Tuesday, June 02, 2015

'' गंगा का लोकतंत्र '' !

लेख - श्री निलय उपाध्याय
इनकी यात्रा के बारे में यहाँ पढ़े - http://palpalindia.com/…/kalasanskriti-journey-of-ganga-fro…

 गंगा का लोकतंत्र का लोकतंत्र बचा है क्या ?



गंगा आजकल चर्चा के केन्द्र में है। अखबार टी बी से सडक और संसद तक।किसे सुनकर अच्छा न लगेगा कि सरकार अपनी नदियों के प्रति संवेदन शील है। उसकी नदी, उसके पहाड, उसकी भाषा, उसकी संस्कृति के संकट की चर्चा हो तो यह जबाब है | 
दुनिया के इतिहास का अन्त हो चुका है, संस्कृतियों का अन्त हो चुका, कविताओं का अंत हो चुका और दुनिया एक ध्रुवीय हो चुकी है। लेकिन सरकारो ने अब तक जो संवेदन शीलता दिखाई है उसे बहुत डर लगता है और यकीन तो होता नही। इस देश की बडी लूट इन नदियो के नाम पर हुई है । इसलिए अभी क्रिया के स्तर पर अनुमान लगाना और यह तय करना मेरे लिए मुश्किल है कि यह अच्छा है या बुरा,। मगर संकेत साफ़ है। नरेन्द्र मोदी के सत्ता में आने के बाद आज भी जो लोग गंगा को मां कह कर संबोधित कर रहे है, गंगा के हालत पर आठ आठ आंसू बहा रहे है. वे अपने आचरण में गंगा के जल को अंग्रेजों के लीक पर चलते हुए संसाधन ही मानते है इसलिए उसकी नीयत पर शक वाजिब है। वे कहते है कि गंगा साफ़ होनी चाहिए।
गंगा गंगोत्री से निकलती है और गंगा सागर तक लगभग २५०० किलोमीटर की दूरी तय करती है तब बंगाल की खाडी में मिलती है। उसकी राह में पांच प्रदेश आते है उत्तराखंड, यू पी , बिहार, झारखंड और बंगाल। हर प्रदेश के अलग अलग संकट है और अलग अलग तरह से खतरनाक है। 
गंगा को गंदा करने का संकट तो बस कन्नौज और बनारस के बीच का है, लेकिन नेता, अखबार और टी बी चैनलो को बस गंदगी नजर आती है। इस संकट को सामने खडा किया जा रहा है जैसे २५०० किलोमीटर की सारी गंगा गंदी हो गई हो। कहीं ऎसा तो नहीं है कि एक खास क्षेत्र के संकट के आवरण में सारे संकटो को राज सत्ता द्वारा छुपाया जा रहा है।
इसकी पहचान हमें जरूर करनी चाहिए।
गंगा एक लाख साल पुरानी नदी है।
जिस इलाके से वह गुजरती है वहां की मिट्टी देख कर बताया जा सकता है कि यह हिमालय की है और इसे गंगा लेकर आई है, बिछाया है तब इसके किनारे जीवन विकसित हुआ और सभ्यता विकसित हुई। 
नदी तब भी थी जब सभ्यता नही थी । 
हमें पडताल करना है कि राज सत्ता से गंगा का रिश्ता कैसा है और रिश्तों की यह परंपरा कैसी रही है। 
गंगा के रिश्ते लोक से अलग है और सत्ता से अलग। 
सत्ता के हर चरण के कदमों के निशान गंगा के पास है और राज सत्ता के चरित्र को बेनकाब करने के सारे साक्ष्य वहां मौजूद है। यात्रा के क्रम में बक्सर जिले के नियाजीपुर गांव मे गांव में रूका था। वहां इंदू देवी ने गंगा का एक सोहर मुझे सुनाया तब मुझे पता चला कि अयोध्या की रानी कौशिल्या के साथ गंगा का रिश्ता क्या था। सोहर में कौशिल्या गंगा के पास जाती है। अपना दुखडा सुनाते हुए हाथ जोड कर पुत्र मांगती है। 
सात बलक राम दिहलो सोहू रे छोई लिहल नु हो
ए गंगा मईया आठवे गरभ अवतार त सेहू के भरोसा नईखे हो।
गंगा पुत्र देती है और वे खुशी मे कहती है कि अगर मेरे राम जन्मे तो सोने का घाट मढा दूंगी। पूजा करूंगी, बाल काटूंगी।
यह था गंगा का एक लोक मन की रानी के साथ रिश्ता।
इंदू देवी ने एक और सोहर सुनाया जिसमे एक पुत्र हीन औरत रात के अंधेरे में गंगा से डूब मरने की एक लहर मांगती है। गंगा उस औरत का दुख सुनती है और कहती है कि जाओ मैं अपने पुत्र को मारूंगी और तुम्हारे पुत्रों को जिन्दा करूंगी। इस हद तक गंगा अपने लोक से प्यार करती है और लोक उससे प्यार करने लगता है।
अब गंगा का राज सत्ता के साथ संबंध है। पहली बार महाभारत में यह रिश्ता तय हुआ था । राजा शान्तनु ने जाकर गंगा से कहा- गंगा, मैं आपसे शादी करना चाहता हूं। 
गंगा चौंक गई-शादी और मुझसे?
हां
लेकिन यह कैसे संभव है ?
हे गंगा ,तुम एक दिन अपने मार्ग पर जा रही थी। तुमने रास्ते में राजा प्रतीक को देखा और जाकर उनके जंघे पर बैठ गई और कहा मैं तुम्हारे साथ शादी करना चाहती हूं। 
राजा ने कहा कि तुम मेरे दाहिने जांघ पर बैठी हो,यह पुत्र का जंघा है , इसलिए मेरा पुत्र तुम्हारे साथ शादी करेगा। 
मैं शान्तनु राजा प्रतीक का पुत्र हूं और मरते समय अपने पिता को जो वचन दिया है उसका पालन करना चाहते हूं।
गंगा ने कहा- झूठ है, सरासर झूठ, मैने किसी को वचन नहीं दिया। 
गंगा ने इनकार कर दिया तो राजा शान्तनु ने आंखे लाल करते हुए कहा – ए गंगा तुम्हे मालूम है कि नदियां राज्य की संपति है।
गंगा यह सुनकर भौंचक रह गई। 
उसे याद आई वह घटना जब एक छौना जल पी रहा था। 
उसके बगल में एक बाघ खडा था। ज्योहि वह पानी पीकर चला तो बाघ चिल्लाया-अबे छौने पानी क्यों गंदा कर रहा है। जंगल का राजा तेरा जूठा पानी पिएगा। 
छौने ने कहा – मैं यह हिम्मत कैसे कर सकता हूं राजा साहब. देख लिजिए. पानी का बहाव तो आपकी ओर से से है।
बाघ ने देखा नदी का बहाव छौने की ओर जा रहा था। 
उसका दाव खाली गया तो उसने नया दाव रचा- छोड ये बता कि दो साल पहले तुमने मुझे गाली दी थी।
नहीं ह्जूर, मेरी तो उम्र बस एक साल की है।
बाघ को भूख लगी थी, अब बहस से काम नही चलेगा-तब वो गाली तेरे बाप ने दी होगी, कहा और मार कर खा गया।
गंगा समझ गई और कहा - राजा साहव यह पालीसी नही पालिसी करप्सन है। बहस चली तो तो उनकी सेना आ गई, स्वर्ग से उतर कर सारे देवता आ गए। सबने कहा -मान जाओ ना गंगा, आठ वसुओं का भी उद्धार होगा।आठ वसु दयनीय दिखे तो गंगा मान गई मगर शर्त रख दिया।
शान्तनु वादा करो कि हमारे बच्चे नहीं होंगे
क्यों
देश के समस्त लोग राजा के पुत्र होते है।अपने पुत्र हो तो राजा को ममता घेर लेती है वह जनता से अधिक ध्यान अपने पुत्रो पर रखने लगता है।यह गंगा का लोकतंत्र है अगर आपको मंजूर हो तो मैं आपकी पत्नी बनने को तैयार हूं।
शान्तनु ने सोचा, नई बछिया है, बहुत भडक रही है,एक बार राजा का प्यार मिलेगा, भूल जाएगी गंगा का लोकतंत्र।
मगर वैसा नही हुआ। 
एक एक कर सात आंसू गिरा। 
गंगा जानती थी कि इन आंसूओ के पीछे जो चेहरा है वह कितना भयावह है।गंगा नहीं चाहती थी कि कोई राजा हो और नदियां सरकार की संपति हो। उसने राजा से लोकतंत्र की मांग की।
गंगा का लोकतंत्र उसका अपना नहीं था। वह तो जल की विराट सता में बूंद भी नही, यह लोकतंत्र उस जल का था जो पंच तत्वो में एक है।पंच तत्वो ने कितनी मिहनत से यह दुनिया रची है गंगा जानती है, वह अब इस माया के बंधन में नही फ़ंसेगी। 
आठवी बार जब राजा नाराज हो गए तो उसने भीष्म को थमा दिया और निकल गई। सत्ता के बंधन से खुद को मुक्त न कर सकी मगर निकल गई। गंगा का राज सत्ता के साथ उस काल में यह संबंध था, भले ही इसका अर्थ प्रतीकात्मक क्यो न हो।
गंगा तट, गंगा के काल का भी तट है।
वहां पर समय के इतने निशान है जिनकी गणना नहीं की जा सकती। एक लंबे समय बाद धर्म की नजर पडी। बौद्ध धर्म को हटाने के लिए शंकराचार्य ने तीर्थ बना दिए, उनके चेलो ने पंडा गिरी मे बदल दिया और चल पडा,मोक्ष का रोजगार।
आज जैसे शहर में मकान बनवाने की होड है वैसे ही उस समय गंगा के तट पर बसने की होड लग गई और गंगा ने अपना किनारा खो दिया।
इस देश की हर गंगा अपना तट खो चुकी है।
अंग्रेज आए तो आरन्भ हुई गंगा के बरबादी की दास्तान। 
अंगेजों की हिमालय की संपदा पर नजर थी। 
गंगोत्री के इलाके में पहाडी लोगो का राज था। अंग्रेजो ने टिहरी के राजा से कहा कि तुम जीत कर यहां के राजा बनो। हम लडने के लिए जितना कहो सेना देते है। जीत के बाद विल्सन नाम के अंगरेज ने राजा से इस पूरे इलाके को मात्र छ हजार रूपयो में सलाना लीज पर ले लिया।
बडे पैमाने जानवरों को मांस और खाल का ब्यापार किया। 
रक्त पात हुआ हिमालय मे। 
हिमालय खाली हो गया। हिमालय से लकडी काट कर गंगा की धारा में डाल दी जाती। गंगा उसे हरिद्वार पहुंचा देती।
हरिद्वार में गंगा को विभाजित कर उसका साठ प्रतिशत जल दिल्ली ले जाया गया।गंगा का यह रिश्ता अंग्रेजो के साथ था।
अब हम आजाद है। देश आजाद है। 
हमारी चुनी हुई सरकारें है मगर गंगा में पानी नहीं रहता?
पहाड में भी बांध के ही दर्शन होते है। उसके परिणाम क्या है , अगर आप जाकर टिहरी के आस पास के किसी गांव को देखे । विल्सन की तरह हमारी सरकार अब वहां के लोगो के खाल और मांस का व्यापार कर रही है।
अब भी गंगा विल्सन की है और देश भी उसी विल्सन का है। 
राजा ने छह हजार की सलाना लीज पर दिया था, हमारे राजा साहब एक एक मेगावाट विजली के उत्पादन का परमिशन देने के लिए कंपनियो से एक करोड लेते थे, यह जाने कब की बात है। उन्हे इस बात की परवाह नही कि उनके आगमन से इस इलाके का चिराग ही बुझ गया।
लोक गंगा को मां कहता है , सरकार जल संसाधन कहती है और अगर हम यह सोचे कि एक नदी क्या चाहती है?
एक नदी की आदम इच्छा है अविरल बहना।
एक नदी के लिए जितना किया जाएगा उतना ही गडबड होगा। 
हम जरूर जानना चाहेंगे कि सरकार नदी की इस आदिम इच्छा का कितना सम्मान करती है और उसकी कारवाईया किनके पक्ष में जाती है । हमें यह परखना होगा कि बाजार की राह हवा में उड कर आई राज सत्ता की यह संवेदन शीलता कैसी है ? 
एक नदी के रूप में गंगा के संकट को देखने का उनका नजरिया आखिर क्या है ? 
नजरिया साफ़ न हो तो रक्षा में हत्या होने की संभावनाए बढ जाती है। मुझे मेरी मां पिता याद आते है तो सकून मिलता है वे गंगा के पास है मेरे भीतर यह गंगा है ।कहीं वह बची हुई इस गंगा को परोक्ष रूप मे निजी हाथो को बेच तो नही रहे।
सच कहे तो अभी हम उस स्थिति में नहीं है कि गंगा के अविरलता की बात भी कर सके। गंगा सागर जाते जाते गंगा की ताकत इतनी कम हो जाती है कि वह अपने पांव चल कर समुद्र तक नही पहुंच सकती। आज जब सभी ठान ले कि गंगा अविरल होगी तो इस देश के शहरो और सरकार को गंगा के उपर से अपनी निर्भरता कम करने में और उन्हें खत्म करने में वर्षो लग जाऎंगे। 
चार महीनों तक गंगा के साथ रहा। 
स्वर्ग लोक की उंचाईयो से मृत्यु लोक और पाताल लोक की गहराई तक यात्रा करते हुए, गंगा के अनगिनत संकटों को प्रबृतियों की तरह देखने और गहन विश्लेषण के बाद मुझे मूलत: पांच संकट नजर आए। बंधन, विभाजन या लूट, प्रदूषण, गाद,भराव। ये संकट किसी नदी को मौत तक पहुंचा देते है। इन अर्थों में गंगा मौत के बहुत करीब है।
बंधन
देश गुलाम था, 
यहां के लोग गुलाम थे।
अंग्रेजो ने गंगा के साथ वही सलूक किया जो यहां के लोगों के साथ किया। गंगा के साथ सरकार का अंग्रेजो वाला रिश्ता आज भी है। हमने विजली परियोजना के लिए गंगा को बांध दिया। 
आजाद होने बाद गंगा को तो पता ही नही चला कि यह सब और इतना सब चुपके चुपके कैसे और कब हो गया । गंगा का संकट तो और बढ गया है। अब कोई लडकी गंगा बनना नही चाहती है। 
गंगोत्री से हरिद्वार तक की यात्रा में गंगा बस गंगनानी के उपर ही दिखती है इसके बाद गंगा का दर्शन तो बस झील दर्शन है। केदार नाथ और बद्रीनाथ के राह पर भी बांधो के ही दर्शन होते है।
जो यात्री जाते है , वहां का अतीत सुनते है और बस लूट के आते है । मन ही मन कोसते है कि हमारी गंगा को झील में बदल दिया। इस बंधन के घाटे का आकलन नहीं हो सकता,बस एक मात्र लाभ है कि हमें विजली मिलती है। आईए एक नजर घाटे पर डालते है।
घाटे
१ गंगा की मिट्टी जो हिमालय से चलती है, बांध में जाकर रूक जाती है और यू पी बिहार के किसानो को इसका लाभ नहीं मिल पाता।
२ टनल में गुजरते गंगा के जल को पानी और धूप नहीं मिलता।
३ झील में पानी जाकर रूक जाता है और बाहर निकलने के कंपनी के मालिक की ओर एक ट्क देखता रहता है। और प्रदूषित होता है।
४ प्रोटेक्सन वाल न होने के कारण पानी पहाड में रिस कर जाता है। कई गांव समा चुके है। यह इससे भी खतरनाक खबर है कि हिमालय की कापर प्लेट गल चुकी है।
हिमालय का इलाका खतरे में है।
 
गांव लगभग खाली हो चुके है। अकेले टिहरी में इतना पानी जमा है कि अगर पानी निकला तो ऎतिहासिक हादसे का कारक होगा। हरिद्वार तिनके की तरह बह जाएगा, दिल्ली भी नहीं बचेगी। यह भूकंप क्षेत्र है यह जानते हुए ये बांध बनाए गए। 
इसे बनाने वालो की दाद देनी पडेगी जिन्होने विस्थापितो की सूची मे पाईलट बाबा का नाम डाल दिया। 
क्या हुआ , 
कैसे हुआ सोचने के वजाय, जो हो चुका उसे भूल कर अब नए बांधो की मंजूरी नही देनी चाहिए। पुराने बांधो को धीरे धीरे चरण बद्ध ढंग से खाली कर देना चाहिए। 
हिमालय की इन वादियों में हवाए बहुत तेज चलती है, इसके अलावे धूप विजली का वैकल्पिक साधन हो सकती है। पिछले साल के हादसे से अगर यह सबक नहीं लिया गया तो इसके परिणाम भयावह हो सकते है।
विभाजन या जल की लूट
हरिद्वार में जमीन पर उतरते ही गंगा के जल की लूट मच जाती है। एक सरकार का दूसरा आश्रमो का।सरकार दिल्ली नहर से दिल्ली के निवासियो के पीने के लिए साठ प्रतिशत जल ले जाती है। आश्रमो के दरवाजो पर चक्कर लगाने के बाद गंगा में महज तीस प्रतिशत जल बचता है जो आगे जाता है। 
पूरे उत्तर प्रदेश में जिस तरह नहरो का जाल बिछा है उस के बाद गंगा मे पानी ही नही बचता। नरोरा एटमिक प्लांट से निकलने वाली गंगा का हाल ये है कि वहां बकरी पैदल पार कर जाती है।
गंगा के पथ और प्रवाह को समझना चाहिए। 
हरिद्वार से वाराणसी तक गंगा प्रति कोस बारह इंच ढलान के साथ बहती है। वाराणसी से भागलपुर तक १० इंच और ८ इंच, ६ इंच घटती चली जाती है। गंगा के जल को समुद्र मे गिरा देना चालाकी नही है इसलिए पानी का एक मानक तल बनाया जाना चाहिए और उसके तल के अनुसार इस तरह पानी निकालने की योजना बनाई जानी चाहिए कि गंगा में सालो भर पानी की निश्चित मात्रा रहे। अगर गंगा को यातायात का साधन बना दिया जाय तो सडकों का बोझ कम हो सकता है और नदी में जल भी रहेगा।
प्रदूषण
हम गंगा के संकट की बात करते है तो सिर्फ़ गंगा ही नहीं उन तमाम नदियों के संकट की बात करते है जो गंगा में आकर मिलती है। गंगा में प्रदूषण मूल रूप से कन्नौज से बनारस के बीच है। इसके चार कारक है।
१ जल की कमी
२ सहायक नदियां
३ नगर और उद्योग
४ धार्मिक क्रिया कलाप

अगर गंगा में जल की मात्रा रहे तो वह बहाव के कारण, मिट्टी और हवा के कारण अपने को कुछ स्बच्छ कर सकती है। मगर जिस आपाधापी में गंगा के किनारे नगर बसाए गए, उद्योग लगाए गए, उसके जल निकास के लिए आज भी हमारे पास कोई जल निकास नीति नहीं है। 
अगर शहर और उद्योग से प्राप्त गंदे जल को प्रत्येक शहर में नगर पालिका को सुपुर्द कर दिया जाय और वहां एक एसी योजना भी दी जाय कि कैसे उसे उर्वरक के रूप में बदल कर आस पास के खेतो में उसका इस्तेमाल किया जाय या उसकी सफ़ाई का मानक पैमाना तय कर गंगा या किसी नदी में गिराया जाय। 
टेम्स नदी को लंदन की गंगा कहा जाता है। 
लंदन टेम्स के किनारे है। आबादी बढ़ने के साथ ही टेम्स नदी में भी प्रदूषण बढ़ता गया और वह मरने के कागार पर खडी हो गई। सफाई के अभियान शुरू किए गए…लेकिन सफ़लता तब मिली जब महीने में एक दिन जहां से टेम्स नदी गुजरती है… लोग सफाई करते हैं। लोगों ने टेम्स लौटा दिया। डेढ़ सौ साल पहले जैसी है। 
यह अभियान हमारी छ्ठ का अनुकरण था। 
गंगा नदी की सफ़ाई को मासिक पर्व बना दिया जाय ।
गाद
बनारस के बाद गंगा में प्रदूषण नहीं होता लेकिन जल का कचरा जमता जाता है। गंगा के पास इतना पानी नहीं रहता कि वह अपने जल से उस गाद को बहा सके। इसके फ़लस्वरूप नदी के बीच गाद जम जाती है और वह किनारे से होकर बहने लगती है,इसके कारण गंगा का पाट चौडा होता जाता है कई धाराओं में बंट जाती है और कटाव होने लगता है। कटाव के कारण हजारों गांव के लोग विस्थापित होते है। गाद पर दियारा क्षेत्र बनता है जो अपराधियो का स्वर्ग बन जाता है। नदी के तट पर बोल्डर गिराने के वजाय उसके गर्भ को साफ़ कर दिया जाय तो नदी अपनी मूल धारा में रहेगी। गंगा गर्भ , गंगा तट और गंगा क्षेत्र का सीमांकन किया जाना चाहिए। यह सच्चाई है कि बाढ में भी नदी उसी जगह तक जाती है, जहां कभी उसकी धारा थी।
भराव
झारखंड के दो जिले साहब गंज और राज महल गंगा तट 
पर बसे है।यहां गंगा का प्रवाह प्रति कोस आठ ईंच है। 
इस इलाके में हजारो क्रशर मशीन लगे है। 
पत्थर तो बेच देते है मगर मिट्टी बारिश में बह कर गंगा में समा जाती है। इस भराव और फ़रक्का बांध के कारण पानी नही निकल पाता और बाढ आती है तो विहार को डूबा जाती है। 
इस इलाके से क्रशर उद्योग को हटा देना चाहिए। अगर जरूरी हो तो मिट्टी का भी अलग उपयोग किया जाना चाहिए ताकि मिट्टी गंगा में न जा सके। फ़रक्का बांध बनाने के बाद वह इंजीनियर जिसने बांध बनाया था, आज यह बयान दे रहा है कि फ़रक्का में यह नहीं बनना चाहिए था। 
यह गलत हुआ किन्तु उसे गलत कहने वाला इंजीनियर गुमनाम जिन्दगी जीकर मर गया। हल्दिया की भी वही स्थिति हो गई है जो उसके पहले के बंदरगाह हुगली की थी। 
गंगा मुक्त हो , समुद्र से सीधा संबंध हो तो नदी में जलीय जीवो की संभावना बढेगी, इससे भी रोजगार सृजित होगा।समय़ के अनुसार रोजगार बढ सकते है।
यह समस्या मेरी है और समाधान मेरा है ।
मेरे भीतर एक चाहत है कि गंगा इस तरह की होनी चाहिए और इसके कारण भी साफ़ है। यही जानने के लिए मैं एक एक कदम चल कर गया था। गंगा ने मुझे बताया कि यह नदी का संकट ही नही बल्कि हमारा संकट है। हमारी सभ्यता का संकट है।
जिसकी सभ्यता पराजित हो जाय वे तो संकट में होंगे ही। 
हमारी अर्थ व्यवस्था में सिर्फ़ विजली पैदा कर गंगा जितना योगदान कर रही है,उससे कई गुना ज्यादा योगदान कर सकती है। सवाल उस दूष्टिकोण का है कि गंगा को किस नजरिए से आप देख रहे है।
असल संकट है ? 
आप फ़ल खाना चाहते है कि पेड खाना चाहते है।
गंगा का जल पीना चाहते है या नदी पीना चाहते है।
आप गंगा के बेटे है या लुटेरो के?
लेकिन असल बात है कि सोचने का आपका दृष्टिकोण क्या है?
गंगा के लोकतंत्र का नाम सह जीवन है और आपके लोकतंत्र का नाम? पकृति के आंगन में अगर जनतंत्र की बात होती है तो मेरा उससे कोई वास्ता नही क्तोकि वह जो लोक तंत्र नही है, लोक सिर्फ़ जन से नही बनता।

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