Saturday, September 03, 2016

शातिर पिता की मासूम जलपरी श्रद्धा शुक्ला !

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https://www.youtube.com/watch?time_continue=447&v=bdGRonp6jIA
' हवामहल है जलपरी का गंगा पार अभियान '
- किशोरी का पिता बेटी का बचपन छीन रहा !
हाल ही में चर्चा में आई किशोरी बाल जलपरी कानपुर की श्रद्धा शुक्ला का रहस्य आज फ़िल्मकार / डाक्यूमेंट्री निर्माता विनोद कापड़ी ने उजागर कर दिया ! अमर उजाला में प्रकाशित इस खबर को अवश्य पढ़े ! साथ ही लिंक में वीडियो देखे ! इस प्रायोजित जलपरी के पीछे उसका बचपन दफन करने वाला स्वार्थी पिता ललित शुक्ला मुख्य किरदार में है ! पहले लिम्का बुक आफ रिकार्ड में नाम दर्ज करवाया और अब विश्व रिकार्ड की तैयारी है ! ये हिंदुस्तान की ग्रामीण जनता ' जलपरी ' को देवी मानकर पैरवंदन कर रही,उस पर रुपया चढ़ा रही है और पिता खुश होता है ! खैर बेटियां तो सदा पूज्यनीय है लेकिन एक पिता कैसे बेटी के कंधे पर झूठ का लबादा पहनाकर उसको सरताज बना देना चाहता है ये इस कहानी का आधार है ! फ़िल्मकार विनोद कापड़ी कहते है ' मै तीन दिन से इस अभियान में हूँ,खबर पढ़कर लगा काम बड़ा है इसको फिल्माते है ! 
                                
पर लड़की के अभियान और पिता के नाटक को देखकर अचंभित हूँ ! एक पिता बेटी का बचपन ख़तम करना चाहता है ! बिटिया निर्दोष है पर पिता जादूगर है ! वे कहते है ये लड़की पानी में तब उतरती है जब घाट आने वाला होता है या लोग दिखलाई देने लगते है ! तब तक सभी नांव में बैठे रहते है ! मैंने कई बार पिता से पूछा ये क्या है तो वे कभी मगर,पानी,बाढ़ या बेटी की तबियत ख़राब है कहकर टालते रहे ! विनोद ने बतलाया कि नाव के पीछे लकड़ी के तख्ते में बेटी लेती रहती है जब घाट पास आने को होता है तब नदी में उतारी जाती है ! लड़की को एक दिन में 82 किलोमीटर गंगा नदी में तैरना है ! ' पूरे रे 570 किलोमीटर. कानपुर से प्रयाग होते हुए इलाहाबाद पहुंचने का लक्ष्य था जलपरी का ! यानि सात दिन लगातार पानी में ! कानपुर की 11 साल की लड़की श्रद्धा शुक्ला. इस वक्त अपने उफान पर गमगमाई हुई गंगा में तैरने जा रही है ये पढ़कर ग्रामीण देवी की तरह उसे / पिता को पूज रहे है ! क्या उत्तर प्रदेश सरकार आँख बंद किये है ऐसे फर्जी तमगों वाले ' गंगा पार अभियान में ' ? खबर तो ये भी थी ये तैरेगी स्वच्छ गंगा प्रोग्राम के लिए ! उसके पहले ही गुब्बारा फूट गया और बच्ची के पापा का फर्जीवाड़ा निकल के आ गया सामने !! क्यों गंगा को तमगों का ढोल बना रहे हो जलपरी के पिता ?
                          

' बुंदेलखंड अफसरों की चारागाह '

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 वर्षो से जमे अधिकारी बुंदेलखंड छोड़ना नहीं चाहते !
उत्तर प्रदेश सरकार के शासनादेश 11 मई 2016 के क्रम में समस्त जनपद / मंडल मुख्यालय पर 6 वर्ष सेवाकार्य कर चुके समूह क और ख के अधिकारी का स्थान्तरण कर दिया जावे ! यह आदेश बुंदेलखंड के बाँदा में तो बौना साबित है ही अन्य जिलों में भी यही सूरत है ! बाँदा लोकनिर्माण विभाग प्रांतीय खंड एक में ऐसे अभियंता है जो 1998 से एक ही जनपद में तैनात है ! आधी - अधूरी मिली जानकारी की अपील की गई है ! लेकिन सरकारी विभागों का हाल ये ही है पिछड़े जनपद में कि जो यहाँ आ गया जाना नही चाहता है ! लोकनिर्माण विभाग,सिचाई विभाग-नलकूप खंड - केन नहर प्रखंड ,सरकारी डाक्टर ये कुछ ऐसे महकमे है जहाँ मोटी कमाई के चलते आला अधिकारी विभाग की कुर्सी छोड़ना नहीं चाहते ! कंकर-पत्थर- तारकोल,चेक डेम- बंधी तक हजम करने वाले ये अधिकारी ऐसे नही करोड़ों के स्वामी है ! 


जब प्रदेश में मुख्यमंत्री / सरकार जिलाधिकारी की तैनाती पर 70 लाख मांगती है बकौल राष्ट्रीय सचिव एकीकरण अशोक कुमार तब आप समझ सकते है सरकारें कैसे चलती है ! आरोप लगाने वाले सचिव को समाजवादी सरकार ने निलंबित कर दिया है ! वे कहते है आयुक्त मै बनना नही चाहता और डीएम इसलिए नही बन सका मेरे पास सत्तर लाख नही है ! विकास की सड़क क्यों उधडती है और एक मोटर साइकिल का अभियंता कैसे चंद साल में कुबेर पति बन जाता है ! हैरत नही होनी चाहिए इस देश में डाटा तो प्लान में फ्री मिलता है लेकिन रोटी के लिए सामान्य आदमी भीख मांगता है क्योकि हमने इसको स्वीकार कर लिया है ! आप भी अपने जनपद के क्रीमी और कई वर्षो से जमे अधिकारी की जानकारी कीजिये बड़ा झमेला पाएंगे ! #पूरीदालकालीहै फ़िलहाल उत्तर प्रदेश में जल्द ही चुनावी आचार संहिता लगनी है देखिये कितनी जंग छटती है ! - 
                                              
आशीष सागर

Friday, September 02, 2016

किसानी और पानी पर फेसबुक संवाद

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Zeeshan Akhtar
कुछ समय पहले बुंदेलखंड के कई इलाकों में भ्रमण के दौरान यहाँ की समस्याओं को लेकर दिल्ली के सीनियर जर्नलिस्ट पंकज चतुर्वेदी साहब से लम्बी चर्चा हुई. बुंदलेखंड इस समय पानी से तर है. कई इलाकों में बाढ़ है, जो तीन सूखे के बाद नयी आपदा है. हज़ारों लोग घर छोड़ चुके हैं. फसलें बर्बाद हो चुकी हैं. लोग बीमारियों की चपेट में हैं. बुंदेलखंड के अलावा ऐसी कोई जगह याद नहीं आ रही जहां सूखा और पानी दोनों ही तबाही की वजह बन रहे हों. आपदा के बाद भी बुंदेलखंड में सूखे की तरह पत्रकारो का पर्यटन एकदम थमा हुआ है. चैनलों पर CD और Jio छाया है.
झमाझम बारिश है. फिर भी मेरे सामने वाले घर की बोरिंग तीन बार पानी छोड़ चुकी है. इससे ग्राउंड वाटर रिचार्जिंग का हाल बेहतर बारिश के बाद भी बेहतर नहीं लग रहा. यह कहना गलत भी हो सकता है कि यह बारिश आने वाले दिनों में (अगली गर्मी तक) फायदा पहुंचा पाएगी.
       

Pankaj Chaturvedi -आप याद करें कि मैंने कहा था कि बुंदेलखंड की असल दिक्‍कत महज पानी नहीं है जो एक अच्‍छी बरसात से सुलझ जाएगी, यहां का पूरा इकालाजी सिस्‍टम गडबडा गया है, जिसमें जंगल, जमीन, जन, जानवर औल जल भी शामिल है, देखना जनवरी के बाद फिर यहां हाहकार होगा, बुवाई इस बार भी नहीं है, जो तालाब बांधे गए थे वे ओवर फलेा हुए व कई के आने तुडवाए गए, उथली नदियों व रेत निकासी से बेहाल सरिताओं में पानी आया व लुप्‍प से गुम हो गया !
त्वरित उत्तर -
जब तक जंगल,नदी और पहाड़ को लूटने की प्रवृति नही थमेगी आप,मै और बुंदेलखंड सूखे / बाढ़ की आपदा से मुक्त नही हो सकेगा ! इसे नोट कर लीजिये ! यह मानवीय डिजास्टर है नैसर्गिक नही !
Pankaj Chaturvedi - क्‍या बुवाई के नुकसान के कुछ जमीनी आंकडे आ रहे हैं क्‍या ?
त्वरित उत्तर- सत्तर से अस्सी फीसदी खरीफ की फसल चित्रकूट,हमीरपुर में चौपट है बाकि इधर बारिश थमी है रबी की फसल शायद बच जाये !
आपको ये भी बतला दे कि कृषि विभाग किसानों के खाद्य सुरक्षा के अंतर्गत मिले साढ़े तीन करोड़ रूपये भी दबाये बैठा है ! यहाँ किसान कीटनाशक,दवा,बीज और बाढ़ मुआवजे के लिए हलकान है ! इधर कांग्रेस के राहुल गाँधी आगामी 6 सितम्बर से 'किसान यात्रा ' निकाल रहे है ! वे 11 सितम्बर को बाँदा आयेंगे अभी तक जानकारी अनुसार ! मगर चुनावी बरसात में किसान आपदा से कितना उबरेगा ये सब जानते है खाशकर नेता ! किसान को मजदूर समझने वाले ये नेता सत्ता सुख मिलने के बाद एसी में आते-जाते और बरगलाते है !#आशीषसागर



Wednesday, August 31, 2016

विलियम हंटर और मैक्स मूलर ने विकृत की थी मनुस्मृति

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सभ्य लोग अब तो विलियम हंटर और मैक्स मूलर ( विलियम हंटर कमीशन ) के माध्यम से विकृत की गई मनु स्मृति भी जलाने जा रहे है ! जिसमें हिन्दू धर्म / कर्म को विकृत किया गया था ! अंग्रेज ये जानते थे कि अगर भारत के लोगो को बिना भटकाव के आजादी दे दी गई तो ये दुनिया के सबसे ताकतवर लोग होंगे ! इन्हे,इनकी मानसिक स्थति को इतना विकृत कर दो ताकि ये आपस में ही लड़कर 'बौद्धिक - वैचारिक गुलाम' बने रहे ! यही इनके पिछड़ेपन का मूल होगा !              

अच्छा है जब हिंदुस्तान में मुस्लिम दलित बन जावे और दलित किताबी बुद्धजीवी तो युवा दिशा हीन तो होगा ही ! मूल दलित ( दरिद्र ) तो आज तक विकास की मुख्य धारा से कोसों दूर खड़ा है ! गौरतलब है जो सियासी बगुले आज दलित लाबादा ओढ़े है ' जय भीम ' के नारों से ! असल में वे अरबों के स्वामी है ! इसमे नेता से लेकर पूंजीपति तक है ! देश को भ्रमित करने वाले इस शहरी क्रीमी दलित को पुनः भारतीय वेद पढने की आवश्यकता है जिसका जन्म हर संप्रदाय,धर्म,मजहब से पहले हुआ था ! पश्चिम देश भी इस बात को मानकर आज शोध करते घूम रहे है कि जो वेदों में लिखा था वो किसने रचा था ! मुस्लिम,हिन्दू,ईसाई,पारसी और आज के बौद्धिक पांडित्य / दलित का भ्रूण भी तब किसी मांस की कोख में नही आया था ! सिर्फ आदिम,जंगल रहवासी,प्रकृति सहपूरक लोग थे ! बड़ी बात है दुनिया में गणित,कैमस्ट्री,फीजिक्स ,शून्य ,खगोल संरचना,प्रकृति के अंग - नदी,पहाड़,झरने,जीव (जलचर,नभचर,वन्यजीव आदि) सूरज - चाँद तो सबने एक स्वीकार किये लेकिन मजहब और भगवान / खुदा / गॉड को बाँट लिया ! तब तो सब कुछ विभाजित किया जाना चाहिए न ! हर मजहब / धर्म / जाति की प्रकृति / ईको सिस्टम अलग होना चाहिए न ! कहते है जब मानव पढ़ा - लिखा हो जाता है तब वो मानव नहीं विज्ञानी (विकृत ज्ञानी) बन जाता है ! ...वैसे भी आज भारत देश की राजनीती - पार्टीबाजी इन्ही दो पर दलित / मुस्लिम वोट की खेती पका रही है ! लोकतंत्र चला रही है ! गाँव के दीनू,रामू ,सुखिया तमाम दीन - असहाय इस बौद्धिक आतंकवाद को ढ़ोते हुए फटेहाल है ! 
तस्वीर पन्ना टाइगर्स से प्रतीकात्मक - विकास से बेदखल ये गाँव के लोग बौद्धिक ज्ञान से दूर अदद रोजीरोटी की राह तकते है ! जब ये भी किताबी ज्ञानी बन जायेंगे तब आपकी तरह विज्ञानी (विकृत ज्ञानी) होंगे ! बेहतर है ये मानव बने रहे सुविधाभोगी जातीय शैतान नहीं ! देश का चुना हुआ प्रधानमंत्री कथित मन की बात करता है और जनता दलित - मुस्लिम की जूतम पैजार !! सिस्टम है शायद ऐसे ही चलेगा अगले गृह युद्ध तक !

डकैतों की तर्ज पर लोकसेवक नेता बन गए है !

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' लोकतंत्र का रूप है कैसा, कहाँ गया चौरासी पैसा ' ?

एक देश भक्त ने चोर लिख दिया संसद की दीवारों पर,लोकतंत्र मूर्खो का शासन छपी खबर अख़बारों पर ! 

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- पांच वर्ष के लिए निर्वाचित लोकसेवक लोक का मालिक !
- मतदाता से बगैर पूछे विधायिका में बढे विधायकों के वेतन,भत्ते,रेलवे कूपन
- एक विधायक के मासिक वेतन हुआ 1.25 लाख रूपये,सालाना रेलवे कूपन 1.25 लाख,जनसेवा भत्ता 2 हजार प्रतिदिन,सत्र के दौरान डीए 1500 रूपये प्रतिदिन,निजी कार में 25 हजार रूपये का ईधन मासिक मिलेगा !
- किसी भी देश भक्त,वाम पंथी,सेक्युलर,बहुजनवादी,समाजवादी विधायक ने नहीं किया वेतन बढ़ोत्तरी का विरोध ! क्योंकि नियत सबकी पापी है !
- क्या देश के अख़बार,न्यूज़ चैनल एक हफ्ते भी इसी पर लाइव डिबेट करेंगे ?
- उत्तर प्रदेश के 37 पर्यटन आवास / टूरिस्ट बंगले 1 रुपया सालाना लीज पर देंगे समाजवादी अखिलेश यादव ! 
- प्रदेश सरकार का तर्क ये पर्यटन आवास घाटे में है इसलिए निजीकरण होगा !
- क्या गरीब पब्लिक / सामान्य आदमी को ये बंगले किराये पर नही दिए जा सकते ? मुझे दीजिये मै लेने को तैयार हूँ अखिलेश यादव जी !


  -एक रूपये सालाना लीज पर भू-माफिया,कारपोरेट,नेता क्यों हथिया लेवे सरकारी संम्पति ?
- देश के साढ़े तीन हजार चुने हुए ' लोकसेवक ' देश को गिरवी रख रहे है ! ये आपके भाग्यविधाता भी है !
- उत्तर प्रदेश के चार सौ विधायक तर्क ये देंगे कि दिल्ली,मुंबई,विदेशो में भी तो वेतन अधिक मिल रहा है !
- देश के बौद्धिक युवा अब आईएएस / तकनीकी / कार्पोरेट में जाने से बेहतर इस राजनीतिक पेशे में क्यों नही आ रहे ? 
- व्यवस्था को गाली देने,भ्रष्ट दल के थोपे प्रत्याशी से अच्छा क्या हम निर्दलीय चरित्रवान,कर्मठ सामान्य आदमी को लोकसेवक / विधायक / सांसद नही बना सकते ? 
- अब से तीन दशक पहले क्या राजनीतिक व्यवस्था इतनी बेख़ौफ़,दबंग और निरंकुश थी ?
- आर्थिक असमानता से घिरा ये भारत का लोकतंत्र क्या वैचारिक गुलामी की तरफ नही जा रहा है ?
- हाल ही में उत्तर प्रदेश का अनुपूरक 25 हजार करोड़ का बजट पेश हुआ उसमे आपदा क्षेत्र बुंदेलखंड का पूरा बजट और सैफई के बजट की तुलना कर ले बाकि जिलों की तो बात ही क्या ! 
बाँदा - 1 सितम्बर को समाचार पत्र में प्रकाशित मंत्रियो के बाद विधायको के वेतन मासिक 1.25 लाख रूपये होने पर पैलानी रहवासी सूचनाधिकार कार्यकर्ता सुनील श्रीवास्तव ने फोन किया ' भाई जी ये व्यवस्था कैसे बदलेगी ' उसको सुनता रहा ! मेरे पास उसके सवालों का उत्तर नहीं था ! उससे यही कहाँ कि गाँव के डिग्री धारक लडको से कहो चौपाल में बैठकर जुआ खेलना बंद करे,चुनावी घड़ियालों की जूठन न खाए ! दारु,मुर्गा,गाड़ी - हल्ले के भोकाल में मुद्दा विहीन नेताओं ( उनमें बालू माफिया,दुराचारी,दलबदलू,दबंग आदि ) का बहिस्कार करों ! इनसे इनका चुनावी एजेंडा,घोषणा पत्र रजिस्टर्ड शपथ पत्र में लो ! चुनाव जीतने के बाद गर ये मुकरे तो इनकी सार्वजानिक झांकी भर्सना-अपमानित करके चौराहा बनाकर निकालों ! सरकारी मातहती को छोड़कर किसान के बेटे और किसान के साथ शहरी लोग गंभीरता से अपने बीच के निर्दलीय - कर्मठ भले ही वो धन से वंचित हो व्यक्ति को मतदाता अपने घोषणा पत्र बनाकर लोकसेवक बनाये ! एमबीए,बीटेक,आईटी में घूस देकर नौकरी करने वाले युवा इस देश में बदलाव के लिए राजनीतिक कार्यभार अपनाये ! ऐसा हाल में कुछ एक ग्राम प्रधानी में प्रयोग हुए भी है ! ( राजस्थान के सोडा ग्राम पंचायत,जयपुर की छवि रजावतसहित यूपी के ग्राम प्रधान चुनाव में पढ़े - लिखे युवा आये )  बाकि जिंदगी भर मलाल करने से अच्छा है या तो राजनीतिक आतंकवादियों का सफाया करो या खुद को इसी परतंत्रता के लिए समर्पित करे रहो ! अपनी नस्लों को तिल-तिल कर मरने और कुंठित रहने के लिए ! मेरे पास सुनील यही समाधान है भारत माता को बचाने के लिए ! नही तो आत्महत्या कर लो व्यथित होकर !! वही राज्यसभा टीवी के संवाददाता अरविन्द कुमार सिंह फेसबुक मेंलिखते है कि 
केजरीवाल साहब के लिए जान केरी ने बेहतरीन कमेंट दिया है। वाकई लोग समय से पहुंचे थे उनसे जान केरी ने पूछा क्या आप लोग नाव से आए हैं। बातें दिल्ली के कायाकल्प की हुई थी लेकिन दिल्ली तीन घंटे की बारिश में भी नदी बन जाये तो बेशक नीति निर्माताओं को पानी पानी हो ही जाना चाहिए। उस सरकार को तो और भी जिसका 40,000 करोड़ रुपए से अधिक का सालाना बजट है जो कई पूर्ण राज्यों से भी अधिक है।#यूपीसीएम #आजादभारत #वैचारिकगुलामी

राजेन्द्र सिंह ' राणा ' उर्फ़ जलपुरुष को नहीं है केन बेतवा लिंक का जमीनी ज्ञान !

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बुंदेलखंड में प्रस्तावित केन - बेतवा नदी गठजोड़ को लेकर केन्द्रीय जलमंत्री उमाभारती बहुत व्याकुल है ! वे हर कीमत पर ये लिंक चाहती है ! वे खुद को पर्यावरणविद भी बतला चुकी है दिल्ली के एक संवाद चर्चा में ! देश के घोषित जलपुरुष ने आज तक केन बेतवा लिंक पर न कभी कोई अध्ययन किया और न बयान दिए ! लेकिन इस रिपोर्ट में वे स्वयं को पहली बार इस लिंक के विपक्ष में खड़ा करते हुए बांध स्थल के अध्ययन की बात कह रहे है ! इसके साथ लेख में राजेन्द्र सिंह ने महोबा के चंद्रावल नदी ( जिसे लेख में चमरावल ) लिखा है को पुनर्जीवित करने का ज़िक्र किया है ! जबकि चन्द्रावल हरी काई की नाली है जिसका पुरसाहाल बीते मई माह तक किसी ने नहीं लिया गर ऐसा होता तो महोबा के खन्ना ग्राम के लोग चन्द्रावल नदी की काई को साफकर चोहड़ से प्यास नही बुझाते !

आज तक राजेन्द्र सिंह केन - बेतवा लिंक बांध एरिया नही गए है अगर गए है वैज्ञानिक अध्ययन के वास्ते प्रो. जी. डी. अग्रवाल, प्रो. आर. एच. सिद्दिकी, श्री परितोष त्यागी और रवि चोपड़ा के साथ तो तस्वीर जारी करे !
महोबा में जो तालाब मुख्यमंत्री ने खुदवाये वो टेंडरिंग व्यवस्था / ठेकेदारी से खुदे जेसीबी से जबकि राजेन्द्र सिंह ने कहा की बिना ठेकेदारी के खुदे है ! मजेदार बात ये है की 100 तालाब पूरे बुंदेलखंड के लिए थे न कि अकेले महोबा के लिए अधूरी जानकारी क्यों जलपुरुष जी ? समाजवादी सरकार के सरकारी विज्ञापन में छपने वाले ये वही लोग है जो अखिलेश यादव के कागजी आंकड़े वाले एक करोड़ और पांच करोड़ पौधे में चुप है विश्व रिकार्ड लेने तक ! फ़िलहाल इन्होने बांध का विरोध किया इसके लिए आभार मगर हवा में नहीं बोलना चाहिए सिरमौर बन जाने को ! साथ ही उनके करीबी संजय सिंह राष्ट्रीय संयोजक जल -जन जोड़ो अभियान जिसके राजेन्द्र सिंह अध्यक्ष है वें 13 फरवरी 2016 के दैनिक जागरण समाचार पत्र की खबर में 'पचनद' बाँध का समर्थन कर चुके है ! बुंदेलखंड के भौगोलिक और जंगलीय पारिस्थिकी तंत्र को तहस -नहस करेगा ये नदी गठजोड़ यह तय है !
( आवश्यकता पड़े तो तस्वीर दे सकते है महोबा के ठेकेदारी तालाब और केन बेतवा बाँध स्थल की ) श्री अरुण तिवारी की नीचे दी गई रिपोर्ट इंडिया वाटर
http://hindi.indiawaterportal.org/Rajendra-Singh
पोर्टल हिंदी में भी है ) अजब-गजब बड़बोला पन !
http://www.dudhwalive.com/2016/08/watermans-statements.html

Monday, August 29, 2016

बाँदा का छाबी तालाब पाटकर नगर पालिका ने विकास किया !

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तालाब की गीता ' आज भी खरे है तालाब ' जब नीर की कहानी कहती है तब बुंदेलखंड के सैकड़ो ऐसे तालाब अपने विकास की कब्रगाह बन चुके है ! 
बुंदेलखंड के बाँदा में अतिक्रमण से लगभग मिट चुके छाबी तालाब में रक्षाबंधन पर कजली विसर्जित करती महिला ! महोबा के कीरत सागर में हर साल बड़ा मेला लगता था ! अब तो स्थानीय प्रसाशन उस मेले में नचैयो को देखने पर करोडो फूंकता भी है ! रम्पत हरामी की नौटंकी देखने लोग आते है मगर तालाब संवाद को नही ! बाँदा के इस तालाब के अतिक्रमण पर न महिला बोलती है और न अन्य ! उन्हें जब तालाब नही रहेगा उस दिन का स्मरण भी तो करना है ! नगर पालिका बाँदा अध्यक्ष के ठेकेदारों ने इसका सार्वजानिक दुराचार कर लिया है इसको पाटकर ! 


एक स्थानीय चोर आबिद बेग ने ये तालाब बनवाया था तब 22 एकड़ से अधिक था आज महज बारह बिस्वा से कम है वो भी विकास / सुन्दरीकरण की भेंट चढ़ गया ! बामदेश्वर ( अब बाम्बेश्वर ) पहाड़ की तलहटी में बना ये तालाब अपनी सुन्दर छवि के लिए जाना जाता था ! फ़िलहाल ये मुद्दे स्थानीय चुनाव में भी नही उठते क्योकि होर्डिंग छाप नेताओं को शहर के चौराहे अतिक्रमित करने में मजा आता है सरोकार उनके लिए वोट लेने का हुनर नही है ! हाँ फुटपाथ का अतिक्रमण जब हटता है तब अवश्य गरीब उजड़ गए जिलाधिकारी साहेब ! ये राजनीती होती है ! नगर सुन्दर रहे या नहाने का बाथरूम हमें तो वोट से मतलब है ! सूखा चला गया तो अब तालाब की जरूरत क्या है अगली गर्मी में फिर बतियाएंगे ! तब तक पूर्ण विराम !! अरे हाँ तालाबों पर बने कानून की बात न करना वे सरकारी फाइल गार्ड में अच्छे लगते है ! आशीष सागर