Monday, December 10, 2012

बालू माफिया ने बांध दिया नदी की धारा ?

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रविवार को भाजपा नेता उमा भारती जब लखनऊ में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव से मिलीं तो उन्होंने उनसे दो मांग रखी। उमा भारती की पहली मांग थी कि कुंभ को देखते हुए गंगा में निर्मल जल की उपलब्धि सुनिश्चित की जाए और दूसरा बुंदेलखण्ड में पानी की गंभीर समस्या को देखते हुए केन बेतवा जोड़ परियोजना को उत्तर प्रदेश सरकार प्राथमिकता दे। जिस वक्त उमा भारती प्रदेश के मुखिया के सामने केन नदी का दुखड़ा रो रही थीं, उन्हें भी नहीं मालूम रहा होगा कि जिस नदी को पुनर्जिवित करने में केन बेतवा जोड़ की अहमियत समझा रही थीं, वह नदी पिछले तीन महीने से बहने से ही रोक दी गई है। पिछले तीन महीने से केन नदीं के दो हिस्से हो गये हैं। अब केन के पेट में पानी नहीं बह रहा है बल्कि उसके सीने पर ट्रकों का कारवां गुजर रहा है। बुंदेलखण्ड के खनन एवं बालू माफिया ने एक पूरी की पूरी नदी की धारा रोक दी और किसी को कानो कान खबर तक नहीं हुई। जिन्हें हुई उन्होंने इसपर कोई कान ही नहीं दिया।
बालू और खनन माफियाओं के लिए बांदा अवैध कारोबार का स्वर्ग है। हाल में ही काल के गाल में समा गये पोन्टी चड्ढा के चेलों चमचों ने पूर्व की मायावती सरकार के शह पर बालू एवं खनन का जो अवैध कारोबार विकसित किया था, वह मायाराज के खात्मे के बाद भी बदस्तूर जारी है। अवैध खनन के इस स्वर्ग में पहुंचते ही नियम, कायदे कानून सब किताबी बातें बनकर रह जाती हैं और होता वही है जो खनन माफिया चाहता है। नियम कानून भी सिर्फ उगाही की रकम बढ़ाने का जरियाभर हैं। यह माफिया भी जानता है और सरकारी अफसर भी। इसलिए सब कुछ अवैध होते हुए सब कुछ वैध करार दे दिया जाता है।
शायद यही कारण है कि खनन एवं बालू माफिया ने एक नदी के प्रवाह को रोक देने तक का दुस्साहस कर दिखाया है। पिछले तीन महीने से हरदौली घाट बाईपास के पास केन नदी को पाटकर उसे दो भागों में बांट दिया गया है जिससे नदी का प्रवाह पिछले तीन महीनों से रुका हुआ है। स्थानीय नागरिकों ने अपनी जीवनदायिनी कर्णावती (केन) नदी को मुक्त कराने का अहिंसक प्रयास भी किया लेकिन हिंसक माफियाओं के आगे अहिंसा का आंदोलन नहीं चल पाया। नदी को मुक्त कराने और उसकी धारा को अविरल बनाने के लिए चौबीस घण्टे के अखण्ड रामायण पाठ भी आयोजित किया गया लेकिन उस रामायण पाठ की गूंज बालू माफियाओं के कानों तक नहीं पहुंच पाई। प्रशासन को आधिकारिक तौर पर कुछ पता नहीं है और वह आधिकारिक तरीका क्या होता है जिससे मान लिया जाए कि प्रशासन को पता चल गया है, वह लोगों को पता नहीं है। इसलिए प्रशासन अपनी जगह मुस्तैद है और स्थानीय मीडिया द्वारा सवाल खड़ा किये जाने के बाद डीएम साहेब सपाट लहजे में कह देते हैं कि अवैध खनन की शिकायत मिलने पर सख्त कार्रवाई की जाएगी। लेकिन दुर्भाग्य यह है कि उन्हें अवैध खनन की शिकायत मिल ही नहीं रही है। स्थानीय कप्तान की सक्रियता आलम यह है कि ड्राइवरों से पूछने पर वे कोड वर्ड में कप्तान साहब की सहमति बता देते हैं और आगे बढ़ जाते हैं।
नदी को बांध देने का दुस्साहस तो वह चरम है जिसकी देश में कोई कल्पना भी नहीं कर सकता। लेकिन केन के किनारों पर आकर यह सब संभव हो जाता है। लेकिन इस दुस्साहस तक पहुंचने के पहले खनन माफिया न जाने कितने तरीकों से केन नदी को मारने का सुनियोजित प्रयास कर रहे हैं। बालू निकालनेवाली पकोलैण्ड मशीनों के बाद अब और अधिक घातक मशीन इस्तेमाल में लाई जा रही है। स्थानीय ठेकेदार इसे बालू लिफ्तर कहते हैं। इस मशीन की खासियत यह है कि यह नदी को सुखाकर उसके गर्भ से भी बालू खींच सकती है। इस नदी का इस्तेमाल करके अब खनन माफिया नदी में 200 फुट नीचे से भी बालू निकाल सकने में कामयाब हो रहे हैं। और अब दुस्साहस का चरम यह कि खनन माफियाओं ने पिछले तीन महीने से नदी को बंधक बना रखा है लेकिन शासन और प्रशासन सब कुछ जानते हुए भी पूरी तरह से मौन है।

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