Wednesday, November 23, 2011


बुंदेलखंड से मिलता है 900 करोड़ रुपए राजस्व

Story Update - Amar Ujala Mews 23.11.2011 Bundelkhand Page 
बांदा। राजस्व के मामले में बुंदेलखंड काफी आत्मनिर्भर है। दो प्रदेशों में बंटे 13 जिलों वाले बुंदेलखंड से हर वर्ष दोनों सूबों की सरकारों को कम से कम 900 करोड़ रुपए से ज्यादा आमदनी होती है। यूपी के सात जनपदों से 510 करोड़ और एमपी के छह जिलों से 375 करोड़ राजस्व हासिल हो रहा है। इसके साथ ही यहां पर घोटाले भी खूब हो रहे हैं। गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में हुई 228 करोड़ रुपए राजस्व चोरी का खुलासा वर्ष 2011 की अपनी रिपोर्ट में महालेखा नियंत्रक परीक्षक (कैग) ने किया है।
समूचे बुंदेलखंड में खनिज संपदा की भरमार है। चूना पत्थर, डोलोमाइट, रॉक फासफेट, सिलिका सेंड, बाक्साइड, तांबा, पाइरोफिलाइट, जिप्सम, सूरमा, संगमरमर, सेलखड़ी, हीरा, यूरेनियम, शीशा, ग्रेनाइट, शजर, बालू आदि से सिर्फ उत्तर प्रदेश के हिस्से वाले बुंदेलखंड से प्रदेश सरकार को 510 करोड़ रुपए से भी ज्यादा का राजस्व प्राप्त होता है। इस रकम से भी कहीं ज्यादा खनन माफियाओं की जेबों में चला जाता है। ललितपुर क्षेत्र में बेशकीमती धातु प्लेटिनियम की संभावनाएं पाई गई हैं। इसी तरह मध्य प्रदेश के बुंदेलखंड वाले छह जिलों से कम से कम 375 करोड़ रुपए राज्य सरकार को हर साल मिल रहे हैं। वहां पन्ना जनपद में हीरा, जबलपुर में संगमरमर और रीवां में रेत व बालू के भंडार हैं। मध्य प्रदेश में तो आस्ट्रेलिया व अमेरिका की कंपनियों को भी पट्टे पर नदियां और पहाड़ देने की तैयारी है।
बुंदेलखंड में खनिज से होने वाली आमदनी के लिए खदानों की भरमार है। स्वयंसेवी संगठन ‘प्रवास’ के आशीष सागर बताते हैं कि झांसी में 349 खनन क्षेत्र हैं। महोबा में 330 पहाड़ के पट्टे हैं। उत्तर प्रदेश की कुल खदानों का 34 प्रतिशत हिस्सा बुंदेलखंड के सात जनपदों में है। चित्रकूटधाम मंडल में 744 खनन क्षेत्र हैं। सातों जिलों में 1311 खनन क्षेत्र बताए गए हैं। आशीष सागर का कहना है कि बुंदेलखंड अलग राज्य बना तो इन प्राकृतिक संसाधनों का दोहन और अधिक होगा। बुंदेलखंड राज्य का प्रस्ताव गलत समय पर सही मांग जैसा है।

Prawas
 

गायब होती जा रही हैं ‘सोन चिरैया’

बांदा।
Story - Nature climate 
Have been going missing Son birds bundelkhand
भंवरों के अतिरिक्त एक चिड़िया भी है, जो सिर्फ फूलों का रस चूसती है। इसका नाम है ‘सोन चिरैया’। बुंदेलखंड में कहीं-कहीं इसे ‘श्याम चिरैया’ के नाम से भी जाना जाता है। अक्सर फुलवारियों में दिखने वाली यह चिड़िया अब गायब होती जा रही है।

आमतौर पर भंवरे, मधुमक्खी और तितलियों को ही फूलों से निकलने वाले रस ‘मकरंद’ पर जीवित रहने वाला माना जाता है, लेकिन ‘सोन चिरैया’ या ‘श्याम चिरैया’ का भोजन भी सिर्फ फूलों का रस यानी ‘मकरंद’ है। पहले अक्सर ए चिड़िया फुलवारी (फूलों की बगिया) में दिख जाती थीं, लेकिन अब बहुत कम ‘सोन चिरैया’ नजर आती हैं।

इस चिड़िया का वजन 10-20 ग्राम होता है। श्याम रंग की इस चिड़िया के गले में सुनहरी धारी होती है, जो सूर्य की किरण पड़ते ही सोने जैसा चमकती है। रंग और लकीर की वजह से ही इसे ‘सोन चिरैया’ या ‘श्याम चिरैया’ कहा जाता है। इसकी पूंछ भी चोंच की तरह नुकीली होती है और जीभ काले नाग की तरह। अपनी लम्बी जीभ को सांप की तरह बाहर-भीतर कर वह फूलों का रस चूसती है।

कभी फूलों की खेती करने वाले बांदा जनपद के खटेहटा गांव के बुजुर्ग मइयाद्दीन माली कहते हैं, ‘सोन चिरैया का आशियाना फुलवारी है। बुंदेलखंड में फूलों की खेती अब बहुत कम की जाती है। यही वजह है कि इन चिड़ियों की संख्या में कमी आई है।’

वहीं कुछ बुद्धिजीवियों का कहना है, ‘गांवों से लेकर कस्बों तक दूरसंचार की विभिन्न कम्पनियों ने टावरों का जाल बिछा दिया है। इनसे निकलने वाली किरणों की चपेट में आकर बड़े पैमाने पर चिड़ियों की मौत हो रही है। ‘सोन चिरैया’ की संख्या में कमी की यह बहुत बड़ी वजह है।’