Wednesday, March 13, 2013

फिर ना बन जाये शेहला काण्ड ! तीन दिन से लापता है आरटीआई कार्यकर्ता ब्रजमोहन..

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समाजवाद मौन, पुलिस खामोश और आम आदमी की जान जोखिम में
जनता की अर्जियों को अपने पीकदान का हिस्सा समझने वाले प्रशासन के कान पर जूँ तक नहीं रेंगी
आशीष सागर
ब्रजमोहन यादव
बांदा। केन्द्र सरकार ने नवंबर 2005 में जन सूचना अधिकार अधिनियम तो बना दिया, लेकिन नौ साल बीत जाने के बाद भी आरटीआई कार्यकर्ताओं को दबंग दादुओं, भ्रष्टाचारियों के निवाले से बचाने में सरकारें नाकाम रही हैं।
बुंदेलखण्ड के बाँदा जनपद की नरैनी तहसील के क्षेत्र बदौसा ग्राम उदयपुर निवासी ब्रजमोहन यादव पिता मूलचन्द्र यादव जमीनी सूचना अधिकार कार्यकर्ता हैं। कभी अतर्रा क्षेत्र की परागीलाल विद्याधाम समिति में बतौर सामाजिक कार्यकर्ता इनकी पहचान बनी। संस्था के कार्य करने की शैली से असन्तुष्ट होकर ब्रजमोहन यादव स्वतन्त्र रूप से अपने क्षेत्र के आमजन की समस्याओं, सामाजिक मुद्दों के लिये आवाज उठाने लगे। इस क्षे़त्र में जहाँ कहीं भी छोटे या बड़े स्तर में पंचायतों के बीच भ्रष्टाचार पनपता दिखाई देता तो ब्रजमोहन सूचना अधिकार को अपना हथियार बनाकर भ्रष्टाचारियों, प्रशासनिक विभागों में नकेल डालने का साहस करने लगे। मगर कौन जानता था और किसको खबर थी कि भ्रष्टाचार के सड़ांध मारते महासागर में ब्रजमोहन यादव आपराधिक प्रवृत्तियों को नागवार गुजरेंगे।
हाल ही में अतर्रा क्षेत्र की अभियान संस्था के संचालक अशोक श्रीवास्तव द्वारा ग्राम उदयपुर, भुसासी में वाटर ऐड के सहयोग से दो करोड़ 99 लाख रुपये के अनुदान पर सम्पूर्ण स्वच्छता कार्यक्रम के तहत वर्ष 2004 से 2007 के बीच बनाये गये कागजी 64 शौचालयों में धन के बंदरबाँट का खुलासा इस आरटीआई कार्यकर्ता द्वारा किया गया था।
चित्रकूट-बांदा लोकसभा सांसद आरके पटेल और आगामी लोकसभा 2014 से समाजवादी पार्टी के प्रत्याशी श्यामाचरण गुप्त के पूर्व में अपनी निधियों से कराये गये विकास कार्य भी सूचना अधिकार से कटघरे में खड़े होते दिखायी दिये। कभी क्षेत्र में बालू के अवैध खनन तो कभी ग्राम प्रधानों के मनरेगा में घोटालों की पोल खोलने में ब्रजमोहन यादव ने काफी जद्दोजहद करते हुये व्यक्तिगत बुराई का सामना किया।
आशीष दीक्षित सागर, बुंदेलखंड क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता एवं जन सूचना अधिकार एक्टिविस्ट है ,बुंदेलखंड में पर्यावरण – वन जीवो ,जल ज़मीन और जंगल को बचाने की मुहिम को लेकर सक्रिय हैं साथ ही वहां किये जा रहे खनन माफियाओ के काला सोना ( ब्लैक स्टोन ) की खदानों से टूटते पर्यावरण के इको सिस्टम को सहेजने के लिए लगातार बुन्देली बाशिंदों के बीच समाज कार्य करते हैं। लेखक बतौर प्रवास सोसाइटी के संचालक की भूमिका में किसान ,मजदूर ,महिलाओ और आदिवासियों के पुनर्वास का भी जन अभियान चलाने का बीड़ा उठाये हैं !
प्राप्त जानकारी के मुताबिक 11 मार्च 2013 को प्रातः 10.30 बजे अपने दादा के लड़के राजा भइया पुत्र बोगा प्रसाद के साथ घर से सूचना लेने की बात कहकर जनपद चित्रकूट धाम कर्वी गए ब्रजमोहन यादव को दादा के लड़के राजा भइया ने बेड़ी पुलिया तिराहे पर जो बदौसा से बमुश्किल 30 किमी. है, में रोडवेज बस में अकेला छोड़कर चित्रकूट के लिए साधन पकड़ा और इसके बाद आरटीआई कार्यकर्ता अकेले ही कर्वी के लिये रवाना हो गया। एक घण्टे बाद जब राजा भइया ने अपने काम से फुरसत होकर अपने मोबाइल से ब्रजमोहन यादव को फोन किया तो उनके मोबाइल के दोनों नम्बर 9628136311 और 8115249353 स्विच ऑफ मिले।
एक दिन तक इन्तजार करने के बाद और मोबाइल फोन से कोई सम्पर्क न होने पर परिवार ने खोजबीन चालू की। तब से लेकर खबर लिखने तक ब्रजमोहन यादव का कोई पता नहीं चल सका था। स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता सूचना मिलने पर बांदा पुलिस कप्तान के यहाँ प्रथम सूचना तहरीर देने पहुँचे तो उनकी बात सुनकर अखिलेश सरकार के पुलिसिया समाजवाद का चेहरा सामने आने लगा।
सात महीने में अखिलेश के उत्तम प्रदेश में हत्या- 273, अपहरण- 2680, लूट- 1812, बलात्कार- 1134, डकैती 483, साम्प्रदायिक दंगे- 9 का कीर्तिमान स्थापित करने वाली सरकार में यादव और आंकड़ों में अल्पसंख्यक मुस्लिम ही साजिश का शिकार बन रहे हैं।
गौरतलब है कि 13 मार्च 2013 को जब पारिवारिक जन ब्रजमोहन यादव की गुमशुदगी की रिपोर्ट दर्ज कराने थाना क्षेत्र बदौसा में गये तो थाना इंचार्ज सुरेंद्र सिंह यादव ने कर्वी की घटना दिखाकर उसे कर्वी में ही दर्ज कराने की बात कही और तहरीर लिखने से मना कर दिया। वहीं एसपी कर्वी ने एक सिरे से यह घटना थाना बदौसा क्षेत्र की बताकर कानून की पिच पर गुगली गेंद पुलिस कप्तान बांदा के पाले में डाल दी है। मगर कोई भी प्रशासनिक अधिकारी अभी तक इस पर अपनी नैतिक जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है।
मजदूरी और किसानी करके घर चलाने वाले मूलचंद्र यादव के परिवार पर मुसीबत का पहाड़ टूटना भले ही इन खाकी के समाजवादियों के लिये आम घटना हो, लेकिन बड़ा सवाल यही है कि जिस तरह से कभी शेहला मसूद तो कभी कोई और एक के बाद एक सूचना अधिकार की बलि चढ़ाया जा रहा है आखिर कौन हिम्मत करेगा भ्रष्टाचारियों के खिलाफ माकूल तरीके से हल्ला बोल ?
बुंदेलखंड आरटीआई फोरम के कार्यकर्ताओं और सदस्यों में इस घटना को लेकर भारी आक्रोश व्याप्त है। सदस्यों का कहना है कि ब्रजमोहन यादव और अन्य के द्वारा पहले भी पुलिस अधिकारियों को अपनी जान-माल की सुरक्षा के लिए अर्जियाँ दी जा चुकी हैं, लेकिन जनता की अर्जियों को अपने पीकदान का हिस्सा समझने वाले प्रशासन के कान पर जूँ तक नहीं रेंगी है।


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