Friday, March 27, 2015

बीस मार्च विश्व गौरैया दिवस 2015 बाँदा




प्रकृति के प्रहरियो ने रचाया  गौरैया का ब्याह

छिउल की सूखी लकड़ी से बना मंडप, 

आम के पत्तो और केले के पत्तो हुआ सगुन 
 कुस की घास से बनी मंडप की मुंडेर (छत )

ची- ची के ब्याह में जमकर नाचे ग्यारह घोड़े और गंवई बाराती l 
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                                                                 बुंदेलखंड में हुआ ची - ची का ब्याह 

बाँदा / बुंदेलखंड - 

हर बरस बीस मार्च को मनाया जाने वाला विश्व गौरैया दिवस एस बार भी देश भर में अपने - अपने अंदाज से आयोजित हुआ l इस भीड़ से इतर बुंदेलखंड के जिला बाँदा के नरैनी तहशील का ग्राम मोहनपुर ( दोआबा क्षेत्र - रंज और बागे नदी का कछार ) इस मायने में अलहदा रहा l  
 गौरैया दिवस दिल्ली के  राज्य पक्षी गौरैया ( रेड लिस्ट में शामिल  / विलुप्त प्रजाति ) का विवाह हिन्दू विधि - विधान से  किया गया । आस पास के गाँवो के 600 ग्रामीण अपने उत्साह के साथ इस प्रकृति सम्यक परिंदे के ब्याह के गवाह बने । 
जहाँ ब्याह की तैयारी एक सप्ताह पहले से चल रही थी। गौरतलब है कि इस विलुप्त होती गौरैया चिड़िया के विवाह को ग्राम मोहनपुर निवासी अध्यापक यशवंत पटेल और उनकी पत्नी सुमनलता पटेल (कन्या पक्ष ) , वर पक्ष से अध्यापक ग्राम रानीपुर निवासी राम प्रकाश पटेल पत्नी अनीता रहे। पूरे विधि विधान से पहले वर पक्ष के लोगो ने प्राथमिक स्कूल मोहनपुर से नर गौरैया की निकासी की ,उसका स्वागत सत्कार किया गया । बारात की अगवानी में आये ग्यारह घोड़ो ने जमकर थिरका और गौरैया मादा चिड़िया के घर तक बारात के साथ उपस्थित रहे । बारात पहुँचने के बाद कन्या पक्ष के लोगो ने बाराती का अभिनन्दन किया इसके बाद गैल्मर से बचते हुए मादा गौरैया चिड़िया और नर चिड़िया का विवाह किया फेरो,लावा और विदाई के साथ संपन्न हुआ । विवाह के बाद बरातियो को प्रकृति के ही फल मसलन चने का हरा बिरवा, बेर और चूल्हे की आग में बना भोजन करवाया गया l गाँव वालो ने कहाँ जो लोग इसको हमारा पागलपन समझ रहे है उन्हें ये भी जानकारी होनी चाहिए कि ये गाँव वालो के विरोध करने का अपना सलीका है l आज एक घरेलु चिड़िया का भी हमें दिवस मनाने को बाध्य होना पड़ रहा है l मनुष्य रिश्ते नही निभा पाया लेकिन ये परिंदे बिना रिश्तो के प्रकृति के साथ - साथ मनुष्य के पर्यावरण को सुन्दर बना रहे है l आदमी आज इनको भी अवशेष बनाने में माहिर हो गया है l ब्याह के बाद आसमानी परिंदों को उड़ा दिया गया l 




वन रेंजर जे.के. जयसवाल ने अपने संबोधन में वन्य जीवो के साथ रेड लिस्ट में शामिल गौरैया को बचाने की पहल की सराहना की । स्थानीय क्षेत्रीय वन अधिकारी जे.के. जयसवाल, नफीस खान, इलाहाबाद से एप्सा हर्बल उत्पाद के कंसल्टेंट मंजीत,बिहार राज्य के बक्सर से आये लेखचन्द्र त्रिपाठी, राघवेन्द्र मिश्रा,बुंदेलखंड.इन न्यूज पोर्टल के फाउनडर राहुल गुप्ता ( दिल्ली ),दीनेश पाल सिंह,जगदीश निषाद सहित,वन्य जीव कार्यकर्ता महिर्षि कुमार तिवारी मुख्य मेहमानों में शामिल रहे। 

वही इलाहाबाद से आये मंजीत ने किसानो को खेतो में अत्यंत पेस्टीसाइड (कीटनाशक ) उपयोग के चलते होने वाले नुकसान और उसक असर इस गौरैया चिड़िया पर कैसे पड़ता है इसका डेमो , प्रदर्शन हाइब्रिड टमाटर,बैगन और नीबू के फलो पर करके दिखलाया । प्रवास सोसाइटी / हरियाली चौपाल से जुड़े आशीष सागर ने उपस्थित लोगो के छोटे छोटे जीव की सामाजिक हिस्सेदारी की भूमिका बतलाते हुए एक एजेंडा प्रस्ताव किसान भाइयो से हस्ताक्षर युक्त लिया जिसको देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक भेजा जा रहा है कि जल-जंगल और जमीन से वीरान होता ये बुंदेलखंड क्यों आज किसान आत्महत्या की कोख बन गया है । गौरैया के विवाह से पहले हुई संगोष्टी में वक्ताओ ने बुंदेलखंड में प्राकृतिक संसाधनों के खनन का मुद्दा उठाया और कहा कि किसान आत्महत्या वही हुई जहाँ नदी,पहाड़ो,जंगलो का विनाश किया गया । कंक्रीट का विकास किसान की तबाही का कारण है जिसका खामयाजा हाल ही में उसने बे- मौसम बरसात और ओलो के रूप में भुगता है।



मोहनपुर,रानीपुर,बिलहरका,पिपरहरी गाँवो के किसानो में रविन्द्र मिश्र,सुभास पाण्डेय,रामदेव पटेल,बड़े भैया राजपूत,प्रमोद कुमार पटेल,जगप्रसाद पाल,बुआरानी,कल्लू महाराज,शोभा लाल,कामता प्रसाद श्रीवास गाँव की युवा लड़के - लड़कियां ,किसान शामिल रहे ।

आशीष सागर 
बांदा - बुंदेलखंड 
संपादक-प्रवासनामा मासिक पत्रिका 

मेरा रंग दे बसंती चोला .....बुंदेलखंड का किसान बोला !




बुंदेलखंड में मौत की खेती
पोखर को मैदान बनाया, मरता हुआ किसान बनाया, 
शहर बनाए, गांव मिटाए, जंगल और पहाड़ हटाए,
 जहर मिले दुकानों में मरना कितना आसान बनाया, ये कैसा हिंदुस्तान बनाया ?
-  आशीष सागर, Banda 
बांदा। आप किसान आत्महत्या और सर्वाधिक जल संकट वाले क्षेत्र बुंदेलखंड से रूबरू होंगें।यहां अप्रैल वर्ष 2003 से मार्च 2015 तक 3280 ( करीब चार हजार ) किसान आत्महत्या किए हैं। समय-समय पर इन मुद्दों को किसान आंदोलन, बेमौसम बारिश और ओलों से हलाकान किसान परिवारों ने जिंदा किया है। बुंदेलखंड में फरवरी और मार्च का महीना मौत के मौसम के लिए अनुकूल रहता है। इस बार भी यही हुआ पहले सूखा और फिर हाड़तोड़ मेहनत के बाद तैयार फसल पर ओलों की बारिश इस तरह हुई कि किसान आत्महत्याओं की बयार एक बार फिर बुंदेलखंड में हाहाकार मचा रही है। बीते 2 महीनों में शायद ही कोई दिन ऐसा गया हो जब गांव से निकलती खबर में किसी किसान के आत्महत्या का मामला न आया हो। हां यह अलग बात है कि राज्य और केंद्र की सरकारों ने कभी लिखित रूप में अपनी गर्दन बचाने के लिए यहां किसान आत्महत्या को नहीं माना। नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरों के अनुसार वर्ष 2009 में यहां 568, 2010 में 583, 2011 में 519, 2012 में 745, 2013 में 750 और दिसंबर 2014 तक 58 किसान आत्महत्या किए हैं। वहीं वर्ष 2015 अगुवाई ही किसान आत्महत्या के साथ हुई। खबर लिखे जाने तक बुंदेलखंड के 7 जिलों में बीते 3 महीनों में 28 किसान आत्महत्या कर चुके है। मौत की फसल अपनी रफ्तार से पक रही है। लाशों पर आंदोलन और सियासत का माहौल गर्म है मगर उन गांव का हाल जस का तस है जहां संनाटे को चीरती किसान परिवारों की चींखें सिसकियों के साथ हमदर्दी जताने वालों की होड़ में बार-बार शर्मसार होती है। अभी तक बांदा में रबी की फसलों पर 1.70 अरब का बीमा किसानों ने दांव पर लगाया है। जिले की 9 बैंकों ने 39948 किसानों की 51800 हेक्टेयर भूमि का बीमा किया है। बीमा कंपनी मनमने ढंग से सर्वे कर रहीं हैं। अलसी की फसल बीमा से मुक्त रखी गई है। आंकड़ों के मुताबिक बुंदेलखंड में 80.53 फीसदी किसान कर्जदार है। बांदा में कुल बीमा राशि एक अरब 70 करोड़ 90 लाख 62 हजार रुपए है, जिसका प्रीमियम 6 करोड़ 96 लाख 35 हजार 268 रुपए है। अगर इन बैंकों के किसान के्रडिट कार्ड पर किसानों की खेती का क्रेडिट कर्ज में देखा जाए तो 6 अरब रुपए की फसल किसानों ने कर्ज से पैदा की है। जिसे 90 फीसदी मौत के मौसम ने बर्बाद कर दिया है। सूबे के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने किसानों के लिए मुआवजे की घोषणा करते हुए 200 करोड़ रुपए जारी करने का दावा किया है। तत्कालीन चित्रकूट मंडल आयुक्त पीके सिंह ने जिलाधिकारी बांदा सुरेश कुमार प्रथम के साथ कुछ गांवों में खुद जाकर किसानों के बिगड़े हालात का जायजा लिया। उन्होंने लेखपाल को सख्त हिदायत दी है कि कहीं भी सर्वे करने में लापरवाही न बरती जाए। मगर गांव से छनकर आती हुई खबरें यह भी बताती हैं कि मुख्तयार खाने से जमीनों के नक्शे उड़ा देने वाले लेखपाल किसानों के मुआवजों के लिए सुविधा शुल्क लेने के बाद सर्वे रिपोर्ट लगा रहे है। होली से पहले और होली के बाद तक किसानों की आत्महत्याओं का सिलसिला थमा नहीं। 9 मार्च को जिला जालौन के उरई- आटा थाना के गाँव बम्हौरी निवासी गोटीराम और चमारी गाँव के उमेशपाल ने मौत को गले लगाया। 


22 मार्च को देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र दामोदर दास मोदी किसानों से मन की बात कर रहे थे और बुंदेलखंड का किसान सियासी प्रवचन से ऊबकर आत्महत्या और आत्मदाह कर रहा था। बानगी के लिए बांदा के पैलानी तहसील के ग्राम नान्दादेव के किसान सिद्ध पाल एवं रामप्रसाद पाल ( सगे भाई ) ने अतिवृष्टि एवं ओलावृष्टि से नष्ट हुई फसल का मुआवजा ना मिलने के चलते मानसिक अवसाद में खुद को बीच चैराहे में आग के हवाले किया था। दोनों का इलाज तिंदवारी विधायक दलजीत सिंह की तरफ से 10 हजार रुपए मदद करने के बाद हो रहा है। हैरत की बात है कि पीड़ित किसान को देखने सरकारी अधिकारी नहीं पहुंचे। इसी क्रम में 22 मार्च को ही बबेरू के बिसंडा क्षेत्र से सिकलोढ़ी गांव में युवा किसान रामनरेश द्विवेदी ने भाई की लाइसेंसी रायफल से खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली। अफसर और नेताओं की धमाचैकड़ी ने गांव के संनाटे को तोड़ा आत्महत्या से चंद घंटे पहले मृतक किसान को 31 हजार 285 रुपए के बकाए का बिल मिला था। रविवार को दोपहर खेत से मसूर की चैपट फसल देखकर इस किसान ने खुदकुशी कर ली। इस पर 88 हजार रुपए का कर्ज इलाहाबाद यूपी ग्रामीण बैंक पुनाहुर शाखा का बकाया है। इसी तरह 20 मार्च को अतर्रा के महुआ ब्लाक के अनथुआ गांव के 60 वर्षीय किसान रामऔतार कुशवाहा की तबाह फसल के सदमे में दिल का दौरा पड़ने के बाद जिला अस्पताल बांदा में मौत हो गई। यहां यह भी बताते चलें कि देश के प्रधानमंत्री ने उन किसानों को 5 हजार रुपए पेंशन देने की घोषणा शहीद दिवस पर की है जो 60 वर्ष के हो चुके हैं, लेकिन प्रधानमंत्री जी बुंदेलखंड के अधिक्तर किसान तो 60 वर्ष से पहले ही आत्महत्या कर रहे है। प्रवासनामा संवाददाता जब मृतक किसान राम औतार कुशवाहा के घर पहुंचा तो शोक में डूबा परिवार किसान की आत्मा की शांति के लिए गरुण पुराण सुन रहा था। इस किसान की 2 सयानी बेटियां रजनी और विमला ब्याह के लिए बैठी हैं जिनका आसरा उनकी मां सतबंती और भाई की आस पर टिका है।

आशीष सागर 
संपादक - प्रवासनामा मासिक पत्रिका 
बांदा-बुंदेलखंड 
ashish.sagar@bundelkhand.in