Monday, September 03, 2012

कन्या भ्रूण हत्या रोकने की अनोखी पहल

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कन्या शिशु की घटती दर के लिहाज से उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल और बुन्देलखण्ड के कई जिले पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राह पर हैं, जहां पहले से ही लिंगानुपात की खाई गहरी है. बुन्देलखंड के ललितपुर, बांदा, चित्रकूट जिलों में तेजी से घटती कन्या शिशु दर चौकाने वाली है...
आशीष सागर
पूरे देश में पीसीपीएनडीटी एक्ट कानून के मुताबिक कन्या भ्रूण हत्या एक जघन्य अपराध है. जिला अस्पताल या फिर निजी चिकित्सा सर्विस सेन्टरों में यदि कन्या भ्रूण हत्या होते हुए मौके पर पाया पाई जाती है तो ऐसा करने वाले परिवार के आरोपी लोगों और जिम्मेदार डाक्टर के ऊपर कानून का शिकंजा कसना कानून के मुताबिक तय है. लेकिन कागजो में दौड़ रहे तमाम कानूनों की तरह पीसीपीएनडीटी एक्ट (लिंग प्रतिनिशोध अधिनियम) भी सरकारी सूचना पट का निर्देश मात्र रह गया है.
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आरोपी डॉक्टर और उसका निजी अस्पताल

समाज कल्याण बोर्ड उत्तर प्रदेश की जारी हालिया रिपोर्ट के अनुसार हरदोई, कुशीनगर, बहराईच, सोनभद्र, बिजनौर और बुन्देलखण्ड के ललितपुर जनपद में सर्वाधिक लड़कियां परिवार के लिए बोझ बनती जा रही है. गर्भ में हो रहे भ्रूण हत्या के आंकडे इन जिलो में सबसे ऊपर हैं. 

जनपद बांदा में सामाजिक संगठन अभ्युदय सेवा संस्थान द्वारा पीसीपीएनडीटी एक्ट पर उत्तर प्रदेश सरकार के अनुदान से लखनऊ की संस्था वात्सल्य के कोर्डिनेशन में तिंदवारी विकास खण्ड के ग्रामीण इलाको में यह कार्यक्रम चलाया जा रहा है. संस्था संचालिका के माने तो तिंदवारी विकास खण्ड के कुछ गांव में किये गये पायलट संर्वेक्षण के आधार पर 108 में से 35 महिलाओं ने सीधे तौर पर अपने घरो में मुखिया मर्दो के ऊपर बेटियों को जबरन मरवाने का आरोप लगाया है.

उधर उत्तर प्रदेश समाज कल्याण बोर्ड ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश के संवेदनशील जिलों मे हो रहे कन्या भ्रूण हत्या की राह पर बुन्देलखण्ड और पूर्वांचल की दस्तक होने के संकेत दिये हैं. निजी जानकारी और मरीजो के तीमारदार व गर्भवती महिलाओं ने जिला-बांदा के सरकारी अस्पताल में कुछ डाक्टरों के ऊपर नाम न बताने की शर्त पर गर्भपात सुविधा शुल्क लेकर करने का भी खुलासा किया है.

इसी बीच बांदा जिले में कन्या भ्रूण रोकने की एक अनोखी पहल ली गयी है. बीते दिनों मुम्बई के अजंली ग्रुप (अजंली फाउन्डेशन) के फाउन्डर चेयर मैन आत्माराम के पटेल द्वारा महाराष्ट्र व अन्य राज्यों में डायरी लेखन के माध्यम से ‘‘चलो लिखते है जिन्दगी’’ अभियान के तहत उत्तर प्रदेश के बांदा जिले से इस अभियान की शुरूवात तेजी से बढ़ रहे कन्या भ्रूण हत्या के अपराधों को रोकने के लिए की गयी. 

अजंली फाउन्डेशन के ट्रस्टी आशोक जैन ने 'चलो लिखते है जिन्दगी' विषय पर आयोजित विमर्श में कहा कि गर्भावस्था के दौरान गर्भवती महिला को स्वस्थ चितंन व वैचारिक खेती के लिए डायरी लेखन को उपयोगी बताया है. विमर्श में उपस्थित रहे समाज सेवियों, शिक्षकों, डाक्टरों, मनोंचिकित्सक के उदबोधन से निकले अंश यह बताते है कि सामाजिक विकृतियों, किशोर अवस्था में पनप रहे अपराध बोध, नशा खोरी, रोकने के लिए डायरी एक शसक्त माध्यम हो सकता है. 

बकौल अशोक क जैन डायरी में व्यक्ति वही सब कुछ लिखता है जो शब्द किसी से कह नही सकता. घर की महिलाएं और भाभी, मां बनने वाली महिलाएं यदि गर्भ के समय डायरी से विचारो का सृजन करती है तो निश्चित ही उसका असर बच्चे पर जाता है. वेंदो में लिखी गयी ऋचाएं, सूक्तियां और वाक्य इस बात का प्रमाण है कि अभिमन्यु को चक्रव्यूह तोड़ने की कला भी मां के गर्भ में ही प्राप्त हुयी थी. 

कन्या भ्रूण हत्या केा रोकने में डायरी इसलिए भी उपयोगी हो सकती है क्योंकि अगर मां अपनी संवेदना, अन्तर पीडा और अस्मिता के विचारो को स्वतः अपने लिए डायरी में लिखेगी तो यदि उसके गर्भ से लड़की ही जन्म लेती है बावजूद इसके वह लड़की की जरूरत और सुरक्षा के प्रति अधिक संवेदित होगी.

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