Wednesday, October 08, 2014

एक बरगद भूल गया अपना मुख्य तना

प्रिय मित्रो,
नेचर का अदभुत करिश्मा देखिये -
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से 25 किलोमीटर दूर बक्क्षी के तालाब के पास माझी गांव में एक 200 वर्ष पुराना (अनुमानित) वटवृक्ष नया इतिहास लिख रहा है, 50 बीघे से अधिक क्षेत्र में फैला ये अक्षयवट अपनी लटों द्वारा 100 से ज्यादा तने बना चुका है और इसकी मुख्य पीढ़ (तना) खोजने से भी नहीं मिलती है। गोमती नदी के किनारे एक रमणीक स्थल को जन्म देने वाले इस वृक्षदेव के दर्शन करने प्रतिदिन सैकड़ों लोग दूर दूर से आते है और अपनी लम्बी उम्र की मन्नत मंगाते है।
वैसे तो देश के सभी प्राचीन और विशालकाय वृक्षों को मैंने देखा है लेकिन इस वृक्ष को देखकर कई अन्य विशेषताओं को जाना, इसकी शाखाएं प्रतिवर्ष 3 से 5 फुट विकसित हो रही है जो तुलनात्मक दृष्टि से अन्य सभी पेड़ों से ज्यादा है। विकसित होने की गति यही रही तो अगले 50 वर्षों में दुनिया का सबसे बड़ा तथा ज्यादा छत्र वाला इकलौता पेड़ होगा ये वटवृक्ष। 40 वर्षों से इसके नीचे साधुकुटीर में रह रही एक दक्षिण क्षेत्र की साध्वी का कहना है कि मेरी कुटिया पेड़ से अलग बनी थी जो अब शाखाओं के बीचोबीच घिर गयी है। लोग यहाँ पेड़ की पूजा करने आते है तथा यहाँ की मिट्टी और बीज के साथ इसका आशीर्वाद लेकर जाते है। अमूमन पुराने पेड़ को बूढ़ा बरगद कहा जाता है लेकिन इस पेड़ को जवान वटवृक्ष की उपाधि से नवाजा जाता है क्योंकि इसका कोई तना या शाखा खुरदरी छाल की नहीं है सभी शाखाये चिकनी और दुधारू है।
मेरा आपसे एक सादर निवेदन है कि मौका मिलने पर आप भी इस अनोखे बरगद के दर्शन करने का पुण्यलाभ प्राप्त करें, वैसे प्रकृति की लीला को समझना तो मुश्किल है परन्तु जानने की कोशिश तो करनी ही चाहिए।



एक बरगद भूल गया अपना मुख्य तना ।
- विजयपाल बघेल,

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