Wednesday, November 27, 2013


‘मिसिंग शौचालय’ बांदा में

Author: 
आशीष सागर दीक्षित
Missing Toilet in Bandaबांदा, उत्तर प्रदेश। प्रदेश भर में सरकारी अनुदान से बनाये गए शौचालयों के हाल, बेहाल हैं। इनमें किया गया भ्रष्टाचार अपने आप में इनके पारदर्शिता पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करता है। बात चाहे केन्द्र सरकार के निर्मल भारत अभियान की हो या फिर सम्पूर्ण स्वक्छ्ता अभियान की। जिन गांवों को निर्मल गाँव की श्रेणी में चुना गया, सर्वाधिक घाल–मेल भी उन्हीं गांवों की सड़क और पगडण्डी में देखने को मिला। आप बुंदेलखंड के किसी भी नेशनल हाइवे से जुड़े गांव की सड़क पर सफ़र में सुबह निकलें तो सहज ही ‘मेरा भारत महान’ की बदबूदार तस्वीर से रूबरू हो जायेंगे। घरों में देहरी के अन्दर लम्बा सा घूँघट निकालने को बेबस महिला यहाँ आम सड़क के किनारे सबेरे-सबेरे और संध्या में एक अदद आड़ के लिए भी तरसती नजर आती है। इनके लिए यह ही कहना पड़ता है कि – “मैं नंगे पैर चलती हूँ, खेत की पगडण्डी पर लोटा लिए, कहीं तो आड़ मिल जाये, इज्जत छुपाने के लिए!“

सरकारी कार्यक्रम से इतर गाँव में शौचालय कि समस्या से निजात दिलाने की कवायद में कुछ कदम देश की बड़ी अनुदान (फंडिंग एजेंसी) संस्था ने उठाया है। मगर ये देशी–विदेशी फंडिंग एजेंसी स्थानीय स्तर पर जिन एनजीओ को इसके क्रियान्वयन के लिए चयनित करती हैं उनकी नीयत साफ नहीं होती है। बुंदेलखंड के अतर्रा में कार्यरत अभियान संस्था के संचालक अशोक श्रीवास्तव भी वाटरएड-इंडिया और जायका से लाखों रूपये कागजों पर खर्च कर चुके हैं। सूचना अधिकार में प्राप्त जानकारी से जो तथ्य हासिल हुये हैं, वह ‘अभियान’ के भ्रष्टाचार अभियान को पुख्ता करते से लगते हैं।

ग्राम पंचायत उदयपुर निवासी ब्रजमोहन यादव ने संस्था से गांव में संपूर्ण स्वच्छता कार्यक्रम के तहत बनाये गये शौचालय, हैंडपंप व अन्य निर्माण के संबंध में जानकारी मांगी थी। जो सूचना दी गयी उसमें लिखा गया कि संस्था को वाटरएड-इंडिया से 2 करोड़ 99 लाख रूपये प्राप्त हुए। संपूर्ण स्वच्छता कार्यक्रम के तहत संस्था ने गांव में कोई शौचालय नहीं बनवाया है जब कि सूचना से इतर संस्था के कार्य क्षेत्र में लगे हुये बैनर दर्शाते हैं कि वर्ष 2004 से 2007 के बीच 64 शौचालय बनाये गये हैं। प्रति शौचालय 2250 रुपये अनुदान राशि की जगह ग्रामीणों को 500 रुपये व दो बोरी सीमेंट व कुछ इंटें देकर मामला चलता कर दिया गया। उदयपुर में वाटरएड के सहयोग से बनाये गये किचन गार्डन, वर्मी कम्पोस्ट और संस्था द्वारा संचालित कर्मयोग विद्यापीठ संस्था के किये गये कारनामों की पोल खोलता है। कर्मयोग विद्यापीठ 2007 तक चलाया गया। इसके पश्चात संस्था के संचालक अशोक श्रीवास्तव के करीबी व्यक्ति का उसमें कथित कब्जा है। विद्यालय भवन के अंदर कटाई मशीन, गृहस्थी का सामान इस बात का प्रमाण है। बडा सवाल यह है कि यदि संस्था ने इस गांव में शौचालय नहीं बनवाये थे तो उसके कार्य क्षेत्र में बैनर व गांव वालों के बयानों को क्या समझा जाये। स्वयंसेवी संगठनों के बारे में बांदा जिले के समाजिक कार्यकर्ता उमाशंकर पांडेय (सूचनाअधिकारी श्री रामभद्राचार्य विकलांग विश्वविद्यालय, चित्रकूट) बेबाकी से कहते हैं कि इन संस्थाओं को राज और केन्द्र सरकार द्वारा अनुदान राशि जारी करने से पहले इनकी तफ्तीश करना चाहिये। आयकर और एफसीआरए में पंजीकृत एनजीओ को जो पैसा दिया जा रहा है वह धरातल पर क्यों नही खर्च किया जाता इसकी जांच होनी चाहिये। जांच एजेन्सी निष्पक्ष व राज्य व केन्द्र सरकार के दायरे से बाहर हो, सीबीआई जैसी एजेन्सी नहीं, जो केन्द्र सरकार के इशारे पर काम करती हो।

अब सवाल ऐसे में ये ही उठता है कि सरकारी और गैरसरकारी जब दोनों की नियत में खोट हो तो भला गांव के किसान, गरीब आदमी के हकदारी की बातें क्या मंजिल तक पहुँच पांयेंगी? आज बिना जाँच–पड़ताल के फंडिंगएजेंसियों के दिए गये पैसे संस्थाओं के निज-हित का संसाधन जुटाने वाले पैकेज मात्र रह गए हैं। जिस संस्था का इंफ्रास्ट्रक्चर जितना मजबूत है वो ही बड़ा दलाल। जाने क्यों दानदाता अथवा फंडिंग एजेंसियों के प्राथमिकता में नीयत शब्द नहीं आता।

Missing Toilet in Banda



Missing Toilet in Banda

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"किसी राष्ट्र की महानता और नैतिक प्रगति को इस बात से मापा जाता है कि वह अपने यहां जानवरों से किस तरह का सलूक करता है"- मोहनदास करमचन्द गाँधी

रसिन बाँध पर मछलियों के सौदागरों का कब्ज़ा


रसिन बांध से किसानों को पानी नहीं, होता है मछली पालन !

बुंदेलखंड से आशीष सागर दीक्षित  रिपोर्ट- 
चित्रकूट। बुंदेलखंड पैकेज के 7266 करोड़ रुपए के बंदरबांट की पोल यूं तो यहां बने चेकडेम और कुंए ही उजागर कर देते हैं, लेकिन पैकेज के इन रुपयों से किसानों की जमीन अधिग्रहण कर बनाए गए बांध से किसानों को सिंचाई के लिए पानी देने का दावा तक साकार नहीं हो सका। चित्रकूट जनपद के रसिन ग्राम पंचायत से लगे हुए करीब एक दर्जन मजरों के हजारों किसानों की कृषि जमीन औने-पौने दामों में सरकारी दम से छीनकर उनको सिंचाई के लिए पानी देने के सब्जबाग दिखाकर पैकेज के रुपयों से खेल किया गया। 
उत्तर प्रदेश सिंचाई विभाग के मातहत बने चैधरी चरण सिंह रसिन बांध परियोजना की कुल लागत 7635.80 लाख रुपए है, जिसमें बंदेलखंड पैकेज के अंतर्गत 2280 लाख रुपए पैकेज का हिस्सा है, शेष अन्य धनराशि अन्य बांध परियोजनाओं के मद से खर्च की गई है। बांध की कुल लंबाई 260 किमी है और बांध की जलधारण क्षमता 16.23 मि. घनमीटर है। वहीं बांध की ऊंचाई 16.335 मीटर और अधिकतम जलस्तर आरएल 142.5 मीटर, अधिकतम टापस्तर आरएल 144 मीटर बनाई गई है। इस बांध से जुड़े नहरों की कुल लंबाई 22.80 किमी आंकी गई है। 
किसानों के लिए प्रस्तावित बुंदेलखंड की 2 फसलों रवी और खरीफ के लिए क्रमशः 5690 एकड़, 1966 एकड़ जमीन सिंचित किए जाने का दावा किया गया है, लेकिन एक किसान नेता के नाम पर बने इस रसिन बांध की दूसरी तस्वीर कुछ और ही है। जो कैमरे की नजर से बच नहीं सकी। जब इस बांध की बुनियाद रखी जा रही थी तब से लेकर आज तक रह-रहकर किसानों की आवाजें मुआवजे और पानी के विरोध स्वरों में चित्रकूट मंडल के जनपद में गूंजती रहती है। अभी भी कुछ किसान इस बांध के विरोध में जनपद चित्रकूट में आमरण अनशन पर बैठे हैं। उनकी कहना हैं कि न तो हमें मुआवजा दिया गया और ना ही खेत को पानी। उल्लेखनीय है कि बुंदेलखंड पैकेज से बने रसिन बांध मे किसानों की जमीन लेकर मुआवजा नहीं मिलने के चलते वर्ष 2012 को रसिन के ही बृजमोहन यादव ने अपनी बहन के ब्याह की चिंता में आत्महत्या कर ली थी। उसकी जमीन अन्य किसानों की तरह डूब क्षेत्र में थी। किसान आत्महत्या होने के एक माह पूर्व योजना आयोग उपाध्यक्ष मोटेक सिंह आहलूवालिया बुंदेलखंड दौरे पर रसिन बांध को देखने आए थे। गर्मी के दिनों में इस बांध को भरने के लिए सिंचाई विभाग के आला-अधिकारियों ने बांध को भरा दिखाने के चक्कर में जनरेटर लगाकर टैकरों के माध्यम से पानी भरा था और आहलूवालिया जी को भरा हुआ बांध दिखाकर चलता कर दिया। जबकि इलाहाबाद राष्ट्रीय राजमार्ग एनएच 76 पर 8 सैकड़ा किसान उनसे मिलने की कवायद में अपनी गुहार के साथ सड़क जाम किए थे, पर उन्हें निराशा ही हाथ लगी। ठीक एक महीने बाद बृजमोहन यादव की खुदकुशी और रसिन नहर के पहली ही बरसात में बह जाने से इस बांध की बुनियाद पर ही सवाल खड़े हो चुके हैं। 
संवाददाता द्वारा 28 अक्टूबर 2013 को बांध को देखा गया तो रसिन बांध के मेन फाटक के उत्तर दिशा में बनी नहर के टेल तक पानी नहीं था। इस डैम में कुल 5 फाटक हैं जो इसी नहर की तरफ खुलते हैं। किसानों को इस बांध में जमीन जाने के बाद सिंचाई के लिए पानी भले ही न मिला हो, लेकिन सरकार को इससे मछली पालन का पट्टा उठाने के नाम पर राजस्व जरूर मिलने लगा है। बुंदेलखंड पैकेज के 7266 करोड़ रुपए इसी तरह ललितपुर और चित्रकूट में चेकडैम और कुएं बनाकर उड़ा दिए गए तो वहीं वन विभाग भी इससे पीछे नहीं रहा। इस विभाग में भी फतेहगंज थाना क्षेत्र की ग्राम पंचायत डढ़वामानपुर में पैकेज की धनराशि से किसानों की जमीन की सिंचाई के लिए 15 ड्राई चेकडैम का निर्माण कार्य 2471.18 हैक्टेयर व 39 हैक्टेयर जमीन पर 468200 रुपए की लागत से कराया गया है। कोल्हुआ के जंगल में बने इन 15 चेकडैमों की हालत बदसूरत ही नहीं बल्कि बेरंग भी है जो किसानों के लिए सींच का साधन नहीं भ्रष्टाचार की बानगी बनकर रह गई है। बुंदेलखंड पैकेज के रसिन बांध का माडल भी कुछ इसी तर्ज पर है।  
आशीष दीक्षित सागर 
ashishdixit01@gmail.com