, दीपेन्द्र सिंह हुड्डा, कमलेश पासवान, सचिन पायलट, स्रुति चैधरी, नीलेश नारायण राणें, अगस्था के0 संगमा, धनंजय सिंह, धर्मेन्द्र यादव (सपा0), हमीदुल्लाह सैय्यद आदि नामित हैं। कई युवा सांसद तो पुराने राजनीतिक परिवारों से सम्बन्ध रखते हैं। जिनकी शिक्षा दीक्षा या तो विदेशों के कालेजों में या फिर भारत के बोर्डिंग स्कूल कालेजों में हुयी है।
गौरतलब है कि 2010 की लोकसभा में कुल 542 सांसद निर्वाचित हुये हैं, जिसमें आठ निर्दलीय सांसद हैं। जैसा कि सूचना में बताया गया है और एक सीट बनका बिहार आज भी रिक्त है। जहां सामान्य रूप से आम भारतीय नागरिक किसी होटल या ढाबे में 30 से 45 रूपये अदा कर एक वक्त का खाना खाता है वहीं सांसदों को मात्र 12.50 रूपये में ही दक्षिण भारतीय थाली उपलब्ध करायी जाती है वहीं गरीब नागरिक की रोटी का मूल्य 4 से 5 रूपये होता है जबकि संसद सदस्यों की सादी रोटी 50 पैसा, तन्दूरी चपाती 1 रूपये में उपलब्ध होती है। गरीब की दाल फ्राई 25 रूपये प्लेट है तो सांसदों को वह 2.50 पैसा मात्र में मिल जाती है, उन्हें सादा डोसा 1 रूपया, मसाला डोसा 2.50 पैसा, रोमलाई रोटी 50 पैसा, खीर 5 रूपये, पूड़ी 1.50 रूपये, चिकिन सैन्डविच 4 रूपये, बे्रड बटर 3.50 पैसा, मटन कटलेट 12.50 पैसा, बिस्कुट 2.50 पैसा, चिकिन मसाला 24 रूपये, चिकिन तन्दूरी 20 रूपये, वेज बिरयानी 3 रूपये इसके साथ ही संसद सदस्यों को जिस दर पर मेडिकल खाद्य पदार्थ सरकार कैन्टीन से दिये जाते हैं उनकी कीमत खुला बाजार में आम भारतीय के लिये निष्चित ही एक तिहाई मूल्य से अधिक है।
एक लाख रूपये मासिक वेतन भत्ते, सरकारी सुविधायें, सुरक्षा पाने वाले सांसदों को पोहा दस ग्राम तीन रूपये, ब्रेड उपमा 100 ग्राम 4 रूपये, जैली फ्रूट 12.50 रूपये, लीची जूस 12 रूपये, केले का रस 10 रूपये गिलास, आम का रस 10 रूपये, जामुन का रस 10 रूपये, मिक्स फ्रूट जूस 9 रूपये, मुसम्मी 200 मिलीग्राम रस 10 रूपये, पालक रस 5 रूपये, सेब का जूस एक गिलास 10 रूपये मात्र में ही दिया जाता है। बुन्देलखण्ड जैसे पिछड़े इलाको में जहां सेब और अनार की कीमत 60 से 70 रूपये किलो व एक गिलास जूस 25 से 35 रूपये मिलता है वहीं इतनी कम दर पर हमारे राजनेता संसद का लुफ्त उठाने के साथ ऊंचे पकवान भी सस्ती दरों में ही हासिल कर लेते हैं।
एक उदाहरण स्वरूप "काफी" सांसदों को 2.50 पैसा, फ्रूट सलाद क्रीम के साथ 1 प्लेट 9.50 पैसा, अण्डा फ्राई 5.50 पैसा, उबले चावल 2.50 पैसा प्लेट, मटन करी 13 रूपये, चिकिन करी 19 रूपये, मछली फ्राई 17 रूपये, शामी कबाब 9.50 पैसा, अण्डा सैन्डविच 2.50 पैसा, आलू चिप्स 1.50 पैसा, पापड़ 50 पैसा प्रति, छोले भटूरे 8 रूपये इसके साथ ही 91 ऐसे आइटम की सूची भी दस्तावेज की गयी है जिनके दाम एक गरीब, मध्यम भारतीय के लिये निष्चित ही खुले बाजार चार गुना कीमत से अधिक होंगे। कुल मिलाकर बात इतनी सी है कि केन्द्र सरकार को पश्चिमी देशों की तरह ही निर्वाचित संसद सदस्यों को सरकारी भवन, यात्रायें, सुरक्षा व्यवस्था, खाद्य पदार्थों में कटौती करनी चाहिए। जैसा कि अमेरिका, चीन और कनाडा मुल्कों में होता है जहां राष्ट्रपति या प्रधानमंत्री के अलावा कोई भी सरकारी भवन में निवास नहीं करता है लेकिन हमारे यहां देश के कुल बजट का आधा हिस्सा संसद के खर्च व सांसदों की फिजूल खर्ची में ही जाया होता है। यह भारतीय लोकतंत्र में खासकर भुखमरी, कर्ज, गरीबी और पलायन झेल रहे गरीब तबके के लिये असमानता का दौर है।

Rates of eatables sold by Northern Railway Catering Units, Parliament House Complex:

आशीष सागर, प्रवास बुन्देलखण्ड

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Monday, November 08, 2010

राष्ट्रीय पक्षी मोर

मोर एक बहुत ही सुन्दर, आकर्षक तथा शान वाला पक्षी है। बरसात के मौसम में काली घटा छाने पर जब यह पक्षीपंख फैला कर नाचता है तो ऐसा लगता मानो इसने हीरों-जड़ी शाही पोशाक पहनी हो। इसलिए इसे पक्षियों काराजा कहा जाता है। पक्षियों का राजा होने के कारण ही सृष्टि के रचयिता ने इसके सिर पर ताज जैसी कलगी लगाईहै। मोर के अद्भुत सौंदर्य के कारण ही भारत सरकार ने 26 जनवरी,1963 को इसे राष्ट्रीय पक्षी घोषित किया। हमारेपड़ोसी देश म्यांमार का राष्ट्रीय पक्षी भी मोर ही है। ‘फैसियानिडाई’ परिवार के सदस्य मोर का वैज्ञानिक नाम ‘पावो क्रिस्टेटस’ है। अंग्रेजी भाषा में इसे ‘ब्ल्यू पीफॉउल’ अथवा ‘पीकॉक’ कहते हैं। संस्कृत भाषा में यह मयूर के नाम से जाना जाता है। मोर भारत तथा श्रीलंका में बहुतातमें पाया जाता है। मोर मूलतः वन्य पक्षी है, लेकिन भोजन की तलाश इसे कई बार मानव-आबादी तक ले आती है। मोर प्रारंभ से ही मनुष्य के आकर्षण का केंद्र रहा है। अनेक धार्मिक कथाओं में मोर को बहुत ऊँचा दर्जा दिया गयाहै। हिन्दू धर्म में मोर को मार कर खाना महापाप समझा जाता है। भगवान कृष्ण के मुकुट में लगा मोर का पंख इसपक्षी के महत्व को दर्शाता है। महाकवि कालिदास ने महाकाव्य ‘मेघदूत’ में मोर को राष्ट्रीय पक्षी से भी अधिक ऊँचास्थान दिया है। राजा-महाराजाओं को भी मोर बहुत पसंद रहा है। प्रसिद्ध सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के राज्य में जो सिक्केचलते थे, उनके एक तरफ मोर बना होता था। मुगल बादशाह शाहजहाँ जिस तख्त पर बैठता था, उसकी शक्ल मोरकी थी। दो मोरों के मध्य बादशाह की गद्दी थी तथा पीछे पंख फैलाए मोर। हीरों-पन्नों से जड़े इस तख्त का नामतख्त-ए-ताऊस’ रखा गया। अरबी भाषा में मोर को ‘ताऊस’ कहते हैं। नर मोर की लंबाई लगभग 215 सेंटीमीटर तथा ऊँचाई लगभग 50 सेंटीमीटर होती है। मादा मोर की लंबाई लगभगसेंटीमीटर ही होती है। नर और मादा मोर की पहचान करना बहुत आसान है। नर के सिर पर बड़ी कलगी तथामादा के सिर पर छोटी कलगी होती है। नर मोर की छोटी-सी पूंछ पर लंबे व सजावटी पंखों का एक गुच्छा होता है।मोर के इन पंखों की संख्या 150 के लगभग होती है। मादा पक्षी के ये सजावटी पंख नहीं होते। वर्षा ऋतु में मोर जबपूरी मस्ती में नाचता है तो उसके कुछ पंख टूट जाते हैं। वैसे भी वर्ष में एक बार अगस्त के महीने में मोर के सभीपंख झड़ जाते हैं। ग्रीष्म-काल के आने से पहले ये पंख फिर से निकल आते हैं। मुख्यतः मोर नीले रंग में पाया जाता है, परंतु यह सफेद, हरे, व जामनी रंग का भी होता है। इसकी उम्र 25 से 30 वर्ष तक होती है