Friday, May 27, 2016

' गौरहारी में अवैध खनन से 5 श्रमिक की मौत,कई घायल ' !


' खंड - खंड होता बुंदेलखंड !!!

आगामी 31 मई को बुंदेलखंड आने वाले योगेन्द्र यादव,राजेन्द्र सिंह राणा और मेधा पाटेकर को इसके लिए आन्दोलन करना चाहिए ! इस डिजास्टर को रोकना बुंदेलखंड जल संकट का मूल हल है !

बुंदेलखंड- चरखारी ( गौरहारी गाँव ), महोबा में गत 27 मई को दोपहर गौरा पत्थर की खदान में किये जा रहे अवैध खनन से 5 मजदूरों की दबकर मौत हो गई ! दो सौ फिट गहरी अवैध पत्थर खदान को स्थानीय ठेकेदार देवेन्द्र सिंह के नाम से पट्टा था जिसको गाँव के मूंगालाल संचालित करते थे ! पट्टे का नवीनीकरण कई साल से नही हुआ है क्योकि आवश्यकता से अधिक पत्थर खनन किया जा चूका था ! बाजजूद इसके जिला खनिज अधिकारी बीपी यादव,जिलाधिकारी की चुप्पी के यह लाल पत्थर का खूनी आतंक चरम पर है ! उत्तर प्रदेश का खनिज मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति से लेकर जिलाधिकारी वीरेश्वर सिंह तक शामिल रहते है इस अवैध खनन में जो अधिकारी महोबा आता है वो जाने का नाम नही लेता है ! यही सूरत बाँदा और चित्रकूट की है ! सूखा प्रभावित क्षेत्र में यह तस्वीर लोकतंत्र के सरकार की है ! इस हादसे के बाद आला अधिकारी गौरहारी पहुंचे और देर रात तक रेस्क्यू आपरेशन करते रहे लेकिन भारी चट्टान में दबे अन्य श्रमिक अभी तक निकाले नही जा सके है ! मुआवजे के रूप में मृतक परिवार को दो लाख रूपये देने का निर्देश मुख्यमंत्री ने खनिज अधिकारी को निलंबित करके किये है ! गौरतलब है पिछले तीन दशक से यह गाँव गौरा पत्थर के खनन से पूरी तरह खोखला हो गया है,गाँव में आंतरिक सुरंगे बन चुकी है जिसमे अब तक सैकड़ों मजदूर अपांग और मौत के मुंह में जा चुके है ! इस पत्थर से टेलकम पाउडर और मूर्तियाँ बनती है ! गाँव के लोग ही अपनी समिति बनाकर लघु उद्योग के नाम पर मानकों को धता बतलाकर यह पताल तोड़ खनन उसी तर्ज पर करते है जैसे महोबा की अन्य बड़ी पत्थर मंडी में यह खेल चलता है ! गौरहारी में गाँव ही माफिया है जबकि बाकि हिस्से में नेता,विधायक सब एक पाले में है ! मै बीते दिन महोबा की धरती से यह सब देख रहा था ! 




क्या है मानक- 
- मानक के मुताबिक रेलवे ट्रैक से 500 मीटर की दूरी पर क्रेशर जैसी गतिविधि मान्य है ! 
-किसी भी ऐतहासिक, पुरातत्व स्थल के 100 मी0 तक खनन् कार्य वर्जित है तथा 200 मी0 तक खनन् व निर्माण कार्य के लिये पुरातत्व विभाग से एन0ओ0सी0 लेना अनिर्वाय है जो कि नही ली जाती है।
-खदानों में ब्लास्टिंग का समय दोपहर 2 से 12 बजे के अन्तराल है लेकिन 24 घन्टे होते है धमाके।
-एक क्रशर उद्योग से कच्चेमाल के रूप में स्टोन बोल्डर का प्रयोग कर लगभग 10,000 सी0एफ0टी की दर से ग्रेनाइट का उत्पादन किया जाये।
-क्रशर प्लान्ट में आकस्मिक स्वास्थ /ऐम्बुलेंस / डाक्टर की व्यवस्था हो जो कि किसी भी प्लान्ट में बुन्देलखण्ड मे नहीं है।
-क्रशर प्लान्ट में मजदूरों को पत्थर, गिटटी तोडने, ब्लास्टिंग करते समय मास्क, हेलमेट उपलब्ध हो जो कि नहीं दिये जाते है।
-नेशनल हाइवे, कृषि भूमि, हरित पटिट्का से 1.0 किलो मी0 दूर स्थापित हो क्रशर उद्योग, बालू खदान नदी से 500 मी0 की दूरी पर लगाई जाय मगर यहाँ लगे है नेशनल हाइवे, कृषि भूमि पद सैकड़ो प्लान्ट।
क्या होता है इस खनन के खेल में -
अमोनियम नाइट्रेट और जिलेट की छड़ से हैवी 6 इंच का होल करके ड्रिलिंग मशीन से ब्लास्टिंग होती है ! नेचुरल डिजास्टर की तरफ है बुंदेलखंड का यह इलाका !
- दिन - रात अर्थ मूविंग मशीन मसलन पोकलैंड,जेसीबी लगाकर दो सौ मीटर पहाड़ों को पताल तक खोदा जाता है जब तक पानी न निकले !
- सूखे बुंदेलखंड में पानी की तबाही का नंगा नाच समाजवादी सरकार और बसपा सरकार ने हमेशा किया है,माफिया को सरकार का संरक्षण प्राप्त है ! जब कोई बड़ा हादसा हुआ तो निलंबन से होती है खानापूर्ति ! खनिज रायल्टी एमएम 11 प्रपत्र की चोरी करके तीन घनमीटर में 100 फिट दिखलाते है जबकि यह ओवेर्लोंडिंग सैकड़ो टन में है !

Tuesday, May 24, 2016

सुशीला की आप बीती वर्तमान फ्री सेक्स के प्रलाप में

 जिस देश में हमेशा संस्कृति का डंका पीटा जाता हो और जहाँ  सेक्स वर्जित फल है.वहां फ्री सेक्स की बात तो वज्रपात के समान लगती है लेकिन यह वही राष्ट्र है जहाँ कभी नगरवधू और हरम में सैकड़ो स्त्री अस्मिता रोज दफ़न होती थी !

 हाँ आज बलात्कार की बड़ी हुनरमंद महिमा है हमारे समाज में ! हो भी क्यों ना मर्दवादी समाज में मर्दानगी की सबसे बड़ी डिग्री ही बलात्कार है. जहाँ माँ के साथ दुष्कर्म होता है,माँ के सामने बेटी से जिस्मफरोशी पिता करता हो और जहाँ माँ के सहमती से बेटी वेश्या बन जाने को मजबूर होती हो ! जिस घर परिवार में राखी बाँधने वाले भाई और बहन फ्री - सेक्स की पाठशाला में पढ़ते हो साथियों उस समाज में मध्यप्रदेश के पन्ना जिले के दहलान चौकी के मांझा गाँव की सुशीला आदिवासी की कहानी कोई अचरज की बात नही है ! मगर यह उस भोड़े और थोथे समाज का नंगा सच है जिसको हमने आज तक भारतीय संस्कृति माने जाने से परहेज कर रखा है क्योकि हमें भय है यदि यह स्वीकार किया गया तो हमें भी कट्टर मुस्लिम देशो और दुर्दांत - वहसी, पेज थ्री वाले उन्ही काम पिपासु बिरादरी का हिस्सा माना जायेगा जो महिला,मासूम किशोरी - किशोर के बचपन को महज बिस्तर टूथ ब्रश / उपभोग की वस्तु समझकर अपनी भूख मिटाकर तड़पते रहने को छोड़ देने का यातना पूर्ण काम करते अक्सर नजर आते है ! शायद वे यह मानते है कि उनका नैतिक अधिकार है जिस पर आज तक उन्मुक्त बहस पर्दानशीन सी चुप है ! पाठक ध्यान रखे पीड़िता के वीडियों बयान हमारे पास सुरक्षित है ! आइये जानिए पन्ना के सुशीला की आप बीती वर्तमान फ्री सेक्स के प्रलाप में ! उस बिटिया के करुण संताप में !                                                           

                                 केस स्टडी
                         माझा गांव की सुशीला
नाम       -             सुशीला  गौंड 
पिता       -            सजीवन गौंड 
माँ का नाम       -        संतोसी 
सौतेले बाप का नाम  -    जगत गौंड 
उम्र        -                   14 साल 
निवासी        -        ग्राम माझा ग्राम 

जैसे सब बच्चे खेलते हैं वैसे ही वह भी खेलती थी, रस्सी कूदती और दौड़ लगाया करती थी,जिंदगी के रास्ते टेढ़े.मेढे होते हैं.यह तो सभी जानते हैं किन्तु उन रास्तों पर पड़े हुए पत्थर कितने नुकीले और धारदार हो सकते हैं यह अक्सर कल्पना से परे का विचार साबित होता है.  
मध्यप्रदेश के पन्ना जिले के एक गांव माझा में 14 साल की सुशीला रहती थी कुछ महीनों पहले सुशीला के पिता की मृत्यु हो गयी थे. तब उसकी माँ जिसका नाम  संतोषी है ने जगत गौंड नाम के व्यक्ति से दूसरा विवाह कर लिया. संतोषी आदिवासी यानी सुशीला की माँ उसी क्षेत्र में पत्थर खदानों में मजदूरी करने जाती थी जहाँ दिन भर की हाड़-तोड़ मेहनत के बाद उसे 100 से 120 रूपए की मजदूरी मिलती थी, सन्दर्भ के लिए यह जानना जरूरी है कि पन्ना जिले में पत्थर की ज्यादातर खदानें गैर कानूनी रूप से चलती रही हैं. और पिछले कुछ महीनों में राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण के निर्देशों के बाद इनमें से कई खदानें बंद कर दी गयी हैं, संतोषी भी वहीँ काम करती थी. 
संतोषी के मजदूरी पर निकल जाने के बाद जगत गौंड ने सुशीला से कभी स्नेह जताया और कभी उसे भयभीत किया. भय और स्नेह जता कर उसनें सुशीला के साथ छेड़खानी करना शुरू की, भय के कारण वह कुछ कह नहीं पा रही थी. माँ उसके संकेत समझ नहीं पा रही थी, छेड़खानी होने पर सुशीला अपने स्तर पर उसका विरोध करती रही किन्तु यह बात उन दोनों के बीच से बाहर नहीं आ पायीए शायद इसलिए क्योंकि मौजूदा समाज में बच्चों को अभिव्यक्ति का माहौल ही नहीं मिलता है.
                                               



हमें बस आँखें बंद करके थोड़ा सोचने की जरूरत है कि क्या जगत के मन में कोई कुत्सित भावना जमी हुई थी ? छेड़खानी करते.करते सुशीला को भयभीत करके जगत ने उसके साथ जबरिया शारीरिक सम्बन्ध बनाये यानी बलात्कार किया, उसने ऐसा एक बार नहीं कई बार किया जब यह घर की चारदीवारी में और करीबी रिश्तों के बीच घटता है तब ही शायद वह पल आ जाता है जब परिवार समाजए रिश्तों और मूल्यों पर से विश्वास हट जाता है. अब जगत उसे लगातार धमकाता और भयभीत करता रहता सुशीला कुछ कह न पायी चीख और चिल्ला नहीं पायी क्योंकि जो कुछ भी हो रहा था वह ऐसे व्यक्ति के द्वारा किया जा रहा था जो सौतेला ही सही पर रिश्ते में उसका पिता था. इसके बाद सुशीला का सबसे करीबी कौन हो सकता था माँ.शायद वह भी समझ नहीं पायी !
ऐसे में सुशीला गर्भवती हो गयी जब 14 साल की सुशीला गर्भवती हुई तब जाकर संतोषी को सच का पता चला उसने अपने पति जगत से बात भी की प्रति उत्तर में जगत ने संतोषी को भी धमकाया और नुक्सान पंहुचाने की धमकी दी. इसके बाद संतोषी ने गांव के कुछ सयाने लोगों से बात की यह तय हुआ कि इस घटना को क़ानून के दायरे में लाना चाहिए और तब गांव वालों की मदद से संतोषी ने कोतवाली पन्ना में इस घटना की रिपोर्ट दर्ज करवाई. सुशीला का चिकित्सकीय परीक्षण हुआए जिसमें यह बात पुष्ट हुई कि सुशीला की यौन दुर्व्यवहार हुआ है जगत गोंड को तो गिरफ्तार कर लिया गया. वह जेल चला गया किन्तु सुशीला और संतोषी के लिए क्या न्याय का यही मतलब था क्या कोई भी न्याय अन्याय के कारण पैदा हुई स्थिति को बदल सकती है. क्या वास्तव में सबसे पहले अन्याय को न होने देने की प्रतिबद्धता नहीं होना चाहिए ?
अब चूंकि हमारे समाज में ही एक किशोरी लड़की को अपने जीवन में आ रहे मानसिक.शारीरिक.भावनात्मक बदलावों या घट रही घटनाओं के बारे में बात करने का ही अधिकार नहीं है तो सुशीला क्या करती उसे तो यही सिखाया गया है कि तेज मत बोलना खिलाफ में मत बोलना जो हो रहा है उसे चुपचाप देखते रहना और सहते रहना ! सुशीला को तो शायद यही लगा होगा कि उसके साथ वही हो रहा है जो समाज ने उसे स्वीकार करने के लिए तैयार किया है! समाज ने उसे तो यह कभी जानने की मौका ही नहीं दिया कि उसके साथ छेड़खानी हो सकती है और जब ऐसा हो तो उसे विरोध करने चिल्लाने और हर तरह से अपनी रक्षा करने का हक है उसके अपनी दुविधा के बारे में बात करने का हक है उसे गलत होने पर अपनी माँ और अपने पिता के खिलाफ खड़े होने का भी हक है.
हमारे समाज में सुशीलाओं को अभी भी स्वतंत्रता नहीं मिली है केवल समाज में ही नहीं हमारे सरकारी कार्यक्रमों में भी कही कहीं किशोर किशोरियों के हित के सन्देश बोल और लिख दिए जाते हैं, किन्तु यथार्थ पर बात करना वहाँ भी प्रतिबंधित विषय ही है यदि सुशीला को अपने परिवार में शोषण के खिलाफ बोलने का मौका नहीं मिला समाज में नहीं मिलाए किन्तु सरकारी व्यवस्था का क्या हुआघ् वहाँ भी अभी किशोरी लड़कियों के लिए एक जमीन समतल नहीं हुई हैण्
जगत गोंड जेल चला गया किन्तु इस क्या इस कृत्य की कोई सजा हो सकती है सुशीला की पन्ना के जिला अस्पताल में सभी जांचें हुईं 11 अगस्त 2015 को जांच से पता चला कि वह 6 महीने की गर्भवती है. तब तक उसके गर्भवती होने की जानकारी कहीं दर्ज नहीं थी और न ही उसे अब तक जरूरी टीके ही लगे हैं चिकित्सकों ने अपना मत व्यक्त कर दिया कि सुशीला एक छोटी बच्ची है और उसकी हालत को देखते हुए उसकी देखभाल और प्रसव पन्ना के अस्पताल में होना संभव नहीं है. उसे कटनी को रैफर किया जाना होगा. कटनी एक बड़ा जिला है और रेलवे का बड़ा जंक्शन भी है.
अब सवाल यह था कि बेहद गरीबी की स्थिति में सुशीला का क्या होगा. जिस तरह का माहौल बन रहा था उसने संतोषी को भी हिला कर रख दिया था पति जेल में बेटी के साथ अन्याय और फिर उसकी गोद में एक डेढ़ साल का दूसरा बच्चा भी था. आखिर में उसने भी सुशीला से यही कहा कि यह सब तेरे कारण ही हुआ है सुशीला इसका मतलब समझ पाने के लिए छोटी नहीं है अक्सर जैसा होता हैए वही हुआ जिसके साथ शोषण हुआ उसे ही अपराधी भी साबित कर दिया गया आखिर में सवाल तो यही होता है न कि अब क्या होगा. जब आगे का रास्ता नज़र नहीं आता है तब हम पीछे तय हो चुके सफर को उलाहना देते हैं उन्हें कोसते हैं. जो हमें सफर करते हुए देख रहे थे और कहते हैं कि हमें पुलिस के पास जाने से रोका क्यों नहीं संतोषी के मन में जगत के प्रति कोई आदर भाव नहीं था किन्तु सामने खड़ी हुई कड़ी चुनौतियां उसे तोड़ रही थीं.
जब यह विकल्प सामने आया कि सुशीला को कटनी ले जाना होगा तब सवाल यह था कि वह कटनी में तीन महीने कहाँ रहेगी इस अवस्था में उसकी देखभाल कैसे होगी उसके साथ कौन रहेगा. संतोषी इसके लिए तैयार नहीं थी वास्तव में उसके पास कुछ नहीं था उसे बताया गया कि सुशीला की व्यवस्था कटनी के बाल संरक्षण गृह में की जा रही है. क्या संतोषी वहाँ रह सकती थी उसके पास रोज़गार का भी तो कोई साधन नहीं था हमें बहुत आसान लगता है कि निर्णय तो आसान ही था संतोषी को सुशीला के साथ जाना चाहिए. पर जरा फिर से इन नामों के भीतर जाईये और और उनकी स्थितियों में खुद को रखिये तब सोचिये!
बहुत कोशिशों के बाद सुशीला को कटनी भेजा गया संतोषी उसके साथ आई उम्मीद थी कि वह वहीँ रहेगी किन्तु ऐसा नहीं हुआ और वह सुशीला को कटनी बाल संरक्षण गृह में छोड़कर वापस चली गयी.
8 अक्टूबर 2015 को जिम्मेदार अधिकारियों ने यह सूचना दी कि सुशीला का प्रसव होने का समय आ गया है, किन्तु कटनी में उसका सुरक्षित प्रसव होना मुमकिन नहीं है इसलिए उसे जबलपुर के मेडिकल कालेज भेजा जाएगा जो सवाल बार बार पूछा जा रहा था कि सुशीला की जिम्मेदारी कौन लेगा. कौन उसके साथ जबलपुर जाएगा उसकी देखभाल कौन करेगा आखिर सुशीला किसकी जिम्मेदारी है. उसके लेकर कैसे जाया जाएगा यानी परिवहन की व्यवस्था क्या होगी जैसे होता है इसका भी कोई जवाब नहीं मिला!
अब तो यह भी समझ में आने लगा कि भौगोलिक सीमाओं में बंटे सरकारी विभागों के दफ्तर भी टुकड़े टुकड़े में ही होते हैं वे पूरे नहीं होते सुशीला के एक जिले की सीमा से दूसरे जिले में जाने परए या एक संभाग से दूसरे संभाग में जाने पर वे बिखर जाते हैं और कहते हैं. अब हम कुछ नहीं कर सकते वह जमीन जहाँ सुशीला पंहुच गयी है वह हमारे दायरे से बाहर है व्यवस्था के लिए सुशीला महत्वपूर्ण नहीं होती है उनके लिए उनकी सीमा.रेखा और जवाब देहिता से दूरी ज्यादा महत्वपूर्ण होती हैण् सच भी है जब सभी यह जानते हों कि यह व्यवस्था उनके साथ ही खड़ी नहीं होगी तो वे इस में क्यों फंसेंगे व्यवस्था पर केवल समाज ही अविश्वास नहीं करता हैए उस व्यवस्था के नुमाईंदे भी उस पर विश्वास नहीं करते हैं.
सुशीला की जीवन के इस क्षण पर हमें राज्य के ऊँचे ओहदों पर बैठे नुमायिन्दों से बात करना पड़ती है पन्ना के सामाजिक कार्यकर्ता युसूफ बेग संतोषी को यह सोच कर खोजते हैं कि कम से कम इस अवस्था में तो माँ अपनी बेटी के पास जायेगी हीय पर उन्हें पता चलता है कि संतोषी तो गांव छोड़ कर जा चुकी है क्योंकि गैर कानूनी खदानें बंद होने के बाद यहाँ ज्यादातर लोगों के पार कोई रोज़गार न रहा और लोग गांव छोड़ कर स्थायी या अस्थायी पलायन पर जा रहे हैं, किसी को यह नहीं पता कि सुशीला का माँ कहाँ गयी.
वास्तव में सुशीला खुद स्याही बन कर यह सवाल लिख रही है कि इस तरह की स्थितियों में समाज और सरकार की भूमिका क्या केवल इतनी सी ही है कि वे सुशीला को अस्पताल में भर्ती करा दें या एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल भेज दें. जब सुशीला का सुरक्षित प्रसव हो जाएगा तब उसकी जिंदगी क्या मोड़ लेगी क्या उसे तय करने में समाज और सरकार की कोई जिम्मेदारी है भी या नहीं अगर यह मान भी लिया जाए कि उसे फिर किसी बाल संरक्षण गृह में या किसी और संस्थान में श्रख दिया जाएगा. तब भी उसके मन पर लिखी हुई इबारत कैसे मिटेगी क्या उसका एक परिवार और समाज होगा जिसमें वह सम्मान और खुशी के साथ जिंदगी जी सके!
आखिरकार 7 अक्टूबर 2015 को सुशीला को जबलपुर मेडिकल कालेज भेज दिया जाता है जहाँ वह बिलकुल अकेली है. उसे लगता है कि वह किसी और ही दुनिया में आ गयी है जहाँ वह किसी को नहीं जानती है. एक बच्ची जिसका विश्वास टूट चुका हो जिसे उसे ही अपने शोषण के लिए कारक बता दिया हो जो इस अवस्था में एक शहर से दूसरे शहर को धकेली जा रही है. जिससे हम बार बार पूछते हों कि बताओ तुम्हारा कौन है और उसके पास इसका कोई उत्तर न हो! उस सुशीला के बारे में युसूफ बेग के पास जबलपुर से एक फोन आता है कि सुशीला बहुत रो रही है!
सुशीला को पुनरू कटनी के बाल संरक्षण केंद्र भेज दिया जाता है । कुछ दिनों के बाद सुशीला ने एक स्वस्थ बच्चे को जन्म दिया । बच्चा 5 दिनों तक सुशीला के पास रहा और उसने अपने बच्चे को स्तनपान भी कराया । इसके बाद बच्चे के जन्म के 6 वें दिन ही सुशीला से उसके बच्चे को अलग कर दिया गया । सुशीला कहती है की उसे पाने बच्चे की याद आती है अब कुछ भी अच्छा नहीं लगता । सुशीला की माँ संतोषी उसे अपने साथ पन्ना में उसके गाँव माझा ले आई है । कार्यकर्ताओं ने जब उससे पूछा की यहा अच्छा लगता है या वहाँ अच्छा लगता था तो रूहादी होकर सुशीला कहती है की वहाँ अच्छा लगता है कभी वो लड़का वहाँ आयेगा । सुशीला अपने बच्चे को अपने साथ रखना चाहती है लेकिन समाज सरकार समाजसेवियों का भी कहना है की सुशीला खुद एक बच्ची है इस बच्चे को को कैसे पालेगी । लेकिन हमारा मानना है की सुशीला को मातृत्व हक़ एवं बच्चे को उसके दूध का हक़ मिलना चाहिए । 


                                                     सन्दर्भ सामग्री -
यूसुफ बेग                                     संतोषी गौंड                                           सुशीला गौंड
पृथ्वी ट्रस्ट                             सुशीला गौंड की माँ                        ग्राम माझा ग्राम पंचायत दहलान चौकी 
जिला पन्ना,म0प्र0                                   जिला पन्ना,म0प्र0

Sunday, May 22, 2016

अन्नदाता की आखत के लिए अन्नदाता का पुनर्वास अभियान बिलारी में !

' बुंदेलखंड के किसानों को मिला बिलारी का सहारा '
- मासूम बेटियों ने किसानों के लिए बहाए आंसू ,गुनगुनाये मदद के गीत !

बुंदेलखंड के आत्महत्या पीड़ित किसानों के लिए उठा बिलारी !

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मैं तुम्हारे इश्क़ में जैसे हूं जैसलमेर,
तुम मानसून हो प्रिये ना वक़्त पे आयी !

- अशोक जमनानी जी के इन शब्दों के साथ जिला मुरादाबाद के विधानसभा क्षेत्र बिलारी में गत 21 मई को ' अन्नदाता की आखत ' के लिए अन्नदाता का पुनर्वास चेरिटेबल कार्यक्रम किया गया था ! कहते है इंसानियत की तरह गरीबी और मुफलिसी का कोई वर्ग और मजहब नही होता यह मैंने बिलारी में आँखों से देखा और मन से महसूस किया है !
बुंदेलखंड के सूखे और आत्महत्या से पीड़ित एवं किसान की बेटियों के लिए यह आयोजन संपन्न हुआ है ! करीब ढाई हजार आवाम के बीच बिलारी में बुन्देलखंडी किसानों के लिए साथी शैलेन्द्र मोहन श्रीवास्तव ' नवीन ' के साथ स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता संघटन के संस्थापक नोमान जमाल और उनके सहयोगी युवा,बुजुर्ग लोगों ने जोश- खरोश के साथ मानवीय सृजित सूखे की फौरी राहत के लिए जनता में मदद की अपील की ! हमारे पास सेलेब्रेटी नही थी बावजूद इसके भीड़ ने सिद्दत से हमारा दर्द सुना और यथा संभव अंशदान किया ! इस आयोजन में बिलारी विधायक,तमाम महिला- पुरुष शाहजहांपुर,चंदोसी,मुरादाबाद से आये थे ! युवा प्रतिभा ने अपने संगीत हुनर से जहाँ किसान सहायतार्थ दान जुटाया है वही लोगो ने पूरे तन्मयता से अन्नदाता के लिए दान दिया है ! आयोजन में जुटाई गई करीब डेढ़ लाख से अधिक धनराशी नोमान जमाल बाँदा आकर अपने हाथ से उचित पात्र गरीब किसान आश्रित परिवार को देंगे ! प्रयास किया जायेगा नकद के साथ उन्हें ' अन्नदाता राहत किट ' उपलब्ध कराई जाए ! 
                                                








आयोजन मंडल और बिलारी की दिलखुश / संवेदनाप्रद आवाम को सलाम ऐसे मानवीय कदम के लिए ! एक बार फिर बाँदा में आयोजित 20 दिसंबर की शाम याद ताजा हो गई ! बाँदा में बिटिया मन्नत की तरफ यहाँ गुनगुन थी जिसने अपने आवाज से सबको संवेदित किया ! मन्नत ने जहाँ बाँदा में सबको गुल्लक तोडके रुला गई थी वही गुनगुन इस आयोजन की शान रही ! आयोजक टीम ने स्थानीय एक निराश्रित / दिव्यांग को 21 हजार रूपये आर्थिक अंशदान किया! जिन साथियों के हौसले से यह बुंदेलखंड के बाँदा से करीब 650 किलोमीटर दूर मुकम्मल हुआ बिना किसी विवाद के यह स्थानीय जनता के अटूट विस्वास और सब्र को दर्शाता है ! कार्यक्रम के अंत तक भीड़ का मौजूद रहना मेरे लिए बहुत बड़ा सम्मान है !