Tuesday, November 17, 2015

सूखे बुंदेलखंड में 62 लाख से अधिक किसानो का पलायन मुद्दा नही !

 नोट - यह आंकड़ा वर्ष 2014 - 15 का है ) - आप इस सर्वे रिपोर्ट को नीचे के दोनों लिंक में भी पढ़ सकते है.अमर उजाला ने यह अपने सम्पादकीय में पंकज चतुर्वेदी के लेख में 17 नवम्बर को प्रकाशित की है - 

 http://bundelkhand.in/portal/sookhe-bundelkhand-me-62-lakh-se-adhik-kisano-ka-palayan http://www.bhaskar.com/news/UP-farmers-migrating-due-to-drought-and-unemployment-crisis-in-bundelkhand-5168472-PHO.html?seq=1



बुंदेलखंड: उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में विभाजित बुंदेलखंड इलाका पिछले कई वर्षो से प्राकृति आपदाओं का दंश झेल रहा है. भुखमरी और सूखे की त्रासदी से अब तक 62 लाख से अधिक किसान 'वीरों की धरती' से पलायन कर चुके हैं. वर्ष 2005 से माह नवम्बर 2015 तक चार हजार किसान कर्जखोरी में आत्महत्या किये है जिसमे अधिकतर फांसी के केस है.कुछ एक ट्रेन से कटकर और आत्मदाह में मरे. यहां के किसानों को उम्मीद थी कि अबकी बार के लोकसभा चुनाव में राजनीतिक दल सूखा और पलायन को अपना मुद्दा बनाएंगे, लेकिन ऐसा हुआ नहीं और एक बार फिर यह मुद्दा जातीय बयार में दब सा गया है.
'वीरों की धरती' कहा जाने वाला बुंदेलखंड देश में महाराष्ट्र के विदर्भ जैसी पहचान बना चुका है. बुंदेलखंड का भूभाग उत्तर प्रदेश के बांदा, चित्रकूट, महोबा, उरई-जालौन, झांसी और ललितपुर और मध्य प्रदेश के टीकमगढ़, छतरपुर, सागर, दतिया, पन्ना और दमोह जिलों में विभाजित है.

यह इलाका पिछले कई साल से दैवीय और सूखा जैसी आपदाओं का दंश झेल रहा है और किसान 'कर्ज' और 'मर्ज' के मकड़जाल में जकड़ा है. तकरीबन सभी राजनीतिक दल किसानों के लिए झूठी हमदर्दी जताते रहे, लेकिन यहां से पलायन कर रहे किसानों के मुद्दे को चुनावी मुद्दा नहीं बनाया गया. समूचे बुंदेलखंड में स्थानीय मुद्दे गायब हैं और जातीय बयार बह रही है.

स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता एवं किसान नेताओं की मानें तो इस इलाके के किसानों की दुर्दशा पर दो साल पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल की आंतरिक समिति ने प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) को एक चौंकाने वाली रिपोर्ट पेश की थी और विकास के लिए कुछ सिफारिश भी की थी, लेकिन यह रिपोर्ट अब भी पीएमओ में धूल फांक रही है.

इस रिपोर्ट का हवाला देकर मऊरानीपुर के भारतीय किसान यूनियन (भानु गुट) किसान नेता शिवनारायण  सिंह परिहार  बताते है कि प्रवास सोसाइटी ने आंतरिक समिति की रिपोर्ट पर अध्ययन करके जो आंकड़े जारी किये है उनके मुताबिक बुंदेलखंड में पलायन सुरसा की तरह विकराल है ! वे कहते है कि उत्तर प्रदेश के हिस्से वाले बुंदेलखंड के जिलों में बांदा से सात लाख 37 हजार 920, चित्रकूट से तीन लाख 44 हजार 801, महोबा से दो लाख 97 हजार 547, हमीरपुर से चार लाख 17 हजार 489, उरई (जालौन) से पांच लाख 38 हजार 147, झांसी से पांच लाख 58 हजार 377 व ललितपुर से तीन लाख 81 हजार 316 और मध्य प्रदेश के हिस्से वाले जनपदों में टीकमगढ़ से पांच लाख 89 हजार 371, छतरपुर से सात लाख 66 हजार 809, सागर से आठ लाख 49 हजार 148, दतिया से दो लाख 901, पन्ना से दो लाख 56 हजार 270 और दतिया से दो लाख 70 हजार 477 किसान और कामगार आर्थिक तंगी की वजह से महानगरों की ओर पलायन कर चुके हैं.

किसान आत्महत्या और बुंदेलखंड विशेष पैकेज पर निगरानी करने वाले संघटन प्रवास सोसाइटी के अनुसार इस समिति ने बुंदेलखंड की दशा सुधारने के लिए बुंदेलखंड विकास प्राधिकरण के गठन के अलावा उत्तर पदेश के सात जिलों के लिए 3,866 करोड़ रुपये और मध्य प्रदेश के छह जिलों के लिए 4,310 करोड़ रुपये का पैकेज देने की भी अनुशंसा की थी, मगर अब तक केंद्र सरकार ने इस पर अमल नहीं किया. संघठन यह भी बताता हैं कि सिर्फ उत्तर प्रदेश के हिस्से वाले बुंदेली किसान करीब छह अरब रुपये किसान क्रेडिट कार्ड (केसीसी) के जरिए सरकारी कर्ज लिए हुए हैं.उधर 7266 करोड़ का बुंदेलखंड पैकेज भी मार्च 2015 में पूरा हो चुका है.बुन्देली पलायन का वैसे तो आज तक कोई ज़मीनी सर्वे सरकारी नही हुआ लेकिन हर साल पल्स पोलियो अभियान के आकड़े से यहाँ के गाँव में हो रहे पलायन की तस्वीर साफ हो जाती है.अकेले बाँदा से 32 हजार किसान दिहाड़ी मजदूरी के लिए गुजरात के ईट-भट्टो में गया है.ये आंकड़ा सूखे के इजाफे के साथ बढ़ता और घटता है.वर्ष 2015 के माह अक्टूबर - नवम्बर में संपन्न हुए जिला पंचायत और क्षेत्र पंचायत सदस्य चुनाव में भी किसान दूरस्थ शहरो से अपने गाँव नही लौटा है.ग्राम प्रधानी के चुनाव 6 दिसंबर तक समाप्त होने है अब देखना ये होगा कि गाँव की चौपाल में मतदान के लिए ये पलायन किये किसान वापस आते है या नही ! आने वाले गर्मी के मौसम तक पलायन की संख्या में बड़े स्तर पर वृद्धि होगी. 
बुंदेली किसानों के पलायन को चुनावी मुद्दा न बनाए जाने पर विभिन्न दलों के नेता अलग-अलग तर्क देते हैं, समाजवादी पार्टी (एसपी) के राष्ट्रीय महासचिव और राज्यसभा सांसद विशंभर प्रसाद निषाद कहते हैं कि एसपी सरकार किसानों के हित में कई कल्याणकारी योजनाएं चला रही है और मुख्यमंत्री ने चुनाव बाद बुंदेलखंड विकास निधि की धनराशि में बढ़ोतरी कर यहां के समग्र विकास का वादा किया है.

पलायन को चुनावी मुद्दा न बनाए जाने के सवाल पर उनका कहना है कि इसकी जरूरत नहीं है, जब यहां का विकास होगा, तब अपने आप पलायन रुक जाएगा. उत्तर प्रदेश विधानसभा में विधायक दल के नेता और बांदा जिले की नरैनी सीट से विधायक गयाचरण दिनकर बुंदेलखंड में किसानों और कामगारों के पलायन का ठीकरा कांग्रेस और केंद्र सरकार पर फोड़ते हैं. उनका कहना है कि प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह आंतरिक समिति की रिपोर्ट पर अमल करते तो शायद हालातों पर काबू पाया जा सकता था, लेकिन जानबूझ कर ऐसा नहीं किया गया.अब केंद्र की मोदी सरकार भी किसानो के लिए अब तक वादे के सिवा कुछ नही कर सकी.देश में एक अदद किसान आयोग की आवश्यकता है.

बकौल दिनकर, बीएसपी घोषणा पर नहीं, काम पर भरोसा करती है. वह कहते हैं कि इस चुनाव में बीएसपी बैलेंस ऑफ पावर में आई तो पलायन को मुख्य मुद्दा मानकर काम किया जाएगा. उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी के सचिव साकेत बिहारी मिश्र कहते हैं कि राहुल गांधी हमेशा बुंदेलखंड पर मेहरबान रहे हैं, उनकी सिफारिश पर ही विशेष पैकेज दिया गया है, लेकिन मौजूदा एसपी सरकार ने इसकी धनराशि दूसरे कार्यो में खर्च कर दिया है.

वह कहते हैं कि कांग्रेस के घोषणा पत्र में किसान हित को सर्वोपरि रखा गया है. 
 बीजेपी ने अपने घोषणा-पत्र में स्पष्ट किया था कि केंद्र की सत्ता में आने पर वह प्रधानमंत्री ग्राम सिंचाई योजना और कम ब्याज की दर से कृषि ऋण देकर उपलब्ध कराकर उनकी माली हालत सुधारेगी. वह कहते हैं कि यहां सिंचाई संसाधनों की कमी को पूरा करने के लिए नदियों को एक-दूसरे से जोड़ा जाएगा, ताकि हर खेत तक पानी पहुंच सके.मगर अभी तक मामला सिफर है. गौरतलब है कि हाल ही में आम आदमी पार्टी के पूर्व नेता और राजनीतिक  विश्लेषक एवं स्वराज्य अभियान के संयोजक योगेन्द्र यादव ने भी हरियाणा से शुरू हुई अपनी 'संवेदना यात्रा ' के दूसरे पड़ाव में विदर्भ और मराठवाड़ा की जगह बुन्देलखंड के सूखे को अपने सर्वे का आधार बनाया है.वे अर्थशास्त्री ज्या द्रेंज के साथ मिलकर यहाँ झाँसी,ललितपुर,जालौन के 200 गाँव की 28 तहसीलों में सूखे का सर्वे करवा रहे है जिसमे जल संकट,रोजगार,खाद्य समस्या पर ध्यान है.चित्रकूट मंडल इस सर्वे से अछूता है. वही सूखे की हाय -तौबा के बीच केंद्र सरकार ने भी सूखे के आंकलन के लिए कृषि मंत्रालय में निदेशक हार्टिकल्चर अतुल पटेल को 5 और ६ नवम्बर को बुंदेलखंड के जिलों का दौरा करने को भेजा है.केंद्र सरकार के सहकारिता और किसान मंत्रालय में निदेशक अतुल पटेल बाँदा,झाँसी,महोबा,हमीरपुर,जालौन का सर्वे करेंगे.निदेशक के निजी सचिव पीएस सुनील कुमार ने जारी किये पात्र में एस बात से अवगत कराया है.उधर उत्तर प्रदेश सरकार भी यहाँ अपनी रिपोर्ट में जिलों से भेजी गई रिपोर्ट में खरीफ की फसल में 70 फीसदी का नुकसान मान रही है.अकेले बाँदा में 95,184 हेक्टेयर रकबे में दलहन और तिल की खेती चौपट हुई है.यहाँ लघु सीमत किसानो ने 68,241 हेक्टयेर में तिल,ज्वार,बाजरा,अरहर,धान बोया था जो वापसी नही हुआ.प्रदेश सरकार से जिला प्रसाशन ने बाँदा के लिए ही 73 करोड़ रूपये अनुदान देने की मांग की है जिसमे सीमान्त किसानो के लिए 56,75,21000 और बड़े कास्तकार को 17,90,75000 रूपये मांग की गई है l 

किसानों के पलायन पर दिए गए तर्क से किसान और राजनीतिक विश्लेषकों के विचार जुदा हैं. गाँव - गिरांव के किसान मानते है कि नदियों को आपस में जोड़ने के बजाए यहां परंपरागत सिंचाई संसाधनों को बढ़ावा देने की जरूरत है, तभी पलायन और दैवीय आपदाओं से छुटकारा मिल सकता है.यहाँ ग्राम और कृषि आधारित आजीवका की आवश्यकता है ताकि पलायन रोका जा सके.छोटे किसान मनारेगा पर भी सवाल खड़ा करते है l 
बुजुर्ग राजनीतिक विश्लेषक और अधिवक्ता रणवीर सिंह चैहान का कहना है कि सभी दल किसानों की झूठी हमदर्दी दिखाकर अपना मकसद पूरा करते हैं और अभागे किसान आत्महत्या तक कर रहे हैं. कुल मिलाकर इस लोकसभा चुनाव में भी किसानों के पलायन को दलों ने गंभीरता से नहीं लिया और यह मुद्दा जातीय बयार के आगे दब सा गया l-

आशीष सागर,किसान एवं पर्यावरण कार्यकर्ता/ संवाददाता बुंदेलखंड.इन,बाँदा

1 Comments:

At July 28, 2019 at 6:47 PM , Blogger Vipin Pandey said...

Apka yaha sarahniy yogdaan hum research scholar k liye bahat helpful h or jhansi narega ki jankari or chahiye usko kaise pata Kiya jaye

 

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