Sunday, July 31, 2011

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                           शिक्षा के गुरूकुल में भ्रष्टाचार को पनाह

महाविद्यालय के प्राचार्य डा0 नन्दलाल शुक्ला ने अपनी सफाई कहा ह कि वे हाई कोर्ट से निलम्बित नही हुये थे बल्कि ग्रीष्म अवकाश की छुटटी में इलाहाबाद गये हुये थे। उनके सज्ञांन में जसे ही हाईकोर्ट के आदेश की बात करीबी लोगो से पता चली तब उन्होनें सुप्रीम कोर्ट में विशेष याचिका दायर की जिस पर 11 जुलाई 2011 को आदेश हुआ ह कि 11 जुलाई को महाविद्यालय में कार्यरत प्राचार्य के मुताबिक ही गतिविधिया संचालित की जायं। उधर डा0 नन्दलाल शुक्ल के निलम्बन के बाद वरिष्ठता क्रम में नियुक्त हुये प्राचार्य डा0 ए0पी0 सक्सेना ने बिना किसी कहा सुनी के बड़ी ही आसानी से प्राचार्य पद इस्तीफा दे दिया ह। इस बात को लेकर कालेज में और प्राचार्य के विरोधी गुटों में सनसनी फल गई ह। कुछ ऐसे अधूरे-अनसुलझे प्रश्न डा0 नन्दलाल शुक्ल ने छोड़े ह जिनका उत्तर तो उनके राजदार ही दे सकते ह।

अनसुलझे सवाल:

  • सवाल न०-1 क्या कार्यवाहक प्राचार्य को वित्तीय चार्ज देने का अधिकार ह ?
  • सवाल न०-2 कार्यवाहक प्राचार्य का कालेज की प्रवेश विवरणिका में नाम क्यों दिया गया ?
  • सवाल न०-3 11 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार डा0 ए0पी0 सक्सेना ही प्राचार्य ह न कि डा0 नन्दलाल शुक्ला ?
  • सवाल न०-4 कार्यवाहक प्राचार्य को किसी भी शिक्षक को ज्वाइन कराने का अधिकार नही ह जबकि एक अध्यापक को ज्वाइनिंग दी गयी ?
  • सवाल न०-5 यदि डा0 नन्दलाल शुक्ला अवकाश पर थे तो क्या उन्हे कालेज में हो रही गतिविधियों का भान नही था ?
  • सवाल न०-6 क्या अवकाश के दौरान डा0 नन्दलाल शुक्ला को हाई कोर्ट के निलम्बन आदेश की प्रति प्राप्त नही हुयी थी ?
  1. वर्ष 2003 से 31 मई 2011 तक करोड़ों रूपये का बन्दरबांट
  2. नहीं दी जनसूचना अधिकार 2005 की सूचना
  3. आर0टी0आई0 की नही दी सूचना
  4. सुप्रीम कोर्ट के आदेश 11 जुलाई 2011 के मुताबिक महाविद्यालय में प्राचार्य की यथास्थिति बरकरार रखी जाये

निजी संवाददाता:

तीन दसकों से भी अधिक समय का सफर तय कर चुके जनपद के एक मात्र प्रतिष्ठित महाविद्यालय की शाख पर बट्टा लगने को ह। शिक्षा के गुरूकुल में भ्रष्टाचार को पनाह दी जा रही ह। यूं तो साल दर साल महाविद्यालय में प्राचार्य आते और जाते रहे मगर वर्ष 2003 से 31 जुलाई 2011 तक के कार्यकाल में रहे प्राचार्य ने जिस तरह से यू0जी0सी0 ग्रान्ट कमीशन, विधायक सांसद निधि से प्राप्त बजट को कौड़ियों के भाव कागज के आंकड़ों में गर्त कर दिया ह, उससे न सिर्फ महाविद्यालय की शाख पर बट्टा लगा ह बल्कि महाविद्यालय से जुड़े हुये कई पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष भी भ्रष्टाचार के मामले को लेकर अनशन और धरना प्रदर्शन में बीते एक माह से सभी राजनीतिक दलों के साथ बठ चुके हैं।
वर्ष 1964 से महाविद्यालय में छात्र-छात्रओं से ली जाने वाली काशनमनी नियमित जमा होती रही ह और महाविद्यालय के छात्रों को डिग्री लेने के बाद टी0सी0 कटवाने के समय वापस कर दी जाती थी। वर्ष 2003 से मई 2011 के बीच छात्रों से वसूली गई लाखों रूपये की काशनमनी को न तो छात्र-छात्रओं को वापस किया गया और न ही इस धनराशि को महाविद्यालय के कोष मे जमा किया गया ह। नाम नही लिखने की शर्त पर बयान देते हुये महाविद्यालय के एक लिपिक ने बताया कि नये भवन के खेल मदान में जो इलाहाबाद ग्रामीण बैंक को किराये पर प्रशिक्षण के लिये जो भवन, हाल दिया गया ह उससे मिलने वाले हजारों रूपये का किराया भी प्राचार्य के निजी खर्चो में चला जाता ह। जिस तरह से एक ही व्यक्ति विशेष द्वारा बिल्डिंग निर्माण कार्य बिना टेण्डर निकाले काम करवा दिये गये। कमीशन दरों पर रेट तय करके बिल्डिंग निर्माण में खामियां की गयी हैं। करोड़ों रूपयों की पोल महाविद्यालय में बने हुये टी0टी0 हाल, बाउण्ड्रीवाल, छात्र संघ अध्यक्ष भवन, क्रीड़ा विभाग की बिल्डिंगों ने और पुराने भवन में निर्माण कार्य में की गयी धांधली की पोल के साथ साथ महाविद्यालय के मदान में बने प्राचार्य के लाखों रूपयों के आलीसान बंगलों की भी पोल खोल दी ह। कहना गलत नहीं कि निजी ठेकेदारों ने मानकों की अनदेखी करके जिस तरह से बिल्डिंग निर्माण में घटिया सामग्री का उपयोग किया ह, उससे हजारों छात्र छात्राओं की जान आज नहीं तो कल खतरे में पड़ सकती ह। निजी सूत्रों की माने तो महाविद्यालय के साईकिल स्टण्ड से ही हर साल तकरीबन 20 से 25 लाख रूपये की वसूली की जाती ह। साइकिल स्टण्ड की फीस देने वालों में सभी छात्र छात्रायें शामिल होते हैं फिर चाहें वह विकलांग हो या आंख से अन्धा। इधर महाविद्यालय के पुस्तकालय भवन के पीछे लगाये गये पूर्व प्राचार्यों द्वारा पुराने वृक्षों को तत्कालिक प्राचार्य ने वन विभाग की सांठ-गांठ से जिस तरह रातों रात ठिकाने लगा दिया उसकी ही एक बानगी महाविद्यालय के मदान में लगाये गये 82 हजार के पौधे जो आज बी0एड0 आवासीय भवन की बिल्डिंग की भेंट चढ़ चुके हैं।
महाविद्यालय के पूर्व छात्र संघ अध्यक्ष सुशील त्रिवेदी ने प्राचार्य डा0 नन्दलाल शुक्ला के खिलाफ कम्प्यूटर शुल्क के नाम पर कम्प्यूटर संचालक द्वारा की गयी तकरीबन 52 लाख की वसूली पर मोर्चा खोल दिया ह और कई दिनों से राजनीतिक दलों के साथ अनशन और धरना प्रदर्शन पर थे। इधर हाईकोर्ट इलाहाबाद के शासनादेश के बाद से पूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव के शासन में शिक्षा निदेशक द्वारा नियुक्त किये गये प्रदेश में 13 महाविद्यालयों के प्राचार्यों को उच्च न्यायालय ने अवध नियुक्ति करार देते हुये महाविद्यालय से बाहर का रास्ता दिखा दिया था। मगर पं0 जे0एन0पी0जी0 कालेज के प्राचार्य और अन्य प्राचार्यों ने उच्चतम न्यायालय की शरण में जाकर बड़ी ही साफगोई से जिला प्रशासन और महाविद्यालय स्टाफ की आंखों में धूल झांेकने की तयारी कर दी ह।
 मिली जानकारी के अनुसार में 11 जुलाई को सुप्रीम कोर्ट ने अपने दिये एक अहम आदेश में 11 जुलाई को कार्य कर रहे प्राचार्य के मुताबिक ही महाविद्यालय की गतविधियां संचालित करने के आदेश दिये हैं। इस आदेश के मुताबिक प्राचार्य नन्दलाल शुक्ला के हटाये जाने के बाद प्राचार्य नियुक्त हुये डा0 ए0पी0 सक्सेना को ही उच्चतम न्यायालय के शासनादेश के मुताबिक प्राचार्य की कुर्सी पर होना चाहिए। लेकिन सत्ता की दबंगई और अपने क्षेत्र प्रभाव के बल पर निलम्बित हुये प्राचार्य ने महाविद्यालय मे न ही पूर्व में हाईकोर्ट से निलम्बन के बाद प्राचार्य की कुर्सी छोड़ी और न ही अपना चार्ज किसी अन्य को लिखित रूप में हस्तांरित किया था, इसी बात का लाभ लेते हुये उन्होनें एक बार फिर जिला प्रशासन की शार्गिदी में प्राचार्य पद नही छोड़ने का पूरा प्रबन्ध कर लिया है।
इधर सामाजिक कार्यकर्ता आशीष सागर ने जनसूचना अधिकार 2005 के तहत महाविद्यालय में वर्ष 2003 से 31 जुलाई 2011 तक प्राचार्य के कार्यकाल में किये गये तमाम तरह के कामों और निर्माण कार्यों की सूचना मांगी थी उनके अनुसार तीस दिवस गुजर जाने के बाद भी जनसूचना अधिकारी ने सूचना उपलब्ध नहीं करायी। उन्होनें जिला उपभोक्ता फोरम जनसूचना अधिकारी, प्राचार्य पर 90 हजार रू0 का मुकदमा दाायर किया ह जिसकी सुनवाई फोरम में 6.9.2011 को नियत है। महाविद्यालय की लुकाछुपी और प्राचार्य तथा पूर्व छात्र संघ अध्यक्षों के बीच चल रही उठा पटक से महाविद्यालय के नये छात्र छात्राओं का भविष्य स्थाई प्राचार्य की तस्वीर में अधकचरे में पड़ गया ह। यह देखना गौरतलब होगा कि नकलविहीन महाविद्यालयों की श्रेणी में बुन्देलखण्ड विश्वविद्यालय के ऊंचे पायदान पर बठा पं0 जे0एन0 कालेज खुद को भ्रष्टाचार से किस तरह मुक्त कर पायेगा।
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            चालीस बालश्रम विद्यालय बन्द और बच्चे सड़कों पर

1. राष्ट्रीय बालश्रम परियोजना के संचालन में हुई 85,08,928.00 रूपयों की धांधली
2. समाज सेवी संगठनो पर था बालश्रमिको के भविष्य संवारने का दारोमदार
3. बुन्देलखण्ड में मौजूद हैं 8,880.00 बालश्रमिक, चित्रकूट मण्डल में नही खुला किशोर बालगृह
बुन्देलखण्ड के सात जनपदो में से बालश्रमिको को लेकर चित्रकूट मण्डल के हलात कुछ अधिक ही बदहाल है। राष्ट्रीय बालश्रम परियोजना का संचालन जनपद बांदा में वर्ष 2005-06 में प्रारम्भ हुआ था जिसका कार्य फरवरी 2006 से जिलाधिकारी बांदा एवं शासन की संस्तुति पर चुने हुये कुछ समाज सेवी संगठनों द्वारा जनपद में किराये के भवनों, निजी स्तर पर बनाये गये बालश्रमिक विद्यालय में किया गया था। तीन वर्षा के लिये प्रारम्भ में आई केन्द्र सरकार की इस परियोजना के लिये जनपद को कुल धनराशि 1,50,70,101 रू0 प्राप्त हुये थे जिसमें की व्यय धनराशि 85,08,928.00 रू0 खर्च किये जा चुके है तथा अवशेष धनराशि 74,31,139.00 रू0 बजट में शेष बची है। इस योजना के लिये राज्य सरकार से किसी भी प्रकार की मदद उपलब्ध नही कराई गयी थी।
गौर तलब है कि बालश्रमिक अधिनियम 1986 के अन्तर्गत 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों को 13 व्यवसाय, 57 प्रक्रियाओं, खतरनाक व्यवसाय की श्रेणी में प्राविधानित किया गया है। इस अधिनियम के अनुसार इसका उल्लघंन करने वाले के विरूद्ध अपराधिक मुकदमा तथा अपराध सिद्ध होने पर 1000 रू0 से 20000 तक का जुर्माना हो सकता है और कम से कम तीन माह अधिकतम् एक वर्ष की सजा हो सकती है वहीं माननीय उच्चतम् न्यायालय के निर्णय के अनुसार बालश्रमिक को नियोजित करने सेवायोजक, फर्म, कम्पनी से 20000 रू0 प्रति बालश्रमिक की दर से प्रतिकर वसूल करने का प्राविधान है। बुन्देलखण्ड में बांदा के लिये संचालित राष्ट्रीय बालश्रमिक परियोजना के तहत ग्रामोदय विकास संस्थान, कालूकुआं जनपद बांदा, संचालक महेन्द्र सिंह गौतम अध्यक्ष बालकल्याण समिति जिला प्राबेशन अधिकारी बांदा, श्रद्धासमिति, इन्दिरा नगर बांदा संचालक राकेश मिश्रा, नवयुग सेवा संस्थान, मलहौसी, औरैया, जाग्रति समिति, कानपुर के अतिरिक्त अन्य संस्थाओं के द्वारा भी शहर के लिये 20 और विकास खण्ड स्तर पर 20 बालश्रम विद्यालय संचालित किये गये थें। जिसमें की ग्रामोदय विकास संस्थान द्वारा शहर बांदा, नवयुग सेवा संस्थान नुनियां मोहल्ला, दक्षिणी क्योटरा जेल रोड़ बांदा, जागृति समिति शहर बांदा एवं श्रद्धासमिति अर्तरा, बिसण्डा में विद्यालयों का संचालन किया गया था।
एक संस्था द्वारा 2 विद्यालयों चलवाये गये और ज्यादा तर किराये के भवनों या महज कागजी रूप में क्रियांवित किये गये। संस्थाओं ने एक वर्ष विद्यालयांे का संचालन सही रूप से किया लेकिन जिला प्रशासन की अनदेखी और बच्चों की करोड़ो की परियोजना पर आखिरकार भ्रष्टाचार की राख लग ही गयी। जनवरी 2007 में तत्तकालिक जिलाधिकारी रंजन कुमार ने मानको की अनदेखी पर राष्ट्रीय बालश्रम परियोजना के संचालन में की गयी हीला हवाली से शासन को अवगत कराते हुये जनवरी 2007 में विद्यालयों पर नियुक्ति किये गये संविदा कर्मी अनुदेशक मानदेय 1500, लिपिक 1400, आया 1200 का वेतन भुगतान रोक दिया और उचित कार्यवाही के आदेश संस्थाओं के विरूद्ध जारी कर दिये। एक गैर सरकारी सर्वेक्षण के मुताविक बुन्देलखण्ड केे चार जनपदों में 8,880.00 बालश्रमिक उपलब्ध है जो कि पत्थर की खदानों, क्रेशर उद्योग, होटल ढ़ाबो, कबाड़ बीनने का काम करते है। जनसूचना अधिकार 2005 के तहत जिला श्रम प्रवर्तन अधिकारी एस0के0 त्रिपाठी ने बताया कि वर्ष 2005 में प्राप्त आकडांे के मुताबिक बांदा में 9 से 14 आयु वर्ग के बालश्रमिक 1646 बालक तथा 425 बालिकायें खतरनाक व्यवसाय मंे चिन्हित किये गये थे वर्ष 2009 में एक पायलट सर्वेक्षण में 179 बालश्रमिक और पायें गये हैं। इस अवधि से अभीतक विभाग ने किसी प्रकार कोई सर्वे नही किया है।
वहीं राष्ट्रीय बालश्रम परियोजना संचालित करने वाले ग्रामोदय विकास संस्थान की माने तो बांदा में 4000, महोबा 1200, हमीरपुर 1480 बालश्रमिक 2010 तक सर्वे में पाये गये है जिनके पुर्नवास की कोई व्यवस्था नही है। बड़ी बात है कि बुन्देलखण्ड जनपदों में सिर्फ ललितपुर में ही किशोर बालगृह चल रहा है। किसी भी संज्ञेय अपराध के लिये सभी जनपदों के बच्चों को ललितपुर जाना पड़ता है। उक्त परियोजना के बाद दिसम्बर 2010 में शासन ने उ0प्र0 के लिये 17 बाल आश्रयेे केन्द्र संचालित करने का प्रस्ताव रखा था और विज्ञापन भी प्रकाशित किया गया। जिसमें की बांदा में भी 25 बच्चों के लिये आवासीय कम्प्यूटर शिक्षा युक्त आश्रयगृह खोेला जाना था। इसके लिये 12.58 लाख रूपयें एक वर्ष में बजट अनुदानित करने की सरकार की मंशा थी।
लेकिन 8 माह गुजर जाने के बाद भी परियोजना का कोई पता नही है और वहीं मई 2011 में बाल संरक्षण समिति के लिये भी प्रस्ताव मांगे गये थे मगर उसका भी पूर्व की तरह कोई संज्ञान नही है। बताते चले की राष्ट्रीय बालश्रम परियोजना संचालित करने वाले एक व्यक्ति विशेष को ही जनपद की बाल कल्याण समिति का अध्यक्ष बना दिया गया और आनन फानन मीटिंग भी बीते सप्ताह जिला पंचायत अध्यक्षा बांदा की मौजूदगी में सम्पन्न हुई। हर साल लाखों रू0 बच्चों के कल्याण के लिये आने वाले रू0 में सरकारी और समाजसेवी लोगो के भ्रष्टाचार का घुन बुन्देलखण्ड के बालश्रमिको पर भारी है। पूर्व जिलाधिकारी रंजन कुमार द्वारा 40 बालश्रम विद्यालयों के अनुदेशक, लिपिक, आया का मानदेय भुगतान नही होने पर संस्थाओं ने कई दफा राजनीतिक दौरों में आये हुये प्रतिनिधियों को भुगतान करवाये जाने के ज्ञापन भी दिये है। बरहाल उन बालश्रमिको का क्या होगा जिनकी इन संस्थाआंे ने पांचवी की बोर्ड परीक्षा भी नही कराई और तकरीबन बांदा में ही 800 बालश्रमिक ड्रापआउट होकर एक बार फिर अधेंरे की गलियों में धूल छान रहा है।
आशीष सागर, समाजिक कार्यकर्ता