Saturday, April 30, 2016

' समाजवादी वोट किट ' या राहत पैकेट !

‪#‎समाजवादीराहतकिट‬ ‪#‎यूपीसीएम‬ ‪#‎बुन्देलीसूखा‬

1 मई 2016 ' समाजवादी वोट किट ' @ क्षेत्र नरैनी- पन्ना मार्ग आँखों देखी !बाँदा ( रेहुंची ग्राम पंचायत ) - बुंदेलखंड में सूखा राहत के नाम पर वितरित किये जा रहे ' समाजवादी वोट किट ' / राहत पैकेट का स्याह सच ये तस्वीरों में है !!

पहले भी मैंने अपने पोस्ट में इस सियासी मुफ्तखोरी पर सवाल उठाया था कि समाजवादी मुख्यमंत्री राहत किट के नाम पर भले ही अपनी पवित्र मंशा लिए हो लेकिन डिब्बे का रंग और स्थानीय जनपद में इसके आड़ में किये जा रहे सीडीओ / बीडीओ की कालाबाजारी की हद पार है ! बाँदा में नरैनी विकासखंड के गांवों में यह तस्वीर बतला रही है कि ग्राम प्रधान और कोटेदार बेबस होकर इनको लेने को मजबूर है ! जैसे पानी के टैंकर का सियासी उपयोग हुआ ( जो समाजवादी विधानसभा प्रत्याशी है उसके ही हाथों हरी झंडी दिखलाकर मनचाहे गाँव में टैंकर भेजा जा रहा है ! ) बीते 30 अप्रैल को ग्राम पंचायत रेहुंची और पंचमपुर के लिए ब्लाक से सड़े आलू बोरी में भिजवाये गए है ! यह राहत किट फुटकर में ही 1290 रूपये की आ रही है जिसको 1900 रूपये में ठेकेदार ने क्रय किया जबकि यह बड़े पैमाने में ली गई है उस हिसाब से इसका मूल्य और कम होगा !! इसमे भरा है (10 किलो आटा,5किलो चने की दाल,5 लीटर सरसों का तेल,एक किलो घी,एक किलो मिल्क पाउडर,25 किलो आलू )
                                                         



 
                                           
बाँदा में इस किट ने गाँव को ' समाजवादी वोट किट ' में रंग दिया है ! किसान को मुफ्तखोरी और काम न करों हम सब है न ! की तर्ज पर इस तरह राशन देना न्यायोचित नही है, इस किट को देकर अगर हम किसान से कहते कि अपने लिए कुछ काम कर लो मसलन गाँव में सूखे पड़े कुंए की खुदाई,तालाब की सफाई या अन्य विकास सहयोग गाँव का करों,उसके बाद ये दिया जाता तो बुन्देली किसान सियासत की भेंट न चढ़ता !...काम के बदले आनाज देते !...चुनाव आते ही साड़ी,राशन बांटा जाना ही इस इलाके / प्रदेश की सूरत नही बदलने दे रहा है !...किसान को हौसलामंद बनाये न कि नकारा आदमी ! बाकि आपके सरकारी कर्मचारी और अधिकारी इसके रस्ते क्या गुल खिला रहे है उसका अनुश्रवण भी करते मुख्यमंत्री तो बेहतर होता !!

Friday, April 29, 2016

बुंदेलखंड में पलायन का दर्द !


http://www.aajsamaaj.com/article/555.html
न खेत में दाना,न पेट में पानी,
सूखी आँखों में रोज सुबह होती है !
गदेल ( युवा ) छोड़ गए बखरी,
गरीबी में खेले पत्ता , सुनाते खरी- खरी !
                


आते नही अफसर और लेखपाल गर्मी में,
प्रधान खा रहे योजना सबरी बेशर्मी में !
पशुओं को चारा और राहत पैकेट की ये सच्चाई है,
जो है पक्का समाजवादी यह उसकी लुगाई है !
पानी के टैंकर तक में यहाँ घोटाला है,
बुंदेलखंड में पलायन से गाँव का दीवाला है !!!


( तस्वीर महोबा के ग्राम गुगौरा की जहाँ जलसंकट और क्रेशर का गुबार किसान की आंते निकाल रहा है ! )

Thursday, April 28, 2016

महोबा का मदन सागर होगा पानी- पानी !


'पहाड़ और क्रेशर माफिया अब तालाब बचा रहे ' !!

28 अप्रैल,महोबा- गत 27 अप्रैल को बुंदेलखंड के जनपद महोबा में पूर्व वर्ष ( कीरत सागर ) की भाँती अबकि मदन सागर में में श्रमदान की रस्म निभाई गई ! सूत्रों की माने तो वर्तमान शिक्षा व्यापारी एवं पूर्व क्रेशर संचालक जिनके भाई के नाम अब भी कबरई में पहाड़ तोड़ने के क्रेशर है अरबिंद सिंह ( चन्द्रिका देवी बालिका महाविद्यालय,महोबा ) / एक कालेज कबरई में स्थापित ) ने महोबा की ग्रामोन्नति सेवा संस्थान ( अनुदानित टाटा/ वाटर एड ) के सानिध्य में देश के ' जलपुरुष ' के साथ तालाबों को पुनर्जीवित करने के लिए फावड़ा चलाया है !! उनके साथ लैकपेड घोटाले के अभियुक्त पूर्व मंत्री बादशाह सिंह ( क्रेशर / पहाड़ माफिया ) भी गंवई मंच में उपस्थित थे ! सूत्र बतलाते है कि बीते साल महोबा जिलाधिकारी अनुज कुमार झा की अगुआई में यह श्रमदान भरपूर हुआ था,तस्वीर ली गई,देश भर में ऐसा करने वालों ने खूब मार्केटिंग की बुंदेलखंड में दूसरा 'जलपुरुष ' पैदा करने को मगर अभी अरमान बाकी है ! 
                                                               


कागजी आंकड़ो में यह 400 खेत तालाब बना चुके है ! जिसमे बावजूद इसके महोबा में पानी की जंग की ख़बरें समाचार को तरबतर किये है ! ...इसी श्रंखला में यह अगली कड़ी है ! गौरतलब है ग्रामोन्नति सेवा संस्थान कबरई के गुगौरा गाँव में एक मीठे पेयजल प्रदान करने वाले कुंए का पानी वाटर एड के सहयोग से किये गए पुनर्निमाण में छीन चुकी है ! हाल यह है कि कभी इस कुंए से अपना खाना पकाने वाले ग्रामीण आज उसके बदबूदार पानी को नही पी सकते ! महोबा के बेलाताल,कीरत सागर,विजय सागर की तरह यह मदन सागर भी अब सूखे की तस्वीर लिए है ! ...चन्देल कालीन इन्ही तालाबों से कभी महोबा पानीदार हुआ करता था जिसकी सुध शायद उत्तर प्रदेश सरकार को आ गई है कि ' यहाँ तालाब नही जिंदगी सूख रही है ' ! ...यह मदन सागर भविष्य में कितना लबालब होगा यह फ़िलहाल समय की गर्त में है ! तालाबों की ब्रांडिंग करने वाले अगर वास्तव में संजीदा हो तो ये काम अथिश्योक्ति पूर्ण भी नही है लेकिन सम्मान,छपास की भूख में पानी - पानी बेपानी हो जाता है !!! वैसे भी जब समाजसेवा का कुनबा समाजहित से परे एक जाति विशेष से घिरने लगे तब यह होना लाजमी है !

Monday, April 25, 2016

तालाबों का शहर पन्ना बेपानी हो गया !

नोट - सभी तस्वीर आशीष सागर स्वतः है,बिना स्थान संदर्भ दिए जनहित में प्रयोग न करे ! सन्दर्भ से पन्ना के लोग शायद पानीदार हो जाये ! 
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'पन्ना के तालाब बन गए गधों की चोहड़ ' !

17 अप्रैल - गत 10 अप्रैल से 14 अप्रैल तक बुंदेलखंड के उत्तर प्रदेश - मध्यप्रदेश के 6 जिलों से गुजर कर जो देखा और सुना वो बुंदेलखंड के सूखे की विकरालता को समझने के लिए काफी है ! मेरे साथ बीबीसी (हिंदी ) के समीर आत्मज मिश्रा भी थे ! यहाँ सूखा है इसलिए कथित घास की रोटी नही बनेगी यह भी सच है ! जाहिर है जब पानी नही तब घास कहाँ से आएगी ? 
बुंदेलखंड के एमपी वाला हिस्सा और पन्ना जल संकट से बेहाल है,बेदम है तब जब कभी यहाँ चन्देल कालीन तीन बड़े तालाब जिनकी उपमा के लिए उनके नाम से सागर शब्द जोड़ दिया गया था आज पानी विहीन है !..ऐसे ही तीन तालाब लोकपाल सागर( महेंद्र महाराजा लोकपाल सिंह जूदेव ने 1894 - 1909 के मध्य बनवाया था,इन्हे तत्कालीन अंग्रेज अफसर ने इस पुन्य कार्य के लिए 'राजनीतिक एजेंट' करार दिया था जो 147 एकड़ के लोकपाल सागर तट पर लगे शिलापट पर अंकित है.वर्ष 2005 के में आई बाढ़ के बाद यह भरा नही अब तक पूर्णरूप से). इस लोकपाल सागर के एक बड़े हिस्से में अवैध कब्जे है,यहाँ तक की एक हिस्से में जल दोहन करने वाले यूके लिपटिस का बाग़ तैयार है,तस्वीर में देखे !...हाँ आज तालाब में इतना पानी अवश्य बचा है कि आदमी की जगह 'गधे' उसमे उतारकर अपनी प्यास बुझा सके जैसा तस्वीर से साफ है ! ...आज पन्ना के धर्म सागर कुल रकबा 75 एकड़ है यह कभी किलकिला नदी जो पन्ना-सतना मार्ग की पहाड़ियों से निकली है के किलकिला फीडर से भरता था ! मगर आज स्थानीय दलित ग्रामीण ने सियासी साथ पाकर एक मुहल्ला फीडर की छाती पर बसा दिया है ! ...यह ऐसे तालाब थे कभी कि जहाँ तक नजर हो पानी ही दिखता रहा होगा !...नगर पालिका के साथ पन्ना जिला कलेक्टर शिवनारायण सिंह चौहान भी इस कब्जे को अवैध नही मानते है !
                                                  





धर्म सागर के अन्दर जमा सिल्ट को सफाई का रूप देकर अभी बड़ी जेसीबी मशीन से उलीचा जा रहा है,पानी निकालने के बाद यह भरा कैसे जायेगा यह अहम् सवाल स्थानीय समाजकर्मी ( मानसी संस्थान सचिव / अध्यक्ष) सुदीप श्रीवास्तव बार- बार करते है ! सुदीप कहते है कि शिवराज सिंह सरकार ने पन्ना -सतना मार्ग पर जो सगरिया बांध बना दिया है हीरापुर गाँव के आदिवासी परिवार ( घोसी ठाकुर और गोड ) को विस्थापित करके वह भी आज धूल फांक रहा है ! यह सगरिया बांध करीब 3 करोड़ रूपये से बना था आज भी इसमे काम जारी है ! बाँध की दीवार जगह-जगह से दरकी है,इस बात को पन्ना कलेक्टर ने आफ द रिकार्ड स्वीकार किया कि यह सब फर्जी बना है !सगरिया बांध के पश्चिम में धोबी,पूर्व में यादव और बीच में गोड बसे थे !...चन्देल कालीन विशाल तालाबों से घिरा रहने वाला बुन्देली पन्ना हीरे की खदान से भी हलकान है ! ...प्राकृतिक जल स्रोत की सीधी हत्या इस इलाके के सरकार परस्त नेता,विधायक करते नजर आते है !...अगर यही सूरत रही तो पानी से बेदखल पन्ना मई तक त्राहि माम करता हुआ दहाड़ मारेगा ! 
अब पन्ना से साथी युसूफ बेग की नीचे लिखी पीड़ा पढ़े - साभार - 
Yousuf Beg @ पन्ना से - 
उफ मई की ये गर्मी अप्रेल में ही शुरू हो गई, पन्ना जिले में पेय जल का संकट गहराता जा रहा है. इंसान किसी तरह से नालों, झरियों, का गंदा पानी पीकर किसी तरह अपने गले तर कर रहा है लेकिन इस भीषण गर्मी से जानवरों के जीवन पर भी संकट छा गया है । 
आज ग्राम पंचायत रमखिरिया के राजापुर ग्राम में देखा की लोग नालों ओर झिरियों के गंदे पानी से पेय जल की पूर्ति कर रहे हैं वहीं दूसरी ओर ग्राम खजरी कुडार में येसा भीषण पेय जल संकट है की 1 माह में लगभग 100 गायों ने दम तोड़ दिया है । गौ कमाता के नारे लगाने वालों को भी सूचित कर देना चाहता हूँ की इन माताओं को इस विकट परिस्थिति से निकालने का सार्थक प्रयास करें तभी हम गौ माता को माता का रूप कहने के हक पा सकते हैं नहीं तो दंगा फसाद फैलाने ओर धार्मिक उन्माद फैलाने के लिए गौ माते के नारों का उपयोग करते हुए माता जैसे पवित्र शब्द का अपमान करते हैं । 
हमारी पूरी टीम ने ग्राम पंचायत कुडार के लोगों से जन भागी दारी से पशुओं को पेय उपलब्ध कराने के लिए प्रयास शुरू कर दिया है कल खजरी कुडार के लोगों के साथ गाँव से लगे हुए जल श्रोतों की सफाई ओर गहरीकरन का कार्य किया जाएगा जिससे गौ माता के साथ साथ इस गाँव में जहां सबसे ज्यादा पशुओं की मोतें हो रही हैं उनकी जीवन को बचाने के लिए जल श्रोतों को ठीक किए जाने का काम किया जा रहा है ।

भ्रसटाचार में डूबे है समाजवादी राहत पैकेट और पानी वाले टैंकर !

बुंदेलखंड के सूखा वाले क्षेत्र में पानी की किल्लत को दूर करने के लिए प्रत्येक जिले के पेयजल संकट वाले गाँव में पेयजल के लिए जो टैंकर मंगाए जा रहे है ! उसको राजवित्त की मद से लिया जा रहा है,जिसमे यह रुपया ग्राम पंचायत खाते से निकलेगा जिसके ज़िम्मेदार ग्राम प्रधान होंगे...सीडीओ / बीडीओ का आदेश है टैकर हम खरीदंगे भुगतान ग्राम पंचायत से होगा !...नरैनी के निवासी यशवंत पटेल ने बतलाया कि एक टैंकर की लागत अस्सी हजार से एक लाख तक अधिकतम है बढ़िया से बढ़िया लिया जावे तो जबकि इसका भुगतान 1,89000 हजार रूपये किया जायेगा ! ग्राम पंचायत खाते से चेक माध्यम से !...ऐसा बाँदा के नरैनी तहसील में ग्राम करतल,कालिंजर और अन्य में हो रहा है ! यहाँ 80 दूरस्थ गाँव में 41 पानी के टैंकर आ रहे है ! उधर बाँदा जिले में समस्त नगर पालिका ने इसी रेट पर 42,90,000 रूपये के 22 टैंकर खरीदे है ! इसका सप्लायर फर्म जेएमडी खत्री है जो हिन्द नगर लखनऊ के पते पर पंजीकृत है ! 
                                                                   

सूखे में भ्रस्टाचार की खुजली पापी नियत ने खोज ली ! अब जरा अनुमान लगाए कि सात जिलों में यह पानी देने के नाम पर ' टैंकर घोटाला ' कितने का किया जा रहा है ? कहानी वही है -  चमड़ी जाए किसान की लेकिन, अधिकारी की दमड़ी न जाए !!! कुछ ऐसा ही बुंदेलखंड के सूखे - भूखे क्षेत्र में समाजवादी सरकार ने किसान / अन्त्योदय कार्ड धारक को राहत पैकेट वितरण में किया है है ! बाँदा जिले में यह ठेका स्थानीय दबंग नाल ( जुआ खिलवाने वाले ) अनिल सिंह को दिया है ! यह राहत पैकेट फुटकर खरीद सामग्री अनुसार 1290 रूपये है जो कि 1900 रूपये में ली जा रही है ! ऐसा ही घालमेल सरकारी स्तर पर भूसा वितरण में किया गया है यानी बुंदेलखंड का सूखा भी सरकारी हुक्मरान के आय का जरिया बन चुका है ! 
( तस्वीर में झाँसी के बंगरा विकासखंड के बोड़ा गाँव में बैलगाड़ी से पानी लाते लोग )

' बुंदेलखंड में पानी का रंग लाल है ' !!!

नोट - यह नोट एक पाठक के भ्रमित होने पर लिख रहा हूँ ! कृपया ध्यान देवें ! ' इसको ममता और वात्सल्य से देखे , यह जलसमस्या के मुद्दे पर पर केन्द्रित मात्र है, इसको उन्ही नजरों से देखे साथ ही मेरे लिए स्त्री की नैसर्गिक देह भी इस बिटिया की तरह ही है जिसमे मै प्रकृति गतायात्मकता देखता हूँ स्रष्टि के विकास के लिए न कि विकृत कामना के लिए ....! मेरा एक मात्र उद्देश्य बुंदेलखंड में बचपन और पानी के बोझ से है ! ' 25  अप्रैल 2016 

' जी रही बचपन को माँ बनकर, पिला रही पानी हर तपन सहकर !
उठाकर बोझ कलसे का वो खिलौना समझती है, 

जिला कर परिवार को ख़ुशी का बिछौना समझती है ! ' 

जब सूखे सबरे ताल तलैया , तब का होग्यो आगे भैया ! 

                                               

चार वर्ष पूर्व जब मैंने यह तस्वीर खीचीं थी तब भी इसके आज और ज्यादा प्रासंगिक होने की बात जेहन में थी ! छतरपुर के किशनगढ़ ( बिजावर ) के रस्ते में यह बचपन ' नीर की जंग ' में संघर्षरत था ! पता नही आज इस बिटिया के क्या हाल होंगे ? चार साल बाद यह लड़ाई तो और भी अधिक तपिश लिए है !!! यह वही क्षेत्र है जहाँ से 'केन-बेतवा नदी गठजोड़ ' के दस आदिवासी गाँव विस्थापित किये जाने की कवायद में उमा भारती लगी है ! उन्होंने बीते दिवस उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के साथ बुंदेलखंड में प्रस्तावित बांध परियोजना के पेचीदगी पर विमर्श किया है ! बुंदेलखंड के गंगऊ डैम,रनगंवा,बरियार पुर(छतरपुर ),चंद्रावल,उर्मिल,अर्जुन ( महोबा ),ओहन चित्रकूट,रसिन( बुंदेलखंड पैकेज से बना) में महज 4% पानी शेष है और अभी मई की लाल गर्मी बाकि है जिस पर आमजन ,पशुओं की प्यास बुझेगी मगर कैसे ?

अपनी जड़ों की तरफ वापस हो बुंदेले !


Pankaj Chaturvedi
नीक यहां कारगर नहीं है. बुंदेलखंड को बचाने का एकमात्र तरीका अपनी जड़ो की ओर लौटना होगा.
बुंदेलखंड के सभी गांव, कस्बे, शहर की बसाहट का एक ही पैटर्न रहा है - चारों ओर ऊंचे-ऊंचे पहाड., पहाड. की तलहटी में दर्जनों छोटे-बडे. ताल-तलैया और उनके किनारों पर बस्ती. पहाड. के पार घने जंगल व उसके बीच से बहती बरसाती या छोटी नदियां. आजादी के बाद यहां के पहाड. बेहिसाब काटे गए, जंगलों का सफाया हुआ व पारंपरिक तालाबों को पाटने में किसी ने संकोच नहीं किया. पक्के घाटों वाले हरियाली से घिरे व विशाल तालाब बुंदेलखंड के हर गांव- कस्बे की सांस्कृतिक पहचान हुआ करते थे. ये तालाब भी इस तरह थे कि एक तालाब के पूरा भरने पर उससे निकला पानी अगले तालाब में अपने आप चला जाता था, यानी बारिश की एक-एक बूंद संरक्षित हो जाती थी. चाहे चरखारी को लें या छतरपुर को, सौ साल पहले वे वेनिस की तरह तालाबों के बीच बसे दिखते थे. अब उपेक्षा के शिकार शहरी तालाबों को कंक्रीट के जंगल निगल गए. रहे-बचे तालाब शहरों की गंदगी को ढोने वाले नाबदान बन गए.
                                                           

बुंदेलखंड की असली समस्या अल्प वर्षा नहीं है, वह तो यहां सदियों, पीढ़ियों से होता रहा है. पहले यहां के बाशिंदे कम पानी में जीवन जीना जानते थे. आधुनिकता की अंधी आंधी में पारंपरिक जल-प्रबंधन तंत्र नष्ट हो गए और उनकी जगह सूखा और सरकारी राहत जैसे शब्दों ने ले ली. अब सूखा भले ही जनता पर भारी पड.ता हो, लेकिन राहत का इंतजार सभी को होता है- अफसरों, नेताओं सभी को. यही विडंबना है कि राजनेता प्रकृति की इस नियति को नजरअंदाज करते हैं कि बुंदेलखंड सदियों से प्रत्येक पांच साल में दो बार सूखे का शिकार होता रहा है और इस क्षेत्र के उद्धार के लिए किसी तदर्थ पैकेज की नहीं बल्कि वहां के संसाधनों के बेहतर प्रबंधन की दरकार है. इलाके में पहाड. कटने से रोकना, पारंपरिक बिरादरी के पेड.ों वाले जंगलों को सहेजना, पानी की बर्बादी को रोकना, लोगों को पलायन के लिए मजबूर होने से बचाना और कम पानी वाली फसलों को बढ.ावा देना; महज ये पांच उपचार बुंदेलखंड की तकदीर बदल सकते हैं. यदि बुंदेलखंड के बारे में ईमानदारी से काम करना है तो सबसे पहले यहां के तालाबों का संरक्षण, उनसे अतिक्रमण हटाना, तालाब को सरकार के बनिस्बत समाज की संपत्ति घोषित करना जरूरी है. इसके लिए ग्रामीण स्तर पर तकनीकी समझ वाले लोगों के साथ स्थायी संगठन बनाने होंगे. दूसरा, इलाके के पहाड़ों को अवैध खनन से बचाना, पहाड़ों से बह कर आने वाले पानी को तालाब तक निर्बाध पहुंचाने के लिए उसके रास्ते में आए अवरोधों, अतिक्रमणों को हटाना होगा. बुंदेलखंड में केन, केल, धसान जैसी गहरी नदियां हैं जो एक तो उथली हो गई हैं, दूसरा, उनका पानी सीधे यमुना जैसी नदियों में जा रहा है. इन नदियों पर छोटे-छोटे बांध बांध कर या नदियों को पारंपरिक तालाबों से जोड.कर पानी रोका जा सकता है.