Wednesday, October 14, 2015

केन में पानी नही बुन्देली पानीदार कैसे ?

' मरती केन की धारा,कैसे चले शिकारा ' ! 

बाँदा 15 अक्टूबर - बुंदेलखंड के जिला बाँदा की तहसील पैलानी,जसपुरा और भरुआसुमेरपुर में केन नदी के हाल कुछ ऐसे है ! मध्यप्रदेश के जबलपुर,कटनी जिले की यह नदी कटनी रीठी तहसील से दो किलोमीटर दूर एक खेत से निकली है। जहां आज भी कई ऐसे प्रमाण मिलते हैं जिन्हें देखकर लगता है कि मुगल काल से पहले हिन्दु चंदेल शासकों ने इसे उद्गम स्थल के रूप में मान्यता दी थी, लेकिन अफसोस आज इस जगह को स्वतंत्र भारत में भुला दिया गया। केन में पाया जाने वाला शजर पत्थर आज विलुप्ति की तरफ है ! शजर अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है शाख या टहनी 1 इसमें प्रकृति के सुन्दर चित्र मसलन पेड़,पहाड़,पक्षी या मानव की छाया नैसर्गिक कलाकारी से बनती है.कुछ लोग शजर को कार्बन या हकीक का पर्याय भी कहते है.बाँदा से शजर मक्का -मदीना तक जाता है पर उन्हें ये जानकारी नही होती कि ये कहाँ से आया है ! जह यात्री शजर में कुरान की पाक आयते लिखवाकर लाते है.. कभी ये पत्थर अफगानिस्तान तक यहाँ से जाता था आज खुला बाजार न होने से बाँदा की 34 लघु फर्म बंदी की तरफ है मात्र चार में काम होता है इसको तराशने का ! कमोवेश जितना ही केन नदी का उद्गम स्थल अजीबो-गरीब है उतनी ही इसके उद्गम की कहानी भी आश्चर्यजनक है। रीठी के वासिंदे केन को एक देवी के रूप में पूजते हैं। तभी तो आज भी वह शव के अंतिम संस्कार के बाद अस्थियां तथा राख केन की उन पहाड़ियों में डाल देते हैं जो आज भी एक रहस्य के समान है।
रीठी के पास जिस खेत से इसके निकलने को लोग मानते हैं वहां से कुछ दूरी पर ही सुनसान स्थल पर चट्टानों के बीच कई पुरातात्विक स्तंभ, मूर्तियां, अवशेष बिखरे पड़े हैं। केन जिसे कर्णवती भी कहा जाता है। यह यमुना की एक उपनदी या सहायक नदी है जो बुन्देलखंड क्षेत्र से गुजरती है। दरअसल मंदाकिनी तथा केन यमुना की अंतिम उपनदियाँ हैं क्योंकि इस के बाद यमुना गंगा से जा मिलती है। रीठी के पास केन के उद्गम स्थल को नदियों की सीमाओं की खोज करने वाली यूएसए की आन लाइन लाइब्रेरी एस्कार्ट ने अपने रिकार्ड में समावेश किया है किन्तु भारत में इस नदी के विषय में सिर्फ इतना ही कहा जाता है कि यह दमोह-जबलपुर अथवा कैमूर पर्वत श्रृंखलाओं से निकली है। केन को अपने रूद्र रूप में अगर देखना है तो पन्ना टाइगर्स वाया छतरपुर -सागर मार्ग में केन -बेतवा लिंक में प्रस्तावित गंगऊ डैम के पास देखे,यह पहाड़ी नदी अपने शबाब में नजर आती है लेकिन पिछले दो साल के सूखे ने इसकी 6 सहायक बरसाती नदियों को भी सूखा दिया है....इनमे बाँदा / बुंदेलखंड की बाणगंगा,बाघे,कडैली,रंज,और महोबा की धसान,उर्मिल शामिल है.इस टूटी हुई धार में रेत माफिया का खनन इसके छत-विक्षत अस्तित्व को खोखला कर रहा है ...बुंदेलखंड के साथ छल करने को बनाया जा रहा केन -बेतवा नदी गठजोड़ और सरकारी राजस्व के लिए खनन का खेल कुछ वैसा ही है जैसे रेगिस्तान में सभी कुएं,बावड़ी,पोखर और तालाब को पुरैन डालकर सूखा दिया जावे....भविष्य भयावह है,सरकार बेफिक्र ..बेशर्म ! - सभी तस्वीर स्वतः ली गई है - आशीष सागर,प्रवास,बाँदा

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