Friday, January 15, 2016

मुख्य सचिव के आगमन पर भाकियू ( भानु ) का ज्ञापन !

सेवा में,                                                                                                    
      श्रीमान मुख्य सचिव, 
      उत्तर प्रदेश शाषन,लखनऊ 
विषय - बुंदेलखंड के जिला बाँदा,महोबा में आपके भ्रमण सन्दर्भ पर सूखे के भयावह परिद्रश्य एवं उसके समाधान विषयक ज्ञापन पत्र, इस ज्ञापन की प्रतिलिपि देश के प्रधानमंत्री माननीय नरेंद्र मोदी जी 
को प्रेषित।
महोदय,

      आप सादर बुंदेलखंड की चटियल सूखी धरती में आये है। हम जल संकट से जूझते बुन्देली आपके माध्यम से राज्य और केंद्र सरकार तक अपनी गुहार पहुंचा रहे है, कृपया निम्न बिन्दुओं पर ध्यान आकृष्ट करने का कष्ट करे। 
1 - वर्ष 1887 से 2015-16 फसली वर्ष में यह उन्नीसवां सूखा है। लगातार तीसरा वर्ष जलसंकट त्रासदी का खड़ा है , तब जब केंद्र के 7266 करोड़ रूपये में से 1305 करोड़ रूपये बुंदेलखंड विशेष पैकेज के यहाँ खर्च हो चुके है डैम और बंधियो,वृक्षारोपण में। इसकी सीबीआई गत दो साल से चल रही है मगर दोषियों पर आज तक कार्यवाही नही हुई।
2- विगत 5 नवम्बर को केंद्र सरकार के कृषि मंत्रालय एवं सहकारिता मंत्रालय(हार्टिकल्चर) के निदेशक अतुल पटेल,निदेशक के निजी सचिव पीएस सुनील कुमार ने सात जिलों के फौरी भ्रमण के बाद यहाँ 70 फीसदी खेत में खरीफ की फसल का नुकसान पाया था। यहाँ तक कि रबी की खेती में भी खेत खाली पड़े है क्योकि तालाब,कुओं और नलकूपों में पानी नही है। ग्राउंड वाटर 3 मीटर से अधिक नीचे जा चुका है बानगी के लिए यहाँ की सभी नदियाँ देख लेवे। 
3- गत एक दशक में उत्तर प्रदेश - मध्यप्रदेश से 62 लाख बुन्देली महानगर में रोजगार के लिए पलायन किया है(प्रवास सोसाइटी के आंतरिक सर्वे के अनुसार)तब जब मनारेगा से काम के अधिकार के दावे किये जाते है।
4- आज भी बाँदा के तहसील नरैनी क्षेत्र दोआबा(रंज-बाघे नदी) में बसे दो दर्जन गाँव मसलन मोहनपुर-खलारी,रानीपुर,शाहपाटन,नीबीं,नौगांवा,बरसड़ा मानपुर,फतेहगंज के बघेलाबारी,गोबरी-गुड़रामपुर सहित अन्य ग्राम पंचायत बिजली,स्वास्थ्य सुविधा से वंचित है इनके रहवासी दिए से अपना अंधकार मिटा रहे है। ऐसे ही गाँव शाहपाटन में आज तक पीडीएस सिस्टम दलित लोगों(रज्जन निषाद के तीन विकलांग पुत्र)को नही मिला है। अगर यह आगामी विधान सभा चुनाव तक नही प्राप्त हुए तो मतदाता नोटा का प्रयोग करेगा।
5- बुंदेलखंड के जनपद के बाँदा,महोबा और चित्रकूट में किसान बैंकों की दलाली व बीमा कम्पनी से हलकान है। बीमा कम्पनी बीमा प्रीमियम करने के उपरांत भी क्लेम न देने का चक्रव्यूह रचती है जिससे अब बड़े कास्तकार भी सदमे और आत्महत्या का शिकार हो रहे है, ऐसा आप बाँदा के जसपुरा-पैलानी क्षेत्र में जानकारी लेवे। बैंक,बीमा कम्पनी और राज्य सरकार तीनों किसान के जान के दुश्मन नजर आते है। 
6-बाँदा के नरैनी तहसील के ग्राम पंचायत हुसैनपुर(अल्पसंख्यक)में ग्राम प्रधान सगीर अहमद के मुताबिक 270 परिवार भूमिहीन भुखमरी की कगार पर है जिन्हें तत्काल राहत की आवश्यकता है। राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून बहाली होवे।
7- बुंदेलखंड को सूखा,अकाल से स्थाई रूप में बचाने के लिए जल,जंगल और पहाड़ -नदी का संरक्षण करे,यहाँ नदी और पहाड़ो का खनन पूरी तरह प्रतिबंधित होवे क्योकि ये इलाका अब नेचुरल डिजास्टर की तरफ है। कृषि भूमि क्रेशर उद्योग के चलते परती है महोबा में। 
8- किसानों को समय से सरकार अपने विधायक और सांसद के माध्यम से किसान लाभार्थी सूचि देकर गाँव -गाँव मुआवजे बंटवाने की व्यवस्था करे ताकि लेखपाल की दलाली से राहत मिले। अन्ना प्रथा को रोकने के लिए ग्राम पंचायतो में पूर्व में स्थापित चारागाह की जमीन को भू माफिया से मुक्त करवाए (इस पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश भी है तालाबों-चारागाह के सम्बन्ध में)।
9- गाँव में कृषि आधारित रोजगार और पारंपरिक खेती के बीजो का संरक्षण करे ताकि मोटे अनाज और सजीव खेती को लाभ हो सके।
                        ( सादर सूचनार्थ कार्यवाही हेतु प्रेषित ) 

नोट - उपरोक्त ज्ञापन गत तेरह जनवरी को मुख्य सचिव को बाँदा में भारतीय किसान यूनियन ( भानु गुट ) ने दिया  है !

मुख्य सचिव अलोक रंजन बुंदेलखंड में 'अलोक ' न कर पाए !

16 जनवरी बाँदा- 

' कल था चमन आज सहरा हुआ,उफ देखते ही देखते ये क्या हुआ ' !

मुख्य सचिव अलोक रंजन,उत्तर प्रदेश सरकार बुंदेलखंड के दो दिवसीय दौरे से वापस अपने पंचम तल लौट गए ! बाँदा के लोहिया ग्राम पडुई के प्राथमिक स्कूल में बना वीआईपी स्विस काटेज ' मोबाइल सर्किट हाउस की तबियत आज नसाज है ! उसकी नाड़ी देखने वाला न सरकारी अमला गाँव में है और न इस अवसर को कैश कराने वाले जनसेवक ! जिससे जो बन पड़ा उसने वो पैतरा चला मुख्य सचिव की चाटुकारिता में ! क्या स्थानीय नेता,क्या समाजसेवी,कालेज के प्राचार्य और क्या आला अधिकारी सब एक चौपाल में बुन्देली बात कहने को तैयार लेकिन सच को दफ़न करते हुए ! 
मुख्य सचिव अलोक रंजन के सामने किसी जनसेवक ने नदी- पहाड़ो के खनन की बात न उगली ! किसी नेता ने खुद को रेत - पहाड़ का माफिया न कहा ! सूखा तो है समाधान सब चाहते है मगर यह भूलकर कि बुंदेलखंड के तालाब स्थानीय भू-कब्जेदार की चपेट में कैसे आ चुके है ? एक जनसेवक मुख्य सचिव को गाँव में तिलक करके एक रुपया देता है मगर यह बात नही कहता कि गरीबों के लिए आये शौचालय मैंने अपने परिवार को क्यों दिला दिए ? असहाय के लिए मिले इंद्रा आवास में इसी गाँव के प्रगतिशील किसान और लम्बरदार कैसे जम गए ? सब खामोश है अपनी लंगोट का मैला दिखलाने में कही बदबू निकली तो पूरा क्रीमी तबका गंधा जायेगा ! मुख्य सचिव मानते है कि बुन्देलखंड में 53 फीसदी खेत बोये गए है जबकि हाल ही में आये केन्द्रीय दल सहकारिता एवं कृषि मंत्रालय के हार्टिकल्चर निदेशक अतुल पटेल ने दावा किया था कि यहाँ 70 फीसदी खरीफ की फसल नष्ट हुई है और खेत खाली है रबी में ! सपा के  सांसद विशम्भर निषाद,विश्वम्भर यादव अलोक रंजन के सरकारी स्पीकर की तरह हाँ में हाँ मिलाते रहे और कहा गया कि सब योजनाये अमल में लाई  जायेगी

 ! 

इधर मुख्य सचिव पडुई से 14 की सुबह जब विदा होते है तो पगडंडी में गाँव की बे-पहुँच वाली औरतें रास्ते में गुहार लगाती है कि ' साहेब तुमका पूर गाँव घुमबें का चाही ' ! 
उधर मुख्य सचिव से न मिल पाने के दुःख में नरैनी के मानपुर गाँव की बेलपतिया पत्नी मृतक राजाराम ( गत अप्रैल में आत्महत्या की थी कर्जे से आहत ) अपने गाँव भाऊराम के पुरवा में काला दिवस मना रही थी ! उसने कहा कि मुझे मिलने वाली पारिवारिक लाभ योजना के तीस हजार रूपये बैंक मैनेजर ने बिना मेरी सहमती के बैंक खाते में जमा कर लिए है ! बेलपतिया चेतावनी देती है कि 26 जनवरी से गाँव में सत्याग्रह करेगी और अगर मांग न मानी तो आत्महत्या कर लेगी !

Monday, January 11, 2016

अस्तित्व के लिए जूझती छोटी नदियाँ !

साभार - Vivek Tripathi की यह स्टोरी अबकी लाइव इंडिया पत्रिका में प्रकाशित है,
विवेक दैनिक हिंदुस्तान लखनऊ से है.....!

          
सतत प्रवाह नदी का धर्म है, उसकी पहचान है. लेकिन व्यक्ति का उपभोगवादी चिन्तन इसमें बाधक बन गया है. सरकारें नदियों को बचाने का डंका भले ही पीट रही हों पर बड़ी नदियों की अपेक्षा छोटी नदियों को जीवित करने पर उनका ध्यान नहीं है. मध्यप्रदेश के कटनी से निकलने वाली केन नदी की दुर्दशा को देखें तो वह लचार नजर आ रही है। 427 किमी. लम्बाई वाली नदी अपने निर्मल जल के लिए जानी जाती लेकिन आज उसमें नाव चलाने के लिए भी जल नहीं बचा है। खनन मफियाओं ने तो पहले से इसकी दुर्दशा कर रखी है. बची-खुची जान सूखे की मार ने निकाल दी है। हलात ऐसे हो गये हैं वहां घुटनों के नीचे भी नहीं है। इस तरह से तो नदियों का जीवन खतरे में पड़ता दिख रहा है. जो 20 लाख की आबादी को लभान्वित करती थी उसके बारे में शायद कोई नहीं सोंच रहा है. 




सामाजिक कार्यकर्ता आशीष सागर ने नदियों के क्षेत्र में बहुत काम किया है.लेकिन इनके अनुभव भी अच्छे नहीं हैं. इनका काम मध्य प्रदेश की नदियों पर भी है. मध्यप्रदेश के जबलपुर, कटनी जिले के रीठी तहसील से दो किलोमीटर दूर एक खेत से केन नदी निकली है. जहां आज भी कई ऐसे प्रमाण हैं जिन्हें देखकर लगता है कि मुगल काल से पहले हिन्दू चंदेल शासकों ने इसे उद्गम स्थल के रूप में मान्यता दी थी. लेकिन अफसोस कि आज इसे स्वतंत्र भारत के अगुवाओं ने भुला दिया है.
यमुना की एक उपनदी या सहायक नदी के रूप में मान्यता वाली यह नदी बुन्देलखंड क्षेत्र से गुजरती है. दरअसल मंदाकिनी तथा केन नदियां, यमुना की अंतिम उपनदियाँ हैं. इनके बाद यमुना नदी, गंगा में विलीन हो जाती है. रीठी के पास केन के उद्गम स्थल को नदियों की सीमाओं की खोज करने वाली यूएसए की आन लाइन लाइब्रेरी एस्कार्ट ने अपने रिकार्ड में भी इसे समावेशित किया है. किन्तु भारत में इस नदी के विषय में सिर्फ इतना ही कहा जाता है कि यह दमोह-जबलपुर अथवा कैमूर पर्वत श्रृंखलाओं से निकली है.

केन को अपने रौद्र रूप में अगर देखना है तो पन्ना टाइगर्स वाया छतरपुर-सागर मार्ग में केन-बेतवा लिंक में प्रस्तावित गंगऊ डैम के पास देखें. यह पहाड़ी नदी अपने शबाब दिखती है. पिछले दो साल के सूखे ने इसकी 6 सहायक बरसाती नदियों को भी सुखा दिया है. बाँदा बुंदेलखंड की बाणगंगा, बाघे, कडैली, रंज और महोबा की धसान, उर्मिल शामिल हैं. इसी कारण से इसका प्रभाव केन में भी देखने को मिल रहा है.
बावजूद इसके इसकी धारा को तोड़ दिया गया. खनन माफियाओं ने इसे नष्ट कर इसके अस्तित्व को खोखला कर दिया है. हालांकि अभी यह दौर जारी है। एमपी सीमा की तरफ नदी सूख रही है. चिल्ला के पास तो इस नदी का अस्तित्व ही समाप्त हो गया है.
इतना ही नहीं यहां पर माइनिंग वाले रास्ता को रोककर नदी के मार्ग को अवरुद्ध करते हैं. इस सूखे से निपटने के लिए सरकार ने अभी कोई प्रभावी कदम नहीं उठाया है.
हालात ऐसे हैं कि केन में पाया जाने वाला शजर पत्थर आज विलुप्ति की ओर है. यह पत्थर पूरे विश्व में अपनी कला के लिए जाना जाता है. इसमें प्रकृति के सुन्दर चित्र पेड़, पहाड़, पक्षी या मानव की छाया नैसर्गिक कलाकारी से बनती है.बाँदा से शजर मक्का-मदीना तक जाता है पर उन्हें ये जानकारी नहीं होती कि ये कहाँ से आया है. हज यात्री शजर में कुरान की पाक आयतें लिखवाकर लाते हैं. कभी ये पत्थर अफगानिस्तान तक यहाँ से जाता था. आज खुला बाजार न होने से बाँदा की 34 लघु फर्म बंदी की ओर हैं. इसका उपयोग मात्र चार में काम होता है. इसको तराशने का कमोवेश जितना ही केन नदी का उद्गम स्थल अजीबो-गरीब है, उतनी ही इसके उद्गम की कहानी भी आश्चर्यजनक है.
उप्र में फतेहपुर जनपद के द्वाबा क्षेत्र अपने आप में चर्चित ससुर खदेरी नदी मानव समाज के अतिक्रमण का शिकार है. नदी के प्रवाह को रोककर उसके किनारे खेती हो रही है. नदी का स्वरूप कम हो गया है.
इस नदी का उद्गम स्थल जनपद के विकास खंड तेलियानी के ठिठौरा के पास माना जाता है. यह लगभग 42 गांवों की सीमाओं को स्पर्श करती हुई गुजरती है. धाता विकास खण्ड के सैदपुर ग्राम के पास यमुना नदी में मिलती है. यह लगभग एक लाख 32 हजार 903 की जसंख्या को सीधे लाभ पहुंचाती है. आबादी के जुड़े हुए सीमाओं को भी लाभ पहुंचाती है. कालांतर में इस नदी से हजारों हेक्टेअर कृषि सिंचित होती थी. जलचरों का निवास हुआ करता था. जंगली जानवर व पशु इससे अपनी प्यास बुझाते थे. इसके जीवनोपयोगी जल आपूर्ति का एक मात्र साधन हुआ करता था। किन्तु अब यह स्थिति पूरी तरह से बदल चुकी है.
स्थानीय लोगों में इस बात की चर्चा रहती है कि यह नदी कभी स्थानीय कृषि और किसानों सहित भूगर्भ और पर्यावरण के लिए जीवनदायिनी थी. लेकिन अब मृतप्राय है. हलांकि इसे पुनर्जीवित करने का प्रयास जारी हो चुका है.
इसे पुनर्जीवित करने का काम जिलाधिकारी कंचन वर्मा ने शुरू कराया. बरसात शुरू होने से पहले 5000 मजदूर लगवाकर वृक्षारोपण कराया. लोगों की भी मदद ली गई थी.
तार्किक रुप से विलुप्त मानी जा रही सरस्वती नदी जीवित होने पर 125 गांवों की लगभग 10 लाख जनसंख्या को सीधे लाभ मिलने वाला है. इसके अलावा लगभग 200 ग्रामों एवं लाखों की आबादी को भी लाभ मिलेगा. यह लाभ ऐसे 125 गांवों के लोगों को मिलेगा जो तटीय सीमाओं से जुड़े हैं.
सरस्वती नदी का उद्गम अखनई झील है. यह सबसे बड़ी झील है. इसकी लम्बाई लगभग 6 किमी. है. एक किलोमीटर चैड़ी भी. धान गेंहू, ज्वार, मक्का, अरहर जैसे फसलों की सिंचाई में सहयोगी हुआ करती थी. इस झील में एक विशेष औषधि लालरण और रुद्रवन्ती पाई जाती है. यह हर तरह से लोक कल्याणकारी जल देने वाली नदी है.
पाण्डु नदी कन्नौज के पास से झाझर झील से निकली है. कानपुर देहात, बिल्हौर, शिवराजपुर और फतेहपुर जिले के पश्चिम दिशा में देवमई ब्लाक के परसदेपुर गांव के पास प्रवेश करती है. बरसात के दिनों में इस नदी की तेज व गहरी धारा देखकर लोग कांप उठते हैं। नदी छिवली, कौडि़या, गलाथा, अभयपुर, बड़ाखेड़ा, जाडे का पुरवा, औसेरीखेड़ा, शिवराजपुर, भाऊपुर होते हुए गुनीर के पास गंगा नदी में मिल जाती है.
वर्तमान में इस नदी को पुनर्जीवित करने का काम कर रहे शिवबोधन मिश्र के अनुभव के मुताबिक पानी के नाम पर कानपुर की फैक्ट्रियों का गंदा पानी इस नदी में ही आ रहा है. पानी बहुत विषैला हो गया है. कानपुर, के सारे गंदे नाले गिर रहे है, अतिक्रमण भी हो रहा है. पानी बहुत ज्यादा गंदा होने से जलीय जीव समाप्त हो चुके हैं। पूरी नदी का पानी काला हो चुका है. हालात ऐसे हैं कि अब इसके किनारे इंसान तो क्या जानवर भी नहीं जाते। शायद जानवरों में इस बात का आभास है कि इस नदी का जल पीने अपने प्राण गंवाने के समान है. ऐसी हालत उत्पन्न होने के बाद भी सरकारें चेत नहीं रहीं हैं और न ही समाज के अगुवा ही इस ओर ध्यान दे रहे हैं.
इसे पुनः जीवित करने के लिए वृक्षारोपण जरूरी है. ग्रामीणों के सहयोग से इसे साकार करने की कोशिशें तेज हैं. इस गहरा करने की कवायद भी हो रही है. जलस्रोत ढूंढ़े जा रहे हैं. ग्रामीण चेकड्रोम बना रहे हैं. हालांकि अभी यह कवायद बहुत ही धीमी गति से हो रहा है...!

Sunday, January 10, 2016

भारतीय किसान यूनियन की किसान महा पंचायत झाँसी के मऊरानीपुर में हुई -


'' तुम्हारी फाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है,
मगर ये आंकड़े झूठे है,ये दावा किताबी है !'' 




मऊरानीपुर (बंगरा ) झाँसी - बीते 9 जनवरी बुंदेलखंड के जिला झाँसी में मऊरानीपुर तहसील के क्षेत्र बंगरा में भारतीय किसान यूनियन ( भानु गुट ) की किसान महापंचायत का आयोजन हुआ..! 
आस- पास के गाँवो से आये किसान,महिला और युवा के साथ- साथ बच्चे भी गैरहा इंटर कालेज में हुए किसान महापंचायत के साक्षी बने ! किसान महापंचायत में इंडिया टुडे के विशेष संवाददाता पियूष बबेले ने किसानो को जागने की पैरवी करते हुए कहा कि अब सत्ता और निजामों से डरना छोडके अपने लिए आये सरकारी धन का हिसाब मांगना सीखिए ! आपने सवाल करना बंद कर दिया और नेताओं ने व्यवस्था में सड़ांध फैला दी ! 
उन्होंने कहा कि जितना श्रम किसान का अन्न उत्पादन में लगता उतनी कीमत न मंडी में मिलती है और न खुली आढ़त में ! 
एनडीटीवी के ब्लॉगर और जनसत्ता के पूर्व पत्रकार सुधीर जैन ने अपने विकास के लिए अब तक के शब्दों के सफरनामे का बुन्देली हित में व्याखान दिया ! उन्होंने सतही बुन्देली विकास के लिए चन्देल कालीन तालाबो के पुनर्निर्माण,नदी - पहाड़ो में खनन पर रोक की बात कही ताकि यहाँ नेचुरल डिजास्टर को रोका जा सके ! 
कार्यक्रम के संयोजक भारतीय किसान यूनियन के बुंदेलखंड अध्यक्ष शिवनारायण सिंह परिहार,राष्ट्रीय उपाध्यक्ष हीरालाल सिंह भौदोरिया ने सभी जनपद से आये भाकियूं के जिलाअध्यक्षों और अन्य पत्रकार संतोष पाठक,रामनरेश यादव,जीशान अख्तर और बाँदा के साथी- सलाहकार अधिवक्ता विवेक सिंह कछवाह,सदस्य किसान कुंअर विनोदराजा आदि की उपस्थति में आशीष सागर दीक्षित को भारतीय किसान यूनियन (भानु गुट) का बुंदेलखंड प्रवक्ता पद में मनोनयन की घोषणा की गई ! सम्मान पत्र,किसान का हल,मनोनयन पत्र देकर उनकी हौसलाअफजाई की गई. मनोनयन के बाद अपने संबोधन में संवाददाता ने कहा कि '' जितने हरामखोर थे गर्दो-गुबार में, प्रधान बनके आ गए अगली कतार में '' किसान आत्महत्या और यहाँ की भयावह सूखे पर चुप्पी तोड़ने की हिदायत देते हुए प्रवक्ता ने सरकार को सावधान हो जाने की बात कही !
सैकड़ो किसानो के बीच बुन्देली सूखे की तपिश और किसान आत्महत्या, कथित घास की रोटी पर प्रहार किये गए और निकट भविष्य में किसान आन्दोलन की मंशा बने ऐसा सुझाव बना !