Wednesday, November 25, 2015

तस्वीर - चित्रकूट जिले में बना विशेष बुन्देलखण्ड पॅकेज से रसिन बांध जो सूखा है आज ! और बाँदा जिले की केन नदी जसपुरा इलाके में !
Yogendra Yadav @ स्वराज्य अभियान के संयोजक और पूर्व आप पार्टी नेता का बुंदेलखंड के झाँसी मंडल में सूखे पर सर्वे किया है उसकी ये रिपोर्ट ज़ारी की गई है.चित्रकूट मंडल के चार जिले इसमे शामिल नही है जहाँ सर्वाधिक सूखा और भयावह मंजर है...- 




बुंदेलखंड में सूखा अब अकाल की कगार पर : सर्वेक्षण के चिंताजनक संकेत....!
- पीछले 8 महीने में 53% ग़रीब परिवारों ने दाल नहीं खायी, 69% ने दूध नहीं पिया, हर पाँचवा परिवार कम से कम एक दिन भूखा सोया।
- 38% गाँव से इस होली के बाद भुखमरी से मौत की रिपोर्ट।
- होली के बाद से 60% परिवारों में गेहूँ चावल की जगह मोटे अनाज और आलू का प्रयोग, हर छठे घर नें फिकारा (घास की रोटी) खायी।
- होली से अब तक 40% परिवारों ने पशु बेचे, 27% ने ज़मीन बेचीं या गिरवी रखी।
- 36% गाँव में 100 से अधिक गाय भैंस को चारे की कमी के कारण छोड़ने की मजबूरी।
उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड क्षेत्र में इस वर्ष का सूखा विकराल स्वरुप धारण करता जा रहा है। फसलों के नुक्सान, पानी की कमी और रोज़गार के अवसरों की कमी का असर अब सीधे सीधे इंसान और पशुओं के खाने पर दिखाई पड़ने लगा है। इससे यह अंदेशा पैदा होता है कि इस क्षेत्र के सबसे ग़रीब परिवारों के लिए भुकमरी की नौबत आ सकती है। ग़ौरतलब है कि इस क्षेत्र में लगातार तीसरे साल सूखा पड़ रहा है और इस साल ओलावृष्टि/अतिवृष्टि से रवि की फसल भी नष्ट हो गयी थी। इस संकटमय स्थिति का मुकाबला करने के लिए सरकार और प्रसाशन को तुरंत कुछ आपात कदम उठाने होंगे, चूँकि अब तक वह जनता तक राहत पहुँचाने में असमर्थ रहा है।
यह निष्कर्ष स्वराज अभियान द्वारा बुंदेलखंड की सभी 27 तहसीलों के 108 गांवों में किये सर्वेक्षण से सामने आया है। इस सर्वे में कुल 1206 परिवारों (सबसे ग़रीब 399 सहित) का इंटरव्यू किया गया। दशहरा और दिवाली के बीच हुए इस सर्वे में स्वराज अभियान और बुंदेलखंड आपदा राहत मंच के कार्यकर्ताओं ने गाँव गाँव जाकर सूखे के असर का जायज़ा लिया। सर्वे का निर्देशन योगेन्द्र यादव ने संजय सिंह (परमार्थ औरई), ज़्याँ द्रेज़ (राँची) और रीतिका खेड़ा (दिल्ली) के सहयोग से किया। यह निष्कर्ष सर्वे में लोगों द्वारा दी गयी सूचना पर आधारित है। इसकी स्वतंत्र जाँच नहीं की गयी है।
बुंदेलखंड में खरीफ की फसल लगभग बर्बाद हो गयी है। ज्वार बाजरा मूंग और सोयाबीन उगाने वाले 90% से अधिक परिवारों ने फसल बर्बादी की रपट दी। अरहर और उड़द में यह प्रतिशत कुछ कम था। केवल तिल की फसल ही कुछ बच पायी है। वहाँ भी 61% किसानों ने फसल बर्बादी का ज़िक्र किया। सूखे के चलते पीने के पानी का संकट बढ़ रहा है। दो तिहाई गाँव में पिछले साल की तुलना में घरेलू काम के पानी की कमी आई है, आधे के अधिक गाँव में पानी पहले से अधिक प्रदूषित हुआ है। दो तिहाई गाँव से पानी के ऊपर झगड़े की खबर है। पानी का मुख्य स्रोत हैण्ड-पम्प है। लेकिन सरकारी हैण्ड-पम्पों में कोई एक तिहाई बेकार पड़े हैं।
सर्वेक्षण के सबसे चिंताजनक संकेत भुखमरी और कुपोषण से सम्बधित है। पिछले एक महीने के खान-पान के बारे में पूछने पर पता लगा कि एक औसत परिवार को महीने में सिर्फ़ 13 दिन सब्ज़ी खाने को मिली, परिवार में बच्चों या बड़ों को दूध सिर्फ़ 6 दिन नसीब हुआ और दाल सिर्फ 4 दिन। ग़रीब परिवारों में आधे से ज़्यादा ने पूरे महीने में एक बार भी दाल नहीं खायी थी और 69% ने दूध नहीं पिया था। ग़रीब परिवारों में 19% को पिछले माह कम से कम एक दिन भूखा सोना पड़ा।
सर्वे से उभर के आया कि कुपोषण और भुखमरी की यह स्थिति पिछले 8 महीनों में रबी की फसल खराब होने से बिगड़ी है। सिर्फ़ ग़रीब ही नहीं, लगभग सभी सामान्य परिवारों में भी दाल और दूध का उपयोग घट गया है। यहाँ के 79% परिवारों ने पिछले कुछ महीनों में कभी ना कभी रोटी या चावल को सिर्फ़ नमक या चटनी के साथ खाने को मजबूर हुए हैं। 17% परिवारों ने घास की रोटी (फिकारा) खाने की बात कबूली। सर्वे के 108 में से 41 गावों में इस होली के बाद से भुखमरी या कुपोषण से मौत की रपट भी आई, हालाँकि इसकी स्वतंत्र पुष्टि नहीं हो सकी। इस सर्वे में आसन्न संकट के कई और प्रमाण भी आये। एक तिहाई से अधिक परिवारों को खाना मांगना पड़ा, 22% बच्चों को स्कूल से वापिस लेना पड़ा, 27% को ज़मीन और 24% को जेवर बेचने या गिरवी रखने पड़े हैं।
जानवरों के लिए भुखमरी और अकाल की स्थिति आ चुकी है। बुंदेलखंड में दुधारू जानवरों को छोड़ने की "अन्ना" प्रथा में अचानक बढ़ोत्तरी आई है। सर्वे के 48% गावों में भुखमरी से 10 या अधिक जानवरों के मरने की ख़बर मिली। वहाँ 36% गावों में कम से 100 गाय-भैंस को चारे के अभाव में छोड़ दिया गया है। जानवरों के चारे में कमी की बात 77% परिवारों ने कही तो 88% परिवारों ने दूध कम होने की रपट की। मजबूरी में 40% परिवारों को अपना पश बेचना पड़ा है और पशुधन की कीमत भी गिर गयी है।
इस संकट से निपटने के लिए सरकार और प्रसाशन को तुरंत कुछ बड़े कदम उठाने होंगे। इस संकट की घड़ी में मनरेगा योजना से कुछ लाभ नहीं हो पाया है। एक औसत ग़रीब परिवार को पिछले 8 महीनों में मनरेगा से 10 दिन की मज़दूरी भी नहीं मिली है। सरकारी राशन की स्थिति भी असंतोषजनक है। ग़रीब परिवारों में आधे से भी कम (केवल 42% के पास) बीपीएल या अंत्योदय कार्ड है।
स्वराज अभियान ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री से मिलकर मांग की थी कि कुछ इमरजेंसी कदम उठाये जाएँ। यह सर्वेक्षण बुंदेलखंड को लेकर हमारी उस चिंता को सही ठहराता है। सरकार ने इस सम्बन्ध में कई घोषणाएं की हैं। अब ज़रूरत है कि आम लोगों को अविलम्ब राहत पहुंचाई जाए।

सूखे की जद में महोबा का ' अपना तालाब अभियान ' !

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Bnada 25.11.2015 - कबरई (महोबा)- सूखे की वजह से किसानों की आत्महत्या का सिलसिला थमने का नाम नही ले रहा है.मंगलवार को कर्ज से परेशान युवा किसान सुनील ( तीस साल उम्र ) पुत्र मूलचंद्र प्रजापति निवासी ग्राम गहरा,कबरई जिला महोबा ने 50 हजार साहूकारों / बैंक के कर्जे से आजिज आकर कमरे में लगे पंखे से लटक के ख़ुदकुशी कर ली. तीन बीघा का कास्तकार ये किसान पिछले दो साल से इसी भूमि के सहारे भरण- पोषण कर रहा था ! खरीफ की फसल चौपट हुई और अब रबी ने भी धोखा दिया ! इधर नवम्बर माह के अंत तक किसान खेत में बुआई नही कर पाए है ! हाल ये है कि बाँदा की सीमा मटोंध कसबे के किसानो ने खेत में उडती धूल से पलेवा नही किया बकौल उमेश यादव उनके खेत का हाल ऐसा ही है क्या छोटे और क्या बड़े दोनों अबकी जलसंकट में है !
बतलाते चले कि महोबा में बीते दो माह में ये कोई पहली और अंतिम किसान आत्महत्या नही है ! ...इधर कबरई - कानपुर हाइवे में खेत के दोनों तरफ सैकड़ो मीटर सूखे पड़े चटियल खेत आपको यहाँ की वीरानी और नेशनल हाइवे में बेधड़क चल रहे नेताओ,क्षत्रिय समाज के क्रेसर से परती हुई खेतिहर जमीने सबकुछ बयां कर देगी ! यह अलग बात है कि क्षत्रिय समाज के पुरोधा भगवान राम ने नदी,वन,पहाड़ के मध्य अपने 14 साल बिताते हुए आदर्श स्थापित किया था लेकिन आज बुन्देलखंड में ये जाति ही सर्वाधिक खनन नदी-पहाड़ो का कर रही जो किसान की बदहाली का एक और बड़ा कारण है ! शामिल और भी है पर इतने नही ! ....महोबा- कबरई में 'अपना तालाब अभियान' के तहत कुछ तालाब बनाये गए थे देवास के बलराम तालाब योजना की तर्ज पर. तत्कालीन जिलाअधिकारी अनुज कुमार झा की रचनात्मकता और स्थानीय किसानों की ललक से ये हुआ भी ! महोबा के चरखारी तहसील में काकून गाँव में प्रसाशन ने इन तालाबो की संख्या में ' खेत तालाब योजना ' की तर्ज पर इजाफा किया ! आंकड़ो का क्या मुलम्मा रहा इसमे ये ज़िक्र करना उन चन्देल कालीन तालाबो के साथ बेमानी होगी जो आज भू माफिया के कब्जे में है ! कबरई का गाँव चिचारा यहाँ किसान मंगल सिंह भदोरिया का व्यक्तिगत एक बीघा खेत में 12 फुट गहरा तालाब भरा है जबकि ' अपना तालाब अभियान ' के ब्रांड एम्बेसडर रहे किसान ब्रजपाल सिंह का एक बीघा खेत में बना तालाब दो साल के सूखे की जद में आकर बेपानी हो गया है !...आज ये भी सूखा है ! ये करीब दो सौ बीघा के बड़े किसान है,उम्दा प्रतापगढ़ी आंवला पैदा करते है पर बाजार न होने से वो भी ख़राब हो जाता है....तहलका से लेकर अन्य पत्रिका में इन तालाबों पानी की नजीरवादी खबरें हुई मगर सूखे के मजनून को वे दूर न कर सके ! ख़बरें बनी और बासी हो गई..कभी महोबा में बने इन तालाबो की संख्या 400 बतलाई गई तो कभी 600 ! समुयानुसार आंकड़े बढ़ते - घटे बावजूद किसान आत्महत्या रुकी न पानी का संकट मिटा ! किसान के समक्ष पानी की भारी किल्लत है वे इसको प्रकृति का सन्देश मानते है कि मौसम बदलने का संकेत हो गया है अगर अभी भी हम नही सुधरे तो किसान के असल हत्यारे महोबा,बाँदा में ये खनन माफिया और वे योजनाये होगी जो आज अन्नदाता को मनारेगा और अन्य नलकूप से पानी न दे सकी ! कैसे थमेगी युवा किसान सुनील जैसी आत्महत्याए जो बुन्देलखंड की नियति बन चुकी है ! - ( तस्वीर में किसान ब्रजपाल सिंह और उनका सूखा तालाब ) आशीष सागर,बाँदा