Saturday, February 02, 2013

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लो जी! बहन जी की सरकार में आरटीआई कार्यकर्ता ने माँग ली थी मंत्री के साले से रंगदारी …..!

बहुजन समाज पार्टी नसीमुद्दीन सिद्दकी आशीष सागर RTI activist money bsp government ministers brother ministers broth  लो जी! बहन जी की सरकार में आरटीआई कार्यकर्ता ने माँग ली थी मंत्री के साले से रंगदारी …..!
बाँदा। आशीष नंदी ने क्या कहा क्या नहीं और सही कहा या गलत, इसे छेड़िये लेकिन उत्तर प्रदेश में दलित अस्मिता की ठेकेदार बहन मायावती की सरकार में जो करतब हुये वे एक से बढ़कर एक हैं। अब बहुजन समाज पार्टी के पूर्व कैबिनेट मंत्री बाँदा निवासी नसीमुद्दीन सिद्दकी के दिल करीब साले और उनकी पत्नी एम. एल. सी. हुसना सिद्दकी के भाई मुमताज अली ने बाँदा के समाज सेवी और सूचना अधिकार कार्यकर्ता आशीष सागर पर एक साल पहले यानि 14.9.2011 को बाँदा में मुमताज के कार्यालय आकर (गोल कोठी) में एक करोड़ रूपये रंगदारी मांगने के आरोप लगाये हैं।
आशीष सागर ने बताया कि मुमताज अली ने डकैती कोर्ट 153(3 ) बाँदा में अर्जी देकर कहा है कि आशीष सागर ने मेरे साथ बैठे कर्मचारी मिथलेश निवासी बंगाली पुरा और खाई पार के जितेन्द्र के सामने यह कहा कि मुमताज आपके जीजा (नसीमुद्दीन सिद्दकी) के खिलाफ बहुत सबूत हैं, वो जेल भी जा सकते हैं अगर बचना है तो मुझे यानि आशीष को बतोर रंगदारी एक करोड़ रुपया दो। इस पर मुमताज ने कहा कि उसने तो एक करोड़ कभी देखे ही नहीं है कैसे दिलवा दे। इस पर वह धमकी देता हुआ चला गया, इसकी शिकायत कोतवाली में की गई पर तब कोई कारवाही नही की गई। 14 सितम्बर को बाँदा पुलिस कप्तान को प्राथना पत्र दिया गया लेकिन कोई एक्शन नहीं लिया गया इसके पूर्व भी डी. जी. पी. को पत्र भेज के अवगत करवाया गया था ….
देखा ! बहन जी की सरकार में नसीमुद्दीन जैसे ताकतवर मन्त्री के साले से रंगदारी माँगे जाने पर भी बेचारी पुलिस हाथ पर हाथ धरे रहती थी और बहन जी कह रही हैं कि अखिलेश के राज में गुण्डागर्दी है। मुमताज अली को एक वर्ष बाद ये बात साल रही है कि आशीष सागर ने उनसे ये रुपया माँगा था और एक्शन नहीं हुआ जबकि उन दिनों उत्तर प्रदेश में मायावती की सरकार थी और दूसरे नंबर के 22 विभागों वाले मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दकी से अवाम और उनके साले मुमताज अली से बाँदा का जर्रा – जर्रा काँपता था, तब भी अगर उनकी रिपोर्ट नही लिखी गई तो हैरत वाली बात तो है।
उधर बाँदा के आरटीआई कार्यकर्ताओं ने घोषणा की है कि इस घटना क्रम में और सूचना अधिकार कार्यकर्ताओं के ऊपर फर्जी मुकदमों, आरोपों के खिलाफ अवाम की आवाज मुहिम के साथ आगामी चार फरवरी को उपवास करेंगे और उसके बाद अगला कदम लखनऊ या दिल्ली का मैदान होगा।
http://thecivilian.in/rti-activist-had-demanded-money-bsp-government-ministers-brother/2529/.html/naseemuddeenakhilesh

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लूट लो बुंदेलखंड

विद्याधाम समिति रूपया मुफिलिसी भुखमरी कुपोषण आशीष सागर Rob Bundelkhand  लूट लो बुंदेलखंड
सरकारी योजनाओं के समानान्तर चल रही एनजीओ की सत्ता बंदेलखंड से लेकर विदर्भ, कालाहांडी तक फैली है। ये गैर सरकारी संगठन उन इलाको में जहां खासकर मुफिलिसी, भुखमरी, कुपोषण और प्राकृतिक आपदायें मुंह बाये खडी रहती है सर्वाधिक पोषित हो रही है। एनजीओ के आन्तरिक चेहरो को बेनकाब करती रपट..
विद्याधाम समिति रूपया मुफिलिसी भुखमरी कुपोषण आशीष सागर Rob Bundelkhand  लूट लो बुंदेलखंड बंदेलखंड – गरीबी, सूखा और आपदाओ से घिरे बुंदेलखंड में ग्रामीण विकास योजनायें हासियें पर है। उन्हे लूटने और उनमे व्याप्त भ्रष्टाचार को बढाने में सरकारी मिशनरी हावी है। मनरेगा, संपूर्ण स्वच्छता कार्यक्रम, आईसीडीएस (आंगनबाडी), बालश्रम, उद्यान विभाग, एचआईवी एड्स, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन से लेकर आवाम के लिये बनी निजामों की हर योजना भ्रष्टाचार में लिप्त है। लेकिन सरकारी योजनाओं के समनान्तर बुंदेलखंड जैसे अति पिछडे और विकास से अछूते क्षेत्रों में समाजिक संगठनों की बाढ़ आम जनमानस को लूटने में कमतर नही है।
एनजीओ का काला सच और गरीबो की आड़ में राज्य, केन्द्र, विदेशी अनुदान विभाग को गुमराह करने वाले आकडो़ में पेश करती हुयी तस्वीरे बंदेलखंड का एक और कड़वा स्याह सामने लाती है। जिनसे यह कहना मुनासिब लगता है कि भ्रष्टाचार के महाकुम्भ में बुंदेलखंड के समाजिक संगठन भी अपनी अपनी भारत माताओं के साथ सुख भोग की डुबकी लगा रहे है।
जनपद बांदा जिले में दो दशको सें काम कर रही स्वयं सेवी संस्था और उनके कारनामो को आम जनता के लिये बनाये गये सूचना अधिकार कानून ने उजागर किया है। बांदा क्षेत्र के नरैनी विधान सभा में 23 गांव की गरीबी को दूर करने और सर्वोदय के नारे के साथ समाज सेवा का संकल्प लेकर चली परागीलाल विद्याधाम समिति, अभियान संस्था अतर्रा, की कहानी भ्रष्टाचार के पन्नों को खोलने में अव्वल नजर आती है। जनसूचना अधिकार 2005 से मोहनपुर निवासी सीताराम श्रीवास ने विद्याधाम समिति से 2003 से 2012 तक किये गये तमाम विकास कार्यों और संस्था की गतिविधियों के बारे में सूचना मांगी थी।
सूचना देने से बचने के लिये संस्था संचालक राजा भैया यादव ने सीताराम श्रीवास के साथ साथ अन्य दो आरटीआई कार्यकर्ताओं से 2रू0 प्रति पेज फोटोकापी के हिसाब से 18000 रू0 शुल्क अदा करने के बाद सूचना देने की बात लिखित रूप से कही गयी। गरीब किसानो औैर दलित, शोषित, पदवंचित लोगो के मसीहा के रूप में खुद को प्रचारित करने वाली स्वयं सेवी संगठन विद्याधाम समिति द्वारा आरटीआई कार्यकताओं से 18000 रू0 की मांग करना अतिश्योक्ति पूर्ण बात है।
अपनी गाढी कमाई को जोड़कर आरटीआई कार्यकताओं ने संस्था द्वारा मांगी गयी धनराशि एक मुश्त बैंक ड्राफ्ट के जरिये अदा की। रूपया लेने के बाद भी दी गयी सूचना में संस्था के पुराने पंपलेट, रदविद्याधाम समिति रूपया मुफिलिसी भुखमरी कुपोषण आशीष सागर Rob Bundelkhand  लूट लो बुंदेलखंड ्दी कागज लपेट कर करीब 10 किलो का बंडल सूचना मांगने वालो को थमा दिया गया जिससे सूचना अधिकार के चक्रव्यूह में उलझकर फिर कोई सूचना मांगने की हिमाकत न कर सके। आरटीआई कार्यकर्ता संतोष श्रीवास ने केन्द्रीय सूचना आयोग के साथ साथ ग्रह मंत्रालय से लेकर हर उस आला अधिकारी की चैखट पर शिकायत की अर्जी विद्याधाम समिति के संदर्भ में लगायी जहां से उसे न्याय की उम्मीद थी। ग्रह मंत्रालय ने केन्द्रीय सूचना आयोग की नोटिस पर आरटीआई कार्यकर्ता को सूचना देने के लिये मजबूर किया। सूचना अधिकार से मिले तथ्यों के मुताबिक परागीलाल विद्याधाम समिति को एफसीआरए (विदेशी अनुभाग) से वर्ष 2004 से 2009 के बीच 7094399.00 रू. प्राप्त हुये थे। इस धनराशि में देशी अनुदान यथा जमशेद जी टाटा ट्रस्ट और अन्य फंडिग एजेन्सियों की तरफ से जारी की गयी अनुदान राशि समाहित नही है जो विद्याधाम समिति को दी गयी।
जनसूचना अधिकार का सामना न करना पड़े इसके लिए विद्याधाम समिति जैसे अन्य संगठन राष्ट्रीय स्तर के पत्रकारोें को भी बरगलाना बखूबी जानते है। बानगी के लिये भारत डोगरा एक नाम हो सकता है जिन्होने बंदेलखंड मे काम कर रही जीआरए ग्रुप (गोपाल राजा अशोक ) के लिये प्रशंसा परख लेख दैनिक समाचार पत्रों के संपादकीय पेज,सोशल चेन्ज पेपर्स में कई मर्तबा लिखे। हाल ही में एक दैनिक समाचार पत्र के संपादकीय पृष्ठ पर सूचना अधिकार से कौन डरता है ? शीर्षक से प्रकाशित लेख में विद्याधाम समिति की ईमानदारी और खूबियों का बखान किया गया। इस लेख में प्रमुखता से सूचना मांगने वालो को ब्लेकमेलर तक कहा गया है। शब्दो के कैनवास से गरीबी को खूबसूरत बनाना और पंचायती राज को कटघरे में खडा कर देने के साथ संस्थाओं के संदर्भ मे सजे हुये लेख लिखना इन राष्ट्रीय पत्रकारों की लेखनी से अच्छा कौन कर सकता है?
आरटीआई को कमजोर और ग्रामीणों की आवाज को दबाने के लिये विद्याधाम समिति ने अपने गैर पंजीकृत संगठन चिंगारी (महिला विंग) का भी गाहे बगाहे सहारा लिया। संगठन की संयोजिका गुड़िया पत्नी रामचरन के माध्यम से ग्राम किसनी पुरवा के प्राथमिक विद्यालय में कार्यरत प्रधानाध्यापक यशवंत कुमार पर फर्जी मुकदमे कायम कराये गये । 30 दिसम्बर 2012 को ऐसा ही मुकदमा छेडखानी का गुडिया की तरफ से लिखाया गया है। इसके पूर्व भी वर्ष 2008 में धारा 156 (3) के तहत इस संस्था की तरफ से अध्यापक के ऊपर मुकदमा दर्ज करवाया गया था जिस पर नरैनी थाने मे एफ आर लगायी जा चुकी है।
गौरतलब है कि यशवंत कुमार के पिता बुआराम उर्फ ब्रजगोपाल ने अपने दादा परागीलाल के नाम से 15 मार्च 2001 को बहलफ रजिस्ट्री 2 बीघा 15 बिस्वा बंजर जमीन संस्था को ग्राम मोहन पुरवा में विद्यालय संचालन के लिये दान की थी। गाटा सं0 820 की यह जमीन रजिस्ट्री के समय नरैनी तहसील में दर्ज करायी गयी थी जिसे परागी लाल की 13 दिसम्बर 2007 को मृत्यु के पश्चात संस्था ने अतर्रा तहसील स्थानान्तरित करा लिया है। शिक्षा के दान और परोपकार की बंजर जमीन पर विद्यालय तो संचालित नही हुआ लेकिन जमीन पा जाने के बाद राजाभैया यादव ने अपने पैंतरे जरूर बदल दिये।
सूत्र बताते है कि एक दशक पूर्व सामान्य व्यक्ति की तरह महुई कुलसारी के ढोढ़ाउहा पुरवा निवासी राजाभैया यादव जिनका बचपन अपने ननिहाल कोलावल रायपुर में बीता है जीवन यापन करते थे। मगर आज अतर्रा तहसील में दो मंजिला भवन संस्था कार्यालय के रूप में, अतर्रा नरैनी मार्ग में गर्गन पुरवा में निर्माणाधीन दो मंजिला विद्याधाम समिति रूपया मुफिलिसी भुखमरी कुपोषण आशीष सागर Rob Bundelkhand  लूट लो बुंदेलखंड भवन (फार्म हाउस) जो कि इनके जीआरए गु्रप के संचालक एवं अखिल भारतीय समाज सेवा संस्थान के न्यासी गया प्रसाद गोपाल उर्फ पिताजी की माता देवरती के नाम पर शिलान्यासित करवाया गया है, एक वैगेनार, एक इंडिका और दो पहिया वाहन सहित चल अचल संपत्ति बनायी गयी है। गोपाल भाई की संस्था संपत्ति या व्यक्तिगत प्रापर्टी का अनुमान लगाया जाये तो चित्रकूट बेडीपुलिया मार्ग पर रानीपुर भट्ट (भारत जननी परिसर) की लगभग 1 एकड़ जमीन, मानिकपुर क्षेत्र में संस्था निजी विशाल कार्यालय, पैतृक गांव सहित आसपास के क्षेत्र में कृषि जमीने, चारपहिया वाहन सहित अज्ञात बैंक बैलेंस मौजूद है। तीन दशक पूर्व साइकिल से समाज सेवा शुरू करने वाले इन पिताजी के एक पुत्र वर्तमान में मानिकपुर क्षेत्र से ब्लाक प्रमुख भी है। मिली जानकारी के अनुसार पूर्व बसपा सरकार के ग्राम विकास मंत्री दद्दू प्रसाद कभी अखिल भारतीय समाजसेवा संस्थान में बर्तौर सामाजिक कार्यकर्ता काम किया करते थे। सरकार बनने के पश्चात राज्य सरकार से मनरेगा सामाजिक अंककेक्षण, जागरूकता अभियान के लिये लाखो रू0 इस संस्था को दिया गया था। वर्तमान में टाटा ट्रस्ट, चाइल्ड लाइन, वाटर एड इंडिया, नाबार्ड सहित अन्य गैरसरकारी प्रोजेक्ट इस संस्था में संचालित है। जिनकी अनुदान राशि सालाना लाखो रू0 है। यह और बात है कि विद्याधाम समिति के हमकदम बनकर चलने वाली यह संस्था भी स्वसेवा में मशगूल है।
कुल मिलाकर देशी विदेशी अनुदान से गरीबो के कल्याण, सशक्तिकरण, सर्वागींण विकास और भुखमरी, पलायन, किसान आत्महत्याओं के मुद्दो पर करोडो रू0 प्रोजेक्ट के नाम पर लाना और धरातल में किये गयेविद्याधाम समिति रूपया मुफिलिसी भुखमरी कुपोषण आशीष सागर Rob Bundelkhand  लूट लो बुंदेलखंड कार्याे का सिफर ंहोना इन संस्थाओ की कार्यशैली पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करता है। इंडिया एलाइव की पड़ताल के दौरान विद्याधाम समिति के कार्यक्षेत्र के करीब आधा दर्जन गांव जिनमें नहरी, नरसिंहपुर, राजा का पुरवा (दलित बस्ती), देवली, धोबिन पुरवा, सहबाजपुर, पुकारी, मोहनपुरवा, गुढाकला के बाशिंदो का कहना है कि एनजीओ चलाने वाले चोर होते है। देवली गांव के चुन्नी लाल, अच्छेलाल, झल्लू, ललमा ने बताया कि विद्याधाम समिति की तरफ से उन्हे गूंज संस्था द्वारा कपडे दिये गये थे। कपडे देने के पहले संस्था द्वारा कहा जाता है कि कपडे उतारकर खडे हो जाओ, तुम्हारी फोटो खीचेंगे फिर तुमको कपडे, शौचालय, पेंशन और बिजली मिलेगी। देवली एक ऐसा गांव है जहां बीते दो वर्षो से बिजली नही है। बडी बात है कि अगर शहर में और सैफई में एक घंटे बिजली न रहे तो हडकंप मच जाता है। लेकिन वही बुंदेलखंड के इस पिछडे गांव मे फांकाकशी के बीच जीने वाले लोगो की जिंदगी दो साल अंधेरे में है। समाजसेवी, सरकार क्या कर रही है यह बताने की जरूरत नही।
विद्याधाम समिति पर गंभीर और संजीदा आरोप लगाने वाली धोबिन पुरवा की बिट्टन निषाद का कहना है कि मुझसे और मेरी जैसी अन्य औरतो की कम कपड़ो में तस्वीरे खीची जाती है , तस्वीरे बाहर जाती ह, उनका क्या होता है हमें नही मालूम और उसके बदले हमें कपडे दिये जाते है। बकौल बिट्टन मै भी कभी चिंगारी संगठन की सदस्य हुआ करती थी लेकिन आज नही हूं क्यों कि मै संस्था से बगावत कर चुकी हूं।
कैमरे की रिर्काडिंग और एक घंटे की बयानी इस बात की तस्दीक करती है कि गांव से निकले शिकायती पत्र, ग्रामीणों की आवाज जिला प्रशासन तक क्यों नही पहुंची जिन्होने इन संस्थाओ को यह नारा दिया कि – चलो गांव की ओर।

‘‘मिट्टी के बुतो की अकड़ तो देखियें,
खुद अपनी मिट्टी को भूल गये है।
कोई जरा बताये इनको,
टूटने के बाद मिलना है इसी मिट्टी में।।’’

दोआबा क्षेत्र के रंज और बागै नदी की पट्टी में बसे अति पिछडे यूपी एमपी के सीमावर्ती गांव इन संस्थाओ के निशाने पर है। राजा का पुरवा ग्राम पंचायत पिपरा (नरसिंहपुर) निवासी युवा ग्रामीण नत्थू,विद्याधाम समिति रूपया मुफिलिसी भुखमरी कुपोषण आशीष सागर Rob Bundelkhand  लूट लो बुंदेलखंड चुनूबाद, दयाराम, बाबू, जयराम, पन्ने, राजकुमार, बसंतलाल, मुन्ना व बुजुर्ग भिम्मा सहित अन्य लोगो ने सूखा राहत, खाद बीज और कपडो के नाम पर इस संस्था पर भ्रष्टाचार के संगीन आरोप लगाये है। वहीं नरसिंहपुर के लोगो का कहना है कि हमारे गांव में एक बोरी अनाज आया था जिसमें से 2 – 2 किलो लोगो को दिया गया है। बताते चले कि जमशेद जी टाटा ट्रस्ट से विद्याधाम समिति को 9 लाख 84 हजार रू0 बागै नदी में डैम बनाने के लिये दिये गये थे। अकेले क्षमता वर्धन के नाम पर 1 लाख रू0 खर्च किया गया है। बमुश्किल पांच लाख रू0 के काम पर नौ लाख चैरासी हजार रू. कहां खर्च किया गया यह तकनीकी जांच का विषय है।
ग्राम पंचासत नहरी के गोपरा गांव के रहवासी भी संस्था से इस कदर खफा है कि छूटते ही कैमरा तोडने को दौड़ पडते है। उन्हे लगता है कि फिर से कोई एनजीओ वाला आ गया है जो फोटो खीचेगा और करोडो रू0 ग्रह मंत्रालय का डकार जायेगा। इसी गांव के लाले पुत्र शिवचरन ने आरोप लगाया कि उसके नाती भूपत व मिथला का कोई नही है। विद्याधाम समिति ने इनकी फोटो खीची और पंशन दिलाने का वादा किया लेकिन उन्हे मिला कुछ नही। यही पीड़ा गांव के बुजुर्ग हल्कू पुत्र सुखलाल की है जिसे गांव की उधड़ी पगडंडी में जर जर हालात के चलते मुफिलिसी को ढोते देखा जा सकता है।
बंुदेलखंड में एनजीओ की लूट विद्याधाम समिति पर ही खत्म नही होती अतर्रा क्षेत्र में कार्यरत अभियान संस्था के संचालक अशोक श्रीवास्तव भी वाटर एड इंडिया और जायका से लाखो रू0 कागजो पर खर्च कर चुके है। सूचना अधिकार में प्राप्त जानकारी से जो तथ्य हासिल हुये है वह अभियान के भ्रष्टाचार अभियान को कठघरे में खड़ा करते है।
ग्राम पंचायत उदयपुर निवासी ब्रजमोहन यादव ने संस्था से गांव में संपूर्ण स्वच्छता कार्यक्रम के तहत बनाये गये शौचालय, हैंड पंप व अन्य के सम्बंध में जानकारी मांगी थी। जो सूचना दी गयी उसमें लिखा विद्याधाम समिति रूपया मुफिलिसी भुखमरी कुपोषण आशीष सागर Rob Bundelkhand  लूट लो बुंदेलखंड गया कि संस्था को वाटर एड इंडिया से 2 करोड़ 99 लाख रू0 प्राप्त हुआ हं। संपूर्ण स्वच्छता कार्यक्रम के तहत संस्था ने गांव में कोई शौचालय नही बनवाया है जब कि सूचना से इतर संस्था के कार्य क्षेत्र में लगे हुये बैनर दर्शाते है कि वर्ष 2004 से 2007 के बीच 64 शौचालय बनाये गये है। प्रति शौचालय 2250 रू0 अनुदान राशि की जगहविद्याधाम समिति रूपया मुफिलिसी भुखमरी कुपोषण आशीष सागर Rob Bundelkhand  लूट लो बुंदेलखंड ग्रामीणो को 500 रू0 व दो बोरी सीमेंट व कुर्छ इंटे देकर मामला चलता कर दिया गया । उदयपुर में वाटर एड के सहयोग से बनाये गये किचन गार्डन, वर्मी कम्पोस्ट और संस्था द्वारा संचालित कर्मयोग विद्यापीठ विद्यालय संस्था के किये गये कारनामों की पोल खोलता है। कर्मयोग विद्यापीठ 2007 तक चलाया गया इसके पश्चात संस्था के संचालक अशोक श्रीवास्तव के करीबी व्यक्ति का उसमें कथित कब्जा है। विद्यालय भवन के अंदर कटाई मशीन, ग्रहस्थी का सामान इस बात का प्रमाण है। बडा सवाल यह है कि यदि संस्था ने इस गांव में शौचालय नही बनवाये थे तो उसके कार्य क्षेत्र बैनर व गांव वालो के बयानों को क्या समझा जाये। स्वयं सेवी संगठनों के बारे में बांदा जिले के समाजिक कार्यकर्ता उमाशंकर पांडेय (सूचनाअधिकारी श्री रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय, चित्रकूट) बेबाकी से कहते है कि इन संस्थाओं को राज और केन्द्र सरकार द्वारा अनुदान राशि जारी करने से पहले इनकी तफ्तीश करना चाहिये आयकर और एफसीआरए में पंजीकृत एनजीओ को जो पैसा दिया जा रहा है वह धरातल पर क्यों नही खर्च किया जाता इसकी जांच होनी चाहिये। जांच एजेन्सी निश्पक्ष व राज्य व केन्द्र सरकार के दायरे से बाहर हो सीबीाआई जैसी एजेन्सी नही जो केन्द्र सरकार के इशारे पर काम करती है।
बहरहाल बुंदेलखंड मे स्वयं सेवी संस्थायें पंचायती राज विभाग, राज्य और केन्द्र सरकार के मंत्रालयों, विदेशी अनुदान विभाग से करोडो रू0 लाकर गरीबी और विकास के नाम पर अति पिछडे क्षेत्रों को सिर्फ प्रोजेक्ट मंडिया बना रही है। हाल वही है कि यदि मर्ज नही होगा तो डाक्टर का काम क्या है। गरीबी, भुखमरी, लाचारी और बेकारी बुंदेलखंड के लिये अभिशाप है लेकिन समाज सेवा के नाम पर धंधा चलाने वाले लोगो को यह मान लेना चाहिये कि आने वाली नस्ले एनजीओ के नाम से नफरत की फसल पैदा करेगी जिन्हे काटने वाले वे लोग ही होगे जो समाज सेवा का चोला चढायें बैठे है।

विद्याधाम समिति को दिया गया एफसीआरए रूपया

वर्ष प्राप्त विदेशी धनराशि (लाख रू0)
2004-05 786433.00
2005-06 575185.00
2006-07 498652.00
2007-08 311793.00
2008-09 15122.00


http://thecivilian.in/rob-bundelkhand/2525/.html

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आशीष दीक्षित सागर, बुंदेलखंड क्षेत्र के सामाजिक कार्यकर्ता एवं जन सूचना अधिकार एक्टिविस्ट है ,बुंदेलखंड में पर्यावरण – वन जीवो ,जल ज़मीन और जंगल को बचाने की मुहिम को लेकर सक्रिय हैं साथ ही वहां किये जा रहे खनन माफियाओ के काला सोना ( ब्लैक स्टोन ) की खदानों से टूटते पर्यावरण के इको सिस्टम को सहेजने के लिए लगातार बुन्देली बाशिंदों के बीच समाज कार्य करते हैं। लेखक बतौर प्रवास सोसाइटी के संचालक की भूमिका में किसान ,मजदूर ,महिलाओ और आदिवासियों के पुनर्वास का भी जन अभियान चलाने का बीड़ा उठाये हैं !
                                        

लो जी! बहन जी की सरकार में आरटीआई कार्यकर्ता ने माँग ली थी मंत्री के साले से रंगदारी …..!

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बाँदा। आशीष नंदी ने क्या कहा क्या नहीं और सही कहा या गलत, इसे छेड़िये लेकिन उत्तर प्रदेश में दलित अस्मिता की ठेकेदार बहन मायावती की सरकार में जो करतब हुये वे एक से बढ़कर एक हैं। अब बहुजन समाज पार्टी के पूर्व कैबिनेट मंत्री बाँदा निवासी नसीमुद्दीन सिद्दकी के दिल करीब साले और उनकी पत्नी एम. एल. सी. हुसना सिद्दकी के भाई मुमताज अली ने बाँदा के समाज सेवी और सूचना अधिकार कार्यकर्ता आशीष सागर पर एक साल पहले यानि 14.9.2011 को बाँदा में मुमताज के कार्यालय आकर (गोल कोठी) में एक करोड़ रूपये रंगदारी मांगने के आरोप लगाये हैं।
आशीष सागर ने बताया कि मुमताज अली ने डकैती कोर्ट 153(3 ) बाँदा में अर्जी देकर कहा है कि आशीष सागर ने मेरे साथ बैठे कर्मचारी मिथलेश निवासी बंगाली पुरा और खाई पार के जितेन्द्र के सामने यह कहा कि मुमताज आपके जीजा (नसीमुद्दीन सिद्दकी) के खिलाफ बहुत सबूत हैं, वो जेल भी जा सकते हैं अगर बचना है तो मुझे यानि आशीष को बतोर रंगदारी एक करोड़ रुपया दो। इस पर मुमताज ने कहा कि उसने तो एक करोड़ कभी देखे ही नहीं है कैसे दिलवा दे। इस पर वह धमकी देता हुआ चला गया, इसकी शिकायत कोतवाली में की गई पर तब कोई कारवाही नही की गई। 14 सितम्बर को बाँदा पुलिस कप्तान को प्राथना पत्र दिया गया लेकिन कोई एक्शन नहीं लिया गया इसके पूर्व भी डी. जी. पी. को पत्र भेज के अवगत करवाया गया था ….
देखा ! बहन जी की सरकार में नसीमुद्दीन जैसे ताकतवर मन्त्री के साले से रंगदारी माँगे जाने पर भी बेचारी पुलिस हाथ पर हाथ धरे रहती थी और बहन जी कह रही हैं कि अखिलेश के राज में गुण्डागर्दी है। मुमताज अली को एक वर्ष बाद ये बात साल रही है कि आशीष सागर ने उनसे ये रुपया माँगा था और एक्शन नहीं हुआ जबकि उन दिनों उत्तर प्रदेश में मायावती की सरकार थी और दूसरे नंबर के 22 विभागों वाले मंत्री नसीमुद्दीन सिद्दकी से अवाम और उनके साले मुमताज अली से बाँदा का जर्रा – जर्रा काँपता था, तब भी अगर उनकी रिपोर्ट नही लिखी गई तो हैरत वाली बात तो है।
उधर बाँदा के आरटीआई कार्यकर्ताओं ने घोषणा की है कि इस घटना क्रम में और सूचना अधिकार कार्यकर्ताओं के ऊपर फर्जी मुकदमों, आरोपों के खिलाफ अवाम की आवाज मुहिम के साथ आगामी चार फरवरी को उपवास करेंगे और उसके बाद अगला कदम लखनऊ या दिल्ली का मैदान होगा।

बाँदा : विधायक हू मगर फिर भी गुंडा टैक्स देता हू...

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लाल सोने के लाल आतंक से बंदा, हमीरपुर, चित्रकूट, जालौन और फतेहपुर कराह रहे है। केन हो बेतवा, यमुना हो या मंदाकिनी नदियों का सीना चीरती पोकलैण्ड और लिफ्टर मशीने 40 मी0 गहरे नदियों के बजूद (बालू) को बाहर उलीच रही है। क्या माफिया क्या विधायक लाल सोने की लूट में गले तक सभी तर बतर है। मानको की धज्जियां उड़ाते ठेकेदार और उनके इशारों पर नाचती जिला प्रशासन से लेकर प्रदेश सरकार की लाल नीली पीली बत्तियों का सायरन बालू की खदानों में जाने की हिमाकत नही करता है। बुंदेलखंड के बांदा जिले की एक मात्र जीवन दायिनी नदी केन सितम्बर माह से लगातार अपनी अस्मिता को बचाने की जद्दोजहद में है। लेकिन नक्कारखाने में ढोल बजाने वाले समाजवादी कही नही दिखते ।
भ्रष्टाचार की कालिख में रंगी जिला प्रशासन की फाइले खनिज अधिकारी को मजबूर करती है एमपी0 यू0पी0 की सरहदों से अवैध खनन कराने के लिये। खनिज अधिकारी का दर्द दिल मसोसकर सरकार और सत्ता के समकक्ष एक और सरकार चलाने वाले माफियाओं को गुंडा टैक्स अदा करता है। पर्यावरण को धता बता कर तमाम कानूनी दांवपेंच महज कागजो में ही नजर आते है। कारण साफ है कि जब कानून सरकार की जेब में पडे़ पान की तरह सूख जाता है तो फिर कोई उसे जिंदा करने की कूवत नही रखता।
तिंदवारी विधान सभा क्षेत्र के विधायक दलजीत सिंह की ये बात कि विधायक हूं मगर फिर भी गुंडा टैक्स देता हूं मजबूर करती है वो सब कुछ कह देने के लिये कि-आह मेरी इज्जत को तार तार करने वालों, मेरी अस्मत भी तुम्हारी आबरू से कमतर नही है!
सरकार चाहे बसपा की हो या समाजवादी पार्टी की बालू का अवैध खनन बांदा शहर अन्य जिलों में दहाड़ मार रहा है। सुप्रीम कोर्ट के 27 फरवरी 2012 और हाईकोर्ट इलाहाबाद के याचिका सं0 6798/2011 के आदेशो के मुताबिक ऐसी सभी बालू /मोरम की खदानों को बंद कर दिया जाये जिनके पास पर्यावरण सहमति प्रमाण पत्र नही है। सुप्रीम कोर्ट ने यह रोक पहले पांच हेक्टेयर से ऊपर की क्षेत्रफल वाली खदानों पर लगायी थी मगर पर्यावरण को संजीदा मानकर पांच हेक्टेयर से नीचे और ऊपर की सभी बालू खदानों पर पर्यावरण सहमति प्रमाण पत्र लेना अनिवार्य कर दिया गया है। यहां तक की ईंट भट्टो के लिये मिट्टी खुदाई व अन्य उप खनिजो के पट्टे आवंटित करने में भी फौरी तौर पर रोक लगा दी गयी है। बंदेलखंड सहित उ0प्र0 के मिर्जापुर, सोनभद्र, औरेया, इटावा के चम्बल नदी तटों पर माफियाओ की नजर गिद्ध की तरह बालू के अवैध खनन में एकटक लगी है। बांदा से ही करीब आधा दर्जन बालू माफिया औरेया और जालौन में लाल सोने को लूटने के लिये करोड़ो का दांव लगा रहे है। सूत्रो से मिली सूचना के अनुसार पर्यावरण मंत्रालय से एनओसी लेने के लिये बकायदा दलालो के मार्फत पंच करोड रू0 तक वसूली की जा रही है। यानि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट की सख्ती ने नदियों को बचाने का काम तो नही किया मगर खनन माफियाओं के रास्ते सरकार को और ब्यूरोक्रेसी में बैठे दोगले चरित्र के कर्मचारियों को सोने की मुर्गी तक जरूर पहुचाया है।
तिंदवारी विधान सभा क्षेत्र के कांग्रेस विधायक दलजीत सिंह यू तो युवा और लोकप्रिय विधायक के रूप में जाने जाते है। युवाओं के बीच इस जनप्रतिनिधि की पहचान दिलजीत जैसी है। विधान सभा 2012 में भारी बहुमत से सपा के गद्दावर नेता और राष्ट्रीय महासचिव व लोकसभा चुनाव 2014 के हमीरपुर प्रत्याशी विशम्भर प्रसाद निषाद को पटखनी दलजीत ने ही दी थी। युवाओं के बीच इस जनप्रतिनिधि की पहचान दिलजीत की है। दलजीत सिंह बेबाक लहजे में इस बात स्वीकार करते है कि उन्हे विधायक होने के बाद भी गुंडा टैक्स अदा करना पड़ता है। दलजीत की माने तो मै जाति का ठाकुर हूं, पेशे से बालू ठेकेदार हूं और विधायक भी हूं ये तीनो विशेष बाते किसी भी आदमी को दबंग साबित करने के लिये काफी है। लेकिन चुनाव जीतने के बाद से आज दिवस तक अपनी विधायक निधि को अन्य विधायको की अपेक्षा पाक साफ तरीके से खर्च करने में विधायक दलजीत सिंह को ऊपर रखा जा सकता है। विधान सभा सत्र के दौरान इस विधायक ने ही खुलकर विधायक निधि को बंद करने की वकालत की थी।
विधायक के इस बयान से विधान सभा सत्र में बैठे अन्य दलों के नेताओं ने मानसिक दिवालिया घोषित कर दिया था। उनका कहना है कि विधायक निधि को ज्यादातर नेता कमीशन लेकर बेंच देते है। सच भी यहीं है कि उ0प्र0 के अन्य जिलों की तरह बंदेलखंड में भी विधायको ने 20 प्रतिशत कमीशन पर विधायक निधि को अपने चहेतो के हवाले कर दिया है। फतेहपुर जिले के संगोलीपुर गढा (एसजीआई) ग्राम में गाटा सं0 191, 272, 378, 379, 380, व 293/2 में 26 फरवरी 2011 से 3 वर्षो के लिये विधायक दलजीत सिंह को बालू खनन का पट्टा दिया गया है। विधायक बनने के पूर्व दलजीत सिंह पेशे से बालू ठेकेदार रहे है इस बात को वे सहजता से स्वीकार करते है। सूचना अधिकार में खान अधिकारी फतेहपुर ने दी सूचना में बताया है कि विधायक दलजीत सिंह के साथ संतोष कुमार ग्राम एरई गाटा सं0 41/1, 39/2, 36, 35, 30, 29, 28, 27, 26, 25 ,24 ,23, 22, 21, 70, 69, 68, 67, 75, 75,73, में 4 अगस्त 2010 से 3 वर्षो के लिये खनन पट्टा किया गया है। पर्यावरण मंत्रालय से सहमति प्रमाण पत्र में विधायक दलजीत सिंह ही अकेले पट्टेधारक है जिन्होने पर्यावरण सहमति प्रमाण पत्र प्राप्त किया है। जबकि फतेहपुर समेत बांदा और आसपास के जिलों में बगैर सहमति प्रमाण पत्र के मशीनों से बालू खनन किया जा रहा है। इंडिया एलाइव के दिसम्बर अंक में प्रकाशित लेख सिंडीकेट और राॅयल्टी का काला खेल में किये गये खुलासे इस बात को साबित करते है कि बंदेलखंड में बालू और पत्थर खनिज संपदा के तार पोंटी चड्ढा से लेकर सियासत दारो के रिश्तेदारों और उनके करीबी लोगो तक है। दिसंम्बर के अंक में लेख के साथ नदी को बांधकर भूरागढ क्षेत्र हरदौली घाट में बनाये गये अवैध पुल को स्थानीय सपा संगठन की दो फाड़ के चलते पुलिस अधीक्षक ज्ञानेश्वर तिवारी ने आनन फानन में पुलिस बल के साथ ढहा दिया है। मगर सवाल फिर वही कि लेख प्रकाशित होने के पहले तक जब इस बात से सारा जिला प्रशासन और सरकारी अमला वाकिफ था तो यह अवैध पुल क्यों नही ढहाया गया ?
अभी भी राजघाट में केन नदी को 20 मी0 से अधिक जलधारा बाधित कर बनाये गये पुल के दम से अवैध खनन किया जा रहा है। 23 दिसम्बर 2012 को राजघाट की म्यांद खनन पट्टे के लिये पूरी हो चुकी है बावजूद इसके बैखौफ पनपते खनन माफिया के सामने कानून और सरकार दोनो घुटने टेंकते नजर आते है। राजघाट में किया जा रहा बालू का खनन बांदा के बाहुबली और चर्चित खनन माफिया सीरजध्वज सिंह के रहमोकरम पर किया जा रहा है। इस खदान से पोकलैण्ड मशीनों द्वारा प्रतिदिन 500 ट्रको से अधिक बालू की निकासी नदी का सीना चीरकर, नदी को बांध कर की जा रही है। पुलिस अधीक्षक ज्ञानेश्वर तिवारी के कानों में जूं तक नही रेंगती कि इन माफियाओं को खाकी के रूतबे और कानून के डंडे का पाठ पढा सके। तो क्या हुआ सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट पर्यावरण को लेकर सख्त है, नदियों को बचाने के लिये मशक्कत कर रही है। इन माफियाओं को इस बात से फर्क नही पड़ता कयों कि पैसे की हवस उनकी नस्लों को नही गरीब और मजलूम की रोटी को लूटती है। विधायक दलजीत सिंह की यह बात कि मै भी गुंडा टैक्स अदा करता हूं बंदेलखंड में बालू और पत्थर के व्यापार को परिभाषित करने के लिये काफी है कि इस तरह अविरल बहती केन समेत अन्य नदियों की भ्रूण हत्या जिंदगी की शर्त पर सत्ताधारी कर और करवा रहे है।
यहां दिसम्बर के अंक में पृष्ठ सं0 28 पर रामवृक्ष सिंह यादव सदस्य, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड उ0प्र0 के उस कथन का जिक्र करना लाजिमी है जिसमें उन्होने कहा है कि ‘‘हमारे माननीय मुख्यमंत्री जी पर्यावरण व जल संरक्षण पर सर्वाधिक गंभीर रहते है। यमुना नदी के बढंते प्रदूषण व उसके मृत प्राय होने पर वह बहुत चिंतित है, यमुना व चम्बल दोनो नदियों को स्वच्छ व उपयोगी बनाये जाने का प्रयास हमारी सरकार द्वारा किया जा रहा है।’’ पर क्या रामवृक्ष सिंह यादव के कहे ये शब्द खबर का हिस्सा मात्र है या फिर धरातल की सच्चाई ? बुंदेलखंड में खुले आम माफियाओं के सहारे उजाड़ी जा रही नदियों की सल्तनत सरकार और निजामों को पर्यावरण के प्रति चिंतित होने की नकाफी हकीकत से रूबरू कराती है। खनन रूकता नही, नदियां मर रही है, माफिया और ठेकेदार विधायक, सांसद बन गये, एस0पी0 ज्ञानेश्वर तिवारी जैसे लोग और जिलाधिकारी जी0एस0 नवीन कुमार भ्रष्टाचार की नूराकुस्ती में लाल सोने को लुटवाने के तमाशायी बन कर रह गये है।

जनपद फतेहपुर से वर्ष 2004 से 2012 तक प्राप्त खनन रायल्टी-

S.NO Year Income (Source RTI)
1 2004-05 2,09,82,482.00
2 2005-06 2,69,31,933.00
3 2006-07 2,78,38,870.00
4 2007-08 3,41,95,960.00
  2008-09 3,41,95,960.00
6 2009-10 4,25,51,839.00
7 2010-11 2,91,32,188.00
8 2011-12 2,42,92,847.00
राजघाट बांदा सदर की तरह ही गिरवां भी खनन की मार से त्रस्त है। शेरपुर स्योढ़ा मार्ग में लगभग 6 किमी0 डामर सडक से होते हुये यूपी0 एमपी0 को जोडने वाले छतरपुर मार्ग में उरधना, कन्हैला, रामपुर 1, रामपुर 2, निहालपुर, कोलावल रायपुर तक सैकड़ो ट्रकों की ओवर लोडिंग बालू निकासी सूरज अस्त होने के साथ अवैध रूप से शुरू हो जाती है। बात यहीं पर नही रूकती ट्रक का पहिया दबंगई से नरैनी क्षेत्र के नसैनी, करतल, अजयगढ़ तक मप्र0 की गोद में जबलपुर से निकली केन की इज्जत के साथ गैंगरेप करता है। इस जघन्य प्राकृतिक बलात्कार में सम्मिलित होते है आवाम से चुने हुये सफेद पोश खादी के पहरेदार और खाकी के मंजे हुये यादव बिरादरी वाले दरोगा जी।
निजी सूत्रों से मिली जानकारी ने तो यह भी बताया कि बांदा सदर में जिलाधिकारी द्वारा हार्पर क्लब में खुलवाया गया हाईटेक जिम व निशाने बाजी में लगायी गयी देशी और विदेशी मशीने सिंडीकेट के रूपयो से ही क्रय की गयी है। इसकी पड़ताल में भले ही खबर नफीसों को एक और आरटीआई का उपयोग करना पडें। लेखनी, कलम की स्याही बुन्देंलखण्ड में हो रहे अवैध खनन को रोक तो नही सकती पर नदियों के लुटेरों के आइना दिखाने के लिए मजनून और माकूल केशिश है।
By : - आशीष सागर
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लूट लो बुंदेलखंड - एनजीओ !

सरकारी योजनाओं के समानान्तर चल रही एनजीओ की सत्ता बंदेलखंड से लेकर विदर्भ, कालाहांडी तक फैली है। ये गैर सरकारी संगठन उन इलाको में जहां खासकर मुफिलिसी, भुखमरी, कुपोषण और प्राकृतिक आपदायें मुंह बाये खडी रहती है सर्वाधिक पोषित हो रही है। एनजीओ के आन्तरिक चेहरो को बेनकाब करती रपट..
बंदेलखंड - गरीबी, सूखा और आपदाओ से घिरे बुंदेलखंड में ग्रामीण विकास योजनायें हासियें पर है। उन्हे लूटने और उनमे व्याप्त भ्रष्टाचार को बढाने में सरकारी मिशनरी हावी है। मनरेगा, संपूर्ण स्वच्छता कार्यक्रम, आईसीडीएस (आंगनबाडी), बालश्रम, उद्यान विभाग, एचआईवी एड्स, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन से लेकर आवाम के लिये बनी निजामों की हर योजना भ्रष्टाचार में लिप्त है। लेकिन सरकारी योजनाओं के समनान्तर बुंदेलखंड जैसे अति पिछडे और विकास से अछूते क्षेत्रों में समाजिक संगठनों की बाढ़ आम जनमानस को लूटने में कमतर नही है।
एनजीओ का काला सच और गरीबो की आड़ में राज्य, केन्द्र, विदेशी अनुदान विभाग को गुमराह करने वाले आकडो़ में पेश करती हुयी तस्वीरे बंदेलखंड का एक और कड़वा स्याह सामने लाती है। जिनसे यह कहना मुनासिब लगता है कि भ्रष्टाचार के महाकुम्भ में बुंदेलखंड के समाजिक संगठन भी अपनी अपनी भारत माताओं के साथ सुख भोग की डुबकी लगा रहे है।
जनपद बांदा जिले में दो दशको सें काम कर रही स्वयं सेवी संस्था और उनके कारनामो को आम जनता के लिये बनाये गये सूचना अधिकार कानून ने उजागर किया है। बांदा क्षेत्र के नरैनी विधान सभा में 23 गांव की गरीबी को दूर करने और सर्वोदय के नारे के साथ समाज सेवा का संकल्प लेकर चली परागीलाल विद्याधाम समिति, अभियान संस्था अतर्रा, की कहानी भ्रष्टाचार के पन्नों को खोलने में अव्वल नजर आती है। जनसूचना अधिकार 2005 से मोहनपुर निवासी सीताराम श्रीवास ने विद्याधाम समिति से 2003 से 2012 तक किये गये तमाम विकास कार्यों और संस्था की गतिविधियों के बारे में सूचना मांगी थी।
सूचना देने से बचने के लिये संस्था संचालक राजा भैया यादव ने सीताराम श्रीवास के साथ साथ अन्य दो आरटीआई कार्यकर्ताओं से 2रू0 प्रति पेज फोटोकापी के हिसाब से 18000 रू0 शुल्क अदा करने के बाद सूचना देने की बात लिखित रूप से कही गयी। गरीब किसानो औैर दलित, शोषित, पदवंचित लोगो के मसीहा के रूप में खुद को प्रचारित करने वाली स्वयं सेवी संगठन विद्याधाम समिति द्वारा आरटीआई कार्यकताओं से 18000 रू0 की मांग करना अतिश्योक्ति पूर्ण बात है।
अपनी गाढी कमाई को जोड़कर आरटीआई कार्यकताओं ने संस्था द्वारा मांगी गयी धनराशि एक मुश्त बैंक ड्राफ्ट के जरिये अदा की। रूपया लेने के बाद भी दी गयी सूचना में संस्था के पुराने पंपलेट, रद्दी कागज लपेट कर करीब 10 किलो का बंडल सूचना मांगने वालो को थमा दिया गया जिससे सूचना अधिकार के चक्रव्यूह में उलझकर फिर कोई सूचना मांगने की हिमाकत न कर सके। आरटीआई कार्यकर्ता संतोष श्रीवास ने केन्द्रीय सूचना आयोग के साथ साथ ग्रह मंत्रालय से लेकर हर उस आला अधिकारी की चैखट पर शिकायत की अर्जी विद्याधाम समिति के संदर्भ में लगायी जहां से उसे न्याय की उम्मीद थी। ग्रह मंत्रालय ने केन्द्रीय सूचना आयोग की नोटिस पर आरटीआई कार्यकर्ता को सूचना देने के लिये मजबूर किया। सूचना अधिकार से मिले तथ्यों के मुताबिक परागीलाल विद्याधाम समिति को एफसीआरए (विदेशी अनुभाग) से वर्ष 2004 से 2009 के बीच 7094399.00 रू. प्राप्त हुये थे। इस धनराशि में देशी अनुदान यथा जमशेद जी टाटा ट्रस्ट और अन्य फंडिग एजेन्सियों की तरफ से जारी की गयी अनुदान राशि समाहित नही है जो विद्याधाम समिति को दी गयी।
जनसूचना अधिकार का सामना न करना पड़े इसके लिए विद्याधाम समिति जैसे अन्य संगठन राष्ट्रीय स्तर के पत्रकारोें को भी बरगलाना बखूबी जानते है। बानगी के लिये भारत डोगरा एक नाम हो सकता है जिन्होने बंदेलखंड मे काम कर रही जीआरए ग्रुप (गोपाल राजा अशोक ) के लिये प्रशंसा परख लेख दैनिक समाचार पत्रों के संपादकीय पेज,सोशल चेन्ज पेपर्स में कई मर्तबा लिखे। हाल ही में एक दैनिक समाचार पत्र के संपादकीय पृष्ठ पर सूचना अधिकार से कौन डरता है ? शीर्षक से प्रकाशित लेख में विद्याधाम समिति की ईमानदारी और खूबियों का बखान किया गया। इस लेख में प्रमुखता से सूचना मांगने वालो को ब्लेकमेलर तक कहा गया है। शब्दो के कैनवास से गरीबी को खूबसूरत बनाना और पंचायती राज को कटघरे में खडा कर देने के साथ संस्थाओं के संदर्भ मे सजे हुये लेख लिखना इन राष्ट्रीय पत्रकारों की लेखनी से अच्छा कौन कर सकता है?
आरटीआई को कमजोर और ग्रामीणों की आवाज को दबाने के लिये विद्याधाम समिति ने अपने गैर पंजीकृत संगठन चिंगारी (महिला विंग) का भी गाहे बगाहे सहारा लिया। संगठन की संयोजिका गुड़िया पत्नी रामचरन के माध्यम से ग्राम किसनी पुरवा के प्राथमिक विद्यालय में कार्यरत प्रधानाध्यापक यशवंत कुमार पर फर्जी मुकदमे कायम कराये गये । 30 दिसम्बर 2012 को ऐसा ही मुकदमा छेडखानी का गुडिया की तरफ से लिखाया गया है। इसके पूर्व भी वर्ष 2008 में धारा 156 (3) के तहत इस संस्था की तरफ से अध्यापक के ऊपर मुकदमा दर्ज करवाया गया था जिस पर नरैनी थाने मे एफ आर लगायी जा चुकी है।
गौरतलब है कि यशवंत कुमार के पिता बुआराम उर्फ ब्रजगोपाल ने अपने दादा परागीलाल के नाम से 15 मार्च 2001 को बहलफ रजिस्ट्री 2 बीघा 15 बिस्वा बंजर जमीन संस्था को ग्राम मोहन पुरवा में विद्यालय संचालन के लिये दान की थी। गाटा सं0 820 की यह जमीन रजिस्ट्री के समय नरैनी तहसील में दर्ज करायी गयी थी जिसे परागी लाल की 13 दिसम्बर 2007 को मृत्यु के पश्चात संस्था ने अतर्रा तहसील स्थानान्तरित करा लिया है। शिक्षा के दान और परोपकार की बंजर जमीन पर विद्यालय तो संचालित नही हुआ लेकिन जमीन पा जाने के बाद राजाभैया यादव ने अपने पैंतरे जरूर बदल दिये।
सूत्र बताते है कि एक दशक पूर्व सामान्य व्यक्ति की तरह महुई कुलसारी के ढोढ़ाउहा पुरवा निवासी राजाभैया यादव जिनका बचपन अपने ननिहाल कोलावल रायपुर में बीता है जीवन यापन करते थे। मगर आज अतर्रा तहसील में दो मंजिला भवन संस्था कार्यालय के रूप में, अतर्रा नरैनी मार्ग में गर्गन पुरवा में निर्माणाधीन दो मंजिला भवन (फार्म हाउस) जो कि इनके जीआरए गु्रप के संचालक एवं अखिल भारतीय समाज सेवा संस्थान के न्यासी गया प्रसाद गोपाल उर्फ पिताजी की माता देवरती के नाम पर शिलान्यासित करवाया गया है, एक वैगेनार, एक इंडिका और दो पहिया वाहन सहित चल अचल संपत्ति बनायी गयी है। गोपाल भाई की संस्था संपत्ति या व्यक्तिगत प्रापर्टी का अनुमान लगाया जाये तो चित्रकूट बेडीपुलिया मार्ग पर रानीपुर भट्ट (भारत जननी परिसर) की लगभग 1 एकड़ जमीन, मानिकपुर क्षेत्र में संस्था निजी विशाल कार्यालय, पैतृक गांव सहित आसपास के क्षेत्र में कृषि जमीने, चारपहिया वाहन सहित अज्ञात बैंक बैलेंस मौजूद है। तीन दशक पूर्व साइकिल से समाज सेवा शुरू करने वाले इन पिताजी के एक पुत्र वर्तमान में मानिकपुर क्षेत्र से ब्लाक प्रमुख भी है। मिली जानकारी के अनुसार पूर्व बसपा सरकार के ग्राम विकास मंत्री दद्दू प्रसाद कभी अखिल भारतीय समाजसेवा संस्थान में बर्तौर सामाजिक कार्यकर्ता काम किया करते थे। सरकार बनने के पश्चात राज्य सरकार से मनरेगा सामाजिक अंककेक्षण, जागरूकता अभियान के लिये लाखो रू0 इस संस्था को दिया गया था। वर्तमान में टाटा ट्रस्ट, चाइल्ड लाइन, वाटर एड इंडिया, नाबार्ड सहित अन्य गैरसरकारी प्रोजेक्ट इस संस्था में संचालित है। जिनकी अनुदान राशि सालाना लाखो रू0 है। यह और बात है कि विद्याधाम समिति के हमकदम बनकर चलने वाली यह संस्था भी स्वसेवा में मशगूल है।
कुल मिलाकर देशी विदेशी अनुदान से गरीबो के कल्याण, सशक्तिकरण, सर्वागींण विकास और भुखमरी, पलायन, किसान आत्महत्याओं के मुद्दो पर करोडो रू0 प्रोजेक्ट के नाम पर लाना और धरातल में किये गये कार्याे का सिफर ंहोना इन संस्थाओ की कार्यशैली पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करता है। इंडिया एलाइव की पड़ताल के दौरान विद्याधाम समिति के कार्यक्षेत्र के करीब आधा दर्जन गांव जिनमें नहरी, नरसिंहपुर, राजा का पुरवा (दलित बस्ती), देवली, धोबिन पुरवा, सहबाजपुर, पुकारी, मोहनपुरवा, गुढाकला के बाशिंदो का कहना है कि एनजीओ चलाने वाले चोर होते है। देवली गांव के चुन्नी लाल, अच्छेलाल, झल्लू, ललमा ने बताया कि विद्याधाम समिति की तरफ से उन्हे गूंज संस्था द्वारा कपडे दिये गये थे। कपडे देने के पहले संस्था द्वारा कहा जाता है कि कपडे उतारकर खडे हो जाओ, तुम्हारी फोटो खीचेंगे फिर तुमको कपडे, शौचालय, पेंशन और बिजली मिलेगी। देवली एक ऐसा गांव है जहां बीते दो वर्षो से बिजली नही है। बडी बात है कि अगर शहर में और सैफई में एक घंटे बिजली न रहे तो हडकंप मच जाता है। लेकिन वही बुंदेलखंड के इस पिछडे गांव मे फांकाकशी के बीच जीने वाले लोगो की जिंदगी दो साल अंधेरे में है। समाजसेवी, सरकार क्या कर रही है यह बताने की जरूरत नही।
विद्याधाम समिति पर गंभीर और संजीदा आरोप लगाने वाली धोबिन पुरवा की बिट्टन निषाद का कहना है कि मुझसे और मेरी जैसी अन्य औरतो की कम कपड़ो में तस्वीरे खीची जाती है , तस्वीरे बाहर जाती ह, उनका क्या होता है हमें नही मालूम और उसके बदले हमें कपडे दिये जाते है। बकौल बिट्टन मै भी कभी चिंगारी संगठन की सदस्य हुआ करती थी लेकिन आज नही हूं क्यों कि मै संस्था से बगावत कर चुकी हूं।
कैमरे की रिर्काडिंग और एक घंटे की बयानी इस बात की तस्दीक करती है कि गांव से निकले शिकायती पत्र, ग्रामीणों की आवाज जिला प्रशासन तक क्यों नही पहुंची जिन्होने इन संस्थाओ को यह नारा दिया कि - चलो गांव की ओर।

‘‘मिट्टी के बुतो की अकड़ तो देखियें,
खुद अपनी मिट्टी को भूल गये है।
कोई जरा बताये इनको,
टूटने के बाद मिलना है इसी मिट्टी में।।’’

दोआबा क्षेत्र के रंज और बागै नदी की पट्टी में बसे अति पिछडे यूपी एमपी के सीमावर्ती गांव इन संस्थाओ के निशाने पर है। राजा का पुरवा ग्राम पंचायत पिपरा (नरसिंहपुर) निवासी युवा ग्रामीण नत्थू, चुनूबाद, दयाराम, बाबू, जयराम, पन्ने, राजकुमार, बसंतलाल, मुन्ना व बुजुर्ग भिम्मा सहित अन्य लोगो ने सूखा राहत, खाद बीज और कपडो के नाम पर इस संस्था पर भ्रष्टाचार के संगीन आरोप लगाये है। वहीं नरसिंहपुर के लोगो का कहना है कि हमारे गांव में एक बोरी अनाज आया था जिसमें से 2 - 2 किलो लोगो को दिया गया है। बताते चले कि जमशेद जी टाटा ट्रस्ट से विद्याधाम समिति को 9 लाख 84 हजार रू0 बागै नदी में डैम बनाने के लिये दिये गये थे। अकेले क्षमता वर्धन के नाम पर 1 लाख रू0 खर्च किया गया है। बमुश्किल पांच लाख रू0 के काम पर नौ लाख चैरासी हजार रू. कहां खर्च किया गया यह तकनीकी जांच का विषय है।
ग्राम पंचासत नहरी के गोपरा गांव के रहवासी भी संस्था से इस कदर खफा है कि छूटते ही कैमरा तोडने को दौड़ पडते है। उन्हे लगता है कि फिर से कोई एनजीओ वाला आ गया है जो फोटो खीचेगा और करोडो रू0 ग्रह मंत्रालय का डकार जायेगा। इसी गांव के लाले पुत्र शिवचरन ने आरोप लगाया कि उसके नाती भूपत व मिथला का कोई नही है। विद्याधाम समिति ने इनकी फोटो खीची और पंशन दिलाने का वादा किया लेकिन उन्हे मिला कुछ नही। यही पीड़ा गांव के बुजुर्ग हल्कू पुत्र सुखलाल की है जिसे गांव की उधड़ी पगडंडी में जर जर हालात के चलते मुफिलिसी को ढोते देखा जा सकता है।
बंुदेलखंड में एनजीओ की लूट विद्याधाम समिति पर ही खत्म नही होती अतर्रा क्षेत्र में कार्यरत अभियान संस्था के संचालक अशोक श्रीवास्तव भी वाटर एड इंडिया और जायका से लाखो रू0 कागजो पर खर्च कर चुके है। सूचना अधिकार में प्राप्त जानकारी से जो तथ्य हासिल हुये है वह अभियान के भ्रष्टाचार अभियान को कठघरे में खड़ा करते है।
ग्राम पंचायत उदयपुर निवासी ब्रजमोहन यादव ने संस्था से गांव में संपूर्ण स्वच्छता कार्यक्रम के तहत बनाये गये शौचालय, हैंड पंप व अन्य के सम्बंध में जानकारी मांगी थी। जो सूचना दी गयी उसमें लिखा गया कि संस्था को वाटर एड इंडिया से 2 करोड़ 99 लाख रू0 प्राप्त हुआ हं। संपूर्ण स्वच्छता कार्यक्रम के तहत संस्था ने गांव में कोई शौचालय नही बनवाया है जब कि सूचना से इतर संस्था के कार्य क्षेत्र में लगे हुये बैनर दर्शाते है कि वर्ष 2004 से 2007 के बीच 64 शौचालय बनाये गये है। प्रति शौचालय 2250 रू0 अनुदान राशि की जगह ग्रामीणो को 500 रू0 व दो बोरी सीमेंट व कुर्छ इंटे देकर मामला चलता कर दिया गया । उदयपुर में वाटर एड के सहयोग से बनाये गये किचन गार्डन, वर्मी कम्पोस्ट और संस्था द्वारा संचालित कर्मयोग विद्यापीठ विद्यालय संस्था के किये गये कारनामों की पोल खोलता है। कर्मयोग विद्यापीठ 2007 तक चलाया गया इसके पश्चात संस्था के संचालक अशोक श्रीवास्तव के करीबी व्यक्ति का उसमें कथित कब्जा है। विद्यालय भवन के अंदर कटाई मशीन, ग्रहस्थी का सामान इस बात का प्रमाण है। बडा सवाल यह है कि यदि संस्था ने इस गांव में शौचालय नही बनवाये थे तो उसके कार्य क्षेत्र बैनर व गांव वालो के बयानों को क्या समझा जाये। स्वयं सेवी संगठनों के बारे में बांदा जिले के समाजिक कार्यकर्ता उमाशंकर पांडेय (सूचनाअधिकारी श्री रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय, चित्रकूट) बेबाकी से कहते है कि इन संस्थाओं को राज और केन्द्र सरकार द्वारा अनुदान राशि जारी करने से पहले इनकी तफ्तीश करना चाहिये आयकर और एफसीआरए में पंजीकृत एनजीओ को जो पैसा दिया जा रहा है वह धरातल पर क्यों नही खर्च किया जाता इसकी जांच होनी चाहिये। जांच एजेन्सी निश्पक्ष व राज्य व केन्द्र सरकार के दायरे से बाहर हो सीबीाआई जैसी एजेन्सी नही जो केन्द्र सरकार के इशारे पर काम करती है।
बहरहाल बुंदेलखंड मे स्वयं सेवी संस्थायें पंचायती राज विभाग, राज्य और केन्द्र सरकार के मंत्रालयों, विदेशी अनुदान विभाग से करोडो रू0 लाकर गरीबी और विकास के नाम पर अति पिछडे क्षेत्रों को सिर्फ प्रोजेक्ट मंडिया बना रही है। हाल वही है कि यदि मर्ज नही होगा तो डाक्टर का काम क्या है। गरीबी, भुखमरी, लाचारी और बेकारी बुंदेलखंड के लिये अभिशाप है लेकिन समाज सेवा के नाम पर धंधा चलाने वाले लोगो को यह मान लेना चाहिये कि आने वाली नस्ले एनजीओ के नाम से नफरत की फसल पैदा करेगी जिन्हे काटने वाले वे लोग ही होगे जो समाज सेवा का चोला चढायें बैठे है।

विद्याधाम समिति को दिया गया एफसीआरए रूपया

वर्ष प्राप्त विदेशी धनराशि (लाख रू0)
2004-05 786433.00
2005-06 575185.00
2006-07 498652.00
2007-08 311793.00
2008-09 15122.00
By : - आशीष सागर

Monday, January 28, 2013

विधायक हूं, फिर भी गुंडा टैक्स देता हूं

www.janjwar.com
http://www.janjwar.com/2011-05-27-09-00-20/25-politics/3607-vidhayak-hoon-fir-bhi-gunda-tex-deta-hoon-bundelkhand-uttar-pradesh
पर्यावरण मंत्रालय से एनओसी लेने के लिये दलालों के मार्फत पांच करोड रुपये तक वसूली की जा रही है. कोर्ट की सख्ती ने नदियों को बचाने का काम तो नहीं किया, मगर खनन माफियाओं के रास्ते सरकार और ब्यूरोक्रेसी में बैठे दोगले कर्मचारियों को सोने की मुर्गी तक जरूर पहुँचा दिया...
आशीष सागर
बुंदेलखंड में केन, बेतवा, यमुना हो या मंदाकिनी, इन नदियों का सीना चीरती पोकलैण्ड और लिफ्टर मशीनें 40 मीटर गहरे से इनके वजूद बालू को बाहर उलीच रही हैं. क्या माफिया, क्या विधायक सभी बालू की लूट में गले तक तरबतर हैं. मानको की धज्जियां उड़ाते ठेकेदार और उनके इशारों पर नाचते जिला प्रशासन से लेकर प्रदेश सरकार की लाल-नीली-पीली बत्तियों का सायरन बालू की खदानों तक जाने की हिमाकत नहीं करता है. बुन्देलखंड के बांदा जिले की एकमात्र जीवनदायिनी नदी केन पिछले वर्ष सितम्बर माह से लगातार अपनी अस्मिता को बचाने की जद्दोजहद में है. लेकिन नक्कारखाने में ढोल बजाने वाली समाजवादी सरकार कहीं नज़र नहीं आती है.
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राजघाट पर किया जा रहा अवैध खनन
 भ्रष्टाचार की कालिख में रंगी जिला प्रशासन की फाइलें खनिज अधिकारी को मजबूर करती हैं मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश की सरहदों से अवैध खनन कराने के लिये. खनिज अधिकारी दिल मसोसकर सरकार और सत्ता के समकक्ष एक और सरकार चलाने वाले माफियाओं को गुंडा टैक्स अदा करता है. पर्यावरण को धता बताते तमाम कानूनी दांवपेंच महज कागजों में नजर आते हैं. जब कानून सरकार की जेब में पडे़ पान की तरह सूख जाता है, तो फिर कोई उसे जिंदा करने की कूवत नहीं रखता.
तिंदवारी विधानसभा क्षेत्र के विधायक दलजीत सिंह की बात कि 'विधायक हूं मगर फिर भी गुंडा टैक्स देता हूं' मजबूर करती है वो सबकुछ कह देने के लिये 'आह! मेरी इज्जत को तार तार करने वालो मेरी अस्मत भी तुम्हारी आबरू से कमतर नहीं है!' सरकार चाहे बसपा की रही हो या अब समाजवादी पार्टी की, बालू का अवैध खनन बांदा शहर सहित अन्य जिलों में बेरोकटोक जारी है.
सुप्रीम कोर्ट के 27 फरवरी 2012 और हाईकोर्ट इलाहाबाद के याचिका सं0 6798/2011 के आदेश के मुताबिक ऐसी सभी बालू /मोरम की खदानों को बंद कर दिया जाये जिनके पास पर्यावरण सहमति प्रमाणपत्र नहीं है. सुप्रीम कोर्ट ने यह रोक पहले पांच हेक्टेयर से ऊपर की क्षेत्रफल वाली खदानों पर लगायी थी, मगर अब पर्यावरण को संजीदा मानकर पांच हेक्टेयर से नीचे और ऊपर की सभी बालू खदानों पर पर्यावरण सहमति प्रमाणपत्र लेना अनिवार्य कर दिया गया है.
यहां तक की ईंट के भट्टों के लिये मिट्टी खुदाई व अन्य उपखनिजों के पट्टे आवंटित करने में भी फौरी तौर पर रोक लगा दी गयी है. बुन्देलखंड सहित मिर्जापुर, सोनभद्र, औरेया, इटावा के चम्बल नदी तटों पर माफियाओ की नजर गिद्ध की तरह बालू के अवैध खनन पर लगी हुई है. बांदा से ही करीब आधा दर्जन बालू माफिया औरेया और जालौन में लाल सोने को लूटने के लिये करोड़ो का दांव लगा रहे है. सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार पर्यावरण मंत्रालय से एनओसी लेने के लिये बकायदा दलालो के मार्फत पांच करोड रुपये तक वसूली की जा रही है. सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट की सख्ती ने नदियों को बचाने का काम तो नहीं किया, मगर खनन माफियाओं के रास्ते सरकार को और ब्यूरोक्रेसी में बैठे दोगले चरित्र के कर्मचारियों को सोने की मुर्गी तक जरूर पहुँचा दिया.
तिंदवारी विधानसभा क्षेत्र के कांग्रेस विधायक दलजीत सिंह युवा और लोकप्रिय विधायक के बतौर जाने जाते हैं. युवाओं के बीच इस जनप्रतिनिधि की पहचान 'दिलजीत' जैसी है. विधानसभा चुनाव 2012 में दलजीत ने भारी बहुमत से सपा के कद्दावर नेता, राष्ट्रीय महासचिव व लोकसभा चुनाव 2014 के हमीरपुर प्रत्याशी विशम्भर प्रसाद निषाद को पटखनी दी थी. मगर यह लोकप्रिय विधायक बेबाक लहजे में स्वीकारता है कि विधायक होने के बाद भी गुंडा टैक्स अदा करना पड़ता है.
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तिंदवारी विधानसभा क्षेत्र के विधायक दलजीत सिंह
 दलजीत की मानें तो 'मैं जाति का ठाकुर हूं, पेशे से बालू ठेकेदार हूं और विधायक भी हूं. ये तीनों विशेष गुण किसी भी आदमी को 'दबंग' साबित करने के लिये काफी हैं, लेकिन चुनाव जीतने के बाद से आज के दिन तक अपनी विधायक निधि को अन्य विधायकों की अपेक्षा पाक-साफ तरीके से खर्च करने में दलजीत सिंह को ऊपर रखा जा सकता है. विधानसभा सत्र के दौरान इस विधायक ने ही खुलकर विधायक निधि को बंद करने की वकालत की थी.
विधायक के इस बयान से विधानसभा सत्र में बैठे अन्य दलों के नेताओं ने उन्हें मानसिक दिवालिया घोषित कर दिया था. उनका कहना है कि विधायक निधि को ज्यादातर नेता कमीशन लेकर बेच देते हैं. सच भी यही है कि उत्तर प्रदेश के अन्य जिलों की तरह बुन्देलखंड में भी विधायकों ने 20 प्रतिशत कमीशन पर विधायक निधि को अपने चहेतों के हवाले कर दिया है. फतेहपुर जिले के संगोलीपुर गढा (एसजीआई) ग्राम में गाटा सं0 191, 272, 378, 379, 380, व 293/2 में 26 फरवरी 2011 से 3 वर्षों के लिये विधायक दलजीत सिंह को बालू खनन का पट्टा दिया गया है.
सूचना अधिकार में खान अधिकारी फतेहपुर द्वारा दी गयी सूचना में बताया गया है कि विधायक दलजीत सिंह के साथ संतोष कुमार ग्राम एरई गाटा सं0 41/1, 39/2, 36, 35, 30, 29, 28, 27, 26, 25 ,24 ,23, 22, 21, 70, 69, 68, 67, 75, 75,73, में 4 अगस्त 2010 से 3 वर्षों के लिये खनन पट्टा किया गया है. पर्यावरण मंत्रालय से सहमति प्रमाणपत्र में विधायक दलजीत सिंह ही अकेले ऐसे पट्टेधारक हैं, जिन्होने पर्यावरण सहमति प्रमाणपत्र प्राप्त किया है, जबकि फतेहपुर समेत बांदा और आसपास के जिलों में बगैर सहमति प्रमाणपत्र के मशीनों से बालू खनन किया जा रहा है.
अभी भी राजघाट में केन नदी को 20 मीटर से अधिक जलधारा बाधित कर बनाये गये पुल के दम से अवैध खनन किया जा रहा है. 23 दिसम्बर 2012 को राजघाट की म्यांद खनन पट्टे के लिये पूरी हो चुकी है, बावजूद इसके बैखौफ पनपते खनन माफिया के सामने कानून और सरकार दोनो घुटने टेकते नजर आते हैं. राजघाट में बालू खनन बांदा के बाहुबली और चर्चित खनन माफिया सीरजध्वज सिंह के रहमोकरम पर किया जा रहा है. इस खदान से पोकलैण्ड मशीनों द्वारा प्रतिदिन 500 ट्रकों से अधिक बालू की निकासी नदी का सीना चीरकर, नदी को बांध कर की जा रही है.
मगर पुलिस अधीक्षक ज्ञानेश्वर तिवारी की इतनी हिम्मत नहीं है कि वे इन माफियाओं को खाकी के रूतबे और कानून के डंडे का पाठ पढा सके. तो क्या हुआ, सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट पर्यावरण को लेकर सख्त है, नदियों को बचाने के लिये मशक्कत कर रही है. इन माफियाओं को इस बात से फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि पैसे की हवस उनकी नस्लों को नहीं, गरीब-मजलूम की रोटी लूटती है. विधायक दलजीत सिंह का कहना कि 'मैं भी गुंडा टैक्स अदा करता हूं' बुन्देलखंड में बालू और पत्थर व्यापार को परिभाषित करने के लिये काफी है. यह भी कि इस तरह अविरल बहती केन समेत अन्य नदियों की भ्रूण हत्या जिंदगी की शर्त पर सत्ताधारी कर और करवा रहे हैं.
फतेहपुर जनपद से वर्ष 2004 से 2012 तक प्राप्त खनन रायल्टी
क्र0सं0    वर्ष               आय (स्त्रोत आरटीआई)
1          2004-2005    2,09,82,482.00
2          2005-2006    2,69,31,933.00
3          2006-2007    2,78,38,870.00
4          2008-2009    3,41,95,960.00
5          2008-2009    3,41,95,960.00
6          2009-2010    4,25,51,839.00
7          2010-2011    2,91,32,188.00
8          2011-2012    2,42,92,847.00
यहाँ रामवृक्ष सिंह यादव सदस्य, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड उ0प्र0 के उस कथन का जिक्र करना लाजिमी है. उन्होंने कहा कि ‘हमारे माननीय मुख्यमंत्री जी पर्यावरण व जल संरक्षण पर सर्वाधिक गंभीर रहते हैं. यमुना नदी के बढते प्रदूषण व उसके मृतप्राय होने पर वह बहुत चिंतित हैं. यमुना व चम्बल दोनों नदियों को स्वच्छ व उपयोगी बनाये जाने का प्रयास हमारी सरकार द्वारा किया जा रहा है.’’
पर क्या रामवृक्ष सिंह यादव के ये शब्द खबर का हिस्सा मात्र हैं या धरातल की सच्चाई. बुन्देलखंड में खुलेआम माफियाओं के सहारे उजाड़ी जा रही नदियों की सल्तनत सरकार और निजामों को पर्यावरण के प्रति चिंतित होने की नाकाफी हकीकत से रू-ब-रू कराती है. खनन रूकता नहीं, नदियां मर रही हैं, माफिया और ठेकेदार विधायक, सांसद बन गये. एसपी ज्ञानेश्वर तिवारी जैसे लोग और जिलाधिकारी जीएस नवीन कुमार भ्रष्टाचार की नूराकुश्ती में लाल सोने को लुटवाने के तमाशायी बन कर रह गये हैं.
राजघाट बांदा सदर की तरह ही गिरवां भी खनन की मार से त्रस्त है. शेरपुर स्योढ़ा मार्ग में लगभग 6 किलोमीटर डामर सडक से होते हुये यूपी-इमपी को जोडने वाले छतरपुर मार्ग में उरधना, कन्हैला, रामपुर 1, रामपुर 2, निहालपुर, कोलावल रायपुर तक सैकड़ो ट्रकों की ओवर लोडिंग बालू निकासी सूरज अस्त होने के साथ अवैध रूप से शुरू हो जाती है. बात यहीं पर नहीं रूकती, ट्रक का पहिया दबंगई से नरैनी क्षेत्र के नसैनी, करतल, अजयगढ़ तक मप्र की गोद में जबलपुर से निकली केन की इज्जत के साथ गैंगरेप करता है. इस जघन्य प्राकृतिक बलात्कार में सम्मिलित होते हैं आवाम से चुने हुये सफेदपोश खादी के पहरेदार और खाकी के मंजे हुये यादव बिरादरी वाले दरोगा जी.
सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक बांदा सदर में जिलाधिकारी द्वारा हार्पर क्लब में खुलवाया गया हाईटेक जिम और निशानेबाजी में लगायी गयी देशी और विदेशी मशीने सिंडीकेट के रुपयों से ही खरीदी गयी है. इसकी पड़ताल के लिए आरटीआई का उपयोग करना पड़ता है. हालाँकि आरटीआई के खुलासों के बावजूद अवैध खनन रुकना नामुमकिन है.
ashishsagar.dikshit@janjwar.com