Friday, June 17, 2016

बुंदेलखंड के सुखाड़ में तालाबों का सुकाल मगर भरेंगे कैसे ?

पुराने और चंदेलकालीन तालाबों के अवैध कब्जे हटाये बगैर करोड़ों रूपये इस बरस भी बुंदेलखंड के तालाबों पर खर्च हो रहे है.जब तक इनका कैचमेंट एरिया और प्राकृतिक जल स्रोत के आवागमन का रस्ता साफ नही होता क्या ये तालाब भर पाएंगे ? उधर खेत तालाब योजना पर भी पूर्व बसपा सरकार की तर्ज से किसानों को खेत में सोख्ता गड्ढे देने का काम बखूबी किया जा रहा है.बुंदेलखंड का सूखा और मानसून दोनों की आवक सरकारी मिशनरी के लिए अच्छे दिन ही है !


राज्य सभा टीवी संवाददाता एवं स्वतंत्र लेखक अरविन्द कुमार सिंह अपने भ्रमण रिपोर्टिंग के संस्मरण याद करते हुए बतलाते है कि कभी लबालब भरा रहने वाला ऐतिहासिक पन्नासर तालाब से बहुत से प्रसंग जुड़े हैं। स्वामी विवेकानंद जी जब अमेरिका से भारत लौटे थे तो यहां उनका भव्य स्वागत हुआ और यहीं से उन्होंने यहां के नागरिकों को संबोधित भी किया था। लेकिन आज यह तालाब बेपानी है। क्रिकेट का मैदान बना है। बच्चे खेल रहे हैं। यह कही न कही हमारी विरासत और देश में बड़े जोहड़ ,तालाबों ,कुओं के अस्तित्व पर यक्ष प्रश्न है ? ये प्राचीन तालाब ही बारिश के पानी को संचय करने के  बाद राजस्थान के जैसलमेर,बाड़मेर और जयपुर समेत देश के अलग - अलग हिस्सों में रचे - बसे और हुनर से गढ़े गए नीर के स्रोत रहे है ! मगर आज विकास के अनियोजित माडल ने इनका जो हाल किया है उसको शब्दों में लिखना भी दुखद है ! 
 उधर बुंदेलखंड में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव खेत तालाब योजना पर 196.21 लाख और बड़े तालाब की गाद,सिल्ट हटाने पर 82.92 करोड़ खर्च करने की हरी झंडी दिए  है ! मालूम रहे कि बिना तालाबों पर अतिक्रमण हटाये और प्राकृतिक दबे स्रोत खोले बगैर ये काम किया जा रहा है ! मुख्य सचिव अलोक रंजन को खेत तालाब योजना की सलाह देने वाले स्थानीय समाजसेवी इस खेल पर चुप है कि अवैध कब्जे हटाये बिना बड़े तालाब क्यों खुद रहे है ? मिट्टी निकालने के नाम पर इसका उत्तर नही मिल रहा ? इन बड़े तालाबों के कैचमेंट एरिया के ढाल में होने के कारण पानी आता था !पहाड़,बस्ती,नालों,बंधी से भरते थे ये महोबा और बाँदा,टीकमगढ़,छतरपुर के तालाब ! ऐसे करीब चार हजार से अधिक स्रोत आज अवैध कब्जों में कैद है ! अगर मानसून ने धोखा दिया तो यह भरेंगे कैसे ? अतिक्रमण को नेस्तानबूत किये बिना ? उत्तर प्रदेश के प्रत्येक जिले में जिलाधिकारी की अध्यक्षता में सात सदस्य वाली समिति उच्चतम न्यायलय एवं उच्च न्यायलय के आदेश उपरांत गठित है जिसमे अपर जिला अधिकारी वित्त / राजस्व,पुलिस अधीक्षक,समस्त उप जिलाधिकारी,जिला सूचना अधिअकरी सदस्य नामित है.इनका कार्य तालाब / पोखर / चारागाह / कब्रिस्तान के अतिक्रमण को मुक्त करवाना है ! 
                                                                              




प्राप्त शिकायतों का समयव्ब्द्ध निस्तारण भी इन्हे ही करवाने की हिदायत प्रदेश के राजस्व आयुक्त किशन सिंह अटोरिया ने दी है ! प्रवासनामा के पास प्रदेश के सभी जिलों के तालाब के दस्तावेज है और उस आदेश की कोर्ट / प्रसाशनिक प्रति भी ! आगामी एक जुलाई 2016 से बुंदेलखंड के बाँदा से लखनऊ तक सात दिवसीय साइकिल यात्रा ' तालाब एवं भूदान चारागाह मुक्ति अभियान ' के संयोजन में निकाली जा रही है.ये अभियान प्रख्यात पर्यावरण विद अनुपम मिश्रा की पुस्तक ' आज भी खरे है तालाब ' को समर्पित है.अभियान संरक्षक / संपादक दुधवा लाइव.कॉम के केके मिश्रा ने बतलाया कि यात्रा में करीब  तीन सैकड़ा ग्राम से गुजरते हुए पथिक, सामाजिक संघठन के लोग और आन्दोलनकारी इलाहाबाद विश्व विद्यालय के छात्र - छात्रा जगह - जगह आदेशों की प्रति वितरित करेंगे,नुक्कड़ नाटक और गीत से जागरूकता लाने का प्रयास किया जायेगा !
                                                                    


इसके लिए युवा छात्र इलाहाबाद में ' पोस्टर कैम्पेन '  भी कर रहे है.आठ जुलाई को समापन में प्रेस क्लब लखनऊ में एक विमर्श के दौरान जल प्रबंध एक्सपर्ट इस पर व्याख्यान देंगे जिसमे अरविन्द कुमार सिंह,सुधीर जैन तालाब एक्सपर्ट,पियूष बबेले  इंडिया टुडे विशेष संवाददाता,कुलदीप कुमार जैन जल प्रबंधक,प्रो. वी.के. जोशी भूगर्भ विज्ञानी सहित विजय पाल बघेल (ग्रीन मैन ) साइकिल यात्रा लीडर रामबाबू तिवारी,नलनी मिश्रा,प्रणव,डाक्टर मेराज अहमद सिद्दकी,प्रोफ़ेसर योगेन्द्र यादव (घाना अतिथि प्रवक्ता ),सुनील दत्ता ( नेशनल लोक रंग एकडेमी,आजमगढ़),राघवेन्द्र मिश्रा,अन्नदाता की आखत से शैलेन्द्र मोहन श्रीवास्तव,वीरेंद्र गोयल मौजूद रहेंगे ! - आशीष सागर ,प्रवास बाँदा 

Wednesday, June 15, 2016

मोदी सरकार ने डिजीटल इंडिया को किया महंगा !

' अब देश बदल रहा है - आगे बढ़ रहा है !' अच्छे दिन आयेंगे - हम सोशल मीडिया छोड़ जायेंगे ' !

जब से यह केंद्र सरकार बनी है पिछले दो साल में मेरा इंटरनेट ब्राड बैंड का बिल 650 का प्लान बढ़ते हुए आज 14 जून को 847 रूपये देय हो गया है ! आपको बतलाता चलूँ कि इस केंद्र सरकार ने पिछली सरकारों की तरह अपने वेतन,भत्तो और सरकारी कैटीन में सुविधाभोगी जीबन को बिना त्यागे हुए अब नेट सहित प्रत्येक सामान की खरीद में स्वक्ष भारत टैक्स सेस को 0.50 % ,कृषि कल्याण सेस टैक्स भी 0.50 % शामिल किया है ! सर्विस टैक्स पहले से ही बढ़कर 14 % हो गया है ! ...यानि जनता का रुपया जनता के लिए टैक्स से वसूलो और बाँट दो ! लेकिन अपने लोकसेवक होने के नाते सेवक के सरकारी सुखभोग में कोई कटौती नही होनी चाहिए ! प्रति माह हजार रूपये का नेट खर्च क्या मेरे जैसा हैण्ड टू माउथ व्यक्ति दे सकता है ? अपना घर जलाकर नेट में काम करने हेतु ? देश के प्रधानमंत्री जी जरा सी नैतिकता हो तो अपने लक्जीरियस जीवन और सांसद के भी वेतन,भत्ते कम करें मगर यह सांसद तो उल्टा बढ़ाने की पैरवी करते नजर आते है यथा हरदोई सांसद नरेश अग्रवाल सपा ! 
                                                           


आधे में अध घर और आधे में सब घर की ये प्रथा जहाँ देश के सूखा पीड़ित किसान का भला नही कर सकेगी आपके ' कृषि कल्याण सेस टैक्स ' से वही हम जैसों की जीवन प्रक्रिया भी बाधित करेगी और कर रही है ! आज नेट बिल हाथ में आया तो आपका वो जुमला याद आ गया ' अच्छे दिन आयेंगे - हम सोशल मीडिया छोड़ जायेंगे ' अब देश बदल रहा है - आगे बढ़ रहा है ! तब जब आपके पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावेडकर सार्वजनिक मीडिया बयान देते है कि देश की नदियों से प्रदूषण कम हुआ है सरकार आने के बाद ! वही उमा भारती जी कहती है अक्तूबर 2017 तक गंगा निर्मल हो जाएगी फिर भले ही चित्रकूट की मंदाकनी जैसी नदियाँ आपके झूठे और बदसूरत बोल का लंगोट खोलती हो ! यह तस्वीर हाल ही में चित्रकूट की है देखिये नदियाँ भी नेट यूजर की तरफ साफ हो जाएगी !
( तस्वीर 29 अप्रैल 2016 चित्रकूट के मंदाकनी में राम घाट से ) अब आपके समर्थक और चित्रकूट रहवासी / राम भक्त तो देश साफ कर ही रहे है स्वक्ष भारत मिशन से !

Tuesday, June 14, 2016

लोकायुक्त क्या सरकारी कारिन्दा है ?

#यूपीसीएम #एमपीसीएम
' सरकारों के घुंघरू बनते लोकायुक्त ' ! 

अपने कार्यकाल के सात साल पूरे कर चुके मध्यप्रदेश के लोकायुक्त नावलेकर कोपुनः एक्टेंशन देने की कवायद है ! भोपाल के सामाजिक कार्यकर्ता अजय दुबे उच्च न्यायलय गए ! जाहिर है शिवराज सिंह चौहान ने आज तक एक मंत्री को जेल नही भिजवाया लोकायुक्त से ! यह अलगबात है सरकारी महकमा काली - पीली सम्पति सम्पति खोलती रहती पकडे जाने पर ! कुछ ऐसा ही समाजवादी सरकार ने यूपी के लोकायुक्त रहे जस्टिस एनके मेहरोत्रा पर कृपा रखी थी ! उन्हें भी सात साल टिकाया गया लेकिन उनकी ही जाँच पर बसपा के ग्यारह महाबली भ्रस्ट मंत्री आज तक समाजवादी सुरक्षा तंत्र में महफूज है ! वे सीबीआई / ईडी की गिरफ्त से बचे है और प्रोटोकाल लेकर सियासी आतंक मचा रहे है अगले चुनाव का ! शायद यह तस्वीर देखकर आपको थोडा याद आये मुखिया अखिलेश यादव का वादा ! यथा तुम भी खाओ ,हम भी खाए ! कहाँ गए समाजवाद के वो खोखले नारे - वादे जो विधानसभा चुनाव में किये थे ' अगर हम चुनाव जीते तो पार्को,मूर्तियों पर बुलडोजर चलवा देंगे ! ' चोर जेल में होंगे आदि !
                                                      

जबकि उन्हें सुरक्षा देते हुए न सिर्फ राजधानी लखनऊ का तापमान बढ़ाया गया बल्कि अपने यादव परिवार के 21 लोग लोकसेवक बनाकर सरकारी निधि, भत्ते,वेतन और पेंशन लेने का हक़दार बना दिया गया ! जनता वैसे ही यह सब भूल जाती है जैसे अंग्रेजों की गुलामी, केंद्र सरकारों के स्कैम, पूंजीपतियों की सरपरस्ती में बनकर तैयार योजना से अपने ही टैक्स पर अपना शोषण होते देखकर उसको कोई असर नही होता ! बड़ा जबरा धैर्य है जनता का !

भूदान आन्दोलन की दान जमीनों पर सरकारी और गैरसरकारी कब्जे

बुंदेलखंड के सात जिलों में विस्तार से फैली भूदान आन्दोलन की भूमि में सार्वजनिक चारागाह थे या समाज उपयोगी गतिविधि के केंद्र लेकिन समय की गर्त में विकास की धुंध ने और कुछ अवसरवादी सामाजिक संस्थानों ने भूदान की लाखों एकड़ जमीन को बुंदेलखंड की तरह प्रदेश - देश भर में अतिक्रमित किया है. इसी विषय पर अखिलेश अखिल की ये रिपोर्ट समसामयिक है.

साभार - www.visfot.com ( विस्फोट.कॉम ) से लिया गया है -
रिपोर्टर -  अखिलेश अखिल 21/10/2013, तस्वीर गूगल साभार

 भूदान की जमीन पर भवन निर्माण !

आजाद देश के रहनुमाओं ने इस देश को किस किस तरह से लूटा है इसकी कहानी हमें बार बार टुकड़ों टुकड़ों में देखने सुनने को मिल रही है। लेकिन आजाद भारत में गांधी के सच्चे अनुयायी और सर्वोदयी नेता बिनोवा भावे के भूदान आंदोलन के तहत भूमिहीनों के लिए मिली दान की लाखों एकड़ जमीन की खोजबीन की जाए तो इस देश का सबसे बडा घोटाला सामने आएगा। जमीन से जुड़े इस घोटाले में मंत्री से लेकर संतरी तक, नौरशाह से लेकर देश के बड़े बड़े गैर सरकारी संस्थाएं और बिल्डरों  की संलिप्तता दिखेगी। इस खोजी  रपट के जरिए भूदान आंदोलन की जमीनों की लूट के बारे में कुछ जानकारियां लेने की कोशिश की गई है ताकि हमारी सरकार इस दिशा में कोई कारगर कदम उठाकर भावे के सपने को साकार करने की कोशिश कर सके।
अगर देश में नक्सलवाद फैला तो उसका एक बहुत ही बड़ा कारण लोगों का भूमिहीन होना और कुछ लोगों के पास अधिक जमीन होना है। गांधी के लोगों ने आने वाले समय की कल्पना की थी। इसिलिए गांधी के सच्चे आदमी विनोबा भावे ने भूमिहीनों को जमीन देने के लिए गांव गांव जाकर जमींदारों से भूमि मांगने की शुरूआत की। इसके लिए सबसे पहले  विनोबा जी 1951 में अपने पनवार  आश्रम से चलकर हैदराबाद के दक्षिण में शिवरामपल्ली गांव पहुंचे । वहां तीसरे सर्वोदय सम्मेलन का आयोजन था। 18 अप्रैल 1951 को विनोबा जी नांगलोंड पहुंचे। यह इलाका तब भी लाल सलाम के नारों से गूंजता था । विनोबा जी पोचमपल्ली गांव में ठहरे। 700 की आवादी वाले इस गांव में दो तिहाई लोग भूमिहीन थे । भूमिहीनों ने विनोबा जी से 80 एकड़ जमीन की मांग की। विनोबा जी के आग्रह पर गांव के जमींदार रामचंद्र रेउ्डी 100 एकड़ जमीन देने की घोषणा की। इसके बादी विनोबा जी ने इसे आंदोलन का रूप् देकर पूरे देश से अपने जीवन में 47 लाख एकड़ जमीन दान में ली। ये जमीने बांटने का काम राज्य और जिला भूदान समिति को दी गई। चूकि भूमि राज्य का मामला है इसलिए राज्य सरकार का सहयोग जरूरी है। लेकिन देखा जा रहा है कि भूदान की जमीने लूट की शिकार होती गई हैं। आगे बढे इससे पहले एक नजर भूदानी जमीनो पर।
देश भर में स्थापित भूदान यज्ञ समिति के अनुसार सर्वोदयी नेता विनोबा भावे के भूदान आंदोलन के तहत कुल 47 लाख, 63 हजार, 676 एकड़ जमीन भूमिहीनों के लिए दान में मिली थी। यहां पेश है कुछ राज्यों में पिछले 2 साल तक भूदानी जमीनों के आंकड़े (एकड़ में) -
  • राज्य       दान की जमीन       बांटी गई जमीन       बची जमीन
    बिहार     6,48,593         2,78,320         3,40,273
    आंध्र      2,52,119         1,8,770          1,43,349
    झारखंड   14,69,280       4,88,735       9,80,545
    उड़ीसा      6,38,706       5,79,984         58,722
    राजस्थान   5,46,965      1,42,699        4,04,266
    उत्तरप्रदेश   4,36,362      4,18,958         17,404
    दिल्ली       300              180                 120
    मध्यप्रदेश    4,10,151       2,37,629        1,72,522
    महाराष्ट्     1,58,160        1,13,230        44,930
    जम्मू कश्मीर 211                 5               206
    असम         877               877             0
    पंजाब        5168              1026           4,152
    तामिलनाडू   27677             22837          4,840
    केरल        26,293             5,774          20,519
    कर्नाटक     15,864             5017          10,847
    हिमाचल     5,240               2,531           2,709
    गुजरात     1,03,530           50,984          52,546
आपको बता दें कि संयुक्त बिहार से सबसे ज्यादा जमीनें भूदान आंदोलन को दान की गई थी। कोई 22 लाख एकड़ जमीने संयुक्त बिहार से मिली थी। इनमें से बिहार के जमींदारों ने 6,48,593 एकड़ और झारखंड के जमींदारों ने 14,69,280 एकड़ जमीने विनोबा जी को दी थी। 45 सालों के बद भी ये जमीनें आज तक भूमिहीनों को नही दी गई है। बिहार और झारखंड में 2 लाख 32 हजार लोगों ने ये जमीने दान दी थी। बिहार में मात्र 2,78,320 एकड़ जमीने ही आज तक बंट पायी है जबकि झारखंड में मात्र 4,88,735 एकड़ जमीने ही भूमिहीनों तक पहुंच पाई है। इनमें भी जिन भूमिहीनों को जमीने दे भी दी गई है उसका मालिकाना पट्टा आज तक अधिकतर लोगों को नही मिली है। राजस्व विभाग सारे कागजात अपने पास रखे हुए है और कागज देने के नाम पर मोटी रकम की मोग कर रहे है। बिहार और झारखंड से मिली लगभग 22 लाख एकड़ जमीनों में से अधिकतर जमीनों को दलालों और भ्रष्ट नौकरशाहों से लेकर भूदान समिति से जुड़े लोगों ने अनफिट और बेकार की जमीन घोषित किए हुए है। नदी नाला और पहाड़ी जमीन के नाम पर ये जमीने लूट की शिकार हो रही है।
                 

इसके अलावा बहुत सारी जमीने तो ऐसी भी है जिसे दानदाताओं ने नाम कमाने के लिए दान तो दे दिया किन्तु आज भी उन जमीनों पर कब्जा उन्हीं का बना हुआ है। झारखंड के सामाजिक कार्यकर्ता  ठाकुर प्रसाद  कहते हैं कि -‘आदिवासियों ,गरीबों और भूमिहीनों की बात करने वाली बिहार और झारखंड सरकार से कौन पूछने जाए कि भूदानी जमीन कहां है और उन जमीनों को सही तरीके से भूमिहीनो के बीच क्यों नही बांटा जा रहा है । जो सरकार इतना भी काम नहीं कर सकती भला उससे उम्मीद क्या की जाएगी। सही बात तो यह है कि भूदानी अधिकतर जमीनों पर बिल्उरों ने हड़प लिया है और इसमें राज्य सरकार के लोग सदा से मिले रहे हैं। कभी कभी तो लगता है कि पूरे देश में नकली सरकार की भरमार सी हो गई है।’ ठाकुर प्रसाद की बातों में दम है। राज्य बने 10 साल हो गए हैं और भूदानी जमीनों को लेकर आज तक किसी मुख्यमंत्री ने अपनी सक्रियता नहीं दिखाई। राज्य के भू राजस्व मंत्री हैं मथुरा महतो। जमीनी आदमी हैं और लोकप्रिय भी । लेकिन भूदान  से संबंधित जमीन वितरण के बारे में जब इस संवाददाता ने सवाल किया तो महतो साहब चुप हो गए । कहने लगे कि- ‘कुछ जमीनें पहले भूमिहीनों को बांटी गई थी अभी इस पर फिर से काम किया जाना हैं जमीन की मानिटरिंग की जा रही है। लेकिन सबसे बड़ी बात तो यह है कि यहां  का भूदान समिति डिफंक्ट है। वह ठीक से काम नहीं कर रहा है। एक अन्य  सवाल  पर महतो साहब भड़क गए। कहने लगे कि आप लोग केवल निगेटिव सवाल ही करते हैं । राज्य में अच्छा काम भी हो रहा है उसे आप लोग नहीं दिखाते।’


अब आप को ले चलते हैं नीतीश जी राज्य बिहार में। कहा जा रहा है कि वहां सब कुछ हरा भरा हो गया है। लेकिन भूदानी जमीन के मामले में बिहार में भी लूट पाट कम नहीं हुई है। बिहार में भूमि सुधार के नाम पर  डी बंदोपाध्याय आयोग का गठन किया गया। आयोग ने अपनी रिपोर्ट 11 जून 2007 को राज्य सरकार को सौप दी। आयोग का कहना है कि एक, सरकार के पास भूदानी जमीन के अलावा किसी भी जमीन की सही जानकारी नही है और न ही उसका हिसाब किताब है। दो, भूदान की जमीन में भारी गड़बड़ी हुई है। भूदान यज्ञ समिति और राजस्व विभाग के जमीन संबंधी आंकड़ों में काफी अंतर है। तीन, 1961 में भू हदबंदी कानून बनाया गया लेकिन आज तक लागू नहीं हुआ। चार, 500 एकड़ से ऊपर जमीन रखने वाले भूस्वामियों की नई नई सूचियां तैयार होती रही है। इस प्रकार की सूची 1070.76 एवं 1982.83 और 29 जून 1990 को बिहार विधानसभा के अंदर 500 एकड़ से उपर जमीन रखने वाले 35 भूस्वामियों की सूची प्रस्तुत की गईथी लेकिन मामला वहीं दब कर रह गया।
बिहार में कई मामले तो चैंकाने वाले हैं। उपरोक्त कमीशन की रिपोर्ट ने खुलासा किया था कि भूदान की 11130 एकड़ जमीन 59 संस्थाओं को दे दी गई जो भूदान कानून के विरूद्ध. है।औसत एक संस्था को 189 एकड़ जमीने दी गई है। चूकि यह मसला राज्य सरकार से संबंधित है इसलिए कहा जा सकता है कि सरकार के बाबूओं और भूदान समिति के लोगों ने मिलकर यह सारा खेल किया है। बिहार में भूदानी जमीनों की कैसे लूट की गई है इसकी कुछ बानगी आप देख सकते हैं ।बिहार के पूर्णिया जिला में भूदान कार्यालय मंत्री हैं मुस्तफा रजा आलम। आलम ने अपनी पत्नी रेहाना खातुन के नाम 4 एकड़ जमीन खाता नंबर 444 ,खेसरा नंबर 405  के नाम 23 जुलाई 2008 को  करवा दी हैं। यह जमीन पूर्णिया जिले के रूपौली थाना के मउआ परबल गांव में दी गई है।  इसका प्रमाण पत्र संख्या है 778549। इसी महिला के नाम पूणिर्या जिले के गोपालपुर थाना के जहांगीरपुर बैसी में 2 एकड़ की एक और जमीन दी गई है । इस जमीन का खाता नंबर 866 और खेसरा नंबर है 101। इसका प्रमाणपत्र संख्या है 768166। यह जमीन 3 नवंबर 2007 को दी गई थी। सुप्रीम कोर्ट का इस मसले में साफ आदेश है कि भूमिहीनों को जमीन दी जाएगी और नह भी स्थानीय भूमिहीनों को। लेकिन यहां तो एक ही आदमी को दो जगह जमीन दी गई है और वह भी स्थानीय आधार पर नही। इसे लूट नही तो और क्या कहा जाए ? इसी परिवार से जुडा एक और केस है पटना का। पूर्णिया के मुस्तफा रजा का सगा भाई मो0 इसराफिल पटना भूदान आफिस में काम करते हैं। इन्होने अपनी पत्नी रजिया खातून के नाम 4 एकड़ जमीन पूर्णिया के ही भउआ परबल गांव में करबा दी है। इस जमीन का प्रमाण संख्या है 778530 । यह जमीन 23 जुलाई 2008 को रजिया खातुन के नाम की गई है। इसी महिला के नाम एक एकड़ जमीन जहांगीर पुर बैसी में  भी  की गई है  जिसका प्रमाण संख्या 768211 है। यह जमीन 3 नवंबर 2007 को लिखी गई है।  इस परिवार के लोगों ने सरकार के लोगों से मिलकर या फिर राजनीति के तहत जमक र भूदानी जमीनों की लूट की है। एक 2 एकड़ की तीसरी जमीन भी इसी रजिया खातून के नाम जहांगीरपुर बैसी में की गई है जिसका खाता नंबर है 896 और खसरा नंबर है 101। इस जमीन का प्रमाण पत्र देने वालों में विजय कुमार शर्मा, कार्यालय मंत्री, भागलपुर भूदान कार्यालय के हस्ताक्षर हैं। आपको यह भी बता दें कि ये सारी जमीने नीतीश कुमार के शासन में बांटी गई है। बंटी यह जमीन जाएज है या नाजायज यह जांच का विषय हो सकता है।  बिहार भूदान यज्ञ समिति के अध्यक्ष शूभमूर्ति उपरोक्त मामले पर अपनी चुप्पी तोड़ते हुए कहते हैं कि  ‘जिस मामले की आप चर्चा कर रहे हैं वह सही है। लेकिन सही ये भी है कि मुस्तफा रजा और और इसराफिल की पत्नी के नाम से जो जमीने दी गई थी उसे वापस ले ली गई है। गलती हुई थी लेकिन उसे सुधार दिया गया है। अब उस जमीन के कागजात रद्द हो गए हैं और उसके प्रमाणपत्र भी वापस कर लिए गए हैं। आपको बता दें कि हमारे कुछ विरोधी हैं जो हमें बदनाम करने की चाल खेल रहे हैं। गलती राज्य सरकार करती है और बदनाम भूदान कमेटी को किया जाता है।’ जैविक खेती अभियान के संयोजक क्रांति प्रकाश कहते हैं कि ‘विनोबा जी ने देश में घूम घूम कर जमीने हासिल की ताकि गरीब और भूमिहीनों को जमीन दी जस सके। लेकिन इस देश की राजनीति ने विनोबा भावे के सपनों को भी तोड दिया। कुछ जमीने बांटी गई जबकि अधिकतर जमीने लालफीताशाही के चककर में फंसी है। इसके अलावा कुछ जमीने तो अभी भी लठैतों के कब्जें में हैं। या तो जमीन बंटनी चाहिए या फिर उस जमीन को वापस कर देनी चाहिए।’
बिहार भूदान कमेटी के अध्यक्ष हैं शुभमूर्ति लंबे समय से भूदान आंदोलन से जुड़े रहे हैं।  इन पर आरोप लगाया जा रहा है कि इनको हर महीने 43801 रूपए बेतन के रूप में मिल रहे हैं। इनको महंगाई भत्ता के रूप में 4320 रूपए, अतिथि भत्ता के रूप् में 14 हजार रूपए, क्षेत्रीय भतता के रूप में12 हजार रूप्ए और उ्ाइबर भत्ता के रूप में 5481 रूप्ए भी मिल रहे हैं। सवाल है कि क्या अवैतनिक लोगों को महंगाई भत्ते दिए जाते है? आपको बता दें कि बिहार भूदान समिति से जुड़े सैकडों कार्यकर्ता 27 माह से बेतन न मिलने की शिकायत कर रहे हैं जबकि हर साल राज्य सरकार भूदानी लोगों के लिए 60 से 70 लाख रूपए देती हैं। शुभमूर्ति कहते हैं कि ‘ इसे मैं कहता हूं कि मुझे बदनाम किया जा रहा है। दरअसल अध्यक्ष का पद राज्य मंत्री का होता हैं । आज की तिथि में एक राज्य मंत्री को 60-70 हजार बेतन के रूप में मिलते हैं ,उपर से घर और गाड़ी अलग से । चूकि मैं भूदान कमेटी से जुड़ा हूं इसलिए मैं आधा वेतन ही ले रहा हूं। लेकिन भाइयों को यह पसंद नहीं।’
भूदानी जमीन की लूट केवल बिहार या गुजरात में ही नहीं की गई है। जहां जहां से जमीने मिली है ,जमीने लूट की शिकार हुई है। आंध्र में कुल 2,52,119 एकड़ जमीने दान में मिली थी। इनमें से 1,08,770 एकड़ जमीन अनियमितता पूर्वक बंट तो गई है बाकि लगभग एक लाख जमीन बिल्डरों और संस्थाओं के हाथ में चली गई है। बिल्डरों के कई मामले अभी अदालत में चल रहे हैं। तामिलनाडू में तो भूदानी जमीन को लूटने के लिए भूदान एक्ट में ही संशोध कर दिया गया।  तामिलनाडू में कुल 27677 एकड़ जमीन दान में मिली थी । इनमें से 22837 एकड़ जमीन किसी तरह तो बंट गई है वाकि के 4840 एकड़ जमीन संस्थाएं और विल्डरों के चुगुल में है। राज्य सरकार ने भूदान कानून में बदलाव करके कानून बना रखा है कि अगर भूदानी जमीन का उपयोग सार्वजनिक काम के लिए होता है तो इसे बाजार दर से दोगुनी दर पर ली जा सकती है।  उडीसा में भी भूदानी जमीन को लूटा गया हैं । उड़ीसा में  भूदान आंदोलन के तहत कुल 6,38,706 एकड़ जमीने दान में मिली थी। इसमें से 5,79,984 एकड़ जमीनें बांट दी गई है। इनमें भी कई जमीनें ऐसे लोगों को दे दी गई हैं जो भूमिहीन बर्ग में नहीं आते हैं। इसके अलावा खुर्दा जिले के पीपली तहसील में 171 एकड़ जमीन बिल्डर के हाथों बेच दी गई है। बिल्डरों ने इस पर निर्माण भी कर लिया था जिसे एफआईआर के बाद खुर्दा के कलेक्टर ने तोड़ दिया है। लेकिन अभी तक जमीन बेचने वाले और खरीदने वाले पुलिस के हाथ नहीं लग पाए हैं। राज्य के राजस्व और आपदा मंत्री सूर्य नारायण पात्रों कहते हैं कि ‘दोषी चाहे जो भी हो हम उन्हें नहीं छोड़ेंगे। भूदानी जमीन किसी को नहीं दी जा सकती। यह भूमिहीनों के लिए है। जिन लोगों ने जमीन की लूट की है हम उसे तलास रहे हैं।’
विनोबा भावे के भूदान आंदोलन के तहत भूमिहीनों के लिए देश भर से दान में मिली जमीनों की पहली शर्त ये है कि स्थानीय भूमिहीनों के अलावा किसी और को न तो दी जा सकती है और न हीं किसी भी सुरत में किसी को भी ये जमीने बेची जा सकती हैं। भूदानी कानून के अलावा माननीय सुप्रीम कोर्ट का भी यही आदेश है। लेकिन इस आदेश की धज्जियां सबसे ज्यादा गुजरात सरकार और राज्य भूदान समिति से जुड़े लोगों ने उड़ाई है। हालाकि ऐसा नही है कि गुजरात के अलावा अन्य राज्यों में भी  भूदानी जमीन की लूट नहीं  की गई है। हम उस पर भी चर्चा करेंगे। लेकिन सबसे पहले आइए नजर  डालते हैं गुजरात में  भूदानी जमीनों पर । सरकार के लोगों और राज्य भूदान समिति के लोगों ने मिलकर पैसे की लालच में भूदानी जमीनों को विल्डरों के हाथ बेच दी है। ऐसा कोई एक मामला नहीं है। जरा इन मामलों पर आप भी गौर कर ले।गुजरात का ब्लाक नंबर 542। गांव भदज। इस इलाके को आधुनिक समय में साइंस सिटी के नाम से जाना जाता है। राज्य सरकार और भूदानी समिति से जुड़े लोगों ने यहां की लगभग 12 एकड़  भूदानी जमीन एक बिल्डर रश्मिकांत छगान भाई पटेल को मात्र एक करोड़ 18 लाख में बेच दिया। बर्तमान समय में यहां एक एकड़ जमीन की कीमत 2 करोड़ के आसपास है। यानि 24 करोड़ की जमीन लगभग सवा करोड़ में बिल्डर लोगों को खिलापिला कर  ले उड़े। आज तक किसी की इस पर नजर नहीं गई है।
गुजरात के ही खेड़ा जिला के राधु गांव की ही भूदानी 5 एकड़ जमीन भूदान समिति और राज्य सरकार के लोगों ने सभी नियमों को ताख पर रखकर मात्र 3 लाख में बिल्डर दिनेश भाई रमण भाई पटेल को बेच दी है । इस जमीन का सर्वे नं0 है 1662 और 1664। आपको बता दें कि भूदान के तहत पहले यह जमीन अलेफ खान और गुलाब खान पठान को दी गई थी। बाद में इन खानों से जमीन छीन कर बिल्डर के हवाले कर दिया गया। अहमदाबाद शहर में ही सावरमती आश्रम के पास ग्राम स्वराज आश्रम स्थित है। यहां की लगभग आधा एकड़ जमीन 3 नवंबर 2009 को एक ब्यापारी के हाथ  मात्र 39 लाख रूपए में  बेच दी गई है। बेची गई जमीन पर आश्रम की पांच कमरे थी, एक बड़ा हाल था और खुली जमीन थी। अभी अहमदाबाद में 40-45 लाख में एक कमरा मिलना भी मुश्किल है। चूकि ब्यापारी के हाथ में सीधे जमीन बेचने में दिक्कत आ सकती थी इसलिए दलालों ने पहले एक संस्था बनाई फिर इस जमीन को बेच दी।
गुजरात के ही बड़ोदरा शहर में भी दलालों और भूदान समिति से जुड़े लोगों ने भूदानी जमीन को बेचने में कोई कोताही नही बरती हैं बाघोरिया रोड पर पापोद मुहल्ला की 1.4 हेक्टेयार  भूदानी जमीन प्रणव पंचाल,बैकुंठ नाथ बिल्डर को 2004 में बेच दी गई है।  अहमदाबाद के ही नरोदा में एक और भूदानी जमीन को बिल्डर के हवाले किया जा चुका है। 0.43.43 हेक्टेयर जमीन 2008 में प्रवीण भाई मणि भाई पटेल के हाथ बेच दी गई है। इस जमीन का रजिस्ट्री नं0 है 5160/2008।
जरा दिल्ली का हाल देखें। भूदान यज्ञ में दिल्ली के लोगों ने विनोबा भावे को 300 एकड़ जमीन दान में दी थी। इन जमीनों में से 180 एकड़ जमनों का वितरण दिल्ली सरकार कर देने का दावा कर रही है। बाकि 120 एकड़ जमीन कहां है और किसके कब्जे में इसका कोई रिकार्ड किसी के पास नहीं है। आपको बता दें कि यहां कि अधिकतर भूदानी जमीनों पर माफियाओं का कब्जा हो चुका है। फरीदाबाद और नोएडा की भूदानी जमीनों को विल्डरों ने कब्जा रखा है। डिफेंस हाउसिंग के नाम पर माफियाओं ने सहां की 30 एकड़ जमीन लूट ली है। यह मामला अदालत में है। कहा जा रहा है कि दिल्ली और हरियाणा के तीन नेताओं ने मिलकर यह धंधा किया था और करोड़पति बन गए थें। इसी तरह महाराष्ट्र से भूदान के तहत 1,58,160 एकड़ जमीन मिली थी। इसमें से 1,13,230 एकड़ जमीन बंट चुकी है। बाकि की 44,930 एकड़ जमीन अभी विवादों में फंसी हुई है। विनोबा भावे ने सबसे पहले भूदान आंदोलन की शुरूआत बर्धा से की थी। लेकिन बाद के दिनो में बर्धा और थाने इलाके में भूदानी जमीन की जमकर लूट की गई। बर्धा में सबसे ज्यादा विल्डरों ने भूदानी जमीन को कब्जा कर रखा है और थाने इलाके में भूदान समिति औा सरकार से मिलकर विल्डरों और कई संस्थाओं ने सैकडों एकड़ जमीन कम भाव में ले रखी है।

Monday, June 13, 2016

बुंदेलखंड के बाँदा से प्रारंभ होगी ' तालाब एवं भूदान चारागाह मुक्ति अभियान ' सात दिवसीय साइकिल यात्रा !

‪#‎AnupamMishra‬ ‪#‎आजभीखरेहैतालाब‬ ‪#‎भूदानचारागाह‬ 

' तालाब एवं भूदान चारागाह मुक्ति अभियान ' !(आज भी खरे है तालाब, पर आदमी से डरे है तालाब )

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Banda 13 June 2016 - 
बुंदेलखंड के जनपद बाँदा से आगामी 1 जुलाई 2016 को सात दिवसीय साइकिल यात्रा का आयोजन किया जा रहा है ! यह साइकिल यात्रा  गाँधीवादी विचारक और पर्यावरणविद श्री अनुपम मिश्र जी / उनकी किताब ' आज भी खरे है तालाब ' को समर्पित है ! पानी के संकट और तालाबों पर अवैध कब्जों एवं सार्वजनिक / भूदान आन्दोलन के बाद हासिल हुए चारागाहों पर किये गए बेतरतीब कब्जे से अन्ना प्रथा जहाँ बढ़ी है,वही खेती के लिए समुचित जल का अकाल भी खड़ा हुआ है ! एक जुलाई को छाबी तालाब मैदान बाँदा में एक जनसंवाद कार्यक्रम के बाद लखनऊ तक साइकिल यात्रा का प्रस्थान होना है ! इस महती और प्रासंगिक युवा सहभागिता ( इलाहाबाद युनिवर्सिटी के रिसर्च - स्कालर छात्र- छात्रा / सामाजिक कार्यकर्ता ) के हौसलों से प्रेरित यात्रा का मूल उद्देश्य देश भर में फैले / विलुप्त हो रहे प्राचीन ,बुंदेलखंड के चंदेलकालीन तालाबों और भूदान आन्दोलन के बाद देश भर में सार्वजनिक चारागाह की जमीनों पर किये गए अवैध कब्जे - पट्टे को रेखांकित करना है ! सात दिवसीय यात्रा में माननीय उच्च न्यायलय / सुप्रीम कोर्ट के उन आदेशों का भी वितरण किया जायेगा जो इस विषयक ' तालाब / कब्रिस्तान / पोखर / कुंए / चारागाह के लिए हुए है लेकिन वे अमल में नही लाये गए है ! यात्रा का समापन 8 जुलाई को प्रेस क्लब लखनऊ अपरान्ह बारह बजे से 3 बजे तक इसी विषयक परिचर्चा के साथ होना है ! उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री जी को मांग पत्र / श्वेत पत्र में प्रदेश के तालाबों / भूदान से प्राप्त चारागाह के मुक्ति की पैरवी की जाएगी ! बुंदेलखंड के सुखाड़ / जलसंकट / अन्ना पशुओं के भोजन - पानी - किसानी के पुनरुत्थान के लिए जनहित में यह अपरिहार्य एवं समसामयिक है !

समापन में संभावित वक्ता / अतिथि - 

अरविन्द कुमार सिंह (राज्यसभा टीवी,संवाददाता,दिल्ली),सुधीर जैन ( सीनियर पत्रकार जनसत्ता / एनडीटीवी ब्लागर) एवं तालाब अध्ययनकर्ता,पियूष बबेले ( विशेष संवाददाता इंडिया टुडे पत्रिका ग्रुप ),सचिन जैन संयोजक विकास संवाद,भोपाल,प्रभात झा ( सामाजिक कार्यकर्ता गांधी पीस फाउंडेशन),सुभाष राय,विजय पाल बघेल (ग्रीन मैन,गाजियाबाद),संजय कश्यप ( पर्यावरण कार्यकर्ता),डाक्टर विजय पंडित (मेरठ),सुदीप साहू),शिवनारायण सिंह परिहार बुंदेलखंड अध्यक्ष,भारतीय किसान यूनियन (भानु गुट ),संध्या दिवेदी (ओपिनियन पोस्ट पत्रिका ),पंकज जायसवाल ( हिंदुस्तान टाइम्स,लखनऊ ),उर्वशी शर्मा (सूचनाधिकार कार्यकर्ता),तनवीर अहमद सिद्दकी,सन्ज आजाद,ओम प्रकाश श्रीवास्तव आदि !
                                                      

विशेष स्नेह - पंकज चतुर्वेदी ( पत्रकार / लेखक दफ़न होते दरिया ) 

अभियान संरक्षक - कृष्णकुमार मिश्रा ( संपादक ) www.dudhwalive.com ई जनरल पर्यावरण पत्रिका 

यात्रा कोर सहभागी टीम - रामबाबू तिवारी छात्र पीएचडी ( सामाजिक कार्यकर्ता जल बचाओ आन्दोलन ),नलिनी मिश्रा छात्रा इलाहाबाद युनिवर्सिटी ,प्रो. योगेन्द्र यादव गांधीवादी,लेखक सर्वोदय / अतिथि प्रवक्ता (घाना साउथ आफ्रीका) ,सुनील दत्ता (आवाम का सिनेमा,आजमगढ़ ) ,पंकज सिंह परिहार ( सामाजिक कार्यकर्ता,गुगौरा,महोबा ),स्नेहिल सिंह निदेशक न्यू इनवायरमेंट वेलफेयर सोसाइटी ,डाक्टर मेराज अहमद सिद्दकी ( प्रवक्ता एलपीयू जालंधर -पंजाब),प्रणव निदेशक पथ प्रदर्शक सोसाइटी इलाहाबाद ,नीरज सिंह कछवाह,अटल कुमार पटेल ( क्षेत्र पंचायत सदस्य नरैनी,अनुराज कुमार गोपाल आदि लोग मौजूद रहेंगे ! पोस्ट सूचनार्थ है !

अभियान समर्थक - ' अन्नदाता की आखत ' अभियान के अध्यक्ष वीरेंद्र गोयल,कोषाध्यक्ष शैलेन्द्र श्रीवास्तव नवीन,वरिस्थ सदस्य सूर्यप्रकाश  तिवारी . 

बाँदा के धान मंडी अतर्रा में ये है तालाबों की सूरत - 

' अवैध कब्जों से हलकान धान मंडी अतर्रा के प्राचीन तालाब ' !
13 जून बाँदा(अतर्रा) / बुंदेलखंड - अतर्रा में कभी धान की मंडी थी ! 
यहाँ महाचिन्नावर,रामभोग,परसन बादसाह चावल दमकता था अपनी शानदार महक के साथ ! गाँव से कसबे तक इन्ही तालाबों का मानसूनी पानी याहं की लाजवाब खेती को खुशहाल रखता था ! समय गुजरा और मानवीय सभ्य लोगों ने सभी तालाबों पर अवैध कब्जे कर लिए ! यहाँ तक की गौरा बाबा तालाब में जलसंस्थान से अपना सरकारी दफ्तर बिल्डिंग बनाकर खड़ा कर लिया ! नगर पालिका ने लिखित दिया सूचनाधिकार में यह अवैध कब्ज़ा है लेकिन एसडीएम अतर्रा और जिलाधिकारी बाँदा के लिए कोई मायने नही रख सका ! आज अमर उजाला ने पुनः यह खबर प्रकाशित की है ! 
                                             

यह सोचकर कि तालाबों को लेकर संजीदा वर्तमान जिलाधिकारी योगेश कुमार जी अतर्रा के इन बंधक तालाबों को अतिक्रमण मुक्त करवाएंगे किसानों और स्थानीय जलप्रेमियों के लिए क्योकि सदियाँ बीते ,चाहे वर्षो गुजरें पर ' आज भी खरे है तालाब ' ! इसके लिए जिलाधिकारी बाँदा को किसी आदेश की ज़रूरत नही उनके स्वयं के प्रसाशनिक पावर,सुप्रीम कोर्ट / उच्च न्यायलय के आदेश ही पर्याप्त है ! इसके लिए सन्दर्भ ले उत्तर प्रदेश साशन,राजस्व अनुभाग- 2 के कार्यालय आदेश संख्या- सूचना का अधिकार - 444(1)/1-2-14-रा0-2,लखनऊ दिनांक 31 दिसंबर 2014 जो समस्त मंडल / प्रदेश के जिलाधिकारी को प्रेषित है ! तालाब / पोखर/ कब्रिस्तान / चारागाह के बावत ! गौरतलब है कि बुंदेलखंड में करीब 2659 तालाब दफ़न हो चुके है ! यहाँ चंदेलकालीन चार हजार तालाब थे ! महोबा शहर और चरखारी इसकी बानगी है ! यह तस्वीर मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ में भी देखी जा सकती है ! अगर यह तालाब बचे तो बाँदा का अतर्रा नीर के लिए तरसेगा नही ! किसान मरेगा नही !