Thursday, August 16, 2012

बुंदेलखण्ड में बढ़ती आत्महत्याएं

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क़र्ज़ है मुख्य कारण
सूबे में सत्तासीन समाजवादी सरकार ने अपने चुनावी घोषणापत्र में 50 हजार किसानों के कर्ज माफी की बात कही थी, जिस पर अभी तक अमल नहीं हो सका है. यह बात और है कि उत्तर प्रदेश में बदलता हुआ विकास का आईना बसपा सरकार के मूर्ति-स्मारकों से हटकर इटावा, मैनपुरी, कन्नौज को चमकाने की जोर-शोर से कवायद कर रहा है...
आशीष सागर
मैं बुंदेलखण्ड हूं. बीते 5 अगस्त को मेरे गर्भ में हो रही किसान आत्महत्याओं की संख्या बढकर 3262 (2001 -2012) हो गयी है। इस वर्ष मई से अब तक तकरीबन पन्द्रह किसान आत्महत्या कर चुके हैं. बुन्देलखंड के बांदा, हमीरपुर, चित्रकूट और महोबा में ये आत्महत्याएं हुई हैं. बैंक और साहूकारों से कर्ज लेकर मुसीबत में घिरते किसानों की फेहरिस्त में एक और युवा किसान का नाम जुड़ गया, जिसने तंग आकर आत्महत्या कर ली। ये आत्महत्याएं मई महीने में सर्वाधिक हुई हैं, सबसे ज्यादा आत्महत्यायें बांदा में की गयी हैं.
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अपनी पत्नी की साड़ी के पल्लू से फंसरी लगाकर जनपद बांदा के ग्राम भदेहदू के 35 वर्षीय युवा किसान नरेन्द्र सिंह पटेल पिछले दिनों आत्महत्या कर ली। चौतरफा कर्ज से घिरे नरेन्द्र पर बैंक का 1 लाख 60 हजार 110 रूपये ऋण बकाया था। इलाहाबाद यूपी ग्रामीण बैंक भदेहदू से जुलाई 2009 में अपने हिस्से की जमीन गिरवी रखकर नरेंद्र ने खेती के लिये कर्ज लिया था। ग्रामीणों के मुताबिक साहूकारों का तीन लाख रुपये कर्ज नरेन्द्र के ऊपर बकाया था। मगर इसे कर्ज से परेशान होने के चलते आत्महत्या करार देने के बजाय तहसीलदार एसएन त्रिपाठी ने पलायन के बाद घर वापस लौटे नरेन्द्र पर पत्नी से विवाद के चलते आत्महत्या करने का सरकारी ठप्पा लगा दिया।
सरकार देश की आर्थिक रीढ़ कृषि को व्यवसाय का दर्जा देने से क्यों बच रही है, यह रहस्य आज भी सरकारी मंत्रालयों की गर्त में छिपा है। समय पर किसान को खाद, बीज, पानी, कीटनाशकों की उपलब्धता आवश्यकतानुसार सरकार की ओर से सुनिश्चित न करना उसकी नियत में खोट को उजागर करता है। बुन्देलखण्ड में किसान रवि की फसल भी कर्ज लेकर बो रहा है । कीटनाशकों के भाव आसमान छू रहे हैं और डीजल की कीमत मजदूरीकश किसान की कमर तोड़ती जा रही है।
बेलगाम बाजार सरकारी क्रय ऐजेन्सियां सरकार के नियन्त्रण से बाहर हैं. सबको पता है कि धान का समर्थन मूल्य 1050 से लेकर 1150 तक था। किसानों के साथ सरकारी क्रय ऐजिन्सियों की मनमानी और हफ्तों खरीद के लिए इन्तजार करने को लेकर जब किसान मजबूर हो कर खुले बाजार में गेहूं, धान आढ़तियों के यहां बेचने लगा तो उसे बमुश्किल 750 प्रति कुन्तल की दर से बेचना पड़ा, जबकि डीएपी खाद का भाव 2000 रुपये प्रति कुन्तल था।
किसान असंगठित वर्ग है. वह सिर्फ भीड़ है 90 करोड़ की भीड़, जिसकी शक्ति को जातियों में बांटकर किसान का शोषण सरकार -व्यवसायी घराने व बाजार कर रहे हैं। आज सत्ता और समाज की ठेकेदारी का आधार सैद्धान्तिक रूप से जाति में ही बल्कि अंकगणित की दहाई की गिनती है, लेकिन फिर भी राजनीति में जाति की स्वीकार्यता है। यह व्यवस्था सिर्फ इसलिए है कि 90 करोड़ किसानों, ग्रामीणों को जाति की घुट्टी देकर मुट्ठी भर लोग बेबस किसान का शोषण करते रहें।
जब किसान शोषण, गरीबी और कर्ज से तंग आकर जब आत्महत्याएं करता है, तब शोषक वर्ग अपने मिशन पर गौरवान्वित होता है और उसके भरोसे को मजबूती मिलती है कि किसान आज नहीं तो कल खेती को या तो लीज मे देने लगेगा या फिर वह साहूकारों और बैंकों के बन्धुआ मजदूरों की जमात में शामिल हो जायेगा।
बुन्देलखण्ड में पिछले 11 सालों से किसानों की खुदकुशी का आंकड़ा तेजी से सूखे की तरह बढ़ रहा है । अप्रैल 2003 से अगस्त 2006 तक चित्रकूट मण्डल के बांदा, महोबा, चित्रकूट, हमीरपुर में 1040 किसानों ने आत्महत्याएं की हैं। आत्महत्याओं के इन आंकड़ों में कर्ज से 86, गरीबी से 122, दहेज से 12, गृहकलह से 449, अज्ञात कारणों से 371 आत्महत्याए हुई हैं। वहीं वर्ष 2001 से 2006 तक 1275 किसानों की लाशों का पोस्टमार्टम कराये जाने का भी दावा किया गया है, जो 2007 से 2010 तक 1351, वर्ष 2011 में 521 और वित्तीय वर्ष 2012 में 115 किसान अब तक कर्ज के चलते आत्महत्या कर चुके हैं जिसका कुल योग बीते 5 अगस्त तक 3262 है ।
आत्महत्याओं की यह विकास दर बुन्देखण्ड के हालात और तस्वीर को साफ करने के लिए काफी है। 2 जून 2012 तक बैंकों से लिए गये तथ्यों के अनुसार उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के 16 लाख किसान कर्ज के मकड़जाल में हैं. इन पर बैंकों का 9095 करोड़ रुपया अभी तक बकाया है। किसान बुन्देलखण्ड का हो या फिर विदर्भ की सूखी पट्टी का, कहीं भी किसान की हालात एक सी है. बुन्देलखण्ड में बढ़ती हुयी किसानों की आत्महत्यायें यहां के बनते-बिगड़ते मानसून की तरह सुधरने का नाम नहीं ले रही हैं।
सूबे में सत्तासीन समाजवादी सरकार ने अपने चुनावी घोषणापत्र में 50 हजार किसानों के कर्ज माफी की बात कही थी, जिस पर अभी तक अमल नहीं हो सका है. यह बात और है कि उत्तर प्रदेश में बदलता हुआ विकास का आईना बसपा सरकार के मूर्ति-स्मारकों से हटकर इटावा, मैनपुरी, कन्नौज को चमकाने की जोर-शोर से कवायद कर रहा है।
चम्बल के बीहड़ों में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव की लाइन सफारी भले ही दहाड़ मारती नजर आये, मगर आगामी पांच वर्षों में बुन्देलखण्ड के पाठा, मड़फा के बीहड़ों में जरूर कोई ददुआ या मुफ्लिसी की तपिश में पान सिंह तोमर बनने को मजबूर होगा। बैंको का 873 करोड़ रूपये पहले ही एनपीए (नान परफारमिंग ऐसेट) के तहत डूब चुका है। बैंकों ने जहां 4 के बजाय 13 फीसदी वसूली किये जाने की बात शुरू की है, वहीं दूसरी तरफ गाहे बगाहे बैंको का रिकवरी नोटिस किसानों को आत्महत्यायें करने के लिये मजबूर कर रहा है।
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