Friday, November 01, 2013

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पुनर्वास नीति नहीं और शुरू हुई बांध परियोजना

Author: 
आशीष सागर दीक्षित
इस योजना के अंर्तगत केंद्र सरकार से 90 प्रतिशत और राज्य सरकार से 10 प्रतिशत अनुदान शामिल है। यह योजना 8.6 अरब रुपए की है। बांदा, महोबा, हमीरपुर के 112 गांव के किसानों की कृषि भूमि को अधिग्रहित किया जाना है। अब तक 223 किसानों की जमीनें आपसी सहमति से ली जा चुकीं हैं। कुल 30 हजार 0.56 हेक्टेयर भूमि अधिग्रहित की जाएगी। इस लिंक परियोजना को महोबा की धसान नदी से जोड़कर 38.60 किमी लंबी नहर लहचुरा डैम जिसकी क्षमता 73.60 क्यूमिक वाटर कैपसिटी की है को अर्जुन बांध से जोड़ा जाएगा। बांदा। भूमि अधिग्रहण की अधिसूचना भी जारी नहीं हुई और बुंदेलखंड की महत्वपूर्ण अर्जुन बांध परियोजना में करीब 10 हजार किसानों को उजाड़ने का खाका तैयार कर लिया गया। परियोजना के अंतर्गत डूब क्षेत्र से प्रभावित किसानों के लिए अभी शासन ने पुनर्वास नीति निर्धारित नहीं की और जिलास्तरीय समिति के द्वारा आपसी सहमति से सर्किल रेट के मुताबिक 112 गांव की भूमि इस योजना की जद में हैं। अर्जुन सहायक बांध परियोजना पर एक पड़ताल....

बुंदेलखंड में नदी बांध परियोजना हमेशा ही विवादों के घेरे में रहीं हैं। फिर चाहे केन-बेतवा लिंक परियोजना हो या अर्जुन बांध परियोजना। एशिया के सर्वाधिक बांधों वाले क्षेत्र में एक के बाद एक नदी बांध परियोजनाएं केंद्र सरकार के एजेंडे में शामिल होती हैं और हाशिए पर चली जाती है। इन योजनाओं की डीपीआर आधे-अधूरे अध्ययन पर आधारित होती है जिसमें न किसानों के पुनर्वास नीति का जिक्र होता है और न ही योजना से मिलने वाले वाजिब लाभ का। किसान को अपनी ज़मीन और मकान से बेदखल करने वाली इस परियोजना का मजनून भी कुछ ऐसा ही है। अब तक 300 किसानों को सर्किल रेट के मुताबिक मुआवजा मिल चुका है और तकरीबन 10 हजार किसान अपनी ही ज़मीन से हाथ धोने की कगार पर हैं।

क्या है अर्जुन बांध परियोजना


इस योजना के अंर्तगत केंद्र सरकार से 90 प्रतिशत और राज्य सरकार से 10 प्रतिशत अनुदान शामिल है। यह योजना 8.6 अरब रुपए की है। बांदा, महोबा, हमीरपुर के 112 गांव के किसानों की कृषि भूमि को अधिग्रहित किया जाना है। अब तक 223 किसानों की जमीनें आपसी सहमति से ली जा चुकीं हैं। कुल 30 हजार 0.56 हेक्टेयर भूमि अधिग्रहित की जाएगी। इस लिंक परियोजना को महोबा की धसान नदी से जोड़कर 38.60 किमी लंबी नहर लहचुरा डैम जिसकी क्षमता 73.60 क्यूमिक वाटर कैपसिटी की है को अर्जुन बांध से जोड़ा जाएगा। 31.30 किमी लंबी लिंक नहर अर्जुन बांध से कबरई बांध जिसकी क्षमता 62.32 क्यूमिक वाटर कैपिसिटी है को शिवहार चंद्रावल बांध से मिलाते हुए बांदा की केन नहर से जोड़ा जाना है।

वर्षा जल संग्रहण के मद्देनज़र बरसात में कबरई डैम 9.23 मीटर से 163.46 मीटर जलस्तर बढ़ने पर 1240 हेक्टेयर मीटर से 13025 हेक्टेयर मीटर तक की भूमि सिंचित की जा सकेगी ऐसा सरकार का दावा है। इस परियोजना बांध में कुल 149, 764 हेक्टेयर भूमि समतलीकरण का भी प्रस्ताव है। कबरई बांध के तटबंध की लंबाई 6.8 मीटर तथा चौड़ाई 156 मीटर और टॉप लेबल की चौड़ाई अधिकतम 6 मीटर, ऊंचाई 25 मीटर है। अधिशासी अभियंता मौदहा बांध निर्माण खंड प्रथम जिला महोबा की दी सूचना के अनुसार अर्जुन सहायक परियोजना पर अब तक 36220.00 लाख रुपए व्यय किया गया है और 74137.99 लाख रुपए व्यय किया जाना प्रस्तावित है। अर्जुन सहायक बांध परियोजना के अंतर्गत कबरई बांध के डूब क्षेत्र की अंतिम सीमा में ग्राम गंज, गुगौरा, कबरई, धरौन एवं मोचीपुरा आ रहे हैं। परियोजना के तहत डूब क्षेत्र से प्रभावित किसानों के लिए अभी तक शासन द्वारा पुनर्वास नीति निर्धारित नहीं की गई है और आपसी सहमति से भूमि क्रय की जा रही है। भूमि अधिग्रहण की जाने वाली कृषि भूमि के संबंध में कोई अधिसूचना व राजपत्र शासन द्वारा प्रकाशित नहीं किया गया है।

अर्जुन सहायक बांध परियोजना डूब क्षेत्रपरियोजना से प्रभावित ग्राम गुगौरा निवासी पंकज सिंह परिहार व ग्राम जुझार के गुलाब सिंह राजपूत का कहना है कि बिना किसानों की सहमति के सरकार जमींने ले रही है जिसका परिणाम यह है कि अब तक एक किसान रामविशाल के आत्मदाह समेत अब तक 3 लोग आत्महत्या कर चुके हैं। यह पहली ऐसी योजना है जिसमें किसानों के लिए शासन ने कोई पुनर्वास नीति नहीं बनाई है। अलबत्ता मुआवजा जिलास्तरीय समिति के द्वारा निर्धारित सर्किल रेट के आधार पर किया जा रहा है। उनका कहना है कि 1543 हेक्टेयर भूमि अभी खरीदना शेष है। बुंदेलखंड को किसानों की कब्रगाह बनाने वाली इस बांध परियोजना का कांट्रेक्ट नई दिल्ली की मेसर्स सिम्प्लेक्स प्रोजेक्ट लिमिटेड और झांसी की मेसर्स घनाराम इंजीनियर कांट्रैक्ट कंपनी को दिया गया है। उधर महोबा जिलाधिकारी अनुज कुमार झा कहते हैं कि किसानों से आपसी सहमति के द्वारा भूमि ली जा रही है। इसमें किसानों को 12 से 13 लाख रुपए प्रति हेक्टेयर मुआवजा दिया जा रहा है।

लेकिन अर्जुन सहायक नदी बांध परियोजना का लब्बोलबाब दरअसल यह है कि जिन किसानों ने अपनी जाने दी हैं वे असल में मुआवजा न मिलने की भेंट चढ़ गए। रह-रहकर इन्हीं कारणों से चुनावी बयार में हमीरपुर, महोबा लोकसभा क्षेत्र से पूर्व सांसद गंगाचरण राजपूत बुंदेलखंड अधिकार सेना के बैनर से किसानों को सियासी आंदोलन में धकेलने का काम करते हैं। राजपूत बाहुल्य महोबा और हमीरपुर की यह ठेठ पट्टी स्वाभाव से अपने अधिकारों को लेकर अक्रामक है और उस आग में घी डालने का काम ये नेता बखूबी करना जानते हैं। किसानों के हित और बुंदेलखंड के सिंचाई संसाधनों की बात चुनाव के बाद ठंडे बस्ते में चली जाती है। वैसे ही जैसे आज तक केन-बेतवा लिंक परियोजना के डीपीआर भी तैयार नहीं हो सकी है। अर्जुन सहायक बांध परियोजना से बुंदेलखंड को कितना जमींनी लाभ सिंचाई के लिए होगा इसका सही आंकलन भी न तो राज्य सरकार के पास है और ना ही केंद्र सरकार के पास। बावजूद इसके प्राकृतिक संसाधनों में उलट-फेर करते हुए पानी को बांधने के प्रस्ताव इन नदी-बांध परियोजनाओं के रूप में सामने आते हैं। जिनसे किसान की ज़मीन और मकान छींनकर एक संस्कृति को विस्थापित किए जाने का मुलम्मा तैयार होता है।

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मूर्ति विसर्जन के बाद केन में की सफाई

Author: 
आशीष सागर दीक्षित
जब मूर्ति नौवें दिन अपने अंतिम दिवस हवन के बाद स्थान से हटाई जाती है तो स्वतः ही देवी का परायण हो जाता है। इसके पश्चात वह मिट्टी है और यदि मिट्टी की वस्तु का मिट्टी में विसर्जन कर दिया जाए तो गलत क्या है? हिंदु धर्म में जल विसर्जन उनका किया जाता है जो अकाल मृत्यु मरे हों, जहरीले कीड़े ने काटा हो, जल कर मरा हो, अविवाहित हो, पाचक में मरा हो। मां दुर्गा और श्री गणेश महोत्सव में किया जाने वाला जल विसर्जन नदी की आस्था को प्रदूषित करने से अधिक कुछ भी नहीं है। बांदा। उच्च न्यायालय इलाहाबाद उत्तर प्रदेश के गंगा प्रदूषण बोर्ड की तरफ से दाखिल की गई जनहित याचिका संख्या 4003/2006 गंगा-यमुना में मूर्ति विसर्जन पर रोक से सकते में आई उत्तर प्रदेश सरकार और इलाहाबाद जिला प्रशासन के लिए नदी में मूर्ति विसर्जन गले की फांस बन गया। एक वर्ष पूर्व उच्च न्यायालय इलाहाबाद ने इसी याचिका पर आदेश पारित करते हुए इलाहाबाद जिला प्रशासन को जल विसर्जन के विकल्प तलाश करने की हिदायत दी थी। बावजूद इसके एक वर्ष तक ब्यूरोक्रेसी नींद में सोती रही और वर्ष 2013 के मां दुर्गा महोत्सव के बाद मूर्तियों के जल विसर्जन को लेकर न्यायालय में उसकी जवाबदेही को याचिका कर्ताओं ने कटघरे में खड़ा कर दिया।

उच्च न्यायालय ने सख्त लहजे में इलाहाबाद जिला प्रशासन से कहा कि आप एक वर्ष तक सोते रहे तो अब सजा भी भुगतिए। कोर्ट के ये शब्द सुनकर प्रशासन से लेकर प्रदेश सरकार तक के प्रमुख सचिव के लिए मूर्तियों का विसर्जन मुद्दा बन गया। आनन-फानन में इलाहाबाद जिला प्रशासन ने उच्च न्यायालय से इस वर्ष किसी तरह नदी में ही मूर्ति विसर्जन की अनुमति देने की जिरह की और कहा कि इतनी बड़ी संख्या में प्रदेश भर के शहरों से जहां गंगा-यमुना बहतीं हैं पर मूर्ति विसर्जन रोक पाना कठिन कार्य है, इसलिए समय को देखते हुए हमें मूर्ति को नदी में डुबोकर वापस निकाल लेने की अनुमति दी जाए। प्रशासन के इस कुतर्क पर कोर्ट ने नाराजगी भी जताई कि आपने अगर ऐसा किया तो जिस प्रदूषण को लेकर यह जनहित याचिका दाखिल की गई है काम तो वही किया जा रहा है।

मूर्ति विसर्जन के बाद नदी को साफ करने का इलाहाबाद हाइकोर्ट का आदेशइन हालातों में जिला प्रशासन ने सभी दुर्गा कमेटियों की औचक बैठक बुलाई और नदी की बजाय तालाब या कहीं और मूर्ति के विसर्जन की बात कही गई, लेकिन वर्षों से चली आ रही आस्था की यह परंपरा तोड़ने के लिए हिंदुवादी संगठन तैयार नहीं हुए और बात बिगड़ने की स्थितियाँ उत्पन्न होते देख जिला प्रशासन ने पुनः प्रदेश सरकार की तरफ से न्यायालय में हलफ़नामा दाखिल कर इस वर्ष के लिए जल विसर्जन की अनुमति देने का निवेदन किया। जिसे परस्थितिवश ध्यान में रखकर उच्च न्यायालय ने गंगा-यमुना में मूर्ति विसर्जन की अनुमति प्रदान की। मगर समाज के एक तबके ने कुछ ऐसा भी किया जो औरों के लिए भले ही अतिश्योक्ति पूर्ण कार्य हो, मगर हकीक़त यही है। उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले में कई मूर्तियों का मां के भक्तों ने आस्था के साथ भूमि विसर्जन किया। उच्च न्यायालय के आदेश का सम्मान करते हुए और आस्था के तर्कों पर भी मूर्ति के भूमि विसर्जन को न्याय संगत वर्तमान नदी परिस्थितियों में बतलाया।

दुर्गा कमेटियों ने कहा कि जब मूर्ति नौवें दिन अपने अंतिम दिवस हवन के बाद स्थान से हटाई जाती है तो स्वतः ही देवी का परायण हो जाता है। इसके पश्चात वह मिट्टी है और यदि मिट्टी की वस्तु का मिट्टी में विसर्जन कर दिया जाए तो गलत क्या है? वहीं हिंदु मंदिरों से जुड़े कुछ पुजारी भी अपने मुताबिक तर्क देते है उनमें प्रमुख हैं फतेहपुर जिले में हर वर्ष गंगा को बचाने के लिए भूमि विसर्जन कराने वाले स्वामी ज्ञानस्वरूपानंद जी। उनका कहना है कि हिंदु धर्म में जल विसर्जन उनका किया जाता है जो अकाल मृत्यु मरे हों, जहरीले कीड़े ने काटा हो, जल कर मरा हो, अविवाहित हो, पाचक में मरा हो। मां दुर्गा और श्री गणेश महोत्सव में किया जाने वाला जल विसर्जन नदी की आस्था को प्रदूषित करने से अधिक कुछ भी नहीं है। उनका यह भी कहना है कि क्या जल सिर्फ नदी में होता है? क्या हम मूर्ति को नहरों या दबंगों के कब्ज़े में खत्म हो रहे प्राचीन तालाबों, पोखर में यह नहीं कर सकते। लेकिन कहीं न कहीं तालाबों में जल विर्सजन भी उचित नहीं है, लेकिन यह कार्य उन सबसे भला है जो दबंगों के कब्जों में तालाबों को पाटने और विरासत को खत्म किए जाने का खेल कर रहे हैं। जितना धन देश के प्रत्येक शहरों में मूर्ति विसर्जन के लिए स्थानीय नगर पालिका, व्यवस्था, सड़क मार्ग, साफ-सफाई पर खर्च करती है उतने ही धन में मूर्ति विसर्जन के बाद तालाबों और नहरों की तत्कालिक सिल्ट, कचरा हटाया जा सकता है।

मूर्ति विसर्जन के बाद नदी को साफ करने का इलाहाबाद हाइकोर्ट का आदेशसाल दर साल छोटे-बड़े शहरों से लेकर ग्राम की चौपाल तक दुर्गा महोत्सव और गणेश महोत्सव के नाम पर सैकड़ों मूर्तियों की बढ़ती हुई संख्या ने नदियों के भविष्य पर खतरा पैदा कर दिया है। क्या हम विचार एक मत से मूर्तियों की संख्या में कमी नहीं कर सकते, क्या देवियों के स्वरूप को सात फिट की बजाय कम नहीं किया जा सकता। आस्था और भगवान तो पत्थर में भी बसते हैं, बस देखने का नज़रिया अलग-अलग होता है।

क्या हम विकल्प रूप में आटे या बेसन या समाचार पत्र की लुगदी से ईको फ्रेंडली मूर्तियां पीओपी के बजाए तैयार नहीं कर सकते हैं, जो नदी या तालाब में प्रदूषण को कम करके बेसन और आटे के बहाने जलचर को भोजन उपलब्ध करा सकती है।

मूर्ति विसर्जन के बाद नदी को साफ करने का इलाहाबाद हाइकोर्ट का आदेशबुंदेलखंड के बांदा जिले में प्रत्येक वर्ष की भांति इस वर्ष भी युवा साथियों ने केन में मूर्ति विर्सजन के पश्चात फैली गंदगी को निकालकर बाहर किया। साथ ही ग्राम कानाखेड़ा में सूर्यपाल सिंह चौहान की अगुवाई में एक मूर्ति का भूमि विसर्जन भी कराया गया है। वहीं स्थानीय संगठन प्रवास सोसाइटी ने गंगा-यमुना पर दिए गए उच्च न्यायालय के आदेश को आधार बनाकर चित्रकूट की मंदाकिनी, बांदा की केन, हमीरपुर की बेतवा और यमुना पर मूर्ति विसर्जन रोक के लिए एक जनहित याचिका दाखिल की है। नदियों से जुड़े पर्यावरण मित्र और लोग गाहे-बगाहे समाज में पुरानी रूढ़िगत प्रथाओं को बदलने के लिए ऐसे सुखद कार्य करते हैं यह और बात है कि समाज का एक वर्ग उन्हें हिंदु विरोधी करार देता है। पर हर अंधेरे की तरह इस रात की भी सुबह होगी, इस उम्मीद के साथ दिया जलाना लाज़मी है।

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अवैध खनन के इस खेल में सब तर-बतर हैं

Author: 
आशीष सागर दीक्षित
बुंदेलखंड के सभी जनपदों से सालाना बालू और पत्थर खनिज से 510 करोड़ रूपए राजस्व की वसूली होती है। सीएजी की रिपोर्ट 2011 पर नजर डाले तो 258 करोड़ रुपए सीधे राजस्व की चोरी की गई है। वहीं वन विभाग की लापरवाही से जारी की गई एनओसी के बल पर वर्ष 2009 से 2011 के मध्य जनपद महोबा, हमीरपुर, ललितपुर में परिवहन राजस्व वन विभाग को न दिए जाने के चलते सरकार को 3 अरब की राजस्व क्षति का ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ा है।
सोनभद्र के खनिज विभाग की ओर से सूचना का अधिकार अधिनियम 2005 के तहत मुहैया कराई गई जानकारी पर गौर करें तो यहां डोलो स्टोन, सैंड स्टोन बालू और मोरम के खनन और स्टोन क्रेसर प्लांटों के संचालन में अवैध खनन की पुष्टि हुई है। (केंद्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय, उच्चतम न्यायालय, उत्तर प्रदेश वन विभाग, उत्तर प्रदेश शासन, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और जिला प्रशासन की विभिन्न जांच रिपोर्ट में अवैध खनन, अवैध परिवहन और स्टोन क्रेसर प्लांटों के मानक विपरीत चलने का भी जिक्र होता रहता है।) खनन के गोरखधंधे में राज्य की सत्ता में काबिज समाजवादी पार्टी, मुख्य विपक्षी पार्टी बहुजन समाज पार्टी, अखिल भारतीय कांग्रेस पार्टी, भारतीय जनता पार्टी के कई वर्तमान विधायकों और सांसदों के साथ-साथ अनेक राजनेता और आपराधिक छवि के लोग शामिल हैं।

तत्कालीन जिला खान अधिकारी सोनभद्र एसके सिंह द्वारा 8 अक्टूबर 2013 को इस संवाददाता को उपलब्ध कराई गई जानकारी पर विश्वास करें तो उत्तर प्रदेश सरकार को हर साल खनन से 27,198 करोड़ रुपए का राजस्व देने वाले सोनभद्र में कुल डोलो स्टोन के 101 सैंड स्टोन के 86 और बालू/मोरम के 13 खनन पट्टे स्वीकृत हैं। हालांकि भौतिक स्तर पर इस खनन पट्टों की संख्या एक हजार के करीब है। शासन द्वारा स्वीकृत इन खनन पट्टों में कई राजनेता, पत्रकारों और उनके रिश्तेदार हैं।

घोरावल विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से विधायक और सपा नेता रमेशचंद्र दुबे की कंपनी श्री रमेशचंद्र एंड कंपनी के नाम से बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र में अराजी संख्या 7573 की 1.5 एकड़ भूमि पर डोलो स्टोन का खनन पट्टा है। वह इस भूमि पर 19 सितंबर 2006 से खनन करा रहे हैं। शासन ने उन्हें 17 सितंबर 2016 तक इस भूमि पर खनन करने की छूट दे रखी है। हालांकि उन्होंने इस भूमि पर अब तक कितना खनन किया है और वह निर्धारित मानक से ज्यादा है या कम, यह जिला प्रशासन को पता नहीं है। इसके अलावा सपा विधायक रमेशचंद्र दुबे की पत्नी श्रीमती अंजना दुबे के नाम पर स्वीकृत खनन क्षेत्र में अराजी संख्या 310/4 की 6.20 एकड़ भूमि पर सैंड स्टोन का खनन पट्टा है। इसकी वैधता 30 अगस्त 2008 से 29 अगस्त 2018 तक है। वहीं घोरवल विधायक रमेश चंद्र दुबे के भाई श्री राजन दुबे की पत्नी करुणा दुबे के नाम से स्वीकृत खनन क्षेत्र में अराजी संख्या 312 मि. की 3.72 एकड़ भमि पर सैंड स्टोन का खनन पट्टा है इसकी वैधता भी अंजना दुबे के खनन पट्टे के अवधि के बराबर है।

सपा नेता और उत्तर प्रदेश समाजवादी व्यापार प्रकोष्ठ के प्रदेश सचिव रमेशचंद्र वैश्य के फर्म में रबिशा स्टोन प्रोडक्ट के नाम से बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र में अराजी संख्या 4920, 4921, 4922, 4924 की कुल भूमि 1.75 एकड़ डोलो स्टोन का खनन पट्टा आवंटित हैं। श्री वैश्य की कंपनी इस भूमि पर 4 जनवरी 2007 से खनन का काम कर रही है, जो 3 जनवरी 2017 तक करती रहेगी। हालांकि इस कंपनी ने जमीनी स्तर पर कितना खनन और परिवहन किया है इसकी जानकारी विभाग के पास मौजूद नहीं है। इसके अलावा श्री वैश्य की पत्नी श्री मती बिंदों देवी के नाम से रजिस्टर्ड फर्म में शिवम स्टोन प्रोडक्ट बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र में आरजी संख्या 4949 ख की 2.0 एकड़ भूमि पर 13 दिसंबर 2010 से डोलो स्टोन का खनन एवं परिवहन कर रही है। शासन की ओर से उसे 12 दिसंबर 2020 तक खनन करने का लाइसेंस मिला हुआ है। अगर जमीनी स्तर पर उक्त भूमि पर हुए डोलो स्टोन के खनन और उसके परिवहन के लिए जारी एमएम-11 परमिट पर हुए निकासी के मामलों की जांच की जाए तो इसमें भारी अनियमितताएँ सामने आएंगी।

सपा नेता और चोपन नगर के पंचायत अध्यक्ष इम्तियाज अहमद के नाम से बर्दिया खनन क्षेत्र में अराजी संख्या-902, 903 और 941 क की कुल 1.58 एकड़ भूमि पर मिर्जापुर जनपद के चौकिया गांव निवासी अलगू सिंह के पुत्र अवधेश सिंह और वाराणसी जनपद के पांडेयपुर निवासी श्रीमती केशमनी देवी के साथ 13 दिसंबर 2010 से डोलो स्टोन का खनन और परिवहन कर रहे हैं। इस सभी लोगों को 12 दिसंबर 2010 तक उक्त भूमि पर खनन करने का अधिकार है। इसके अलावा सपा नेता इम्तियाज अहमद के भाई उस्मान अली के नाम से बर्दिया खनन क्षेत्र में ही अराजी संख्या 878 क की 1.30 भूमि पर डोलो स्टोन के खनन का पट्टा आवंटित है। उन्हें यह खनन पट्टा भी उक्त खनन पट्टे की अवधि के बराबर की अवधि के लिए मिला है। वहीं बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र में ही अराजी संख्या 7364 ख, 7365 और 7366 की 3 एकड़ भूमि पर चोपन नगर पंचायत अध्यक्ष अन्य लोगों के साथ मिलकर खनन करा रहे हैं। इसकी अवधि भी उपरोक्त अवधि के बराबर ही है।

बलिया के रसड़ा विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र से विधायक और बसपा नेता उमाशंकर सिंह की कंपनी सीएस इंफ्राकंस्ट्रक्शन लिमिटेड (छात्र शक्ति इंफ्राकंस्ट्रक्शन लिमिटेड) बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र के अराजी संख्या 6229 ख की 1.50 एकड़ भूमि पर 13 मार्च 2010 से डोलो स्टोन का खनन कर रही है। उत्तर प्रदेश की पूर्व बसपा सरकार ने रसड़ा विधायक की कंपनी को 12 मार्च 2020 तक डोलो स्टोन के खनन और परिवहन का अधिकार दे रखा है। इसके अलावा बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र में ही अराजी संख्या 4478 छ की 2.50 एकड़ भूमि पर विधायक उमाशंकर सिंह के नाम से डोलो स्टोन का एक अन्य खनन पट्टा है। इस खनन पट्टे की अवधि भी उक्त खनन पट्टे की अवधि के बराबर है। गौर करने वाली बात यह है कि बसपा विधायक उमाशंकर सिंह की कंपनी छात्र शक्ति इंफ्राकंस्ट्रक्शन लिमिटेड कंपनी ने बसपा की पिछली सरकार में सोनभद्र में लोक निर्माण विभाग से होने वाले अधिकतर सड़क निर्माण के कार्य को अंजाम दिया है, लेकिन व सभी सड़क मार्ग बनने के दौरान ही उखड़ने लगे थे। ये बातें जिला प्रशासन की जांच रिपोर्ट में सामने भी आ चुकी हैं।

बसपा नेता और राबर्टसगंज विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र के पूर्व विधायक सत्यनारायण जैसल की पत्नी श्रीमती मीरा जैसल स्वीकृत खनन क्षेत्र में अराजी संख्या 282 मि. की 4.00 एकड़ भूमि पर 6 अगस्त 2010 से सैंड स्टोन का खनन करवा रहीं है। बसपा की पिछली सरकार ने उन्हें 5 अगस्त 2020 तक इस भूमि पर खनन करने का अधिकार दे रखा है। हालांकि वहां खनन के दौरान सुरक्षा मानकों की जमकर अनदेखी की जा रही है। इतना ही नहीं एमएम 11 परमिट जारी करने की तुलना में खनन का दायरा बहुत कम है। हालांकि इसकी सही जानकारी जिला प्रशासन के पास मौजूद नहीं है।

बसपा नेता और मिर्जापुर-भदोही लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र के पूर्व सांसद नरेंद्र कुशवाहा की पत्नी श्री मती मालती देवी कोटा खनन क्षेत्र में सोन नदी से लगे अराजी संख्या 3984 ग और 3984 घ की 1.50 एकड़ भूमि पर बालू का खनन 23 जुलाई 2011 से करवा रही हैं। बसपा की सरकार ने उन्हें 22 जुलाई 2014 तक बालू खनन और उसके परिवहन का लाइसेंस दे रखा है, लेकिन सुरक्षा मानकों की अनदेखी पर कोई ध्यान नहीं दिया। वर्तमान सपा सरकार भी वैसा ही कर रही है। बता दे कि नरेंद्र कुशवाहा वेबसाइट कोबरा पोस्ट डॉट कॉम और हिंदी न्यूज चैनल आज तक के संयुक्त स्टिंग ऑपरेशन कैश फॉर क्वैरी में आरोपी है, जिसमें सांसदों द्वारा नोट लेकर प्रश्न पूछने का मामला सामने आया था।

इनके अलावा बसपा नेता और राजगढ़ विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र के पूर्व विधायक अनिल मौर्या के भतीजे संजीव कुमार मौर्या के नाम से सिंदुरिया खनन क्षेत्र में अराजी संख्या 240 के 1.30 हेक्टेयर भूमि पर बिल्ली मारकुंडी निवासी श्री मती बरमावती देवी के साथ डोलो स्टोन का खनन पट्टा है। वे इस पर 31 अक्टूबर 2011 से खनन और उसके अवयवो का परिवहन कर रहे हैं। इस भूमि पर खनन की स्वीकृत 24 अक्टूबर 2021 तक है।

उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सदस्य राहुल श्रीवास्तव की पत्नी श्री मती निरंजना श्रीवास्तव बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र में अराजी संख्या 4478 छ की 1.78 एकड़ भूमि पर 4 अक्टूबर 2011 से डोलो स्टोन का खनन और उसके अवयवों का परिवहन करवा रही है। राज्य सरकार की ओर से उन्हें 3 अक्टूबर 2021 तक ऐसा करने का अधिकार मिला हुआ है। श्रीमती श्रीवास्तव पूर्व में हिंदी दैनिक स्वतंत्र भारत से मान्यता प्राप्त पत्रकार रह चुकी हैं। उनके पति राहुल श्रीवास्तव भी हिंदी दैनिक हिंदुस्तान से मान्यता प्राप्त पत्रकार रह चुके हैं। वर्तमान में वह हिंदी दैनिक जनसंदेश टाइम्स के सोनभद्र ब्यूरो प्रमुख हैं। बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र में श्रीवास्तव परिवार का स्टोन केशर प्लांट भी संचालित होता है।

खनन के क्षेत्र में लिप्त अन्य पत्रकारों की बात करें तो इस सूची में कई प्रतिष्ठित अखबारों के प्रतिनिधि शामिल हैं। दैनिक जागरण समाचार पत्र के पूर्व ओबरा प्रतिनिधि बशीर बेग जिनका देहांत हो चुका है के नाम से बिल्ली-मारकुंडी खनन क्षेत्र में साबिक अराजी संख्या 1966 और हाल अराजी संख्या 4478 की कुल 7.55 एकड़ भूमि पर डोलो स्टोन का खनन पट्टा 17 फरवरी 2011 से 16 फरवरी 2021 तक आवंटित है।

स्व. बशीर बेग के बेटे दारा शिकोह का गैर सरकारी संगठन में दारा सेवा समिति बिल्ली मारकुंडी खनन क्षेत्र में ही अराजी संख्या 7577 क की 1.70 एकड़ भूमि पर 17 मई 2007 से डोलो स्टोन का खनन कर रहा है। यह संगठन 16 मई 2017 तक उक्त भूमि पर खनन के कार्य को अंजाम दे सकता है। इसके अलावा स्व. बशीर बेग के भाई जावेद बेग का फर्म दारा स्टोन वर्क्स बिल्ली मारकुंडी खनन क्षेत्र में अराजी संख्या 1950की 0.31 एकड़ भूमि पर डोलो स्टोन का खनन और परिवहन कर रहा है। इस खनन का विस्तार 29 अक्टूबर 2008 को हुआ जो इस साल की 5 नवंबर तक मान्य है। अगर इस खनन पट्टे के नाम पर जीएमएम 11 परमिट के आयतन की गणना की जाए तो वह आवंटित खनन पट्टे के रकबे से कहीं ज्यादा होगी, जो गौर कानूनी है। इनके अलावा अन्य कई खनन पट्टा धारक है जो प्रतिष्ठित समाचार पत्रों के प्रतिनिधि बनकर इलाके में खनन के धंधे को अवैध रूप से अंजाम देते हैं।

कुछ यूं ही बुंदेलखंड के जनपद बांदा में सपा जिलाध्यक्ष शमीम बांदवी और खनन सिंडीकेट माफिया सीरजध्वज सिंह की अगुवाई में केन नदी के सीने को चीरकर लाल सोना निकाला जा रहा है। सरकार चाहे किसी की भी हो बुंदेलखंड का सिंडीकेट सीरजध्वज सिंह के हाथ में रहता है आखिर बेईमानी के धंघे में ईमानदारी करना उनका एक हुनर है। इसी तरह जनपद जालौन के ग्राम पथरेहटा के गाटा संख्या 656, 655 में अवैध बालू खनन रोकने के लिए कई बार स्थानीय किसान रामफल द्विवेदी ने शिकायती पत्र दिए लेकिन सपा समर्थित विधायक दीपनारायण यादव क्षेत्र गरौठा, अनीश खान, राजनाथ मिश्रा की तिकड़ी से बेतवा नदी और नदी से जुड़े खेतों में बालू का खनन बेखौफ किया जा रहा है।

उल्लेखनीय है कि बुंदेलखंड के सभी जनपदों से सालाना बालू और पत्थर खनिज से 510 करोड़ रूपए राजस्व की वसूली होती है। सीएजी की रिपोर्ट 2011 पर नजर डाले तो 258 करोड़ रुपए सीधे राजस्व की चोरी की गई है। वहीं वन विभाग की लापरवाही से जारी की गई एनओसी के बल पर वर्ष 2009 से 2011 के मध्य जनपद महोबा, हमीरपुर, ललितपुर में परिवहन राजस्व वन विभाग को न दिए जाने के चलते सरकार को 3 अरब की राजस्व क्षति का ख़ामियाज़ा भुगतना पड़ा है।

कहना गलत नहीं होगा कि उत्तर प्रदेश में सरकार के समानांतर एक और सरकार खनन माफियाओं की चलती है जो वास्तव में विधानसभा चलाते हैं। इनके दिए धन से पार्टी के टिकट और चुनाव के खर्चे तय होते हैं। जिसका आपराधिक चरित्र जितना बड़ा हो खनन के सिंडीकेट का बादशाह होता है और बाकी सब गुलाम।

विरासत में कर्ज ढोते मासूम बच्चे

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सपने को टूटता देखकर सुरेश यादव 18 जून को बच्चों को रात में सोता हुआ छोड़कर चला गया, कभी न वापस आने के लिए. उसके तीन बच्चों के पास पिता के अंतिम संस्कार का भी पैसा नहीं था, लेकिन गाँव वालों के चंदे से पिता का अंतिम संस्कार किया...
आशीष सागर दीक्षित
बुंदेलखंड में कर्जदार किसानों द्वारा आत्महत्या किये जाने की एक लम्बी फेहरिस्त है, लेकिन कुछ किसान कर्ज से ऐसे टूटे कि जिंदगी के छूटने के साथ सबकुछ बिखर गया है. बच्चे अनाथ हुए और खेती की जमीन बैंक में गिरवी हो गई.
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अपनी छोटी बहनों के साथ विकास
ऐसा ही एक किसान का परिवार यानी बच्चे उसकी मौत के बाद विरासत में मिले कर्ज का बोझ ढो रहे हैं. इतना ही नहीं गाँव के साहूकारों की दबिश ने अनाथ बच्चों का जीना भी दुर्भर कर दिया. इनको माता–पिता का प्यार तो नसीब नहीं हुआ, लेकिन विरासत में कर्ज का दंश जरूर मिल गया है.
दो बीघा बैक में गिरवी रखी जमीन पर तीन बच्चों का गुजारा कैसे होगा ये अब बड़ा सवाल था? सबसे बड़े भाई विकास के सामने दो अपनी दो छोटी बहनों संगीता और अन्तिमा की परवरिश का सवाल भी मुंह बाये खडा है. उस मासूम के लिये अपने परिवार यानी खुद और दो छोटी बहनों की रोटी का जुगाड कर पाना भी मुश्किल था. सवाल था कि ऐसे हालात में वह बैंक का ब्याज सहित कर्ज कैसे चुकायेगा. मगर विकास हिम्मत न हारते हुए अपनी दो बीघा बंधक रखी खेतिहर जमीन को मुक्त कराने की कवायद में संघर्षरत है.
बुंदेलखंड के किसानों के लिए ही नहीं, बल्कि अन्य प्रान्तों के कर्जदार किसान परिवारों के लिए भी जनपद बाँदा जिले के ग्राम बघेलाबारी दस्यु प्रभावित नरैनी के ये तीन बच्चे मिसाल हो सकते हैं. 18 जून 2011 को बघेलाबारी के किसान सुरेश यादव ने किसान क्रेडिट कार्ड से लिये 21 हजार रुपया कर्ज के चलते अपने ही खेत में दम तोड़ दिया.
मृतक किसान सुरेश यादव ने 2 बीघा जमीन त्रिवेणी ग्रामीण बैंक, फतेहगंज में गिरवी रख यह कर्ज लिया था और 13 हजार रुपये गाँव के साहूकार से भी. सुरेश यादव के पास कुल 4 बीघा जमीन थी, जिसमें 2 बीघा जमीन उसने अपनी पत्नी सरस्वती के कैंसर इलाज में बेच दी थी. जमीन बेचने के बावजूद वह अपनी पत्नी को नहीं बचा पाया था.
अब ये तीन बच्चे ही किसान का सपना थे, पर शायद किस्मत को ये भी मंजूर नहीं था. गरीबी से कर्जदार किसान टीवी का शिकार हो गया. इलाज तो दूर की बात, घर में बच्चों को रोटी खिला पाना भी उसके लिए बड़ी बात हो गयी. वैसे भी सूखे बुंदेलखंड की 2 बीघा जमीन में होता भी क्या है?
अपने सपने को टूटता देखकर सुरेश यादव 18 जून को बच्चों को रात में सोता हुआ छोड़कर चला गया, कभी न वापस आने के लिए. उसके तीन बच्चों के पास पिता के अंतिम संस्कार का भी पैसा नहीं था, लेकिन गाँव वालों के चंदे से ये सब मुनासिब हुआ. जिंदगी के असली संघर्ष की कहानी तो विकास के सामने पिता की मौत के बाद शुरू हुई.
पिता की मौत के वक्त विकास 16 वर्ष का था, जब उसको अपने अधिकारों और बहनों के लालन–पालन के लिए शासन की देहरी में नतमस्तक होना पड़ा. वह अपने अधिकारों के लिये 5 दिन के आमरण अनशन पर बैठा, तब जाकर उसको आधा–अधूरा एक इन्दिरा आवास वो भी बिना छत का और 20 हजार रुपये की सरकारी मदद मिली, लेकिन उसकी बहनों को ममता का आसरा नहीं मिला, जीवन जीने कि गारंटी नहीं मिली, स्कूल में दाखिला भी नहीं मिला. सामाजिक ताना–बाना नहीं मिला.
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विकास : बहनों की जिम्मेदारी के साथ-साथ पिता का कर्ज़ चुकाने की भी चुनौती
ग्राम प्रधान तक ने इन मासूमों का साथ छोड दिया. अपने तो कब का साथ छोड चुके थे. आज विकास अपने पिता की मृत्यु के दो साल बाद अपने साथ दो बहनों की पढाई का खर्च, बहन संगीता की शादी (16 वर्ष) के सपने आँखों में पालकर छोटी बहिन अन्तिमा को पूरी ईमानदारी से जीवन के मायने समझाता है.
बारहवीं की पढाई करने के साथ विकास खुद से खेती करता है और एक स्कूल श्रीशिवशरण कुशवाहा बिरोना बाबा समिति, छितैनी में पार्टटाइम पढ़ाता भी है. इसके लिए वो प्रतिदिन 20 किलोमीटर साईकिल से यात्रा करता है. विकास खुद बिना कोचिंग के अध्यापक के घर पर शाम को ही पढता है. कोचिंग के लिए उसके पास रुपया नहीं है और इंटर तक के उसके सरकारी स्कूल में बच्चों को पढ़ाने के लिए अध्यापक नहीं हैं.
उसकी बड़ी बहन संगीता 9वीं और अन्तिमा तीसरी की छात्रा है. पर पिता का कर्ज अब 30 हजार रुपये ब्याज के कारण हो गया है और 13 हजार साहूकार का बकाया भी देना है. इन कठिन पलो में उसके लिए अपने और बहनों के सपने अभी भी एक अनबूझ पहेली ही हैं, जिंदगी की तरह.

रसिन बांध से किसानो को पानी नही , होता है मछली पालन !

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आशीष सागर दीक्षित -
चित्रकूट, बुंदेलखंड पैकेज के 7266 करोड़ रुपए के बंदरबांट की पोल यूं तो यहां बने चेकडेम और कुंए ही उजागर कर देते हैं, लेकिन पैकेज के इन रुपयों से किसानों की जमीन अधिग्रहण कर बनाए गए बांध से किसानों को सिंचाई के लिए पानी देने का दावा तक साकार नहीं हो सका. चित्रकूट जनपद के रसिन ग्राम पंचायत से लगे हुए करीब एक दर्जन मजरों के हजारों किसानों की कृषि जमीन औने-पौने दामों में सरकारी दम से छीनकर उनको सिंचाई के लिए पानी देने के सब्जबाग दिखाकर पैकेज के रुपयों से खेल किया गया. DSC01345
उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग के मातहत बने चौधरी चरण सिंह रसिन बांध परियोजना की कुल लागत 7635.80 लाख रुपए है, जिसमें बुंदेलखंड पैकेज के अंतर्गत 2280 लाख रुपए पैकेज का हिस्सा है, शेष अन्य धनराशि अन्य बांध परियोजनाओं के मद से खर्च की गई है. बांध की कुल लंबाई 260 किमी है और बांध की जलधारण क्षमता 16.23 मि. घनमीटर है. वहीं बांध की ऊंचाई 16.335 मीटर और अधिकतम जलस्तर आरएल 142.5 मीटर, अधिकतम टॉपस्तर आरएल 144 मीटर बनाई गई है. इस बांध से जुड़े नहरों की कुल लंबाई 22.80 किमी आंकी गई है.
किसानों के लिए प्रस्तावित बुंदेलखंड की 2 फसलों रवी और खरीफ के लिए क्रमशः 5690 एकड़, 1966 एकड़ जमीन सिंचित किए जाने का दावा किया गया है, लेकिन एक किसान नेता के नाम पर बने इस रसिन बांध की दूसरी तस्वीर कुछ और ही है. जो कैमरे की नजर से बच नहीं सकी. जब इस बांध की बुनियाद रखी जा रही थी तब से लेकर आज तक रह-रहकर किसानों की आवाजें मुआवजे और पानी के विरोध स्वरों में चित्रकूट मंडल के जनपद में गूंजती रहती है. अभी भी कुछ किसान इस बांध के विरोध में जनपद चित्रकूट में आमरण अनशन पर बैठे हैं. उनकी कहना हैं कि न तो हमें मुआवजा दिया गया और ना ही खेत को पानी. उल्लेखनीय है कि बुंदेलखंड पैकेज से बने रसिन बांध में किसानों की जमीन लेकर मुआवजा नहीं मिलने के चलते वर्ष 2012 को रसिन के ही बृजमोहन यादव ने अपनी बहन के ब्याह की चिंता में आत्महत्या कर ली थी. उसकी जमीन अन्य किसानों की तरह डूब क्षेत्र में थी.
DSC01348किसान आत्महत्या होने के एक माह पूर्व योजना आयोग उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह आहलूवालिया बुंदेलखंड दौरे पर रसिन बांध को देखने आए थे. गर्मी के दिनों में इस बांध को भरने के लिए सिंचाई विभाग के आला-अधिकारियों ने बांध को भरा दिखाने के चक्कर में जनरेटर लगाकर टैकरों के माध्यम से पानी भरा था और आहलूवालिया को भरा हुआ बांध दिखाकर चलता कर दिया. जबकि इलाहाबाद राष्ट्रीय राजमार्ग एनएच 76 पर 8 सैकड़ा किसान उनसे मिलने की कवायद में अपनी गुहार के साथ सड़क जाम किए थे, पर उन्हें निराशा ही हाथ लगी. ठीक एक महीने बाद बृजमोहन यादव की खुदकुशी और रसिन नहर के पहली ही बरसात में बह जाने से इस बांध की बुनियाद पर ही सवाल खड़े हो चुके हैं. bord 2
संवाददाता द्वारा 28 अक्टूबर 2013 को बांध को देखा गया तो रसिन बांध के मेन फाटक के उत्तर दिशा में बनी नहर के टेल तक पानी नहीं था. इस डैम में कुल 5 फाटक हैं जो इसी नहर की तरफ खुलते हैं. किसानों को इस बांध में जमीन जाने के बाद सिंचाई के लिए पानी भले ही न मिला हो, लेकिन सरकार को इससे मछली पालन का पट्टा उठाने के नाम पर राजस्व जरूर मिलने लगा है. बुंदेलखंड पैकेज के 7266 करोड़ रुपए इसी तरह ललितपुर और चित्रकूट में चेकडैम और कुएं बनाकर उड़ा दिए गए तो वहीं वन विभाग भी इससे पीछे नहीं रहा. इस विभाग में भी फतेहगंज थाना क्षेत्र की ग्राम पंचायत डढ़वामानपुर में पैकेज की धनराशि से किसानों की जमीन की सिंचाई के लिए 15 ड्राई चेकडैम का निर्माण कार्य 2471.18 हैक्टेयर व 39 हैक्टेयर जमीन पर 468200 रुपए की लागत से कराया गया है. कोल्हुआ के जंगल में बने इन 15 चेकडैमों की हालत बदसूरत ही नहीं बल्कि बेरंग भी है जो किसानों के लिए सींच का साधन नहीं भ्रष्टाचार की बानगी बनकर रह गई है. बुन्देलखंड पैकेज के रसिन बांध का मॉडल भी कुछ इसी तर्ज पर है.