Monday, January 14, 2013

किसान आत्महत्याओं का थोक विक्रेता बुन्देलखण्ड ?

www.bundelkhand.in

बुन्देलखण्ड में लगातार पड़ रहे सूखे ने किसानो की कमर तोड दी है । अपनी गाढ़ी कमाई पहले ही लुटा चुका किसान कर्ज लेकर इस उम्मीद में फसल उगाता है कि इस बार कुछ बोझ हल्का कर सके, लेकिन हर बार नियति के खेल मे प्रकृति की मार से छला जा रहा है यहां का किसान। किसान आत्महत्या पर एक पड़ताल।
बुन्देलखण्ड - किसान असंगठित वर्ग है, वह सिर्फ भीड़ है, 90 करोड़ की भीड़ जिसकी शक्ति को जातीयों मे बांटकर किसान का शोषण सरकार और व्यवसायिक बाजार कर रहे है। आज सत्ता और समाज की ठेकेदारी का आधार सैद्धान्तिक रूप से जाति नही बल्कि अंक गणित की दहाई की गिनती है फिर भी राजनीति में जाति शब्द की स्वीकार्यता है।
यह व्यवस्था सिर्फ इसलिये है कि 90 करोड़ किसान, गांववासियों को जाति की घुट्टी देकर मुट्ठी भर शोषक बेबस और बदहाल मजलूम किसान का शोषण करते रहे किसान शोषण, गरीबी, और कर्ज से तंग आकर जब आत्महत्यायें करता है तब शोषक वर्ग अपने मिशन पर गौरवान्वित होता है । और उसके भरोसे को मजबूती मिलती है। इस वर्ग में एक सोच ऐसी भी है जो मानती है कि किसान जिस तरह से अपने मूल बीज खोकर रसायनिक और उर्वरको से खेतो को नपुंसक बनाता जा रहा है आज नही तो कल खेती भी लीज में लेकर हम ही किसान का दारोमदार बनेंगें। बुन्देलखण में 17 सूखे झेलते आ रहे किसान साल दर साल जिस तरह से आत्महत्याये कर रहे है उसकी एक वजह बैंको की गिरफ्त में आकर कर्ज का मकड़जाल भी है। अकेले बांदा जिले में ही तीन लाख छोटे और बडे किसानो पर 1600 करोड़ रू0 बैंको का कर्ज बकाया है।
बरसात की उम्मीद पाले किसान की फसल समय के साथ सूखती जा रही मिट्टी की पैबंद में मरूभूमि बनने की कगार पर है। मुफलिसी और बदनामी की वजह से लगातार बुंदेलखंड में किसान फसल में उम्मीद से नकाफी पैदावार होने के चलते कर्ज से टूटकर जिहालत में खुदकुशी का अंतिम विकल्पे मौत को चुनता है। किसान की मौत पर जब मीडिया और किसान परिवार के सदस्य हल्ला मचाते है तो दहशत में आकर जिला प्रशासन अपनी गर्दन बचाने के लिए फर्जी रिपोर्टे भेजकर सरकार को गुमराह करते है। विशेषज्ञों की माने तो कर्ज देने से पहले बैंको द्वारा किसानो की आर्थिक स्थिति का सही आंकलन न करना और किसान क्रेडिट कार्ड बनाकर आनन-फानन में कर्ज का बोझ लादना भी बुन्देलखण्ड में हो रही किसान आत्महत्याओं की एक बड़ी वजह है। कर्ज अदा करने का दबाव पड़ता है तो किसान खुदकुशी करता है।
अप्रैल 2003 से अगस्त 2006 तक धड़ाघड़ आरसी जारी कर बैंको ने बुन्देलखण्ड को किसान आत्महत्या का थोक विक्रेता बना दिया है। आकड़ो पर गौर करें तो चित्रकूट धाम मण्डल के जनपद बांदा, चित्रकूट, महोबा और हमीरपुर में किसानों द्वारा कर्ज और सूखे के कारण अप्रैल 2003 से अगस्त 2006 के बीच 1040 आत्महत्यायें हुयी है। इनमें से बैंको और साहूकारों से तंग आकर 86 किसान और मुफलिसी में 182 किसानों ने मौत को चुना है। वर्ष 2001से 2006 तक 1275 जिसमें की महोबा से ही जनवरी 2006 से 24 अगस्त 2006 तक कर्ज मे डूबे 30 किसानों ने आत्महत्या की और 2007 से 2010 तक 1351 पोस्टमार्टम किसान आत्म हत्या के सन्दर्भ में किये गये है। वर्ष 2011 में 521 और वित्तीय वर्ष अप्रैल 2012 तक 103 किसान कर्ज से टूूट कर आत्महत्या कर चुके है। बीते मई माह में ही अकेले बांदा जनपद में 9 किसानों ने आत्महत्या की है। लेकिन आकड़ो की बाजीगरी और सियासत के खेल में हर बार किसान आत्म हत्या को कभी किसान की चरित्र हीनता तो कभी नशे की लत और कभी परिवारिक विवाद के चलते प्रशासन द्वारा आत्महत्या करार दिया जाता है।
मजबूरी में साहूकारों, बैंको और ग्रामीण क्षेत्रो में दबंग किस्म के लोगो से दूनी ब्याज दर पर कर्ज लेकर यहा का गरीब किसान कर्ज न अदा करने की स्थिति में या तो परिवार सहित महानगरों में पलायन करता है या फिर अपनी ही जर्जर झोपड़ी में सूली पर चड़ जाता है। जिसे अलग-अलग कारणों में दर्शाकर सरकार किसान आत्महत्या के मामलों से हाथ खड़े कर देती है। उ0प्र0 व म0प्र0 के बुन्देलखण्ड क्षेत्र में 16 लाख किसानो सरकारी बंैको के आकड़ो में कर्जदार है। इन किसानों पर 9095 करोड़ रूपये कर्ज अदायगी बकाया है। बीते 11 सालों के कालचक्र में बुन्देलखण्ड में 3269 किसान 15, दिसम्बर 2012 तक आत्महत्या कर चुके है। आत्महत्याओं की यह विकास दर यहां के हालात बयाॅ करने के लिए काफी है। विदर्भ की सूखी पट्टी का हाल भले ही कपास की खेती में चैपट किया हो मगर कभी हरे-भरे जंगलो, जैव सम्पदा, सदा नीरा नदियों और पहाड़ो से खुशहाल बुन्देलखण्ड आज रेगिस्तान बनने की तरफ अग्रसर है। बड़ा सवाल यह भी है कि क्या जल जमीन जगंल को मिटाकर किसी भी प्रान्त या राज्य की उन्नति का खाका तैयार किया जा सकता है ? और क्या देश के अन्नदाता को खुदकुशी की मण्डी में खड़ा करके सभ्यता, संस्कृति, खेती के पुराने नुस्खो को बचाया जा सकता है ?

बुन्देलखण्ड की भगौलिक स्थिति-

कुल क्षेत्रफल : 74472 वर्ग किमी0
जनसंख्या : 18, 311, 896

जनपदवार स्थिति-

जिला कुल क्षेत्रफल जनसंख्या औसत साक्षरता दर
ांदा 4459 किमी2 1,799, 541 68.11
चित्रकूट 3,147 किमी2 990626 66.52
महोबा 3040 किमी2 876055 66.94
हमीरपुर 5036 किमी2 1218002 70.16
झांसी 5028 किमी2 2,000,755 76.37
जालौन 4,562 किमी2 1,670,718 75.16
ललितपुर 5036 किमी2 1,21,802 64.95
बुन्देलखण्ड में 17 बार पड़ा सूखा (जो प्र्रशासन में घोषित किया)- सन 1838, 1868, 1877, 1887, 1896, 1897, 1906, 1907, 1978, 1980, 1990, 1993, 2002, 2004, 2005, 2006, 2009 में सूखा पडा था।
अप्र्रैल 2003 से अगस्त 2006 तक आत्महत्या की घटनाएं-
जिले दहेज गृह कलह कर्ज गरीबी अज्ञात कारण योग
सात 12 459 86 122 371 1040
कर्ज के बोझ तले बुन्देले हताश और अवसाद से परेशान होकर आत्महत्या करते है। जब उन्हें जिन्दगी की कोई राह नही सूझती को मौत को गले लगाकर सामाजिक प्रताड़ना से मुक्ति एक आसान से रास्ता है। बुन्देलखण्ड का एक सच यह भी है कि बीते एक दशक में यहं अकेले 10 रू0 की हेयरडाई पीने से 675 मौते आत्महत्या की है।
संसाधनो के आभाव में यहां का किसान बेहद गरीब है। सही पैदावार न हो पाने से किसान कर्ज के बोझ से दबते जा रहे है। किसान को गरीबी और कर्ज से उबारने के लिए आवश्यक है कि सरकार की ओर से संचालित विकास योजनाएं महज आकड़ो मे तब्दील न की जाये उसका लाभ वंचित, पद दलित और आम किसान को सीधे तौर पर मुहैया करायी जाये ताकि वह पलायन को छोड़ कर अपनी ही मिट्टी में किसान के हल से सम्पन्नता का रास्ता तय कर सके।
‘‘ जिस खेत के किसान को मयस्सरर नही रोटी, उस खेत से पैदा हुये हर दानें को जला दो। मर रहा है किसान, बंजर है धरती यह बात हर आमो खास को बता दो।।’’
आशीष सागर 
http://www.bundelkhand.in/portal/report/bundelkhand-formers-sucide-case-report-2012

बुंदेलखंड में किसान आत्महत्याओं की थोक फसल ?

www.hastakshep.com
http://hastakshep.com/?p=28506
 बाँदा। बुन्देलखण्ड में लगातार पड़ रहे सूखे ने किसानों की कमर तोड़ दी है। अपनी गाढ़ी कमाई पहले ही लुटा चुका किसान कर्ज लेकर इस उम्मीद में फसल उगाता है कि इस बार कुछ बोझ हल्का कर सके, लेकिन हर बार नियति के खेल मे प्रकृति की मार से छला जा रहा है यहां का किसान। किसान आत्महत्या पर एक पड़ताल………….
बुंदेलखंड – किसान असंगठित वर्ग है, वह सिर्फ भीड़ है, 90 करोड़ की भीड़ जिसकी शक्ति को जातियों मे बांटकर किसान का शोषण सरकार, व्यावसायिक घराने और बाजार कर रहे हैं। आज सत्ता और समाज की ठेकेदारी का आधार सैद्धान्तिक रूप से जाति नही बल्कि अंक गणित की दहाई की गिनती है फिर भी राजनीति में जाति शब्द की स्वीकार्यता है।
यह व्यवस्था सिर्फ इसलिये है कि 90 करोड़ किसान, गांववासियों को जाति की घुट्टी देकर मुट्ठी भर शोषक बेबस और बदहाल मजलूम किसान का शोषण करते रहे किसान शोषण, गरीबी, और कर्ज से तंग आकर जब आत्महत्यायें करता है तब शोषक वर्ग अपने मिशन पर गौरवान्वित होता है और उसके भरोसे को मजबूती मिलती है। इस वर्ग में एक सोच ऐसी भी है जो मानती है कि किसान जिस तरह से अपने मूल बीज खोकर रसायनिक और उर्वरकों से खेतो को नपुंसक बनाता जा रहा है आज नहीं तो कल खेती भी लीज में लेकर हम ही किसान का तारणहार बनेंगेबुंदेलखंड में 17 सूखे झेलते आ रहे किसान साल दर साल जिस तरह से आत्महत्यायें कर रहे हैं उसकी एक वजह बैंकों की गिरफ्त में आकर कर्ज का मकड़जाल भी है। अकेले बांदा जिले में ही तीन लाख छोटे और बड़े किसानों पर 1600 करोड़ रू0 बैंको का कर्ज बकाया है।
बरसात की उम्मीद पाले किसान की फसल समय के साथ सूखती जा रही मिट्टी की पैबंद में मरूभूमि बनने की कगार पर है। मुफलिसी और बदनामी की वजह से लगातार बुंदेलखंड में किसान फसल में उम्मीद से नाकाफी पैदावार होने के चलते कर्ज से टूटकर खुदकुशी कर अंतिम विकल्प मौत को ही चुनता है। किसान की मौत पर जब मीडिया और किसान परिवार के सदस्य हल्ला मचाते हैं तो दहशत में आकर जिला प्रशासन अपनी गर्दन बचाने के लिए फर्जी रिपोर्ट भेजकर सरकार को गुमराह करते हैं। विशेषज्ञों की मानें तो कर्ज देने से पहले बैंको द्वारा किसानो की आर्थिक स्थिति का सही आंकलन न करना और किसान क्रेडिट कार्ड बनाकर आनन-फानन में कर्ज का बोझ लादना भी बुन्देलखण्ड में हो रही किसान आत्महत्याओं की एक बड़ी वजह है। कर्ज अदा करने का दबाव पड़ता है तो किसान खुदकुशी करता है।
अप्रैल 2003 से अगस्त 2006 तक धड़ाघड़ आरसी जारी कर बैंको ने बुन्देलखण्ड को किसान आत्महत्या का थोक उत्पादक बना दिया है। आँकड़ो पर गौर करें तो चित्रकूट धाम मण्डल के जनपद बांदा, चित्रकूट, महोबा और हमीरपुर में किसानों द्वारा कर्ज और सूखे के कारण अप्रैल 2003 से अगस्त 2006 के बीच 1040 आत्महत्यायें हुयी हैं। इनमें से बैंको और साहूकारों से तंग आकर 86 किसान और मुफलिसी  में 182 किसानों ने मौत को चुना है। वर्ष 2001से 2006 तक 1275 जिसमें कि महोबा से ही जनवरी 2006 से 24 अगस्त 2006 तक कर्ज में डूबे 30 किसानों ने आत्महत्या की और 2007 से 2010 तक 1351 पोस्टमार्टम किसान आत्म हत्या के सन्दर्भ में किये गये हैं। वर्ष 2011 में 521 और वित्तीय वर्ष अप्रैल 2012 तक 103 किसान कर्ज से टूट कर आत्महत्या कर चुके हैं। बीते मई माह में ही अकेले बांदा जनपद में 9 किसानों ने आत्महत्या की है। लेकिन आँकड़ो की बाजीगरी और सियासत के खेल में हर बार किसान आत्म हत्या को कभी किसान की चरित्रहीनता तो कभी नशे की लत और कभी परिवारिक विवाद के चलते प्रशासन द्वारा आत्महत्या करार दिया जाता है।
मजबूरी में साहूकारों, बैंको और ग्रामीण क्षेत्रो में दबंग किस्म के लोगो से दूनी ब्याज दर पर कर्ज लेकर यहाँ का गरीब किसान कर्ज न अदा करने की स्थिति में या तो परिवार सहित महानगरों में पलायन करता है या फिर अपनी ही जर्जर झोपड़ी में सूली पर चढ़ जाता है। जिसे अलग-अलग कारणों में दर्शाकर सरकार किसान आत्महत्या के मामलों से हाथ खड़े कर देती है। उ0प्र0 व म0प्र0 के बुन्देलखण्ड क्षेत्र में 16 लाख किसानो सरकारी बैंको के आकड़ो में कर्जदार हैं। इन किसानों पर 9095 करोड़ रूपये कर्ज अदायगी बकाया है। बीते 11 सालों के कालचक्र में बुन्देलखण्ड में 3269 किसान 15, दिसम्बर 2012 तक आत्महत्या कर चुके हैं। आत्महत्याओं की यह विकास दर यहां के हालात बयाँ करने के लिए काफी है। विदर्भ की सूखी पट्टी का हाल भले ही कपास की खेती में चौपट किया हो मगर कभी हरे-भरे जंगलो, जैव सम्पदा, सदा नीरा नदियों और पहाड़ो से खुशहाल बुन्देलखण्ड आज रेगिस्तान बनने की तरफ अग्रसर है। बड़ा सवाल यह भी है कि क्या जल जमीन जगंल को मिटाकर किसी भी प्रान्त या राज्य की उन्नति का खाका तैयार किया जा सकता है ? और क्या देश के अन्नदाता को खुदकुशी की मण्डी में खड़ा करके सभ्यता, संस्कृति, खेती के पुराने नुस्खों को बचाया जा सकता है ?
बुन्देलखण्ड की भौगोलिक स्थिति-
            कुल क्षेत्रफल        –           जनसंख्या 
74472 किमी0                           18, 311, 896 वर्ग किमी0
जनपदवार स्थिति-
            जिला        कुल क्षेत्रफल        जनसंख्या          औसत साक्षरता दर
बांदा         4459 किमी2                1,799, 541                   68.11
चित्रकूट      3,147 किमी2               990626                        66.52
महोबा             3040  किमी2              876055                        66.94
हमीरपुर      5036 किमी2                1218002                      70.16
झांसी        5028 किमी2                2,000,755                    76.37
जालौन       4,562 किमी2               1,670,718                    75.16
ललितपुर     5036 किमी2                1,21,802                      64.95
बुन्देलखण्ड में 17 बार पड़ा सूखा (जो प्र्रशासन में घोषित किया)-
सन 1838, 1868, 1877, 1887, 1896, 1897, 1906, 1907, 1978, 1980, 1990, 1993, 2002, 2004, 2005, 2006, 2009 में सूखा पडा था।
अप्र्रैल 2003 से अगस्त 2006 तक आत्महत्या की घटनाएं-
 जिले       दहेज    गृह कलह      कर्ज    गरीबी   अज्ञात कारण     योग
सात         12                  459                  86        122                 371                  1040
कर्ज के बोझ तले बुन्देले हताश और अवसाद से परेशान होकर आत्महत्या करते है। जब उन्हें जिन्दगी की कोई राह नहीं सूझती तो मौत को गले लगाकर सामाजिक प्रताड़ना से मुक्ति एक आसान से रास्ता है। बुन्देलखण्ड का एक सच यह भी है कि बीते एक दशक में यहाँ अकेले 10 रू0 की हेयरडाई पीने से 675 मौतें आत्महत्या की हैं।
संसाधनो के आभाव में यहाँ का किसान बेहद गरीब है। सही पैदावार न हो पाने से किसान कर्ज के बोझ से दबते जा रहे हैं। किसान को गरीबी और कर्ज से उबारने के लिए आवश्यक है कि सरकार की ओर से संचालित विकास योजनाएं महज आकड़ो मे तब्दील न की जायें उसका लाभ वंचित, पद दलित और आम किसान को सीधे तौर पर मुहैया करायी जाये ताकि वह पलायन को छोड़ कर अपनी ही मिट्टी में किसान के हल से सम्पन्नता का रास्ता तय कर सके।
‘‘ जिस खेत से किसान को मयस्सर नहीं रोटी, उस खेत से पैदा हुये हर दाने को जला दो। मर रहा है किसान, बंजर है धरती यह बात हर आमो खास को बता दो।।’’