Sunday, November 30, 2014

पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी समझनी होगी: - प्रो. लोथार क्रिन्टिज


पर्यावरण में मानवीय दखल के कारण जीवों के प्राकृतिक आवास पर विपरीत असर पड़ रहा है, जिसके कारण जीव-जंतुओं की विभिन्न प्रजातियों का अस्तित्व खतरे में पड़ गया है। यह बात जर्मनी के लेबनीज इंस्टीट्यूट ऑफ फ्रेश वाटर इकोलॉजी एंड इनलैंड फिशरीज से जुडे़ मशहूर जीव विज्ञानी प्रो. लोथार क्रिन्टिज ने शनिवार को वर्धमान महावीर ओपन यूनिवर्सिटी (वीएमओयू) के गांधी भवन में आयोजित एक परिचर्चा में कही।
 प्रो. क्रिन्टिज ने राजस्थान के प्रसिद्ध केवलादेव पक्षी विहार समेत देश के विभिन्न स्थानों पर आने वाले फ्लेमिंगो (एक प्रवासी पक्षी) का हवाला देते हुए बताया कि विभिन्न मानवीय क्रियाकलापों के कारण इन पक्षियों के प्राकृतिक जलीय आवास खतरे में पड़ गए हैं। भोजन की तलाश एवं प्रजनन के लिए दूर देश से आने वाले फ्लेमिंगो विभिन्न जलस्रोतों को अपना आशियाना बनाते हैं। लेकिन झीलों एवं नदियों का पानी इस हद तक प्रदूषित हो गया है कि इसके असर से सुंदर पंखों वाले फ्लेमिंगो भी बच नहीं पाए हैं। 
झीलों के पानी में मौजूद विषैले तत्व फ्लेमिंगो के शरीर में भी जहर घोल रहे हैं और इसके प्रभाव से बचने के लिए उन्हें खुद को अनुकूलित करना पड़ता है। प्रो. लोथार ने बताया कि झीलों के जहरीले पानी से अनुकूलन स्थापित करने के लिए फ्लेमिंगो विषैले तत्वों को फर में परिवर्तित कर लेते हैं। उन्होंने कहा कि मानवीय क्रियाकलापों से प्रदूषित हो रहे पर्यावरण को बचाने के लिए लोगों को भी अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए। परिचर्चा की शुरूआत में वर्धमान महावीर ओपन यूनिवर्सिटी के वरिष्ठ प्रोफेसर पीके शर्मा ने प्रतीक चिन्ह भेंट करके प्रो. क्रिन्टिज का स्वागत किया, जबकि कार्यक्रम के अंत में एडिशनल रिसर्च डायरेक्टर श्री आरआर सिंह ने उनका आभार व्यक्त किया। इस मौके पर राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय के प्रो. पवन दाधीच समेत वीएमओयू के विभिन्न विभागों के फैकल्टी मेंबर और शोधार्थी भी मौजूद थे।

समाजवाद की सरकार और बुंदेलखंड का अवैध बालू खनन

 अवैध खनन का काला कारोबार, जिला प्रशासन की मिली भगत से होता है पूरा खेल। 
LOCATION- बाँदा / बुन्देलखड क्षेत्र , उत्तर प्रदेश 

NGT- पर्यावरण की अनदेखी करते हुए भारी मशीनो का प्रयोग, जबकि मशीनों के प्रयोग पर सुप्रीम कोर्ट ने लगा रखा है प्रतिबन्ध। । रात में खनन पर है रोक। लिफ्टर का प्रयोग जिसमे नदी की धारा के वीच में पाइप से पचासो फिट गहराई से मोरंग निकाली जा रही है जिसमे डूब कर होती है मौते। पर्यावरण से noc लेते समय अनुबंध है कि नदी की धारा को नही रोका जायेगा। पानी से मोरंग नही निकाली जाएगी। लेकिन पुल बना कर नदी का वहाव रोक जा रहा है। पूरे बाँदा जनपद में 4 खदाने पेपर पर चल रही है जबकि जिला प्रशासन और खनिज विभाग एक दर्जन अवैध खदान से ज्यादा अवैध खदाने चलवा रहा है। ओवरलोडिंग भी चल रही है। वीना रॉयल्टी के खनन राज्सव को करोड़ो का चूना।

मोरंग का अवैध खनन तो यूपी में आम बात है लेकिन बुंदेलखंड में हो रहे मोरंग के अवैध खनन को देखकर किसी की भी आँखे फटी की फटी रह जाएँगी। बुंदेलखंड के बाँदा में बालू के अवैध खनन का काला कारोबार इस कदर हो रहा है प्रकृति की सड़क कही जाने वाली नदियों का सीना छलनी कर पानी के अंदर से बालू निकाली जा रही है। यही नही आप जहाँ तक नजर डालेंगे वहां तक नदियों में सिर्फ ट्रक और पोकलैंड मशीने ही नजर आएंगे, जो सुप्रीम कोर्ट से पूरी तरह प्रतिबंधित है। शासन प्रशासन की मिली भगत के चलते कहने को खनन के पट्टे स्वीकृत होते हैं लेकिन खनन माफियाओं इन पट्टों में खनन के सारे मानकों को ताक में रखकर स्वीकृत क्षेत्र से सैकड़ों गुना क्षेत्र में खनन कर नदियों का स्वरुप ही बदल दे रहे हैं। 
बाँदा जिले के नरैनी का ग्राम असेनी, खलारी , गिरवा, बदौसा - उदयपुर , सदर का ग्राम कनवारा, अछरौड, खप्तिहाकला , पैलानी , राजघाट , जनपद चित्रकूट का पहाड़ी , रामनगर आदि इलाकों में सरकार के समनांतर बैठा रेत माफिया पर्यावरण को उजाड़ करने में मशगूल है और जनता तमाशाई है l ये भविष्य का काल खंड बुंदेलखंड के जल संकट और सूखे की भयावह इबारत बनेगा l जिलो के खनिज अधिकारी मसलन के बाँदा , महोबा , हमीरपुर , चित्रकूट कहते है कि बिना पुलिस बल के हम दबंग माफिया से कैसे लड़ेंगे ? जबकि हकीकत ये भी है कि जी.टी. ( गुंडा टैक्स ) वसूलने में ये खनिज के हुक्मरान ही पैरवी करते है l बिचौलिये और दलाल ये ही है l कानून इनके पैरो में रौंदा जाता है l 





पट्टाधारकों को इन बिन्दुओं के तहत दी जाती है स्वीकृति---
१. नदी में पोकलैंड और लिफ्टर जैसी मशीनों का प्रयोग नही किया जायेगा।
२. नदी जलधारा से 3 मीटर दूर करेंगे खनन।
३. लीज (स्वीकृत क्षेत्र) से बाहर नही करेंगे खनन।
४. नदी की जलधारा नही मोड़ी जाएगी, और न ही नदी की जलधारा को रोका जायेगा और न ही कोई पुल बनाया जायेगा।
५. रात में खनन नही खरेंगे।
६. पर्यावरण के नियमों का पालन करेंगे।
७. पुल के आसपास नही होगा खनन।

कैसे होती है नियमों की अनदेखी---

१. नदी में पोकलैंड और लिफ्टर जैसी मशीनों का खुलेआम होता है प्रयोग। लिफ्टर के प्रयोग से नदी की जलधारा के बीच से 50 फिट अंदर से जिन्दा बालू की होती है निकासी। जिससे जिससे पूरी नदी में जगह जगह सैकड़ों फिट हो जाते हैं गड्डे। गांव के लोगों, बच्चों की डूबने से होती हैं मौतें।
२. लीज से कई गुना क्षेत्र में करते हैं खनन। जैसे 40 एकड़ के स्वीकृत पट्टे में आस पास के 400 से 500 एकड़ में करते हैं खनन। जिला प्रशासन और खनिज विभाग सबको होती है जानकारी।
३. नदी की जलधारा को मोड़कर अवैध रूप से पूरी नदी में पुल बनाकर करते हैं खनन।
४. दिन और रात धड़ल्ले से होता है खनन।
५. पर्यावरण के नियमों को ठेंगा दिखाते हुए करते हैं खनन।
६. पुल के ठीक नीचे पोकलैंड मशीनों से होता है खनन।
७. खनिज विभाग एक एम एम-11 (रवन्ना या रॉयल्टी) पट्टाधारकों को 2500 रूपये में देता है जबकि पट्टाधारक अपनी मनमानी और गुंडा टैक्स के चलते एक रवन्ना के 10 से 12 हजार तक वसूलते हैं।
८. पूरे जनपद में गुंडा टैक्स (सिंडिकेट) वसूलने की जिम्मेदारी शासन द्वारा किसी व्यक्ति विशेष को दी जाती है जिसकी शाशन को करोड़ों की कीमत चुकाने के बाद हर वैध और अवैध खदानों से गुंडा टैक्स लेने का खेल शुरू हो जाता है। प्रति ट्रक 3.5 से 4 हजार रूपये गुंडा टैक्स वसूला जाता है जिसके चलते आम जनता जो बालू की कीमत दाम से दोगुनी तक चुकानी पड़ती है।